: एक कमरे में चार आईपीएस अफसरों की तैनाती : बिना किसी इंट्रो और भूमिका के, केवल एक बात सूचनार्थ बताना चाहूंगा, उनको जिन्हें नहीं पता है कि ये अमिताभ कौन हैं. अमिताभ एक आईपीएस हैं. यूपी कैडर के हैं. पहले उनका नाम अमिताभ ठाकुर हुआ करता था. लेकिन उन्होंने अपने किसी आदर्शवादी जिद के कारण जाति-उप-नाम को निजी और सरकारी तौर पर त्याग दिया.
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गर्लफ्रेंड का साथ ना छोड़ा, दो करोड़ दहेज से मुंह फेर लिया
: एक युवा आईपीएस अफसर की सोच ने हम सबका दिल जीत लिया : पिछले दिनों मेरी मुलाकात एक नए, अविवाहित आईपीएस अधिकारी से हुई. बातचीत के क्रम में उनसे पूछ बैठा- ‘शादी हो गयी?’ उत्तर मिला- ‘नहीं, अभी नहीं’. मैं यूँ ही आगे बढ़ा- ‘क्यों, कब तक शादी होनी है?’. उनका जवाब- ‘अभी तीन साल नहीं, वर्ष 2014 में शादी होगी.’
गंदी गालियों में लोटती-नहाती-गाती पुलिसिंग और मेरे अनुभव
: जिसके पिता ज्ञात नहीं होते, क्या उनके पिता के पिता भी अज्ञात होते हैं? : इन दिनों हम लोग जब भी जीआरपी के संपर्क में आ रहे हैं, कुछ ऐसा हो रहा है जो कहानी बन जा रही है. पिछले दिनों मेरठ-लखनऊ यात्रा में नूतन ने जीआरपी के कुछ सिपाहियों का एक रूप देखा था तो कल जब हम पुनः मेरठ से लखनऊ आ रहे थे तो एक अलग घटना घटी.
बर्खास्त सिपाही सुबोध यादव ने अन्ना के मंच से लिया दो आईपीएस अफसरों का नाम
[caption id="attachment_21021" align="alignleft" width="85"]श्रीकांत सौरभ[/caption]बुधवार की शाम आठ बजे अन्ना हजारे के आंदोलन की जानकारी के लिए जैसे ही टीवी आन किया, स्टार न्यूज पर एक खबर को देख नजरें बरबस ही उस पर ठहर गई. “अमिताभ ठाकुर यूपी के सबसे ईमानदार आईपीएस अधिकारियों में, जबकि स्पेशल डीजी बृजलाल उतने ही भ्रष्ट.” रामलीला मैदान के मंच से यूपी के बर्खास्त सिपाही सुबोध यादव के इस बयान को सुन हजारों की भीड़ तालियां पीट रही थी.
Critical and legal evaluation of Jan Lokpal Draft
Statement of objects and reasons in any Act is always high sounding and jlp does not seem short of that but this does not really mean much because what matters are the provisions and their implementability. It basically wants to claim that it is an attempt to establish an “independent authority” to investigate offences under pc act…
No torture, no abuses- what interrogation then?
I am presently at Hyderabad undertaking my Mid Career training program. It is proving to be a very good learning and experiencing period where many new facts are emerging before us. I present a few of the more interesting ones here. The first one is about the British police’s method of interrogation.
आईपीएस अफसरों की इस ट्रेनिंग के निहितार्थ
: ब्रिटेन और अमेरिका में पुलिसिंग : मैं इन दिनों सरदार वल्लभ भाई पटेल नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद में एक ट्रेनिंग कर रहा हूँ. इसे ”मिड-कैरियर ट्रेनिंग प्रोग्राम” कहते हैं. सभी आईपीएस अधिकारियों के लिए यह ट्रेनिंग प्रोग्राम अनिवार्य हो गया है. हमें यह प्रोग्राम कराने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की टीम आई है. इसके साथ अमेरिकी और ब्रिटिश पुलिस अधिकारी भी हैं.
