आलोक तोमर की स्मृति में हर साल पच्चीस हजार रुपये का एवार्ड देने की घोषणा

Spread the love

मध्य प्रदेश की धरती से उपजे जांबाज पत्रकार आलोक तोमर को मध्य प्रदेश के पत्रकारों ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी. आइसना (आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एसोसिएशन) द्वारा भोपाल के रवींद्र भवन में बीते दिनों आयोजित एक समारोह में संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष अवधेश भार्गव ने आलोक तोमर की स्मृति में हर साल किसी जांबाज पत्रकार को पच्चीस हजार रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की.

इस मौके पर आलोक तोमर की पत्नी और पत्रकार सुप्रिया राय भी मौजूद थीं. कार्यक्रम में आलोक तोमर के चित्र पर अतिथियों ने माल्यापर्ण किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी. सुप्रिया राय ने भीगी आंखों और कांपते हाथों से जब अपने पति के चित्र पर माल्यार्पण किया तो पूरा हाल भावुक हो उठा. आलोक तोमर की स्मृति में सभी लोगों ने खड़े होकर दो मिनट का मौन रखा. सुप्रिया राय ने अपने संबोधन में आलोक तोमर के जीवन, दर्शन, काम करने के तरीके और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला. आइसना के महासचिव विनय जी. डेविड ने भड़ास4मीडिया से बातचीत में कहा कि आलोक तोमर जैसे जुझारू पत्रकार की स्मृति को जिंदा रखा जाना जरूरी है. पुरस्कार देने के लिए राष्ट्रीय स्तर की एक कमेटी का गठन किया जाएगा. पूरी प्रक्रिया पारदर्शी रहेगी ताकि पुरस्कार ऐसे लोगों को मिल सके तो वाकई आलोक तोमर की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हों.

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Comments on “आलोक तोमर की स्मृति में हर साल पच्चीस हजार रुपये का एवार्ड देने की घोषणा

  • Bijay singh , Jamshedpur says:

    Bahut khoob……ALOK JI ki yadon ko hamesh jinda rakhna hum sab ka farz hai…main sadhuwad deta hu iss faisle ke liye …purashkar ki rashi me main kuch sahyog karna chahunga……

    Reply
  • डी दयाल / संयोजक / आलोक मित्र मंच says:

    आलोक तोमरजी ने सत्रह साल की उम्र में एक छोटे शहर के बड़े अखबार से जिंदगी शुरू की. दिल्ली में जनसत्ता में दिल लगा कर काम किया और अपने संपादक गुरू प्रभाष जोशी के हाथों छह साल में सात पदोन्नतियां पा कर विशेष संवाददाता बन गए। फीचर सेवा शब्दार्थ की स्थापना 1993 में कर दी थी और बाद में इसे समाचार सेवा [b]डेटलाइन इंडिया.कॉम [/b]बनाया। 11 मार्च को उन्होंने लिखा मै डरता हूं कि मुझे डर क्यो नहीं लगता जैसे कोई कमजोरी है निरापद होना.. वे जीवन भर जुझारू रहे.. आइसना (आल इंडिया स्माल न्यूज पेपर्स एसोसिएशन) द्वारा महानतम लेखनी के धनी और हजारों पत्रकारों के प्रेरणा-स्रोत आलोक तोमर की स्मृति में हर साल किसी जांबाज पत्रकार को पच्चीस हजार रुपये का पुरस्कार दिए जाने की घोषणा वंदनीय और अभिनंदनीय है. मंच पर सुप्रियाजी ने हौसला दिखाया और हिम्मत करके डटी हुई हैं.
    दरअसल यह घोषणा तो मध्य प्रदेश सरकार को करनी चाहिए जिसे नाज होना चाहिए कि आलोकजी भिंड में जन्मे और देश-दुनिया में मध्य प्रदेश का मान बढ़ाया. …और भड़ास से शिकायत है कि क्या आप आलोकजी की फोटो लगाना भी भूल गए? [b]इंदौर प्रेस क्लब [/b]ने भी घोषणा कर दी कि वे लोग हर साल भाषाई महोत्सव में एक यशस्वी पत्रकार को आलोक तोमर की स्मृति में पुरस्कार देंगे ताकि आलोक तोमर के नाम व काम को जिंदा रखा जा सके. इस घोषणा की खबरें भी प्रकाशित हुई पर जब आलोक तोमर के नाम पर पुरस्कार देने का मौका आया तो किसी को आलोक तोमर और उनकी पत्नी का नाम ही याद नहीं आया मगर आइसना ने कम से कम उनको याद तो किया है.
    [b] डी दयाल
    संयोजक
    आलोक मित्र मंच [/b]

    Reply
  • Is khabar per vishwas hee nahee ho raha. Kaise hua aur ekaek yeh kab ho gaya kuch jankary hee nahi hui kahee se bhee.
    Ek hee kshetra ke hone kee vajah se hamari mulakat kabhi kabhi Jansatta mein ho jaya kerti thi per jub bhee milte bahut aatmiyeta se milte .
    Phir ’94 mein mujhe Channai jana per gaya aur uske bad se sampark lagbhag samapt sa hee ho gaya per ye is dost ke vyavhar kee khasiyat rahee ki mery smritiyo mein usne hamesh jagah banaye rakhi aur isee vajah se ye jagah hamesha aise hee banee rahegi.

    Reply
  • Is khabar se hairan hoon. Iskee satyata per vishwas nahi ho raha.Hua kya aur kaise hua ye sab, is bare mein bhee koi jankari nahee mili.
    Ek hee field mein hone ke karan Jansatta mein kabhi kabhi mulakat ho jaya karti thi per hot thee bari aatmiyeta ke sath.
    Phir mujhe ’94 mein Chennai jana per gaya aur bus tab se sampark kat sa gaya per is dost ke vyavhar ne meri smritiyo mein hamesha jagah banaye rakhi jo aage bhee vaisee hee taza bani rahengi.

    Reply
  • Yeh samachar jan ker sehsa vishwas hee nahee ho raha. Kaise hua aur kub hua ye , kahin se kuch bhee jaan ne ko nahi mila.
    Ek hee kshetra mein hone ke karan hamari mulakat kabhi kabhi Jansatta mein ho jaya karti thi per jab bhee hoti , hoti bari aatmiyeta ke sath, isee liye ’94 mein Chennai chale jane ke bad se sampark lagbhag samapt sa ho gaya per is dost ke vyavhar ne mery smritiyo mein hamesha jagah banaye rakhi jo aage bhee sadev vaisee hee banee rahegi.

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *