: केडी सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से अमर सिंह दुखी : आज जिस विषय पर मैं लिखने जा रहा हूँ, संभवतः वह समय की धारा के अनुकूल कतई नहीं, प्रतिकूल अवश्य है. मैंने समाजवादी दल से अपने निष्कासन के बाद सदैव अपने पुराने दल के नए प्रवक्ता मोहन की गालियाँ सुनीं और उसे भी ढेरों सुनाई. अन्ना हजारे जी का बयान कि राजनेताओं को चील कौवों के हवाले कर दो. सुश्री उमा भारती और श्री ओमप्रकाश चौटाला को अपमानित कर भगा दो, क्योंकि ये नेता है.
इस परिपेक्ष्य में समाजवादी प्रवक्ता मोहन का बयान कि ऐसा करके राजनीति को लांछित और राजनेताओं को मात्र चोर कह भर देने से कोई आमूल चूल परिवर्तन देश में नहीं आ पाएगा, यह एक सराहनीय बयान है. क्या अन्ना गाँधी से बड़े हैं? गांधी जी ने कहा था कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं. यदि अन्ना की नजर में पापी चौटाला जी और उमा जी उनकी शरण में शुद्ध होने पहुँच गए, तो बुराई क्या थी? वाल्मिकी जी “मरा मरा” कहते कहते “राम राम” तक पहुंचे और रामायण तक लिख डाली और दस्युराज “अंगुलीमाल” जो लोगों के क़त्ल के बाद उनके शरीर की अँगुलियों की माला पहनता था, उसे भी भगवान बुद्ध ने शरणागत होने पर शरण दे दी थी. लोकनायक जयप्रकाश और आचार्य विनोबा भावे ने भी तमाम डाकुओं का आत्मसमर्पण कराया था. क्या अन्ना बुद्ध, गांधी, जे.पी. और विनोबा से भी बड़े हो गए जो अपने आन्दोलन का समर्थन करने आए नेताओं का तिरस्कार करवा डाला.
बाबा रामदेव के निकट के एक सज्जन मेरे पास हो सकता है स्वान्तः सुखाय मुझे निमंत्रित करने पहुंचे. एक बार मन हुआ चले, फिर सोचा क्या पता मुझे भी चौटाला और उमा ना बनाना पड़े. एक साथ देश भर में मोमबत्तियों का जलना, धरना, प्रदर्शन, नरेन्द्र मोदी जी और एन.डी.ए. के ही नितीश जी की तारीफ़ और फिर आदरणीय अडवानी जी का अन्ना को खुला समर्थन, परिवारवाद का विवाद आन्दोलन के शुरुआती चरण में, रामदेव जी और किरण बेदी की समिति में नदारदी, अन्ना समर्थक देश के कई युवाओं के मन को उद्वेलित करती है. यदि क़ानून का ही मसला था तो शांतिभूषण जी के बेटे प्रशांत की जगह काले धन की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में लड़ने वाले राम जेठमलानी जी को लाया जा सकता था.
नेता, उद्योगपति और भ्रष्टाचार से इतनी ही नफ़रत है तो १९७७ की प्रथम जनता पार्टी के पदाधिकारियों की सूची देखें- अध्यक्ष श्री मोरारजी देसाई, महासचिव- श्री लालकृष्ण अडवानी, श्री रामधन,श्री विजय सिंह नाहर, श्री रामकृष्ण हेगड़े और कोषाध्यक्ष-श्री शांति भूषण. मोरारजी के कोषाध्यक्ष शांति भूषण जी और उस समय मोरारजी के सुपुत्र कान्ति देसाई अपने उद्यम, छवि, और काम-काज के लिए काफी मशहूर थे. बजाय आवाज उठाने के श्री शांति भूषण जी आप पहले कोषाध्यक्ष फिर मोरारजी भाई के क़ानून मंत्री भी बन गए थे. मै नहीं कहता कि कांति भाई गलत थे, वह सही रहे होंगे. पर फिर इतना जरूर पूछूँगा कि यदि कांति भाई सही, रंजन भट्टाचार्य भाई सही तो कोई और गलत क्यूँ? शुचिता और शुद्धता, नैतिकता और मर्यादा मात्र आप और आपके परिवार के बेटों का एकाधिकार क्यों?
