: एक कमरे में चार आईपीएस अफसरों की तैनाती : बिना किसी इंट्रो और भूमिका के, केवल एक बात सूचनार्थ बताना चाहूंगा, उनको जिन्हें नहीं पता है कि ये अमिताभ कौन हैं. अमिताभ एक आईपीएस हैं. यूपी कैडर के हैं. पहले उनका नाम अमिताभ ठाकुर हुआ करता था. लेकिन उन्होंने अपने किसी आदर्शवादी जिद के कारण जाति-उप-नाम को निजी और सरकारी तौर पर त्याग दिया.
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वीरेश जी को फांसी दो!
वीरेश कुमार सिंह उतने ही आईआईटीयन हैं, जितने गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पणिक्कर, इन्फोसिस के नारायणमूर्ति, सोशल एक्टिविस्ट अरविन्द केजरीवाल तथा आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव हैं. वीरेश सिंह ने 1988 में आईआईटी कानपुर से सिविल इंजिनीयरिंग में बीटेक की डिग्री ली. इसके बाद बिहार तथा यूपी के तमाम अन्य आईआईटी छात्रों की तरह उन्होंने भी तीन बार सिविल सर्विस की परीक्षा दी.
मेरे देवता कैसे हो?
कल मैं मेरठ से लखनऊ गया था और पुनः उसी दिन वापस भी आया. लखनऊ पहुँच कर घर जाते समय और रात में घर से रेलवे स्टेशन आते समय ऑटो में ड्राइवर के बगल में बैठा हुआ उनसे देवी-देवताओं के बारे में बातें करने लगा.
आईपीएस एसोसिएशन ने नहीं मानी बात, अमिताभ ने दिया इस्तीफा
मैंने वर्ष 2011 के लिए होने वाले यूपी आईपीएस एसोसिएशन की वार्षिक जनरल मीटिंग के लिए यह सुझाव दिया था कि आईपीएस एसोसिएशन के विस्तार को बढ़ा कर इस में पुलिस के सभी पदों के लोगों को शामिल किया जाए. 27 जुलाई 2011 को पुलिस अफसर मेस, लखनऊ में संपन्न यूपी आईपीएस एसोशिएशन की मीटिंग में उपस्थित लोगों का यह मत था कि आईपीएस एसोसिएशन के विस्तार को बढ़ाना और उसमे सभी पदों के लोगों को शामिल करना उचित नहीं है और एसोसिएशन के अधिकार क्षेत्र के बाहर है.
मेरा नाम Stephen है, आपका नाम क्ये है?
यदि कोई आपसे इसी तरह से हिंदी और अंग्रेजी में लिख कर कुछ पूछेगा तो इसमें कोई आश्चर्य वाली बात कत्तई नहीं होगी क्योंकि हिंदी और अंग्रेजी भाषा का व्यापक प्रयोग तो हम करते ही हैं. पर यदि ऐसा लिखने वाला एक बूढा अपरिचित अँगरेज़ हो और जिस जगह यह बातचीत चल रही हो वह इंग्लैंड का एक चर्च हो तो आप एक बार आश्चर्य में तो पड़ ही जायेंगे.
ब्रिटेन में अखबारों की कीमत
मैं ब्रिटेन में अधिक अखबार तो नहीं पढ़ सका लेकिन रास्ते में स्टाल आदि पर अख़बारों को बाहर से जरूर देखा. अधिक अखबार इसलिए नहीं पढ़ सका क्योंकि अख़बारों की कीमत पौंड में होती है और हम हिन्दुस्तानी जो कुछ दिनों के लिए ब्रिटेन जाते हैं, चौबीसों घंटे एक ही चीज़ से बोझिल रहते हैं- पौंड और रुपये की आनुपातिक गणना.
