लखनऊ। अखिलेश यादव सरकार से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में मुलायमपंथी कई दिग्गज पत्रकारों को काफी निराशा हाथ लगी है। अभी किसी के नाम की घोषणा नहीं की गई है। लेकिन जिन लोगों के नाम पर सहमति बनी है उनमें एक सपा मुखिया के रिश्तेदार बताए जा रहे हैं। जिन लोगों को मौका नहीं मिला है उनमें काफी संख्या ऐसे पत्रकारों की है जो मुलायमपंथ के अनुयायी रहे हैं।
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सफेदपोश नटवरलाल की ढाल और दुधारू गाय बना स्वतंत्र भारत
लखनऊ। गौरवशाली अतीत वाला दैनिक समाचार पत्र स्वतंत्र भारत सफेदपोश नटरवर लाल केके श्रीवास्तव के लिए दुधारू गाय बन गया है। स्वतंत्र भारत के सेन्ट्रल बैंक का खाता नम्बर 1233701786 के स्टेटमेंट से यही संकेत मिल रहे हैं। खाते में प्रतिमाह लगभग तीस लाख रुपए का ट्रांजेक्शन हो रहा है। इसके बावजूद जहां सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं करोड़ों रुपए का ऋण बकाया है वहीं स्वतंत्र भारत के कर्मचारियों को छह माह से वेतन नहीं मिला है। कर्मचारियों की बदहाली पर मीडिया के स्वंयभू नेता और सरकार चुप्पी साधे हुए हैं।
दिग्गज पत्रकारों को ठगा सफेदपोश नटवर लाल ने
लखनऊ। भगवान राम का 14 वर्ष में वनवास पूरा हो गया था, लेकिन स्वतंत्र भारत के कर्मचारियों का वनवास अभी भी जारी है। सफेदपोश नटवरलाल स्वतंत्र भारत के मालिक के.के. श्रीवास्तव ने अपने जालसाजी और राजनीतिक पहुंच के बल पर बड़े-बड़े दिग्गज पत्रकारों को छला है। वर्ष 1998 में स्वतंत्र भारत में तालाबंदी से सड़क पर आए सैकड़ों कर्मचारी आज भी न्याय के लिए लड़ रहे हैं।
स्वतंत्र भारत : मालिक लूटे मजा, कर्मचारी काटे सजा
लखनऊ। एग्रो पेपर मोल्डस लिमिटेड जगदीशपुर, एग्रो फाइबर जगदीशपुर, एग्रो पेपर एंड पल्प, एग्रो फाइनेंस एवं प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की नींव पर हुई थी। यही वजह है की चारों कम्पनियां दम तोड़ चुकी है। जहां इन कम्पनियों पर सरकारी और गैर सरकारी वित्तीय संस्थाओं का करोड़ों रुपए बकाया है वहीं निवेशकों का पैसा भी डूब गया है। जबकि इन कम्पनियों का मालिक विलासतापूर्ण जीवन जी रहा है।
सफेदपोश नटवरलाल! : स्वतंत्र भारत अखबार के मालिक पर करोड़ों रुपए बकाया
लखनऊ। 1912 से लेकर 1996 तक 8 राज्यों के उद्योगपतियों के लिए चुनौती बने मिथलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवरलाल अपने ठगी के कारनामों से जो शोहरत हासिल की थी, उस राह पर अब उत्तर प्रदेश का एक सफेदपोश नटवरलाल चल रहा है। इस सफेदपोश नटवरलाल ने अपनी ठगी के कौशल के बल पर जहां सरकारी संस्थाओं को करोड़ों रुपए का चूना लगाया वहीं आजादी की पहली किरण का साक्षी दैनिक समाचार पत्र स्वतंत्र भारत के पूर्व और वर्तमान कर्मचारियों को दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर कर दिया है। इस सफेदपोश नटवरलाल के खिलाफ सरकारी धन को हड़पने के कई मामले चल रहे हैं, लेकिन कुछ आईएएस अफसर और राजनीतिक आकाओं के संरक्षण के कारण कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (25) : अपात्र पत्रकारों को खदेड़ने के लिए पीआईएल के इंतजार में सरकार!
लखनऊ। अपात्र पत्रकारों से सरकारी आवास खाली कराने से सरकार हिचक रही है। खुद का निजी आवास होने के बाद फर्जी हलफनामों के सहारे सरकारी आवासों में मौज कर रहे पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकार जनहित याचिका का इंतजार कर रही है। यही वजह है कि भारी संख्या में सरकारी आवासों में अपात्र पत्रकारों रह रहे हैं। जबकि वाजिब पत्रकार सरकारी आवास के लिए मारे-मारे घूम रहे हैं।
भ्रष्ट पत्रकारिता (24) : पत्रकारों के मुफ्त इलाज के सीएम की घोषणा पर नौकरीशाही का ठेंगा
पीजीआई में राज्य कर्मचारियों की भांति मान्यता प्राप्त पत्रकारों को मुफ्त इलाज कराए जाने की मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की घोषणा अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष ने कई बार मुख्यमंत्री को अपनी घोषणा पर अमल करने की याद दिलाई। लेकिन नौकरशाही के निरंकुश रवैए के कारण मुख्यमंत्री की घोषणा अमल में नहीं हो पाई है। इसको लेकर पत्रकारों में रोष है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (23) : सरकार की नजर में पत्रकार के मौत की कीमत बीस हजार!
लखनऊ। प्रदेश सरकार की नजर में ईमानदार पत्रकार की मौत का मुआवजा सिर्फ बीस हजार रुपए है। दुख, दर्द और अभावों में जीवनयापन कर रहीं दिवंगत मान्यता प्राप्त पत्रकार सुधीर कुमार लहरी की पत्नी निधि श्रीवास्तव ने जहां 20 हजार रुपए की आर्थिक सहायता अखिलेश यादव सरकार को वापस करके तगड़ा झटका दिया है वहीं पत्रकारों की गैरत को ललकारा है। उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति इस मुद्दे को लेकर जल्द मुख्यमंत्री से मिलकर पत्रकार कल्याण कोष गठित करने की मांग करेगी।
भ्रष्ट पत्रकारिता (22) : प्रेस क्लब में खुला है अवैध रेस्टोरेंट, किराया चौकड़ी की झोली में!
प्रेस क्लब को एक पदाधिकारी ने अवैध रेस्टारेंट खुलवाने में अहम भूमिका निभाई। दलाली मोहल्ले का कोई दलाल अगर गलत कार्यों पर उतर आए तो भले ही खुद अनाधिकृत कब्जेदार हो, लेकिन उसने अपने ऐशोआराम के लिए यूपी प्रेस क्लब को ही किराए पर चलाना शुरू कर दिया। दलाली मोहल्ले के इसी दलाल और यूपी वर्किग जर्नलिस्ट यूनियन की चौकड़ी ने मिलकर प्रेस क्लब में लंबी-चौड़ी राशि पर लोगों को किराए पर रेस्टोरेंट दे रखा है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (21) : खामियों की खान है प्रेस क्लब, टायर्ड-रिटायर्ड लोगों की भरमार
: नए पत्रकारों के लिए बंद है प्रेस क्लब के दरवाजे : 9 नवंबर 1989 को प्रदेश सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई मार्ग स्थित चाइना बाजार स्थित इस भवन को तीस वर्षों के लिए 8 लाख 78 हजार 460 के नजराने पर दिया था और सालाना 21961.30 पैसे सालाना लीज पर दिया था। 1968 में इस भवन का पट्टा यूपी वर्किग जर्नलिस्ट यूनियन के नाम पर दस वर्ष के लिए हुआ था। 1978 में यह पट्टा समाप्त हो गया। तीस साल बीत गए लेकिन इसका पट्टा बढ़वाने की कार्रवाई नहीं की गई। सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इस पर लखनऊ विकास प्राधिकरण ने भी चुप्पी साध रखी है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (20) : कुछ पत्रकारों की निजी जागीर बना यूपी प्रेस क्लब!
