मैंने वर्ष 2011 के लिए होने वाले यूपी आईपीएस एसोसिएशन की वार्षिक जनरल मीटिंग के लिए यह सुझाव दिया था कि आईपीएस एसोसिएशन के विस्तार को बढ़ा कर इस में पुलिस के सभी पदों के लोगों को शामिल किया जाए. 27 जुलाई 2011 को पुलिस अफसर मेस, लखनऊ में संपन्न यूपी आईपीएस एसोशिएशन की मीटिंग में उपस्थित लोगों का यह मत था कि आईपीएस एसोसिएशन के विस्तार को बढ़ाना और उसमे सभी पदों के लोगों को शामिल करना उचित नहीं है और एसोसिएशन के अधिकार क्षेत्र के बाहर है.
एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा लिए गए निर्णय पर प्रश्नचिन्ह लगाने का मेरे पास कोई अधिकार नहीं है पर इसके विपरीत मेरा भी यह स्पष्ट मत है कि कम से कम सामाजिक और अनौपचारिक मंचों, जैसी कि सेवा सम्बंधित एसोसिएशन होती हैं, पर पुलिस को अकारण आईपीएस एसोसिएशन, पीपीएस एसोसिएशन, अराजपत्रित एसोसिएशन आदि में बाँटने से लाभ कम और हानि अधिक हैं. इस तरह के आपसी विभेद मानव संसाधन प्रबंधन तथा आर्गेनाज़ेशनल बिहैवियर में मूल सिद्धांतों के विरुद्ध जान पड़ते हैं. मेरी दृष्टि में पुलिस में डीजीपी से लेकर सिपाही तक एक ईकाई है और मेरा यह मत है कि अब हमें इस तरह के कई एसोसिएशन के स्थान पर एक ही एसोसिएशन रखना चाहिए जो आधुनिक प्रबंधन शास्त्र और स्वीकृत नीतियों के अनुसार संचालित हों.
चूँकि यूपी आईपीएस एसोसिएशन का इस सम्बन्ध में मुझसे अलग विचार है और मैं भी ऐकिक पुलिस एसोसिएशन की अपनी धारणा के प्रति सिद्धांत रूप में समर्पित हूँ अतः मैंने यूपी आईपीएस एसोसिएशन से अपना त्यागपत्र दे दिया है. मेरा यह दृढ मत है कि यदि हम पुलिस विभाग को जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप बनाना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले विभाग में व्याप्त कृत्रिम और गैर-जरूरी दूरियों को समाप्त करना होगा और इसके लिए अलग-अलग एसोसिएशन के स्थान पर एक एसोसिएशन के होने तथा इसमें सभी स्तर के लोगों की सहभागिता रहने से स्वाभाविक तौर पर लोगों को और अधिक लगाव की भावना जाग्रत होगी.
अमिताभ
आईपीएस
Comments on “आईपीएस एसोसिएशन ने नहीं मानी बात, अमिताभ ने दिया इस्तीफा”
hum aapki bato se sahmat hai.
sahi faisala…..
brijesh dwivedi
एकता और अखंडता के लिए ऐसा जरूरी भी है…जय हिंद
बिल्कुल सही फैसला,परिस्थति कैसी भी बने व्यक्ति को अपने सिद्धान्त व स्वभिमान से समझैता नहीं करना चाहिए .
अमिताभ जी आप जो कुछ भी कर रहे हैं या कह रहे हैं.वह जनिहत में सरवथा उचित ही है। दर असल इस संसार के संचालन की ईश्वरीय व्यवस्था में अच्छे- बुरे करमों के अनुरुप सबकी अपनी – अपनी भूमिका है । मास्टर साब की भूमिका पढ़ान के रुप में खत्म हो जाती है
और कैशियर साहब की बेतन देने के रुप में लेकिन संसार के संचालसन की व्यवस्था में जितनी बड़ी भूमिका पुलिस की है, उतनी बड़ी भूमिका संसार में और किसी की भी नही। मतलब इस पुलिस विभाग ही (वह चाहे किसी भी देश का क्यों ना हो ) एक मात्र ऐसा विबाग है कि हम चाहें तो देवता कहला ले या फिर अपने स्वारथ में विपरीत आचरण करके राक्षस। वैसे भी हम लोग ना तो आज के सत्तर- अस्सी या सौ साल पहले इस संसार में कहीं थे और ना ही आगे होंगे।
इसलिए हमें वहीं करना जिसके लिए हमारी अन्तरात्नमा कहती हो।
halaki ki hamesha se aap alag stand lete hai ullul-jalul logic se apna alag rah chunte hai per es bar aapka bichar kafi accha laga. sadhubad
You are 100% right. we all are with you..
I do agree