पूरा दिन अन्ना हजारे के कमरे से बाहर निकलने का इन्तजार करनेवाले मीडिया कर्मियों को स्वयं अन्ना हजारे ने हिंदी में कह दिया कि बाहर निकलो. शनिवार का दिन, सुबह के करीब 9 बजे होंगे, हेडलाइंस टुडे के राहुल कँवल और उनके साथियों ने अपना सेटअप लगाया अन्ना के कमरे में, जहां पर होनी थी सीधी बात. लेकिन जैसे ही यह खबर अन्ना के सहयोगी ने बाहर फैलाई वैसे ही स्टार न्यूज के साथ-साथ बाकी सभी चैनल के रिपोर्टर तिलमिला उठे.
अन्य सभी चैनलों के मीडियाकर्मी जब ‘यह हमारे प्रति अन्याय है’ का शोर मचाने लगे तो अन्ना स्वयं बाहर आये और बोले अब बस करो और यहाँ से निकलो. किसी को कोई बाइट नहीं मिलेगी. अन्ना हजारे का यह रूप देखकर बड़े-बड़े रिपोर्टरों को मानो सांप ने सूंघ गया. सभी ऐसे छुप गये कि वहां सन्नाटा छा गया. अन्ना हजारे ऐसा भी कुछ कर सकते हैं किसी को विश्वास नहीं हुआ.
एक दिन में मीडिया के कारण जो व्यक्ति देश और पूरी दुनिया में मशहूर हुआ, उसका मीडिया को इस प्रकार लताड़ लगाना कितना सही या गलत है, यह अलग विषय है, पर कुछ भी हो अन्ना ने जो मौन ब्रत धारण किया है उसका कारण भी मीडिया ही है. क्योंकि रालेगण सिद्धि में मौजूद मीडिया कर्मियों को उनके दफ्तर से यह आदेश मिलता था कि अन्ना से इस पर सवाल पूछो, यह पूछो, उस पर सवाल पूछो, पर रालेगण सिद्धि में कवरेज कर रहे पत्रकारों को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था, यह किसी को नहीं पता था.
अन्ना हजार के इस प्रकार के घमंडी रवैये से मीडिया वाले सन्न हो गए. लेकिन इतना सब होने के बाद भी टीआरपी की लालच कहां सुधरने देती है, बात होने लगी- अगर किसी ने अन्ना के गुस्से में चिढ़े हुए मूड का क्लिप ही चला देता तो टीआरपी मिल जाती. पर अन्ना के अचानक बदले स्वभाव से किसी का दिमाग काम ही नहीं कर रहा था. किसी के दिमाग में यह बात आई ही नहीं. इस बात का थोड़ा असर आईबीएन पर हुआ. उसने अन्ना के पीए सुरेश पठारे को कथित रूप से दिए गए 30 हजार के आईपॉड की खबर चला दी.
अभी अन्ना के साथियों के और कुछ रूप बाहर आने बाकी हैं, जो अगले कुछ दिनों पूरे देश को दिखाई देने लगेंगे. दूसरी मिसाल अन्ना के गांव के सरपंच की राहुल गांधी से मुलाकात की बात है. जब न्यौता मिला ही नहीं तो बिन बुलाए मेहमान की तरह सरपंच दिल्ली गए क्यूं? आखिर अन्ना, जो भ्रष्टाचार और कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, सरपंच को राहुल से मिलने की इजाजत क्यूं दी. महाराष्ट्र की तत्कालीन विलासराव देशमुख सरकार के समय बने हिंद स्वराज ट्रस्ट और बाकी सरकारी मदद से ही अन्ना ने गांव में भक्त निवास और स्कूल आदि बनवाएं, कांग्रेस के इशारे पर ही शिवसेना गठबंधन सरकार के खिलाफ आंदोलन किया था.
कभी कभी तो लगता है कि अन्ना हजारे का आंदोलन भी कांग्रेस ही चलवा रही है. क्यों कि बार-बार टिप्पणी करके अन्ना को उलझाए रखते हुए कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पर उठी उंगली की खबरों से आम जनता का ध्यान दूसरी ओर ले जाने का काम किया है. मौन ब्रत के के लिए भला कुटिया बनाने की क्या जरूरत, जिस पर पांच लाख का खर्च आया है. वो किसने किया इस पर किसी मीडिया वाले ने ध्यान नहीं दिया या उनका ध्यान ही नहीं गया.
