तहलका समूह की ओर से आने वाले संभावित बिजनेस दैनिक फाइनेंसियल वर्ल्ड के बंद होने से जुड़ी दी इकोनोमाकि टाइम्स की स्टोरी पढ़ने के बाद और इसी मसले पर एक वेबसाइट पर प्रकाशित आलेख में एक टिप्पणी देखने के बाद मैं कुछ सोचने और कहने के लिए मजबूर हो गया हूं. इस टिप्पणी में लिखा था- ”तहलका के स्वयंघोषित स्वच्छ संपादक तरुण जे तेजपाल आप कँवरदीप सिंह उर्फ “केडी” सिंह की बैसाखी पकड़ने के लिए शर्म करें. गंदे पैसे से मीडिया का गहरा रिश्ता देखा जाए या फिर संपादकों की दोहरी भाषा.”
सच यह है कि मैं केडी सिंह के बारे में लगभग कुछ नहीं जानता हूँ. यद्यपि वे एक बड़े और सफल उद्योगपति हैं और राज्यसभा सांसद भी हैं पर मेरा दुर्भाग्य या मेरा सीमित ज्ञान कि मैं उनका नाम तक नहीं जानता था, वैसे ही जैसे सवा सौ करोड़ की इस बहुत बड़ी आबादी में मुश्किल से दो-चार हज़ार लोगों के अलावा कोई मेरे अस्तित्व तक को नहीं जानता होगा, वैसे ही हर व्यक्ति की प्रसिद्धि की एक परिधि होती है.
फिर इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद मैंने केडी सिंह के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्त की. सबसे पहले उनके एल्केमिस्ट समूह के बारे में ज्ञात हुआ जो अब दस हज़ार करोड रुपये की हो चुकी है. ग्यारह कंपनियों के इस समूह में आठ हज़ार से अधिक लोग काम करते हैं और यह समूह आगे काफी कुछ हासिल करने का हौसला और इच्छा रखती है जो वह अपने विजन स्टेटमेंट में भी साफ़ दर्शाती है. फिर मैंने के डी सिंह के बारे में जानकारी उन्ही के आधिकारिक वेबसाईट से ली. इसके अनुसार एल्केमिस्ट का सामने आना भारतीय उद्यमिता का एक बेमिसाल नमूना है. बहुत ही सामान्य परिवार से ताल्लुख रखने वाले सिंह आज पंजाब के सबसे चमकदार सपूतों में गिने जाने हैं और पूरे हिंदुस्तान में उनकी उद्यमिता और कृत्यों की चर्चा है. मात्र उन्नीस साल की उम्र में उन्होंने अपना यह शानदार कैरियर अपने भाई से बीस हज़ार रुपये उधार ले कर शुरू किया था.
इस वेबसाईट में के डी सिंह के बारे में तमाम अन्य रोचक, प्रेरक और अनुकरणीय बातें लिखी हुई हैं. अंत में उन्हें एक उद्यमकर्ता के साथ ही एक दार्शनिक और कवि ह्रदय भी बताया गया है. इसी प्रकार से तरुण तेजपाल से जुड़े वेबसाईट http://www.taruntejpal.com में अन्य बातों के अलावा यह भी लिखा है- “मार्च 2000 ,में उन्होंने तहलका नामक एक नयी न्यूज़ संस्था शुरू की जिसने तेजतर्रार और जनहितकारी पत्रकारिता में वैश्विक स्तर पर आदर प्राप्त किया है.”
