: सुप्रीम कोर्ट के आदेश बाद भी नहीं मिला आदिवासियों का हक : उच्चतम न्यायालय में उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के तत्कालीन संयुक्त सचिव बीके सिंह यादव द्वारा पेश दस्तावेजों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा गठित महेश्वर प्रसाद कमेटी ने तत्कालीन मिर्जापुर जनपद के कैमूर क्षेत्र के दक्षिण में 433 गांवों को इस मामले से जुड़ा हुआ पाया था, जिनमें शीर्ष अदालत के आदेशों के अनुसार वन बंदोबस्त की प्रक्रिया पूर्ण की जानी थी। इनमें से 299 गांव दुद्धी तहसील में थे जबकि शेष 134 गांव राबर्ट्सगंज तहसील में थे।
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जेपी समूह को 409 करोड़ माफ (भाग-2)
: देश आजाद हुआ पर आदिवासी नहीं : उन्नीस सौ सैतालिस में 15 अगस्त को देश अंग्रेजों की गुलामी से भले ही आजाद हो गया हो लेकिन जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के लिए गुलामी का दौर उसी दिन से शुरू हो गया था। उत्तर प्रदेश के जंगली इलाकों में आजाद आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के लिए भी ऐसा ही था। "द पब्लिक लीडर" के पास मौजूद दस्तावेजों के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष-1950 में जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार कानून अस्तित्व में आया जो कैमूर वन क्षेत्र के दक्षिण में स्थित मिर्जापुर (अब सोनभद्र) जिले की दुद्धी और राबर्ट्सगंज तहसीलों में दो हिस्सों में लागू हुआ। कुछ हिस्सों में यह कानून 30 जून, 1953 को लागू हुआ तो कुछ हिस्सों में 1 जुलाई, 1954 को।
जेपी समूह को 409 करोड़ माफ (भाग-1)
देश में हर तरफ प्राकृतिक संपदा की लूट मची है। कोई जमीन भेद रहा है तो कोई पाताल। आकाश की धूप और हवा भी अछूती नहीं है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा, गोवा आदि राज्यों के विभिन्न इलाकों में जिस तरह से कोयला, लौह अयस्क, डोलो स्टोन, लाइम स्टोन (चूना पत्थर), सैंड स्टोन, बालू, मोरम आदि खनिज पदार्थों के अवैध दोहन का मामला बीते सालों में सामने आया है, उससे लोकतंत्र के विभिन्न स्तंभों की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए हैं। इससे ना केवल भारतीय वन अधिनियम, वन संरक्षण अधिनयम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भारतीय खान ब्यूरो आदि के मानकों का उल्लंघन हुआ है, बल्कि इसने आम आदमी के अधिकारों के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के आदेशों और संविधान के मूल्यों पर भी हमला बोला है।
पीपुल्स से इस्तीफा देकर प्रजासत्ता में संपादक बने सुशील दुबे
वरिष्ठ पत्रकार एवं पीपुल्स समाचार, इंदौर में समाचार संपादक के पद पर कार्यरत सुशील दुबे ने इस्तीफा दे दिया है. वे अब नए प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबार प्रजासत्ता के साथ जुड़ गए हैं. उन्हें अखबार का संपादक बनाया गया है. वे 20 फरवरी को अपनी नई जिम्मेदारी संभाल लेंगे. भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले सुशील दुबे ने पत्रकारों की लंबी फौज तैयार की है, जो तमाम अखबारों में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत हैं.