किसी के नायक किसी के खलनायक ओसामा की मौत मामूली नहीं है
: ओसामा बिन लादेन- इतिहास से होड़ : अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आधिकारिक तौर पर विश्व को यह बता दिया है कि ओसामा बिन लादेन को मारा जा चुका है. यह इस समय की सबसे बड़ी खबर है और एक ऐसी खबर है जिसका मात्र तात्कालिक महत्व नहीं है बल्कि बहुत ही दूरगामी प्रभाव है. मतलब यह कि यह एक ऐतिहासिक खबर है. ऐतिहासिक इसीलिए क्योंकि ओसामा की मौत मात्र एक व्यक्ति की मौत नहीं है.
How to go against corruption?
: Including Why No Lokpal : Yes, we all feel that the existing organizations/Institutions have not come up to the mark but which new organization has? Secondly, we need new organizations only when they r not existing previously, in one form or another. But what is the logic for having a new Institution just for the heck of it?
Lokpal- Gateway to the Promised World ?
Lokpal or Jan Lokpal or Ombudsman or whatever name you give to this organization, it is a person who is expected to act as a trusted intermediary between the Government and the general public which would act as a watchdog, an authority and a force to look into, receive, enquire into, act upon, prosecute and penalize corrupt public authorities.
यादों में आलोक : आयोजन की कुछ बातें, मेरी नजर से
पत्रकार मयंक सक्सेना भारतीय जाति प्रथा के अनुसार कायस्थ हैं, पर आलोक तोमर उनके पिता की तरह थे (या जैसा मयंक ने स्वयं कहा उनके दूसरे पिता थे). दुष्यंत राजस्थान के पत्रकार और लेखक हैं, आलोक तोमर से कोई दूर-दूर का पारिवारिक रिश्ता नहीं था पर उनकी आँखें ऐसे डबडबाई हुई थी जैसे उन्होंने कोई सगा खो दिया हो.
कुछ नहीं कर पाएगा जनलोकपाल बिल!
पिछले कुछ दिनों से देश में एक ही शब्द गूंज रहा है- जन लोकपाल बिल और इससे जुड़ा एक ही नाम- अन्ना हजारे. मैं इतने दिनों तक ये चर्चाएँ तो सुन रहा था पर कभी भी प्रस्तावित जन लोकपाल बिल को देखने का मन नहीं बना था. आज अचानक इस जन लोकपाल बिल का प्रस्ताव देखा तो इस कदर सन्न रह गया कि सोच भी नहीं पाया एक पूरा देश किसी भी कही-अनकही पर किस तरह आ सकता है.
उस एसपी को अपने किए पर पश्चाताप है!
मैंने जब भड़ास पर अपनी आने वाली किताब ”तीस आईपीएस अफसरों की जिंदगी पर किताब लिखेंगे अमिताभ” के बारे में जानकारी दी तो मुझे इस सम्बन्ध में कई सारी टिप्पणियां मिलीं. दोस्तों ने इसे एक सराहनीय कार्य बताया और इस कृत्य के लिए मेरी प्रशंसा की एवं शुभकामनाएं दीं. स्वाभाविक है अपने सभी मित्रों के प्रति मेरे मन में भी उतनी ही शुभिक्षा जाग्रत हुई जितनी उन्होंने अपने शब्दों से व्यक्त की.
तीस आईपीएस अफसरों की जिंदगी पर किताब लिखेंगे अमिताभ
मैं भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में हूँ, स्वाधीनता के पूर्व इसका नाम आईपी (इंडियन पुलिस) था. यह हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में जो पुलिस व्यवस्था है, उसमे सर्वोच्च पद आईपीएस अधिकारियों को जाता है. यह भी एक सच्चाई है कि आईएएस के बाद जिस सेवा को सरकार और समाज में सर्वाधिक महत्व दिया जाता है वह आईपीएस है. जिस परिवार का कोई एक लड़का आईपीएस में चयनित हो जाता है वह अपने आप को अत्यंत भाग्यशाली परिवार समझता है और इस एक बात से ही उसकी सामाजिक हैसियत में कुछ वृद्धि सी हो जाती है.
