लखनऊ। अपात्र पत्रकारों से सरकारी आवास खाली कराने से सरकार हिचक रही है। खुद का निजी आवास होने के बाद फर्जी हलफनामों के सहारे सरकारी आवासों में मौज कर रहे पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकार जनहित याचिका का इंतजार कर रही है। यही वजह है कि भारी संख्या में सरकारी आवासों में अपात्र पत्रकारों रह रहे हैं। जबकि वाजिब पत्रकार सरकारी आवास के लिए मारे-मारे घूम रहे हैं।
सरकारी आवासों और कुछ भ्रष्ट पत्रकारों के खिलाफ निष्पक्ष दिव्य संदेश की चलाई गई मुहिम से राज्य सम्पत्ति विभाग थोड़ा सचेत तो जरूर हुआ, लेकिन कार्रवाई के नाम पर पीछे हट गया। राज्य सम्पत्ति अधिकारी राजकिशोर यादव का कहना है कि अपात्र पत्रकारों से सरकारी आवास खाली कराए जाने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन इस बात का जवाब देने से हिचकते हैं कि कब तक ऐसे पत्रकारों से आवास खाली हो जाएंगे। वे स्वीकार करते हैं कि अपात्र पत्रकारों से सरकारी आवास खाली कराने के प्रयासों के साथ ही बड़े अफसरों और नेताओं की सिफारिशें आनी शुरू हो जाती हैं, जिससे अभियान प्रभावित होता है। इसका विकल्प सिर्फ कोर्ट के पास हैं।
वे सुझाव देते हैं कि खबरों के प्रकाशित करने के साथ ही इस मुद्दे को लेकर जनहित याचिका हो, तब जाकर इस समस्या का निवारण होगा। राज्य सम्पत्ति विभाग के सूत्रों का कहना है कि 300 से ज्यादा सरकारी आवासों पर पत्रकारों का कब्जा है। इनमें से काफी संख्या में पत्रकार पत्रकारिता से रिटायर हो गए हैं। इसके बावजूद सरकारी आवासों पर काबिज हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकतर पत्रकारों के पास सरकार द्वारा सब्सिडी पर दिए प्लाट और आवास होने के बावजूद सरकारी आवासों में रह रहे हैं। अपने निजी आवास किराए पर देकर कमाई कर रहे हैं। इस फर्जीवाड़े में नामचीन पत्रकारों की संख्या काफी है।
राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के एक सदस्य का कहना है कि वरिष्ठ पत्रकारों को नैतिकता के आधार पर सरकारी आवास छोड़ देना चाहिए। लेकिन बेशर्मी के कारण सरकारी आवास पर काबिज हैं। उन्होंने कहा कि इन वरिष्ठ पत्रकारों के कारण वाजिब पत्रकारों को सरकारी आवास नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी जानकारी में ऐसे-ऐसे पत्रकार हैं, जिन्होंने पत्रकारिता के नाम पर आवास हासिल किया है, जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक नाता नहीं है।
राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति हेमंत तिवारी ने इस मुद्दे पर कहा कि जिन पत्रकारों ने सरकार से सब्सिडी प्लॉट और आवास लिए हैं, और आर्थिक तंगी के कारण बनवा नहीं पाए हैं, उनका सरकारी आवास में रहना मजबूरी है। लेकिन जिन पत्रकारों के पास बड़े-बड़े बंगले टाइप निजी आवास हैं, उनको जरूर नैतिकता का परिचय देना चाहिए।
त्रिनाथ के शर्मा की रिपोर्ट. यह रिपोर्ट दिव्य संदेश में भी प्रकाशित हो चुकी है.
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