बड़ा शोर हुआ था कि अबकी तो शशांक शेखर गए. अबकी तो शशांक शेखर सिंह निपटा ही दिए जाएंगे. पर हुआ वही जो हर बार होता रहा है. शशांक शेखर सिंह सच में सबके बाप निकले. न आईएएस, न आईपीएस, न पीसीएस न पीपीएस, न आईएफएस, न आईआरएस… पर हैं वे सबके बाप. नेताओं का जहाज उड़ाने वाला यह शख्स कई नेताओं का खास रहा और एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए आज यूपी का सबसे ताकतवर नौकरशाह बन चुका है.
मैगसेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय की तरफ से जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में शशांक शेखर को सिफर बनाने के लिए एक याचिका दायर की थी. उनकी दलील थी कि उत्तर प्रदेश राज्य के मंत्रिमंडलीय सचिव के पद पर शशांक शेखर सिंह की नियुक्ति अनुचित है, क्योंकि इस पद पर केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा आईएएस तथा राज्य प्रशासनिक सेवा पीसीएस के अधिकारी ही तैनात किए जा सकते हैं. राज्य सरकार ने कहा कि संबंधित याचिका राजनीति से प्रेरित है. राज्य सरकार की ओर से एक जवाबी हलफनामा भी दायर किया गया, जिसमें यह दलील दी गई कि इसी मामले में एक याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में भी लंबित है.
इसी मामले में चरण सिंह की याचिका लखनऊ पीठ ने 25 जनवरी 2008 को खारिज कर दी थी. राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में शशांक शेखर सिंह के प्रशासनिक कैरियर का भी उल्लेख किया है. यह भी कहा है कि उन्हें अक्टूबर 1990 में राज्य का प्रधान सचिव नियुक्त किया गया था और वह इतनी कम उम्र में देश के किसी राज्य के प्रधान सचिव नियुक्त होने वाले पहले व्यक्ति हैं. याचिकाकर्ता की दलील से असंतुष्ट उच्चतम न्यायालय ने याचिका खारिज करने का मन बनाया, लेकिन याचिकाकर्ता ने न्यायालय की अनुमति से याचिका वापस ले ली. तो इस तरह संदीप पांडेय और प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में शशांक शेखर सिंह के खिलाफ दायर याचिका वापस ले ली है. इसको लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं. कुछ लोग इसे शशांक शेखर की ताकत की जीत मानते हैं.
शशांक शेखर समर्थकों का कहना है कि मसला चाहे जितना मुश्किल और तीखा हो, उसका हल शशांक शेखर के पास होता है और इस बार भी उन्होंने अपने विरोधियों को धूल चटा दिया. सूत्रों का कहना है कि शशांक शेखर कैंप ने दिल्ली में मीडिया को भी मैनेज किया और सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका से संबद्ध पक्षों को भी. तभी तो जनसत्ता अखबार में नई दिल्ली डेटलाइन से अनिल बंसल की फ्रंट पेज पर छह कालम की बाटम न्यूज छपी जिसमें शशांक शेखर का गुणगान किया गया था. यह वही जनसत्ता है जो कभी सरकार और सिस्टम के खिलाफ खुलकर लिखने के लिए जाना जाता था पर आजकल यहां भी खूब दलाली हो रही है. जाहिर है, यह सब इसके संपादक ओम थानवी के संज्ञान और सहमति से हो रहा होगा. शशांक शेखर मामले में जनसत्ता ने जिस तरह से यूटर्न लिया है, वह चर्चा का विषय बना हुआ है. यह सभी जानते हैं कि बड़े बड़े नौकरशाह और बड़े बड़े नेता अखबारों और पत्रकारों को भांति भांति तरीके से ओबलाइज करके अपने पक्ष में खबरें स्टोरीज प्लांट कराते रहते हैं.
ग़ौरतलब है कि मायावती जहां-जहां जाती हैं, शशांक शेखर उनके साथ नजर आते हैं. यहां तक कि मायावती के फैसलों को मीडिया तक पहुंचाने का जिम्मा भी शशांक शेखर पर ही है. मायावती सरकार में शशांक का ओहदा यूं तो कैबिनेट सचिव का है, लेकिन कई मौकों पर उन्होंने बीएसपी के प्रवक्ता की तरह भी बयान दिए हैं. वो न आईएएस हैं, न आईपीएस और न ही पीसीएस. तो फिर शशांक शेखर इतने ताकतवर नौकरशाह कैसे बने बैठे हैं? इसी बात को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता संदीप पांडे ने यह याचिका दायर की है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि शशांक शेखर को तमाम नियम-कायदों को दरकिनार करके कैबिनेट सचिव बनाया गया है. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बैंच ने भी शशांक की नियुक्ति पर हैरानी जताई थी. पर याचिकाकर्ताओं की तरफ से याचिका वापस लिए जाने के बाद शशांक शेखर और ज्यादा मजबूत होकर उभरे है.