भूषण पिता-पुत्र पर भीषण बहस
मैं ईमानदार हूँ और आप भी ईमानदार हैं. इस दुनिया का हर आदमी ईमानदार है. बल्कि जो जितना बड़ा आदमी है, वह उतना ही ईमानदार है. साधारण आदमी को ईमानदारी के बारे में ना तो कहने की जरूरत होती है और ना कोई उसकी सुनता है. उसके लिए यह पूरा प्रसंग ही बेमानी होता है. पर बड़े आदमी को पता नहीं क्यों, दिन भर ना सिर्फ अपनी ईमानदारी साबित करनी होती है बल्कि दूसरों को भी उसी हद तक बेईमान बताना होता है.
फरजंद भाई की जय हो
मैंने भड़ास पर इंडिया टुडे के लब्धप्रतिष्ठ और अति-सम्मानित पत्रकार फरजंद अहमद से जुडी एक खबर देखी और उसी खबर के नीचे फरजंद साहब का एक कमेंट भी देखा जिसमें उन्होंने यशवंत द्वारा प्रस्तुत सामग्री पर अपना एतराज़ जताया है. इस पूरे प्रकरण के विषय में अनभिज्ञ होने के नाते मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूँगा पर फरजंद भाई का जिक्र आ जाने के कारण उन के सम्बन्ध में अपने विचार अवश्य प्रकट करूँगा.
नाम से ‘ठाकुर’ शब्द हटाना जागरण वालों को नहीं पचा
: नाम-पहचान छुपाकर शिखंडी बन जाना और स्त्रैण तरीके से वार करना शोभा नहीं देता : जागरण में छपी खबर के खिलाफ उचित स्थानों पर प्रार्थना पेश कर दी है : मैंने प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित पत्रकार तरुण तेजपाल और उभरते हुए उद्योगपति एवं सांसद केडी सिंह का सन्दर्भ लेते हुए एक लेख लिखा था जिसमें मैंने यह कहा- “कई बार सत्य बड़ा ही सापेक्ष होता है.” संभवतः यह एक सार्वभौम नियम है क्योंकि मैंने यह बात सौ फीसदी स्वयं पर घटित होते देखा है.
केडी सिंह की बैसाखी पकड़ने के लिए तरुण तेजपाल शर्म करें!
तहलका समूह की ओर से आने वाले संभावित बिजनेस दैनिक फाइनेंसियल वर्ल्ड के बंद होने से जुड़ी दी इकोनोमाकि टाइम्स की स्टोरी पढ़ने के बाद और इसी मसले पर एक वेबसाइट पर प्रकाशित आलेख में एक टिप्पणी देखने के बाद मैं कुछ सोचने और कहने के लिए मजबूर हो गया हूं. इस टिप्पणी में लिखा था- ”तहलका के स्वयंघोषित स्वच्छ संपादक तरुण जे तेजपाल आप कँवरदीप सिंह उर्फ “केडी” सिंह की बैसाखी पकड़ने के लिए शर्म करें. गंदे पैसे से मीडिया का गहरा रिश्ता देखा जाए या फिर संपादकों की दोहरी भाषा.”
अपनी जाति और अपने उपनाम “ठाकुर” से अलग होने के संबंध में
आज मेरे द्वारा ओ़थ कमिश्नर मेरठ के समक्ष यह शपथपत्र प्रस्तुत किया गया कि जाति-प्रथा के अहितकारी और बाधक असर को उसकी सम्पूर्णता में देखते हुए मैंने यह निर्णय लिया है कि भविष्य में मेरी कोई भी जाति नहीं होगी. इस प्रकार सभी आधिकारिक, शासकीय और सामाजिक अभिलेखों, दस्तावेजों, मान्यताओं और सन्दर्भों में किसी भी आवश्यकता पड़ने पर मेरी जाति “कोई नहीं” अथवा “शून्य” मानी जाए.