लखनऊ। बीते 57 सालों में यूपी की आबादी बढ़कर लगभग 22 करोड़ के करीब पहुंच गई है। भले ही केन्द्र और प्रदेश सरकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद जनसंख्या नियंत्रण करने में असफल हो गए हों, लेकिन 57 साल पहले स्थापित यूपी प्रेस क्लब के सदस्यों की संख्या 200 से अधिक पार नहीं कर पाई है। यह अजब कारनामा यूपी प्रेस क्लब ने किया है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (19) : कौन है निष्पक्ष प्रतिदिन का मालिक?
लखनऊ। राजधानी लखनऊ से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र निष्पक्ष प्रतिदिन का असल मालिक कौन है, यह यक्ष प्रश्न मीडिया और नौकरशाही को परेशान कर रहा है। आरटीआई के तहत मिली सूचनाओं से यह तथ्य प्रकाश में आए हैं कि निष्पक्ष प्रतिदिन समाचार पत्र का असल मालिक सहकारी समिति लखनऊ है। यह समाचार पत्र 2002 से लेकर 2007 तक बंद रहा। सरकारी दस्तावेजों में घोषित 420 और फ्राड पत्रकार जगदीश नारायण शुक्ल का अब इस समाचार पत्र पर अवैध कब्जा है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (18) : शरत प्रधान और कमाल खान ने सम्पत्ति के लिए बनाया सिंडीकेट!
लखनऊ। चैनलों पर तमाम सेलेब्रिटी टाइप पत्रकारों को अक्सर अफसरों और नेताओं के भ्रष्टाचार पर नैतिकता का पाठ पढ़ाते और डिबेट करते हुए देखा होगा। लेकिन रियल लाइफ में उनसे कम नहीं हैं। लखनऊ के कुछ पत्रकारों को अकूत सम्पत्ति बनाने का जुनून है। करोड़ों रुपए की चल-अचल सम्पत्ति को हासिल करने के लिए कुछ पत्रकारों सिंडीकेट बनाकर योजनाबद्ध ढंग से मुहिम में लगे हुए हैं।
भ्रष्ट पत्रकारिता (17) : दिव्य संदेश ने खोला जगदीश नारायण शुक्ल के खिलाफ मोर्चा, बताया 420 पत्रकार
लखनऊ। ये दो कहावतें 'कौवा चला हंस की चाल' और 'नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली' निष्पक्ष प्रतिदिन के तथाकथित सम्पादक जगदीश नारायण शुक्ल पर सटीक साबित होती है। तमाम नेताओं और अफसरों के खिलाफ अनर्गल खबरें छपवाकर अपने काले कारनामों से मीडिया को शार्मिंदा करने वाले यह सफेदपोश 420 पत्रकार करोड़ों रुपए की चल-अचल का मालिक बन गया है। पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी शशांक शेखर सिंह का करीबी होने के कारण इस 420 पत्रकार के खिलाफ ब्लैकमेलिंग और घपलों की तमाम शिकायतों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (16) : पत्रकार जगदीश नारायण शुक्ल के खिलाफ फर्जीवाड़े के कई मुकदमे
पत्रकार जगदीश नारायण शुक्ल का विवादों से गहरा नाता रहा है। नेताओं और अफसरों को भ्रष्ट बताने वाले ये महानुभाव पत्रकार के खिलाफ फर्जीवाड़े कई जगह मुकदमें चल रहे हैं। सिर्फ पत्रकारिता के सहारे नो प्रॉफिट, नो लॉस के फंडे के बल पर पत्रकार श्री शुक्ल को करोड़पति बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। भ्रष्टाचार की खबरें प्रकाशित करवाकर और जनहित याचिका दाखिल कर नेताओं और आईएएस अफसरों को घुटने टिकवाने की कला के बल पर उस कहावत 'मेरा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं' को चरितार्थ कर दी है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (15) : निष्पक्ष प्रतिदिन के संपादक के आगे क्यों नतमस्तक है सरकार?