मेरे जैसा सामान्य व्यक्ति ना तो इतनी क्षमता रखता है और ना ही इतनी जानकारी कि एक अज्ञात व्यक्ति की दी हुई टिप्पणी अथवा सायेंस सेरिफ़ में मनीबैग एमपी नाम से छपे आर्टिकल पर कोई रायशुमारी कर सकूँ पर इतिहास को उसकी समग्रता में देखते हुए और मानव मन के एक चितेरे के रूप में मैं इतना अवश्य कह सकता हूँ कि कई बार सत्य बड़ा ही सापेक्ष होता है. बहुधा मैंने देखा है कि एक व्यक्ति मेरा बहुत प्रिय है और मुझे उसमे सब कुछ अच्छा ही अच्छा लगता है पर ना जाने क्यों कई दूसरे लोग उसे बिलकुल पसंद नहीं करते और उसके बारे में इतनी अधिक बुराई बतियाते हैं कि मैं एकदम से परेशान सा हो जाता हूँ. इसके विपरीत भी है. मैंने किसी को जीवन भर बहुत अधम, गडबड, गुनाहगार किस्म का आदमी समझा- कई बार अपने कुछ संपर्कों के आधार पर और बहुधा सुनी सुनाई बातों के आधार पर, पर जब समय आया तो लगा कि इससे अच्छा कोई आदमी ही नहीं था. फिर यह अच्छा और खराब भी मेरी स्वयं की दृष्टिकोण का खेल है. इस मूलभूत अवधारणा के आधार पर मैं यह मानने लगा हूँ कि किसी व्यक्ति को सफ़ेद-स्याह की परिधि में बाँध देने का प्रयास बहुत उचित नहीं है.
संभवतः इससे अधिक जरूरी यह है कि हर मुद्दे पर एक व्यक्ति की परीक्षा और उसका आकलन तदनुसार किया जाए. उदाहरण के लिए हम के डी सिंह को लें. यदि उन्होंने बीस हज़ार रुपये से मात्र उन्नीस साल की उम्र में अपना स्वव्यवसाय प्रारम्भ कर दिया और कुछ ही सालों में दस हज़ार करोड रुपये का समूह बना चुके हैं तो वह निस्संदेह तारीफ़ की बात है. बल्कि यह कार्य अपने आप में पूरे देश के लिए एक दृष्टांत माना जाना चाहिए कि एक बिलकुल युवा व्यक्ति ने सरकारी नौकरी और इसी तरह की अन्य छोटी-मोटी संभावनाएं तलाशने में जीवन व्यतीत करने की जगह अपना भाग्य अपने खुद की मेहनत से नियत किया. इससे जुड़ा एक अन्य पहलु है. यदि उन्होंने यह कार्य किसी ऐसे जरिये से किया जिसे न्यायोचित नहीं कहा जा सकता या गैरकानूनी कहा जाएगा तो उन्हें इसके लिए जिम्मेदार मानते हुए उनके खिलाफ कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए. फिर यदि उन्होंने पैसे दे कर राज्य सभा की सीट पायी तो उनके विरुद्ध कठोरतम कार्यवाही होनी चाहिए. लेकिन यदि वे इतनी कम अवस्था में तरुण तेजपाल की प्रतिष्ठित पत्रिका तहलका में एक आर्थिक सहयोगी के रूप में बिना सम्पादकीय तथा अन्य निर्णयात्मक मामले में दखलंदाजी किये आगे बढ़ कर हिस्सेदारी कर रहे हैं तो उनका कदम सराहनीय है.
अब तरुण तेजपाल को लें. उन्होंने आज से कई साल पहले हमारे देश में एक ऐसा धमाका किया था जो अपने आप में अद्वितीय था. स्टिंग की ताकत उन्होंने पहले बार दिखाई दी और नेताओं में भय व्याप्त किया था, साथ ही सच के प्रति लगाव का जज्बा कायम किया था. तहलका ने भी अनवरत अपनी तीखी पत्रकारिता से अपने लिए एक खास मुकाम और लोगों के ह्रदय में ढेरों आदर-सम्मान हासिल किये हैं. लेकिन यदि वही तरुण किसी ऐसे व्यक्ति से धन और सहयोग लेंगे जो स्थापित तौर पर अनुचित और विधि-विरुद्ध कार्यों में स्पष्टतया लिप्त पाया मिले तो यह किसी भी प्रकार से स्वच्छ और शुचितापूर्ण पत्रकारिता के लिए वाजिब नहीं माना जा सकता.