शोकमग्न राहुल देव और मुस्कुरातीं गार्गी रॉय…
: संदर्भ आलोक तोमर स्मृति सभा : जीवंत जीवन को सलाम :
सिपाहियों की भड़ास और अधिकारी की अधजगी नींद
कभी कोई किसी की कच्ची नींद नहीं तोड़े क्योंकि मेरा अनुभव है कि यदि एक बार इस तरह से नींद टूट जाती है तो जल्दी नींद आने का तो प्रश्न ही नहीं है, अक्सर आदमी या तो उसके बाद बुरे सपनों के बीच हिचकोले लेता रहता है या फिर सचमुच कुछ ऐसा देखने या सुनने को मजबूर हो जाता है जो वह आमतौर पर सुनना नहीं चाहता. मैं यह भूमिका मात्र इसीलिए बना रहा हूँ क्योंकि ऐसा ही कुछ मेरे साथ दो दिन पहले तब हुआ था जब मैं लखनऊ से मेरठ आ रहा था.
हां, मेरी और एलिजाबेथ टेलर की दोस्ती थी!
एलिजाबेथ टेलर हिंदुस्तान में नहीं रहती थीं, उस बिहार और उत्तर प्रदेश में तो कत्तई नहीं रहती थीं जहाँ का मैं रहने वाला हूँ या जहां मेरा ज्यादातर समय बीता है. वे भारत भी शायद ही कभी आई हों, और अगर आई भी होंगी तो मैं तो उनसे नहीं ही मिला हूँ. पर इसके बाद भी मैं जानता हूँ और दावे से कह सकता हूँ कि मैं एलिजाबेथ टेलर को जानता हूँ. जी हाँ, मेरी और एलिजाबेथ टेलर की अच्छी खासी दोस्ती थी, कम से कम मेरी तरफ से तो पूरी तरह.
जनसत्ता, प्रभाष जोशी और आलोक तोमर
आज आलोक जी हम लोगों के बीच नहीं हैं, उनके गुरु और संरक्षक प्रभाष जोशी जी भी नहीं हैं और यदि सच पूछा जाए तो वह जनसत्ता अखबार भी नहीं है, जो एक समय हुआ करता था और जिसे हम “जनसत्ता” अखबार के रूप में जानते और मानते थे. इसके साथ ही यह बात भी सही है कि यद्यपि प्रभाष जी ने और आलोक जी ने जनसत्ता के पहले और बाद में बहुत कुछ किया, लेकिन कुछ ऐसा संयोग और कुछ ऐसी केमिस्ट्री रही कि यदि इन दोनों लोगों के लिए किसी एक शब्द का प्रयोग करना हो तो सबसे पहले जेहन में यही आता है-“जनसत्ता”.
इतना हठी और जिद्दी व्यक्ति मैंने जीवन में नहीं देखा
मैं और नूतन दिल्ली से लौट आये हैं, आलोक तोमर जी से मिल आये हैं. वे वहाँ चित्तरंजन पार्क में अपने घर में चुपचाप शांत भाव से लेते हुए थे. एक शीशे के चौकोर से बक्से में उन्हें लिटाया गया था. जैसा कि मैंने उम्मीद किया था वे उतने ही शांत भाव से लेटे थे जितना वे जीवन भर कभी नहीं रहे थे.
आलोक तोमर उर्फ सर्वमान्य क्रांतिदूत और दैदीप्यमान ज्योतिपुंज
: आलोक तोमर- तू मर नहीं सकता : मुझे उम्मीद नहीं थी पर जानकारी तो थी ही. वैसे ही जैसे हर कोई बखूबी जानता था कि आलोक तोमर साहब को कैंसर नामक भयावह बीमारी है जिनका सिर्फ एक अंत होता है- मौत, पर इनमें से हर आदमी ये सोचता था कि आलोक तोमर जी के मामले में शायद ऐसा ना हो, शायद नियति उलट जाए.
क्राइम रिपोर्टर गोगो उर्फ विनोद शाही
विनोद शाही पत्रकार हैं पर कोई भी उन्हें देख कर पुलिस का आदमी समझेगा, खास कर ख़ुफ़िया विभाग का दारोगा या इन्स्पेक्टर. लंबी कद-काठी और दोहरे शरीर के विनोद अपना भारी-भरकम चेहरा लिए बड़े आराम से पुलिसवाले दिखते हैं. उस पर यदि उनका पहनावा-ओढ़ावा और बातचीत का अंदाज़ देखा जाए तो किसी को इस बात की कोई शंका ही नहीं रह जाती है कि ये सज्जन पुलिस विभाग में नहीं हैं.