लखनऊ। क्या यूपी की अखिलेश यादव सरकार सफेदपोश पत्रकार जगदीश नारायण शुक्ल के आगे नतमस्तक हो गई हैं? यह सवाल मीडिया और नौकरशाही को बीते 11 माह से मथ रहा है। इस पत्रकार के फर्जीवाड़े के कारनामों की गूंज विधान सभा में गूंज चुकी है। विधान सभा में मुख्यमंत्री को इस भ्रष्ट पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई के लिए आश्वासन देना पड़ा। लगभग 11 माह बीत जाने के बाद लखनऊ के जिलाधिकारी ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (14) : नाम का रोजगार, पर करोड़पति शरद प्रधान!
मन मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,
ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।
झूठों के घर पंडित बांचें, कथा सत्य भगवान की,
जय बोलो बेईमान की!
भ्रष्ट पत्रकारिता (13) : विधानसभा में चंपूगिरी करके जमाते हैं धाक
विधानसभा के जितनी संख्या विधायकों की है, उससे कुछ ही कम संख्या प्रेस दीर्घा में बैठने वाले मीडिया कर्मियों की है। जिस हिसाब से थोक के भाव में मीडियाकर्मियों को प्रेस दीर्घा के पास निर्गत किए गए उसके चलते अब विधानसभा की ऊपर नीचे दो दीर्घाएं इतनी हाउसफुल है कि अब पत्रकार तीसरी दीर्घा की ओर लोग बढऩे लगे है। प्रेसदीर्घा के पास निर्गत करने का कोई मापदंड नहीं है। जिले से लेकर तहसील और मंडल स्तर तक के मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सत्र कवरेज के पास निर्गत हुए हैं। ऐसे लोगों के पास निर्गत करने की सिफारिश करने वालों में अपने ही बीच के लोग है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (12) : सरकारी आवास में मजा, निजी आवास में कारोबार
अपने पेशे के प्रति कम और राजनीतिक दलों के साथ अधिक निष्ठा दिखाई है यूपी के कई नामचीन पत्रकारों ने, इस कला को मीडिया और जनता ने भी देखा है। यूएनआई में कभी पत्रकार रहे एक महाशय शुरुआती समय सपा के कई नेताओं के करीबी रहे। लेकिन सपा में इन पत्रकार महोदय का मिशन नहीं पूरा हो पाया। लेकिन गोमती नगर के विराज खण्ड में 1/61 सब्सिडी प्लाट प्राप्त करने में जरूर सफलता हासिल की। इन्होंने बीते एक दशक के अंदर अपनी निष्ठा में बदलाव करते हुए बसपा सुप्रीमो पर एक किताब लिख डाली।
भ्रष्ट पत्रकारिता (11) : झूठे हलफनामे के सहारे सरकारी आवासों में जमें हैं कई पत्रकार
लखनऊ। एक अनार सौ बीमार। यह कहावत पत्रकारों पर सटिक साबित हो रही है। सरकारी आवास पाने की आकांक्षा वाले पत्रकारों की लम्बी फेहरिस्त है। लेकिन राज्य सम्पत्ति विभाग की लापरवाही और सफेदपोश क्रीमीलेयर पत्रकारों की सरकारी आवासों पर अघोषित कब्जे की वजह से वास्तविक पत्रकार मारे-मारे घूम रहे हैं। जबकि सफेदपोश क्रीमीलेयर पत्रकारों ने सरकार से गोमती नगर में सब्सिडी प्लाट और आवास लेने के बाद कारोबार कर रहे हैं।
भ्रष्ट पत्रकारिता (10) : देखिए सरकार से सस्ते दर पर प्लाट पाने वाले पत्रकारों की लिस्ट
लखनऊ में पत्रकारिता करने वाले सैकड़ों लोगों को यूपी सरकार पत्रकार कोटे से सस्ते दर पर प्लाट उपलब्ध करा चुकी है. तमाम पत्रकार इन प्लाटों पर निर्माण भी करा चुके हैं. इसके बावजूद ज्यादा पत्रकार अपने प्लाटों पर बनाए गए भवनों को किराए पर देकर सस्ते दर पर सरकारी आवासों में रह रहे हैं. कई लोग तो गलत हलफनामा देकर सरकारी आवासों में नियम विरुद्ध निवास कर रहे हैं. मामला पत्रकारों से जुड़ा होने के चलते सरकारी अधिकारी भी इसमें ज्यादा खोजबीन नहीं करते.