सुनील दत्ता की रिपोर्ट.
Comments on “अन्ना हजारे ने मीडियावालों से कहा ‘बाहर निकलो’”
अबे अनिल पांडे चोर साले फर्जी नाम से कमेंट पेलता है साले तेरे पिछावे में इतना गुदा है तो मेरा सामने आ जा तुझे मैं दौड़ा दौड़ाकर पीटूंगा तेरी ऐसी की तैसी कर दूगा साले कांग्रेस के चमचे अबे कांग्रेसियो से मरवाता है या उनकी मारता है
मेहँदी हसन की एक मशहूर ग़ज़ल है – ” मैंने जो संग रचाया वो ख़ुदा हो बैठा ” .
अन्ना हजारे को इस गलतफहमी का शिकार बनाने वाले इलेक्ट्रोनिक मीडिया के ही लोग हैं .
इनका बस चले तो बाथरूम में घुसकर अन्ना की बाइट ले लें .
कोई भी बकवास अन्ना पेलता है, तो अमृत वाणी हो जाती है .
ये अन्ना का बच्चा बहुत बड़ा ढोंगी है . चार सौ रूपये महीने में गुज़ारे का दावा करने का नाटक इंडिया टीवी के शो में कर चुका है.
lifestyle तो करोड़पतियों वाला है.
एक दिन एसी के बिना सो नहीं सकता . प्लेन में क्या चार सौ रूपये महीने में गुज़ारे वाला चलता है?
गाँधी की बात करता है और विरोधियों को डंडे से पिटवाता है . फाँसी देने को सही ठहराता है .
और अब पत्रकारों को भगा रहा है .
क्या हम भिखमंगों से भी गए गुज़रे हैं ?
कहाँ चली गयी हमारी खुद्दारी?
इस अन्ना और उसकी टीम का दो हफ्ते अख़बार और टीवी से बायकाट हो जाय, तो इन्हें कुत्ता नहीं पूछेगा .
चैनलों पर दिखते रहने के कारण ससुरों का दिमाग धरती पर नहीं है.
धीरज रखिये वो दिन आने वाला है , जब पब्लिक इन्हें दौड़ा -दौड़ा कर मारेगी .
bhai kuchh bhi likh dete ho. aur bade patrakar bante ho. 5 lakh rupye aapne diye hain.anna ke gaon valo ko kisne bulaya, aaj ka indian express padh kar jaan lijiye.
bhai shahab article likhne se pahale gharai tak kuch soch bhi liya karo. media hone ka matlab hota hai hame wahi likhna chahiye jo hi samaj ke hit me ho.apne hit me nahi. media ne annaji ke aandolan ko isliye dikhaya tha ki uska samaj ko har verg ko bhrastachar se mukti dilane ke liye faaydemand tha. isliye nahi ki kal anna media ko kisi dakahakl ke liye mana kar de to palat ke tohmat lagaye.digvijay ki faaltu baato per aap log kabhi likhte. mitra is desh ke baare me socho hum kis gart me doobte jaa rahe.
kewal kaha ki dhkiya kr bahar to nhi kr diya kyonki hm nhi the waha.