लन्दन में प्रणव रॉय
[caption id="attachment_20712" align="alignleft" width="84"]प्रणब रॉय [/caption]प्रणव रॉय को आज कौन नहीं जानता, एनडीटीवी के मालिक, अंग्रेजी के अत्यंत कुशल समाचार वाचक, चुनावी सर्वेक्षण के जनक और इस देश के सर्वाधिक चर्चित पत्रकारों में से एक प्रणव रॉय एक ऐसी हस्ती हैं जिनके बारे में संभवतः पूरा हिंदुस्तान जानता है. आम तौर पर उनके जैसा बड़ा व्यक्तित्व सड़क चलते नहीं टकराया करता.
ब्रिटेन में पुलिस से हमें क्या सीखने की जरूरत है?
आजकल पुलिस की ट्रेनिंग के परिप्रेक्ष्य में यूके आया हुआ हूँ और वर्तमान में मैनचेस्टर में हूँ. यहाँ से आगे कैम्ब्रिज जाना है जहां कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलोजी में ट्रेनिंग होगी. सैद्धांतिक ट्रेनिंग तो अपनी जगह है ही पर जो सबसे लाभप्रद और जरूरी जानकारियाँ मिल रही हैं वह तो फील्ड में ही है.
Indian Police vs New York police
Each one of us must have had many experiences when suddenly something they had been thinking very high of turns out to be a big disappointment, at least in his/her perspective. The same happened to me when I actually came to know about the ‘Bratton experiment’ in policing.
अमर सिंह के साथ अमिताभ बच्चन भी फंस सकते हैं
अमर सिंह बड़बोले हैं. बोलने में कोई उनसे जीत नहीं सकता. कल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को अमर सिंह की काली कमाई की जांच का जो आदेश दिया और अमर सिंह की गिरफ्तारी पर से रोक हटाने का जो फैसला सुनाया, उससे अमर सिंह के पैर के नीचे से जमीन सरक गई है. उन्होंने कोर्ट के आदेश के बाद मीडिया से बातचीत में कहा कि अगर वे गुनाहगार पाए जाते हैं तो उन्हें दंडित किया जाना चाहिए.
चंडी, अमिताभ समेत कई को राजीव गांधी एक्सीलेंस एवार्ड
चौराहा.इन के संपादक और चर्चित युवा पत्रकार चंडीदत्त शुक्ल को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्रकाशित “सीमापुरी टाइम्स” हिंदी समाचार पत्रिका की ओर से “राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड-2011” से सम्मानित किये जाने की घोषणा की गयी है. समाज में विभिन्न क्षेत्रों में किये गए उत्कृष्ट कार्यों हेतु सीमापुरी टाईम्स की ओर से हर वर्ग के लोगों को सम्मानित किया जाता है. शुक्ल को न्यू मीडिया, पत्रकारिता, साहित्य लेखन में महत्वपूर्ण योगदान के लिए सम्मानित किया जा रहा है.
पुलिस कांस्टेबल मीनाक्षी की संघर्ष यात्रा
मैं इन दिनों आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन (जिसे संक्षेप में ईओडब्ल्यू कहते हैं) के सेक्टर मेरठ में पुलिस अधीक्षक के पद पर कार्यरत हूँ. यहाँ आने के बाद मुझे अपने सरकारी काम के अलावा एक ऐसे घटना से साबका पड़ा जिसने मुझे कई तरह से सोचने को मजबूर कर दिया. वाकया यह है कि इस दफ्तर में मीनाक्षी नामक एक महिला आरक्षी कार्यरत है. बगल के ही मुज़फ्फरनगर के नन्हे सिंह की यह लड़की करीब सात-आठ साल से पुलिस विभाग में है.
भड़ास बनाम इंडिया अगेंस्ट करप्शन
[caption id="attachment_20237" align="alignleft" width="83"]अमिताभ[/caption]इस समय पूरे देश में लोकपाल बिल और उसके ड्राफ्टिंग कमिटी को ले कर चर्चाएं ही चर्चाएं हो रही हैं. थोडा चैतन्य प्रकृति का होने के नाते मैंने भी इसमें अपनी सहभागिता करते हुए ये दो छोटी कवितायें लिखीं. उसमे एक कविता यह थी-
कुछ नहीं कर पाएगा जनलोकपाल बिल!