जय हो, अमिताभ ठाकुर जीते
: अंततः मिली पोस्टिंग : ईओडब्लू मेरठ के एसपी बने : अमिताभ ठाकुर मेरे लिए भी एक टेस्ट केस की तरह रहे. इस दौर में जब बौनों का बोलबाला है, क्रिमिनल गवरनेंस का दौर है, पैसे की ताकत व माया है तब कोई अधिकारी निहत्था होकर अपने पर हो रहे अन्याय का मुकाबला करे और जीत जाए, यह तथ्य न सिर्फ चौंकाता है बल्कि कइयों को प्रेरणा भी देता है. अमिताभ ठाकुर को अब तक जिसने भी पढ़ा है, वो मेरी तरह यही मानता होगा कि यह शख्स अपनी कुछ कथित बुराइयों के बावजूद जनपक्षधर और लोकतांत्रिक लोगों के लिए उम्मीद की किरण की तरह है.
अमिताभ ठाकुर स्टडी लीव प्रकरण : हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार की याचिका खारिज की
1992 बैच के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर के अध्ययन अवकाश के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट), लखनऊ के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में रिट पेटिशन 268/ 2011 दायर किया था. आज (09/03/2011) उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के इस रिट याचिका को बलहीन बताते हुए खारिज कर दिया है.
गाली देने के लिए गाली बकने की जरूरत नहीं होती : कमाल खान
: इंटरव्यू : कमाल खान (वरिष्ठ पत्रकार, एनडीटीवी) : मुझे पार्टियों में जाना, किसी के आगे-पीछे करना, बिलावजह डिनर पर जाना अच्छा नहीं लगता : पुरस्कार मिलते रहते हैं पर मैं यही मानता हूँ कि हर आदमी को अपना काम चुपचाप लो प्रोफाइल हो कर करते रहना चाहिए : मैंने एक मुख्यमंत्री की कुछ जनविरोधी बातों पर एक बार कहा था-“ तुझसे पहले एक शख्स जो यहाँ तख्तनशीं था, उसको भी अपने खुदा होने का उतना ही यकीं था” :
”कचहरी तो बेवा का तन देखती है”
: अदालतों के बारे में तथ्यपरक सच्चाई कहना कोर्ट ऑफ कंटेम्प्ट नहीं है : “न्याय वहाँ सीता है और क़ानून मारीच.” “न्याय मिलता भी है पर राम को नहीं. रावण को और उसके परिजनों को.” “हत्यारों, डकैतों को जमानत मिलती है. हाँ, राम को तारीख मिलती है.” “कचहरी तो बेवा का तन देखती है, खुलेगी कहाँ से बटन देखती है.” ये कुछ ऐसे वाक्य हैं जो दयानंद पाण्डेय जी के चर्चित उपन्यास ‘अपने अपने युद्ध‘ में उपन्यास के मुख्य पात्र संजय के अपने मुकदमे के सिलसिले में न्यायपालिका की शरण में जाने के बाद में उसके अनुभवों के रूप में प्रस्तुत किये गए हैं.
मुख्यमंत्री मायावती के झूठ को उनकी सीबीसीआईडी ने पकड़ा!
: बबलू और आब्दी की गिरफ्तारी के पीछे का सच : वैसे तो जिंदगी में कोई बात शायद बेमतलब नहीं होती पर उत्तर प्रदेश में तो निश्चित तौर पर हर बात के पीछे कोई ना कोई कारण जरूर होता है. और अक्सर जो दिखता है, सच वैसा नहीं होता. अब जीतेन्द्र सिंह बबलू और इन्तेज़ार आब्दी की गिरफ्तारी का मामला ही ले लीजिए.
