अपने जन्म के समय से ही देश के मीडिया जगत में हलचल मचाने वाली वेबसाइट भड़ास4मीडिया डाट काम bhadas4media.com ने एक बार फिर हिंदी-अंग्रेजी सभी मीडिया वेबसाइटों में नंबर वन की पदवी हासिल कर ली है. किसी भी हिंदी मीडिया वेबसाइट का भड़ास से कभी मुकाबला नहीं रहा. भड़ास बाकियों से कई गुना आगे रहा है और है. अंग्रेजी की कई स्थापित वेबसाइटों को पहले भी भड़ास ने पछाड़ा और फिर पछाड़ कर नंबर वन मीडिया वेबसाइट का स्थान हासिल कर लिया.
वेबसाइटों की रैंकिंग की आंकलन करने वाले एलेक्सा के आंकड़ों पर गौर करें तो भड़ास4मीडिया इस समय दुनिया भर की वेबसाइटों में पैंतीस हजार की पोजीशन पर है. अंग्रेजी की मीडिया वेबसाइट छत्तीस हजार से लेकर पचास हजार और एक लाख तक की पोजीशन पर हैं. हिंदी की मीडिया वेबसाइट एक लाख से ज्यादा से लेकर दो लाख और तीन लाख तक पर हैं. इस तरह भड़ास सबसे उपर है. जो वेबसाइट जितनी पापुलर होती है और जितनी ज्यादा देखी-पढ़ी व क्लिक की जाती है, उसकी रैंकिंग उतनी ही निखरती जाती है.
भड़ास के जरिए आम मीडियाकर्मी के दुख-दर्द को प्रकाशित करने और मीडिया हाउसों के घपलों-घोटालों का भंडाफोड़ करने के कारण कुछ मीडिया हाउसों ने साजिश रचकर पहले मुझे और फिर बाद में कंटेंट एडिटर अनिल सिंह को गिरफ्तार कराया और जेल भिजवा दिया था. उन ढाई-तीन महीनों के दौरान भड़ास कुछ एक दिन के लिए बंद भी हुआ. कंटेंट अपडेशन का काम बुरी तरह बाधित हुआ. मीडिया हाउसों का मकसद किसी तरह भड़ास को बंद कराना था, इसलिए इसके संचालकों को प्रताड़ित कराया गया और जेल में लंबे समय तक रखवाया गया. उन दिनों भड़ास की रैंकिंग काफी नीचे गिरी. सत्तर पचहत्तर हजार के आसपास भड़ास की रैंकिंग गिरकर पहुंच गई थी. लेकिन जेल से छूटने के बाद अनिल और मैंने फिर से वही तेवर बरकरार रखा और मीडिया जगत को बता दिया कि बाजार के इस दौर में बिकाऊ लोगों की भीड़ के बीच कुछ ऐसी भी मिट्टी के बने होते हैं जो मुश्किलों से घबराने व टूटने की जगह ज्यादा निखरते हैं और दुगुने उत्साह के साथ अपने मिशन पर जुट जाते हैं.
कंटेंट इज किंग का नारा मीडिया का रहा है लेकिन दुर्भाग्य से मीडिया ही मार्केट इज किंग का अघोषित नारा अपनाकर कंटेंट को बेच खाने पर आमादा है. ऐसे दौर में सरोकारी पत्रकारिता की पताका फहराते हुए अनिल और मैंने हजारों मीडियाकर्मियों और शुभचिंतकों के दम पर भड़ास का झंडा बुलंद किए रखा और ऐसी ऐसी खबरों का प्रकाशन किया जिसका मीडिया हाउसों के अंदरखाने से बाहर आना असंभव था. इन खबरों के जरिए पूरे देश को भड़ास ने यह संदेश दिया कि लोकतंत्र के बाकी स्तंभों जितना ही भ्रष्ट और अनैतिक है चौथा स्तंभ. मीडिया को पवित्र गाय मानने वालों की आंखें खोलने का काम भड़ास ने किया और न्यू मीडिया के आंदोलन को आगे बढ़ाया ताकि असली खबरें कारपोरेट व लुटेरों के हाथों में दम घोटने की बजाय ब्लागों, वेबसाइटों, सोशल मीडिया माध्यमों, मोबाइल आदि के जरिए जन-जन तक पहुंचे.