पिछले कुछ दिनों से देश में एक ही शब्द गूंज रहा है- जन लोकपाल बिल और इससे जुड़ा एक ही नाम- अन्ना हजारे. मैं इतने दिनों तक ये चर्चाएँ तो सुन रहा था पर कभी भी प्रस्तावित जन लोकपाल बिल को देखने का मन नहीं बना था. आज अचानक इस जन लोकपाल बिल का प्रस्ताव देखा तो इस कदर सन्न रह गया कि सोच भी नहीं पाया एक पूरा देश किसी भी कही-अनकही पर किस तरह आ सकता है.
मेरी नूतन भारत आकर भी वैसे ही अंग्रेजी बोले, यही दुआ करता हूं
लगता है अमेरिका बहुत अच्छी जगह है और अमेरिका का महिलाओं के रूप-विन्यास पर बहुत सम्यक प्रभाव पड़ता है. यह भी लगने लगा है कि अमेरिका के आबोहवा में कुछ ऐसी ताजगी और खुशबू है जो महिलाओं के चित्त को आनंदित और प्रफुल्लित कर देता है, खास कर के तब जब उनके पति उनके साथ ना चिपके पड़े हों.
फ्राड कंपनी के एंबेसेडर बने अमिताभ
अमितजी, साधुवाद, आज आपको एक ऐसी कंपनी के ब्रांड एंबेसेडर के रूप में देखा जिसके संचालकों को मध्यप्रदेश की पुलिस तलाश रही है। आपने न्यूट्रीचार्ज नामक जिस प्रोडक्ट का विज्ञापन किया है, उसकी निर्माता कंपनी पेनजॉन फार्मा है। इस कंपनी के संचालक मध्यप्रदेश के सैंकड़ों बुजुर्ग निवेशकों का करोड़ों रुपया लेकर फरार हैं। ये निवेशक आपको ‘हमारा बागबान’ मानते हैं और लंबे अरसे से मजबूरी की जिंदगी जी रहे हैं। इनकी लड़ाई का सूत्र वाक्य हरिवंशराय बच्चन की वह कविता ही है, जिसका आप गाहे-बगाहे पाठ करते रहते हैं। कविता यूं है-
त्वरित न्याय का गंगाजल
“पापा, पता नहीं आप सारे पुलिस वाले गंगाजल फिल्म इतना पसंद क्यों करते हैं? मैंने यही हाल रांची में देखा, पटना में भी और आपको भी देखती हूँ.” बेटी तनया ने कल रात जब यह बात कही तो मुझे लगा बात में कुछ दम है. मैं औरों का तो नहीं जानता पर यह सही है कि जब भी यह फिल्म टीवी पर आती है तो मैं उसे हर बार देखने लगता हूँ, जबकि पत्नी नूतन और दोनों बच्चे इसका विरोध करते हैं. फिर सोचता हूँ कि ऐसी क्या बात है इस फिल्म में जो बार-बार मुझे इसकी ओर सम्मोहित कर देती है.
हिंदी को क्यों नहीं मिलते होलटाइमर
मुझे वह लेखक बता दो हिंदी का, जो सिर्फ लिखता है और उसी पर खा-जी रहा है. मुझे उस हिंदी लेखक से मिला दो, जो आईएएस, आईपीएस, इनकम टैक्स अधिकारी या बैंक का अधिकारी या कर्मचारी, रेलवे विभाग, डाक विभाग, म्युनिसिपेलिटी में सेवा नहीं कर रहा है या किसी प्राइवेट सेक्टर में बड़े या छोटे ओहदे पर नहीं है. और इन सबसे पहले वह विश्वविद्यालय, कॉलेज, स्कूल या ऐसे ही किसी भी शिक्षण या अध्ययन संस्थान में नहीं है. जी हाँ साथियों, ये नहीं हुए तो महाशय या महाशया किसी बड़े या छोटे अखबार और मैगजीन में होंगे ही. नहीं कुछ तो वह ऐसा नेता तो जरूर ही होगा, जिसके अन्दर मेरी ही तरह हिंदी साहित्यकार बनने का कीड़ा नहीं काट रहा हो.