भ्रष्ट पत्रकारिता (9) : महेंद्र मोहन और संजय गुप्ता ने भी हथिया रखे हैं सरकारी बंगले!
'अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट,
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोर्ट'
प्रसिद्ध कवि काका हाथरसी की यह कविता कुछ पत्रकारों पर सटीक साबित होती है। अगर आपको नियम-कानून की धज्जियां उड़ानी नहीं आती है तो इसका प्रशिक्षण इन कुछ दिग्गज पत्रकारों से ले सकते हैं। इस अनमोल प्रतिभा ने 'क्रीमीलेयर पत्रकार' बना दिया है। नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले हरफनमौला पत्रकारों के 'किस्सों' से मीडिया और राजनीतिक दल का हर तबका परिचित है। लेकिन मीडिया के नियम विरूद्ध कारनामों पर कार्रवाई करने की हिम्मत न तो नौकरशाहों में है और नहीं सरकारों में है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (8) : ‘गरीब पत्रकार’ बन गए आलीशान हवेलियों के मालिक?
लखनऊ। यूपी के कई दिग्गज पत्रकारों के लिए पत्रकारिता शोपीस बन गई है, तभी तो इसकी आड़ में पत्रकारिता के बजाए फंड मैनेजर का काम कर रहे हैं। अब काफी संख्या में पत्रकारों में गलत कार्यों की कलई खोलने के बजाए मलाई खाने का कल्चर काफी बढ़ गया है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (7) : नोटिस के बाद भी सरकारी आवासों में जमे हैं पत्रकार
यूपी के इतिहास में पहली बार 54 पत्रकारों को सरकारी आवास खाली कराने का नोटिस राज्य सम्पत्ति विभाग ने दिया। इसका श्रेय प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री राकेश गर्ग, सचिव मुख्यमंत्री अनीता सिंह और राज्य सम्पत्ति विभाग के विशेष सचिव राजकिशोर यादव को जाता है। बीते 9 नवम्बर 2012 को हुई पत्रकारों के आवास आवंटन और नवीनीकरण के लिए हुई बैठक में यह बात सामने आई कि काफी संख्या में अपात्र पत्रकार सरकारी आवासों पर निवास कर रहे हैं।
भ्रष्ट पत्रकारिता (6) : सूचना विभाग भी कन्फ्यूज – पत्रकार हैं या मैनेजर?
नौकरशाही के लचीले रुख के कारण तथाकथित पत्रकार पंकज वर्मा राजभवन कालोनी के आवास संख्या पांच (टाइप-5) में कई वर्षों से नियम-कानून को ताक पर रखकर निवास कर रहे हैं। सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग अभी यह तय नहीं कर पाया है कि श्री वर्मा पत्रकार हैं या मैनेजर। सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का मानना है कि पंकज वर्मा न तो पूर्णकालिक पत्रकार की श्रेणी में आते हैं और न ही राजनीतिक सम्पादक। उनको राजनीतिक सम्पादक के रूप में आवंटित हुआ आवास नियमों के तहत उचित हैं। आवास आवंटन को बचाए रखने के लिए पंकज वर्मा कोर्ट गए, लेकिन कोई राहत नहीं मिली।
भ्रष्ट पत्रकारिता (5) : नवीन जोशी और इंदुशेखर पंचोली अच्छी पत्रकारिता के रोड मॉडल
निष्पक्ष दिव्य संदेश में प्रकाशित हो रही खबरों से मीडिया के कुछ पत्रकारों की प्रतिक्रिया उत्साहित करने की रही और कुछ पत्रकारों को यह नागवार गुजरा। लेकिन मीडिया के लगभग 70 फीसदी पत्रकारों ने निष्पक्ष दिव्य संदेश की खबरों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सराहना की है। मीडिया से जुड़े लोगों का मानना है कि पत्रकारिता के दिग्गजों को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि उनके आचरण से पत्रकारिता के पवित्र पेशे पर उंगली न उठे।