बाजारवाद के इस दौर में भड़ास ने अपने खर्चे व संसाधन के लिए किसी कारपोरेट के हाथों बिकने की बजाय आम मीडियाकर्मियों के बीच जाना पसंद किया और सौ रुपये से लेकर हजार रुपये, पांच हजार रुपये तक के चंदे इकट्ठे किए. कई शुभचिंतकों के दम पर जिन्होंने यदा-कदा लाख-दो लाख रुपये भी भड़ास को दिए, भड़ास की गाड़ी सरपट दौड़ती रही. निजी जिंदगी में तमाम दुखों और मुश्किलों के बावजूद मेरी और अनिल की जोड़ी ने भड़ास के आगे दुख नहीं आने दिया. रात-दिन, सोते-जागते भड़ास के साथ खुद को जोड़े रखा और पीआर जर्नलिज्म में तब्दील हो चुकी आज की पत्रकारिता को आइना दिखाते हुए ऐसी खबरों को साहस के साथ प्रकाशित किया जिसे मुख्यधारा की मीडिया ने दबा-छिपा रखा था. भड़ास की लोकप्रियता और तेवर का ही कमाल है कि आज यह वेबसाइट ढेर सारे कारपोरेट मीडिया हाउसों में प्रतिबंधित है. जैसे आलोचना से शख्सियत संवरती है, वैसे ही पाबंदी से उत्सुकता बढ़ती है, सो पाठक भी बढ़ते हैं. इसी कारण भड़ास दिनोंदिन लोकप्रिय होता गया.
वेबसाइटों की रैंकिंग का आंकलन करने वाले एलेक्सा के जरिए जो ताजा आंकड़े मिले हैं, वे बताते हैं कि भड़ास इन दिनों अपने चरम पर है. इसके आसपास कोई मीडिया वेबसाइट नहीं है. पीआर करने वाली अंग्रेजी वेबसाइटों, मीडिया मालिकों का गुणगान करने वाली अंग्रेजी वेबसाइटों, मार्केटिंग वालों की जय जय करने वाली और कंटेंट वालों की उपेक्षा करने वाली अंग्रेजी वेबसाइटों के पाठक बहुत तेजी से टूट रहे हैं और वे सभी भड़ास से जुड़ रहे हैं. इससे वाकई साबित होता है कि सच्चा और ओरीजनल कंटेंट ही किंग होता है, मुखौटों का वक्त ज्यादा लंबा नहीं होता.
जहां तक हिंदी मीडिया वेबसाइटों की बात है तो इसमें ज्यादातर निजी प्रयासों द्वारा कुछ पत्रकार साथियों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं. इन प्रयासों का जारी रहना और ऐसे प्रयासों का बढ़ना बेहद जरूरी है क्योंकि अगर भ्रष्ट सत्ता व लुटेरी कारपोरेट मीडिया ने मिलकर कभी भड़ास को नष्ट किया तो दूसरे मौजूद माध्यमों को आगे आने होगा और प्रखर पत्रकारिता की चुनौती को आगे बढ़ाना होगा. लेकिन उन वेबसाइटों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए और निंदा करनी चाहिए जो कारपोरेट जगह की शह पर संचालित है और इनका काम सिर्फ मीडिया हाउसों के मैनेजमेंट का गुणगान छापना होता है. वे अपना कर्तव्य मालिक या उनके गुलाम संपादक को फोन मिलाने और उनके मुखारबिंदु से टपके अनमोल शाश्वत वचन को छाप देना मानते हैं . उनके यहां आम मीडियाकर्मियों का दुख-दर्द, मीडिया में शोषण, मीडिया हाउसों की कुत्सित नीतियों के बारे में कुछ प्रकाशित नहीं होता. पर, बात वही है कि ये बाजार है, यहां हर तरह का माल हर समय उपलब्ध रहेगा. ऐसे में दायित्व ग्राहक का है कि वह अपने बौद्धिकता व चेतना के जरिए आकलन करे कि किसकी पालिटिक्स क्या है.
