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हाई कोर्ट के आदेश के बाद अवैध तरीके से संचालित एस7 चैनल बंद

प्रिय यशवंत जी, मैं आपको एक और दलाल और फ्राड कथित पत्रकार की कहानी दे रहा हूं, जिसने एक सीधे-सादे समाजसेवी मनोज द्विवेदी को गफलत में रख कर उनका काफी रुपया लगवा दिया, जबकि न तो इसके चैनल को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से लाइसेंस मिला है न ही कोर्ट से स्टे.

प्रिय यशवंत जी, मैं आपको एक और दलाल और फ्राड कथित पत्रकार की कहानी दे रहा हूं, जिसने एक सीधे-सादे समाजसेवी मनोज द्विवेदी को गफलत में रख कर उनका काफी रुपया लगवा दिया, जबकि न तो इसके चैनल को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से लाइसेंस मिला है न ही कोर्ट से स्टे.

एस सेवन चैनल के चेयर पर्सन प्रशांत द्विवेदी ने 2009 में जिलाधिकारी रायबरेली से लोकल केबल के माध्यम से चैनल चलाने की अनुमति मांगी थी. चूंकि प्रसारण सम्बन्धी आदेश देना जिलाधिकारी के कार्यक्षेत्र से बाहर होता है लिहाजा उस पर सुनवाई नहीं हुई और वो हाईकोर्ट की शरण में चले गए.

निओ केबल नेटवर्क मथुरा ने भी अपने इसी तरह के चैनल के लिए जिलाधिकारी के ख़ारिज प्रार्थना पत्र पर हाई कोर्ट से स्टे ले रखा था लिहाजा उसकी आड़ में उसकी तरह लाभ लेने के लिए प्रशांत द्विवेदी ने भी अपने साईं नेटवर्क की तरफ से रिट की और स्टे ले लिया. स्टे मिलते ही चैनल को जिले में जोर-शोर से प्रचारित कर चलाया गया. उन दिनों एक चैनल पी7 न्यूज लोगों में खासा लोकप्रिय हो रहा था, इसलिए एस7 चैनल का माइक लोगो हू-ब-हू वैसा बना कर विज्ञापन की वसूली शुरू कर दी गयी. शहर के दिग्भ्रमित लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई का लाखों रुपया विज्ञापन के रूप में इन्हें सौंप दिया, किन्तु जैसे ही इनकी पोल खुली लोगों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी और लोग इधर-उधर इनकी शिकायत करने लगे.

मामला मीडिया से जुड़ा होने की वजह से कोई भी खुल कर सामने नहीं आ रहा था, क्यों कि इनके रिपोर्टर बाकी चैनल के रिपोर्टर के साथ घूमते रहते थे, इस लिए अधिकारी भी मीडिया समूह को नाराज नहीं करना चाहते थे और चुपचाप इनकी मनमानी देखते रहते थे. इसी बीच इनकी मुलाकात श्री ग्रुप के चेयरमैन मनोज द्विवेदी से हुई, जो मुख्य रूप से प्रापर्टी के क्षेत्र में अंसल और ओमेक्स ग्रुप के साथ पार्टनर के रूप में काम करते हैं, साथ ही समाजसेवी के रूप में अच्छी पहचान भी बना चुके हैं. श्री द्विवेदी की मीडिया क्षेत्र में खासी दिलचस्पी थी और उन्होंने हाल ही में 20 पेज का खुद का कलर अख़बार श्री टाईम्स को जानी मानी हस्तियों तथ बड़ी प्रिंटिंग प्रेस के माध्यम से शुरू किया और काफी कम समय में इसे लोकप्रिय भी करा लिया.

श्री नाम चूंकि अब मीडिया जगत के लिए नया नहीं था लिहाजा उन्होंने एक चैनल भी खोलने की इच्छा प्रकट की. मौका देखकर प्रशांत ने इन्हें अपने चैनल को गोद लेने और पूरे देश में इसके प्रसारण की गणित समझाई कि सेटेलाइट से जब तक परमिशन नहीं मिलती तब तक केबल के माध्यम से डीजी और डेन से समझौता करके हर जिले में चला दिया जायेगा. वो भी इनके झांसे में आ गए. अब चूंकि उत्तर प्रदेश में डीजी और डेन की पहुंच 35 प्रतिशत जिलों में ही है और इन्होंने मास्टर कंट्रोल रूम ना बना कर हर जिले में कंट्रोल रूम बना रखा है, लिहाजा इस तरह चला पाना मुश्किल है जब तक चैनल सेटेलाइट से ऑन एयर ना हो जाये. इसके तुरंत बाद शुरू हो गया नॉएडा में ऑफिस, स्टूडियो, असाइनमेंट, इनपुट तैयार करने का काम. करोड़ों रुपया लगाकर सबकुछ तैयार, भर्तियाँ भी हो गयीं, जिसमें प्रशांत चैनल हेड की भूमिका में हो गए.

जनसंदेश न्‍यूज के शुरुआती दिनों के साथी अजय झा और इनकी टीम के सच्चिदानंद द्विवेदी चैनल की बागडोर भी संभाल ली, लेकिन इस बीच जुलाई 2007 में निओ केबल नेटवर्क के स्टे को हाई कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था, लिहाजा जले-भुने बैठे विभागीय अधिकारियों ने उसकी कापी हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में लगाकर इनके स्टे no. MISB 10333 /2009 को भी ख़ारिज करा दिया. जिसको आप नीचे देख सकते हैं, अब समस्या ये है कि इस आदेश के तहत इन्हें हर जिले में चैनल चलने हेतु एक अप्रैल से लागू नए नियम के मुताबिक मनोरंजन विभाग को लाखों रुपया भुगतान करने के साथ केबल आपरेटर को भी इसी एवज में पैसे देने होंगे. नए नियम में प्रति कनेक्शन 100 रुपया सालाना जमा करना होगा, जो रकम पूरे उत्तर प्रदेश के लिए करोड़ों में होगी. ऐसे में इस तरह के सेटअप का उपयोग मात्र सेटेलाइट चैनल के लिए ही किया जा सकता है. नीचे हाई कोर्ट का आदेश…

             HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD

Case Status – Lucknow Bench

Disposed on 08/11/2011
Misc. Bench : 10333 of 2009 [Rae Bareli]
Petitioner:    M/S SAIN NETWORK PRIVATE LIMITED RAIBARELI THRU CHAIRMAN
Respondent:    STATE OF U.P. THRU SECY. ENTERTAINMENT TAX & ORS. {TAX}
Counsel (Pet.):    VINAY TRIPATHI
Counsel (Res.):    C.SC..
Category:    Any Other Writ Petition Not Mentioned In The Code Book Any Other Writ Petition Not Mentioned In The Code

Book-Any Other Writ Petition Not Mentioned In The Code Book
Date of Filing:    03/11/2009
Last Listed on:    12/10/2011 in Court No. २७

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