“यार हमारी बात सुनो, ऐसा एक इंसान चुनो, जिसने पाप ना किया हो, जो पापी ना हो”. अन्ना जी संघर्ष करो, सिर्फ शांति भूषण जी, प्रशांत भैया, नरेन्द्र मोदी जी, नितीश जी ही नहीं सोनिया जी और मनमोहन जी भी आपके साथ हैं और इसीलिये तो श्री कपिल सिब्बल से गजटेड आर्डर लेते ही स्वामी अग्निवेश जी ने सोनिया जी और मनमोहन जी को धन्यवाद कह दिया था. आन्दोलन के अगले चरण की प्रतीक्षा रहेगी निशाने पर न्यायमूर्ति , अफसर, उद्योगपति कौन होंगे? क्योंकि अन्ना जी भ्रष्टाचार सिर्फ नेताओं में नहीं हर जगह है. श्री बालाकृष्णन जी चर्चा में हैं, यह सज्जन नेता नहीं हैं, बलवा और यूनिटेक के चंद्रा और मद्रासी शिवशंकर भी चर्चा में हैं, यह भी नेता नहीं हैं, और आज ही आपके महाराष्ट्र के हाईकोर्ट ने इनकम टैक्स के बड़े अधिकारी एस.सी. टेकवानी की चोरी पकड़ी है, यह भी नेता नहीं हैं. भ्रष्टाचार अपने शबाब पर यत्र, तत्र, सर्वत्र है और इसके प्रासंगिक निराकरण का सूझ-बूझ का बयान राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी का है कि जब तक चुनावों में लक्ष्मी मैया की कृपा के अंत की प्रक्रिया पारदर्शिता से लागू करने हेतु चुनावों की “स्टेट फंडिंग” नहीं होगी, कुछ नहीं हो सकता है. इस बयान से मैं भी सहमत हूँ.
अंतिम बात, मुझे शरद पवार जी या उनकी राजनीति या उनके दल से कुछ लेना-देना नहीं, आपकी नजर में वह बहुत बुरे है, लेकिन बारामती के लोगों से भी तो ज़रा पूंछो, कि शरद पवार कैसे हैं? तथाकथित भ्रष्टाचार में डूबे हुए हर नेता का कम से कम एक बारामती तो है लेकिन समाज की अन्य विधाओं में उच्च पदों पर बैठे भ्रष्टाचाररत न्यायमूर्ति, पत्रकार, अफसर, उद्योगपति सिर्फ एकतरफा लेते हैं देने का कोई उपक्रम उनके पास नहीं है. कुछ भी हो कम से कम भ्रष्टाचार आपके कारण बहस का मुद्दा तो बना पर यह लड़ाई नेतागिरी तक चयनात्मक ना हो बल्कि समाज के सभी वर्गों में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामूहिक संघर्ष हो तो मैं भी एक टोपी सिलवाकर, उस पर यह लिख कर कि “मैं भी अन्ना हजारे हूँ” आपका जयकारा करूंगा.
पैसे का महत्त्व राजनीति में इतना हो गया है कि असम में तृणमूल सांसद के.डी. सिंह पकडे जाते है और रुपया पकडे जाने पर भी छोड़ने के लिए चुनाव आयोग को आयकर विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही का निर्देश देना पड़ता है. चेन्नई में भी चुनावी दौर में भारी नकदी पकड़ी जाती है. यह हाल तृणमूल ऐसे दल से सम्बद्ध दल का है जिसकी नेता ममता बनर्जी की ईमानदारी पर अब तक प्रश्न नहीं हुआ है. ख़ैर आदरणीय हजारे जी की नजर में सबसे बड़े ईमानदार पिता-पुत्र की जोड़ी आदरणीय श्री शान्ति भूषण जी और श्री प्रशांत भूषण जी को ढेरों बधाइयां. उम्मीद है यह जोड़ी कुछ न कुछ हलचल तो जरूर करेगी.
अमर सिंह के ब्लाग से साभार
amit kumar
April 13, 2011 at 6:47 am
Bahut theek kaha Amarji apne. Bhrashtachar sirf rajnitigyon tak he seemit nahi hai. Lagbhag 30 se 35 varsh tak desh ki seva(?) karne vale in naukarshahon par kisi ki najar kyon nahi jati ? Retirement ke bad bhi ye naukarshah apne liye koi na koi kursi pakki kar he lete hain aur bhrashtachar ke liye badnam hain sirph politicians.
pramod kaushik
April 13, 2011 at 11:23 am
Theek kah rahe hain Amar singh ji Bhrastachar kewal netaon me hi nahi hai lekin is baat ko nahi jhoothlaya ja sakata ki har tarah ke bhrastachaar ki jad me kewal neta hi milenge. Samaaj ke lagbhag har hisse me isne paanw pasar liye hain par jab bhrast logon par karyavahi ki baat aati hai to jyadatar mamlon me Inke rajnaitik aaka hi aise logon ka bachav bhi karte hain. Samaj me faile is ganbhir rog ke prachar prasar ki jimmedaari se rajneta is tarah palla nahi jhaad sakate.