भड़ास की राजनीति बहुत साफ रही है, विजन स्पष्ट रहा है, शुरू से. बड़े मीडिया हाउसों, जिनका प्रसार व प्रसारण बहुत दूर दूर तक है, से कोई समझौता नहीं. उनके प्रति सख्त आलोचक का भाव भड़ास का हमेशा बना रहेगा. छोटे और नए मीडिया हाउसों को प्रोत्साहन देने का कार्य भड़ास हमेशा करता रहेगा ताकि मीडिया में एकाधिकार के खतरे को कम किया जा सके. इसी कारण भड़ास नई वेबसाइटों, छोटी मैग्जीनों, छोटे प्रयासों से शुरू हो रहे अखबारों आदि की खबरें प्रकाशित करता रहता है. हम आगे भी यही नीति अपनाएंगे.
हां, बस आपसे एक शिकायत जरूर रहेगी कि भड़ास को जिस तरह की मदद आप पाठकों से मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल रही. अगर चार सौ लोगों ने हजार-हजार रुपये रंगदारी या सब्सक्रिप्शन या चंदा या आर्थिक सपोर्ट के रूप में भड़ास को दे दिए तो यह पर्याप्त नहीं है. भड़ास का बहुत बड़ा पाठक वर्ग है. भड़ास आम मीडियाकर्मियों का पोर्टल है. इसलिए आप चाहें जैसे भी हों, जहां भी हों, जिस स्थिति में भी हों, आपको भड़ास के लिए एक छोटा सा हिस्सा अलग निकाल कर रखना चाहिए. अगर यह जिम्मेदारी आप नहीं निभाएंगे तो इसका असर भड़ास की सेहत पर पड़ेगा.
आप सभी ने देखा ही है कि किस तरह उधार मांगने के मुद्दे को रंगदारी से कनेक्ट कर दिया गया और लंबी चौड़ी फर्जी कहानी बनाकर हम लोगों को जेल भिजवाया गया. मुश्किल पड़ने पर पहले भी हम लोग उधार लेते रहे हैं और अब भी लेते हैं. लेकिन कल को अगर फिर कोई साथी उधार मांगने को रंगदारी मांगना बता दे तो इसे सिर्फ यही समझा जाना चाहिए कि भड़ास व इससे जुड़े लोगों को फंसाने के लिए किस स्तर की व्यूह रचना होने लगी है. इसलिए हम लोग अब निजी तौर पर उधार मांगने और लूज टॉक करने से भी बचने लगे हैं.
अगर भड़ास टीम आत्मिक रूप से भ्रष्ट व अनैतिक होती तो एक तो भड़ास शुरू ही नहीं होता, शुरू होता तो साल-दो साल में धमकियों-मुकदमों से बंद हो गया होता, या फिर अब जेल से लौटने के बाद भड़ास का संचालन हर हाल में बंद हो चुका होता. लेकिन ईमानदारी और संघर्ष के रास्ते तैयार हुए भड़ास को संचालित करने के लिए कभी भी अनैतिक समझौतों में हम लोग नहीं गए. भड़ास शुरू करते वक्त से ही पता था कि हम लोग किससे पंगा लेने जा रहे हैं और इसका अंजाम क्या क्या हो सकता है. इसी कारण पैसे के मामले में कभी भी भड़ास टीम ने अनैतिक रास्ता नहीं अपनाया, किसी भी प्रकार के प्रलोभन को पास फटकने नहीं दिया. कई तरह के आफरों को ठुकराया. जरूरत पड़ने पर इनसे उनसे उधार लेकर हम लोगों ने काम चलाया और ढेरों शुभचिंतक आम पत्रकार से लेकर संपादक स्तर तक के लोगों ने आर्थिक मदद दी. भड़ास के पास ढेरों ऐसे दुर्दिन झेल रहे पत्रकार आए जिन्हें कुछ पैसों की सख्त जरूरत थी, और भड़ास ने इन लोगों को बिना किसी प्रचार के चुपचाप आर्थिक मदद दी, बिना इस उम्मीद के कि वो लौटाएंगे या नहीं.
