आंदोलनों के प्रति मीडिया की भूमिका कभी भी सकारात्‍मक नहीं रही है : अच्‍युतानंद मिश्र

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नई दिल्ली : पूर्व के समय में पत्रकारों के समक्ष दूसरे प्रकार की चुनौतियां थीं, लेकिन वर्तमान में उनके समक्ष चुनौतियों की फेहरिस्त बढ़ गयी हैं. इस बदलती परिस्थितियों से जूझने में पत्रकारों को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है. ये बातें पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने दिवंगत पत्रकार कंचना की आठवीं पुण्यतिथि पर आयोजित कंचना स्मृति व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए कही.

मुख्य अतिथि आरिफ खान ने कहा कि मीडियाकर्मियों को अपने पूर्वाग्रह से भी मुक्त होना होगा. उन्हें किसी नेता को उनके कौम से न जोड़ कर, उनके कार्य से जोड़ें, ताकि नेताओं को कार्य करने में आसानी हो, और उन्हें सही सम्मान व स्थान मिल सके. उन्होंने कहा कि किसी राजनीतिक दल या विभिन्न नेताओं के द्वारा किया गया आंदोलन को ही जनांदोलन का नाम देना क्या ठीक है? क्या सर्व शिक्षा अभियान या अन्य सामाजिक कार्यों को जनांदोलन नहीं कहा जा सकता है? अभी भी जातिवाद विराजमान है और उसके विरुद्ध आंदोलन सामाजिक स्तर पर ही हो सकता है। अल्पसंख्यक बहुसंख्यक की अवधारणा का अंत होना चाहिए. ऐसे आंदोलनों के लिए अनेक जगह है, लेकिन मीडिया राजनीतिक आंदोलनों को ही आंदोलन साबित करती है.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए समाजवादी पार्टी के महासचिव मोहन सिंह ने कहा कि आज सबसे बड़ी जरूरत जनांदोलन को समझने की है. जनांदोलन क्या है, इस पर विचार होना चाहिए. कोई व्यक्ति बिना किसी योजना और विचार के आंदोलन खड़ा कर दे, तो उसे जनांदोलन नहीं कहा जा सकता. इस प्रकार के आंदोलन को पिछले दिनों मीडिया ने भी काफी स्थान दिया. अच्छा होगा अगर मीडिया जनांदोलनों को सही तरीके से परिभाषित करे. उन्होंने कहा कि किसी भी जनांदोलन को खड़ा करने में मीडिया की बड़ी भूमिका होती है. इसलिए मीडिया जनांदोलन को सही तरीके से समझे, तभी मीडिया देश को सही दिशा दे सकती है. इस समय तो मीडिया जनांदोलन को नहीं समझ रही है. खुद मीडिया ही व्यवसाय में अंधी है तो जन आंदोलन को कहां से समझेगी.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एंव व्याख्यानमाला के अध्यक्ष अच्युतानंद मिश्र जी ने कहा कि मीडिया की भूमिका कभी भी आंदोलनों के प्रति सकारात्मक नहीं रही है और हो भी नहीं सकती है. हिन्दी आंदोलन का मीडिया के एक वर्ग ने उपहास उड़ाया. आपातकाल विरोधी आंदोलन में भी मीडिया की भूमिका अच्छी नहीं थी. जन आंदोलनों में मीडिया से बहुत अपेक्षा करनी भी नहीं चाहिए। हां अन्ना हजारे के आंदोलन में मीडिया ने सक्रिय भूमिका निभा कर अपना दामन धोने की कोशिश की है.

जानकारी हो कि पत्रकार कंचना 26 सितंबर 2003 को दुर्घटनाग्रस्त हो गईं और अगले दिन उनकी मृत्यु हो गयी थी. उसके बाद से उनके पति एवं वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार द्वारा प्रति वर्ष इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इस दौरान पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता व विभिन्न राजनीतिक दलों से जुडे़ लोग इस कार्यक्रम को संबोधित करते हैं. इस कार्यक्रम में श्रोताओं के रूप में वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक, टीवी चैनल एडिटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एनके सिंह, जैन टीवी के समूह संपादक दिलीप कुमार, पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह, समाजवादी जनता पार्टी के महासचिव एचएन शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार प्रबाल मैत्र, अरविंद मोहन, अजय झा, जयप्रकाश पांडेय, गांधी शांति प्रतिष्ठाण्न के मंत्री सुरेंद्र कुमार सहित राजनीतिक, सामाजिक एवं मीडिया क्षेत्र की अनेक नामी गिरामी लोग उपस्थित थे. सभा का संचालन भारतीय विरासम के प्रमुख विद्वान डॉ. आनंद वर्धन ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन श्री महेंद्र गर्ग ने किया. प्रेस रिलीज

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