अरे। क्या मूर्खता भरा विश्लेषण है। आदमी का जीना हराम कर दिया जाएगा तो आखिर कब तक सहन करेगा। क्यों पीछे पड़े रहते हो अन्ना के। छोड़ दो। वो तो होगा नहीं, एक दिन गाली तो खाओगे भाई। वैसे ये गलती आपकी नहीं बल्कि दिल्ली में बैठे नामूरादों की है जो टीआरपी के लिए ये सब करवाते हैं।
आखिर समस्या क्या है समझ नहीं आता. अन्ना के आंदोलन के सफल होने पर(सफलता कितनी मिली इस पर बहस हो सकती है मीडिया को खुश होना चाहिए था कि उसके बल पर एक ऐसा आंदोलन खड़ा हुआ जिससे पूरे समाज में बदलाव की बयार सी बह उठी थी। परंतु अब मीडिया के ही कुछ लोग इस पूरे आंदोलन की हवा निकालने में जुटे हैं। कोई ये बताए कि प्रशांत भूषण्ा से कश्मीर पर जनमत संग्रह की बात पूछने का क्या मतलब था। उनका आंदोलन कोई कश्मीर को लेकर तो नहीं था। मीडिया का कोई शख्स जो आंदोलन के समर्थन में था,उनसे ऐसा सवाल कतई नहीं पूछता। क्यूंकि पत्रकारिता से जुड़ा कोई भी शख्स आसानी से यह समझ सकता है कि जनलोकपाल पर जनमत संग्रह की दुहाई देने के बाद प्रशांत भूषण को हर प्रकार के जनमत संग्रह के लिए सहमति देनी ही होगी। यह सिर्फ मेरी सोच हो सकती है परंतु मेरा सोचना यह है कि यदि प्रशांत भूषण कश्मीर पर जनमत संग्रह से मना कर देते तो इसे अन्ना टीम का दुहरा चरित्र बताकर चलाया जाता। कहा जाता कि अपने जनमत संग्रह को तो टीम अन्ना द्वारा सही ठहराया जा रहा है परंतु जब बात कश्मीर के लोगों के जनमत संग्रह की होती है तो वे इससे मना कर रहे हैं। इससे भी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को धक्का लगना ही था। हालांकि एक बेहतर रास्ता हो सकता था कि प्रशांत भूषण इस पर कोई भी टिप्पणी करने से मना कर देते। परंतु उसमें भी उनकी चुप्पी पर सवाल उठाए जा सकते थे। और अब जब उन्होंने कश्मीर पर जनमत संग्रह की बात स्वीकारी तो वही हुआ जो होना ही था।
कुल मिलाकर इसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ यही था कि किसी न किसी प्रकार टीम टीम अन्ना द्वारा इस्तेमाल किए गए हर रास्ते को बंद कर दिया जाए। और यही हुआ प्रशांत भूषण बड़ी आसानी से शिकार बन गए।
anil pandey kya anna ne teri maa ko rakhel banakar rakha hai to usasa chidhta hai. sale kameene, apni aukat me rahkar bola kar. tere pichhwade me dam hai bhastachar rokane ka, haram ke jane anil pandey, anna ahinsawadi hai, mai nai, kutte ke pille teri ma bahen tak ko kat dalunga
anil pandey kya anna ne teri maa ko rakhel banakar rakha hai to usasa chidhta hai. sale kameene, apni aukat me rahkar bola kar. tere pichhwade me dam hai bhastachar rokane ka, haram ke jane anil pandey, anna ahinsawadi hai, mai nai, kutte ke pille teri ma bahen tak ko kat dalunga
anil pandey kya anna ne teri maa ko rakhel banakar rakha hai to usasa chidhta hai. sale kameene, apni aukat me rahkar bola kar. tere pichhwade me dam hai bhastachar rokane ka, haram ke jane anil pandey, anna ahinsawadi hai, mai nai, kutte ke pille teri ma bahen tak ko kat dalunga >:(
यह बात तो गलत है अन्ना हज़ारे की, कि जिन मीडिया के लोगों ने दिन रात अपने सारे बुलेटिन और प्रोग्राम को बंद करके उनको प्रसिद्धि दिलाई उनसे ही दुर्व्यवहार , ऐसे लोगों का मीडिया को कवरेज ही नहीं करना चाहिए, ऊपर उठ जाते हैं तो हवा में उड़ने लगते हैं . ऐसे लोगों के कार्यक्रम का मीडिया को बहिष्कार कर देना चाहिए….
अन्नाजी बहुत चालाक है जिसे दिल्ली में केजरीवाल ने मंच दिया उसी को बदनाम करने के हर हथकंडे अपनाता रहा। मोदी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोले इस चालाक व्यक्ति ने। पांच साल चुप रहे । भ्रष्टाचार, कालाधन सब मिल गया इनको मोदी के आते ही। पांच साल लाकपाल पर कुंडली मार के बैठे रहा ।