आखिर में सौ बात की एक बात, वो ये कि अगर जुबां में सच बोलने की ताकत है, कलम में सच लिखने की औकात है, दिल में नैतिक साहस है, दिमाग में भरपूर विचार हैं, विजन में प्रकृति और आम आदमी से प्यार है, आत्मा में अपने को लेकर ईमानदार किस्म का अहंकार और शरीर में रीढ़ सीधी है तो आपको अपना रास्ता बनाने से कोई नहीं रोक सकता. गिरते, पढ़ते, लड़ते, रोते, सीखते आप एक मशाल जला लेंगे जो ढेरों साथियों की राह को रोशनी से प्रशस्त कर देगी.
पैसे, सपोर्ट, संसाधन ये सब बहुत छोटी चीज है और जब आप शुरुआत करते हैं तो इनका बहुत मतलब भी नहीं होता. भड़ास की शुरुआत पहले एक ब्लाग के रूप में हुई और बाद में इसे तीस हजार रुपये में एक लैपटाप, डोमेन नेम, वेब टेंप्लेट, शेयर्ड सर्वर के जरिए भड़ास4मीडिया डाट काम के रूप में शुरू किया गया. अगर पैसा, सपोर्ट और संसाधन बड़ी बात होती तो आज ढेरों ऐसे लोग हैं जिनके पास यह सब कुछ है लेकिन उनका इस समाज, क्षेत्र, देश, दुनिया में कोई नामलेवा नहीं, उनका कहीं कोई योगदान नहीं, उनका कहीं कोई पाजिटिव काम नहीं. उनकी दुनिया सिर्फ खाने-पीने-हगने-मूतने-नाचने-सोने तक सीमित है.
हम देसज लोग, गंवई बैकग्राउंड के लोग, दुखों से भरपूर इश्क लड़ा चुके लोग, बड़े लोगों के दोगलापन से बेजार रह चुके लोग असल में कर्मठ होने के साथ-साथ धैर्यवान भी होते हैं. और, हम लोगों ने आम जन के बीच जीवन जिया होता है, सो आम जनता पर हम लोगों का पूरा भरोसा होता है. लोकतंत्र और इससे संबद्ध स्तंभों के होने का मकसद गांव-समाज-शहर के उस आखिरी आदमी की भलाई है, बेहतरी है, जिसे लोकतंत्र का ककहरा भी नहीं पता. इस कारण हमारे आप पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि हम कुछ ऐसा जरूर करें ताकि उस आम आदमी के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह कर लें जिसे हम हर रोज मुश्किलों में, संकटों में, दुखियारी हालात में देखते-पाते हैं. ऐसा जो कर पाएगा वही मीडिया वाला कहलाएगा वरना दलालों और दरबारियों के चंगुल में आ चुकी इस लोकतांत्रिक मंडी में मीडिया व मीडियावाले अब रंडी से ज्यादा कुछ नहीं हैं.
देर-सबरे, मशालें कई होंगी और एक सामूहिक रोशनी का उदगार होगा, यह भरोसा है. लक्षण दिखने लगे हैं. रास्ता बनने लगा है. बस, हम सबको अपने-अपने हिस्से की दौड़ लगानी है. तकनीक और चेतना के उन्नत होते जाने ने राह-काम आसान कर दिया है. लोगों में सच के प्रति, पारदर्शिता के प्रति, ईमानदारी के प्रति, लोकतांत्रिक होने के प्रति ललक बढ़ी है. इसे हम मीडिया वाले साथियों को और ज्यादा बढ़ाना है, उत्प्रेरित करना है, एक्सीलरेट करना है, गतिमान बनाना है. तभी हम अपने समय के मीडिया के सच्चे सिपाही और असली सारथी कहलाएंगे.
जय भड़ास
यशवंत
एडिटर
भड़ास4मीडिया
09999330099