ऊपर मैंने जितनी बातें कहीं उनका मूल मतलब यह था कि यदि हम किसी व्यक्ति का सम्यक और वस्तुनिष्ठ आकलन करना चाहते हैं तो हमें तथ्यपरक ढंग से हर विषय पर अलग-अलग सोचते हुए उसकी समग्रता में निष्कर्ष निकालने चाहिए. इसी जगह संभवतः हमारे देश में कई समस्याएं आ जाती हैं और उनमे सबसी बड़ी समस्या है सत्य का बहुधा परदे में छिपा रह जाना. यह वास्तव में एक गंभीर समस्या है. इसके पीछे एक बड़ा कारण शायद न्यायिक प्रक्रिया में विलम्ब है. सालों बीत जाते हैं, किसी बारे में अंतिम निर्णय या निष्कर्ष नहीं निकल पाते. आखिर सत्य का आखिरी उदघोषण तो न्यायिक निर्णय से ही हो सकते हैं. मेरे लिख देने से, आपके आरोप लगा देने से, उनके स्टिंग कर लेने से, इनके द्वारा कतिपय साक्ष्य या अभिलेख दे देने से क्या होता है जब तक न्यायिक प्रक्रिया के बाद एक निष्कर्ष नहीं मिल पाता.
न्यायिक निष्कर्ष निकलेंगे तो आम व्यक्ति भी तदनुसार अपना रुख बना पायेगा. अन्यथा आज हो यह रहा है कि मीडिया की भारी भीड़ में हर तरफ से एकाधिक आवाजें चली आ रही हैं- किसी ने किसी को आरोपित कर दिया, किसी ने किसी को. शंकाएं उत्पन्न हो गयीं, समाधान हुआ नहीं और उस व्यक्ति को लेकर असमंजस हमेशा के लिए बन गया. इसीलिए मेरा यह मानना है कि मीडिया द्वारा सत्य का निरूपण हो सकने के लिए, आम व्यक्ति द्वारा निष्कर्ष निकाल सकने के लिए और सत्यपरक चरित्र-चित्रण के यथासंभव निकट पहुँचने के लिए त्वरित न्यायिक प्रक्रिया आज की बुनियादी आवश्यकता हो गयी है. अन्यथा हर के डी सिंह, तरुण तेजपाल या अमिताभ या सुरेश एक साथ ही कई रूपों में माने जाते रहेंगे, अपनी-अपनी जानकारी और मर्जी के मुताबिक.
लेखक अमिताभ आईपीएस अधिकारी हैं. इन दिनों मेरठ में पदस्थ हैं.
कुमार सौवीर
April 12, 2011 at 8:10 am
पहले वीर सांघवी, फिर बरखा दत्त और अब तरूण तेजपाल।
खुलासों के साबुन के चलते पत्रकारिता के घिनौने हम्माम तो अब यह सब नंगे दिख रहे हैं।
मुझे तो लगता है कि इन जैसे लोग पत्रकारिता में आने के पहले ही नीति, नियम, संयम, आदर्श, मान्यताएं, स्वच्छता, शुचिता जैसे वस्त्र घर की खूंटी पर टांग आये थे।
कुमार सौवीर, महुआ न्यूज, लखनऊ
BIJAY SINGH
April 12, 2011 at 10:58 am
Amitabh ,i agree with you but every media house has the same story ,why alone tarun tejpal?
Sushil Gangwar
April 12, 2011 at 2:07 pm
Bhai jo pkada jaye wah chor baaki sab sahookaar .. kair dost list bahut lambi hogi .. Hum to ye hi kahege hum bolege kahoge ki bolta hai . Aaj kal Patrakarita me kamaee nahi balki dalali me kamaee hai . Esliye khul karo kya dalali nahi , Dalali rupi patrakarita .. Jai ho Patrakarita ki ?
Sushil Gangwar
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