भ्रष्ट पत्रकारिता (4) : स्वतंत्र एवं वरिष्ठ के नाम पर उठा रहे गलत फायदा
लखनऊ में स्वतंत्र और वरिष्ठ पत्रकारों की भरमार है। स्वतंत्र पत्रकारों में के. विक्रम राव, घनश्याम दुबे, योगेन्द्र द्विवेदी, अजय कुमार, सर्वेश कुमार सिंह, राजीव शुक्ला, अनूप श्रीवास्तव, सुरेश द्विवेदी, मसूद हसन, निरंकार सिंह, रवीन्द्र सिंह, मुदित माथुर, हसीब सिद्दीकी, राम उग्रह, श्याम कुमार, कुलसुम तल्हा, अजय कुमार सिंह, मुकेश कुमार अलख, कुमार सौवीर, राजेश नारायण सिंह, पवन कुमार सिंह हैं।
भ्रष्ट पत्रकारिता (3) : लाल बत्ती की लालसा में परेशान हैं
बात एक ऐसे पत्रकार की जो कभी अपने को राष्ट्रीय स्वंय संघ की पृष्ठभूमि बताकर लाभ लेते रहे और अब वे मौजूदा सरकार से कोई लाभ का पद लेने के लिए खासे उतावले है। कई बार अपना बायोडाटा ऊपर तक पहुंचा चुके है। उनकी करीबियों की माने तो उन्होंने पद्मश्री पाने के लिए एक सिफारिशी चिट्ठी लिखाई। यही नहीं इससे पूर्व उन्होंने सरकार से लालबत्ती करने के लिए काफी कोशिश की लेकिन बाकी लोगों की तरह उन्हें इंतजार करने की घुट्टी दे दी गई।
भ्रष्ट पत्रकारिता (2) : लाभ पाने में खुद सबसे आगे, दूसरों को नसीहत
कमोबेश यही स्थिति एक वरिष्ठ पत्रकार की है एक विदेशी न्यूज एजेन्सी का संवाददाता होने के साथ ही वे काफी समय तक पत्रकारों के नेता भी रहे हैं। इलाहाबाद के बाद लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले यह महोदय नहीं चाहते कि उनके आगे कोई दूसरा अपने को सत्तारूढ़ दल का सबसे बड़ा वफादार साबित करे। प्रेस क्लब हो या मान्यता समिति दोनों के लिए अध्यक्ष रह चुके यह महोदय कंधे पर बैग टांगे लोगों को स्वस्थ्य पत्रकारिता के टिप्स दिया करते है।
भ्रष्ट पत्रकारिता (1) : पत्रकार हैं- लड़ते-भिड़ते, उलझते-गालियां खाते दिख ही जाते हैं
दो तीन समाचार पत्रों के ब्यूरोचीफ की जिम्मेदारी निभा चुके यह महोदय इन दिनों अपनी इस समय एक ऐसे समाचार पत्र में यह ओहदा संभाले हुए है। जिसकी बुनियाद में ही बसपा सरकार के घोटालेबाज मंत्री का सब कुछ लगा है। हमेशा दूसरों को परेशान करने के लिए परेशान रहने वाले इन महोदय के सामने इस समय पहचान का बड़ा संकट है। जब किसी अधिकारी या नेता को फोन करते है तो पहले उस अखबार का नाम बताते हैं, जहां पहले काम करते थे फिर कहते हैं सरजी अब इस अखबार को देख रहा हूं।
प्रॉपर्टी के लिए लखनऊ के बड़े पत्रकारों ने नैतिकता रखी ताक पर, देखें लिस्ट
लखनऊ। 'राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों का पाप धोते-धोते' की तरह नेताओं और अफसरों के भ्रष्टाचार को उजागर करते-करते पत्रकारों के दामन भी मैले हो गए हैं। मीडिया के भ्रष्टाचार ने साबित कर दिया है कि नेता, अफसर और पत्रकार भ्रष्टाचार के हमाम में सब नंगे हैं। समाज के लिए आईना माने जाने वाले कुछ पत्रकारों ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए प्रतिष्ठित पेशा पत्रकारिता को बदनाम कर दिया है। शासन भी पत्रकारों के मुद्दे पर कोई खास कार्रवाई करने के मूड में नहीं है।