कैट परीक्षा हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में कराने के लिए याचिका दायर, सुनवाई आज
: अमिताभ ठाकुर एवं डा. नूतन ठाकुर ने उठाया मामला : इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ खंडपीठ में आईपीएस अधिकारी और आईआईएम लखनऊ के फेलो अमिताभ ठाकुर तथा सामाजिक कार्यकर्त्री डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा आईआईएम के लिए ली जाने वाली कैट परीक्षा अंग्रेजी के अलावा हिंदी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी कराये जाने हेतु एक रिट याचिका दायर की गयी. याची के अधिवक्ता अशोक पाण्डेय हैं. इस केस की सुनवाई शुक्रवार यानी आज होनी है.
सेक्स, प्यार और मोरालिटी
[caption id="attachment_19736" align="alignleft" width="83"]अमिताभ ठाकुर[/caption]मैं इधर दयानंद पाण्डेय जी का चर्चित उपन्यास “अपने-अपने युद्ध” पढ़ रहा था. मैंने देखा कि इसका नायक संजय, जो एक पत्रकार है और कई दृष्टियों से अपनी नैतिकता के प्रतिमानों को लेकर काफी सजग और चौकन्ना है. विभिन्न प्रकार की लड़कियों के साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने में भी उतना ही महारथी है. पूरे उपन्यास में उसके संबंधों के बनने और फिर अलग-अलग कारणों से बिखर जाने का कार्यक्रम चलता ही रहता है.
दरवाज़ा खोला तो सामने गोविंदाचार्य थे
आज जब लोक सत्ता अभियान के सुरेन्द्र बिष्ट हमारे लखनऊ स्थित घर आये तो मुझे यह नहीं मालूम था कि उनके साथ कोई और भी खास व्यक्ति होगा. इसीलिए जब मैंने घंटी बजने पर घर का दरवाज़ा खोला तो सामने अचानक गोविन्दाचार्य जी को देख कर दंग रह गया. गोविन्दाचार्य जी आज एक किम्वदंती हैं इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा. उनके राजनीति और सामाजिक कार्यों में योगदान के विषय में भी हम बहुत कुछ जानते हैं और साथ ही उनके तमाम राजनितिक झडपों को भी. यह भी हम जानते हैं कि अब वे अपने तरीके से देश में एक नया अलख जगाने में लगे हुए हैं.
जो मुझे सही लगेगा, वो कहता करता रहूंगा : अमिताभ ठाकुर
क्रिमिनल गवरनेंस वाले समकालीन समय में यूपी में एक अफसर जनता-जनार्दन और पढ़े-लिखों के बीच बदलाव के उम्मीद की लौ जगाए-जलाए है. वे हैं अमिताभ ठाकुर. अपने लिखे, कहे और जनपक्षधरता के कारण समाज के सभी सेक्शन में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं अमिताभ ठाकुर. और इसी कारण वे करप्ट सत्ताधारी नेताओं-अफसरों की आंखों की किरकिरी भी बने हुए हैं.
अमिताभ-अमित की पुस्तक ‘द फ्रेस ब्रू’ का विमोचन आज
: आईआईएम नोएडा कैम्पस में होगा आयोजन : आज 19 फरवरी को आईआईएम के फेलो अमिताभ ठाकुर तथा वहाँ के छात्र अमित हरलालका द्वारा लिखी पुस्तक ‘द फ्रेश ब्रू’ का विमोचन आईआईएम, लखनऊ के डायरेक्टर डॉ. देवी सिंह द्वारा किया जाएगा. आईआईएम के नोएडा कैम्पस में शाम चार बजे से पुस्तक विमोचन कार्यक्रम आयोजित किया गया है. लगभग डेढ़ घंटे तक होने वाले इस कार्यक्रम में पुस्तक पर परिचर्चा भी आयोजित की गई है.
सस्पेंड होकर सत्ता के सच को समझ पाया
: सता का दिवास्वप्न : अनामी शरण बबल का लेख पढ़ा जो पत्रकार से मंत्री बने एक सज्जन के विषय में था. लेख पढ़ कर मन के कई तरह के विचार आये. जब लेख पढ़ना शुरू किया था तो एक तरफ यह बात मन में आई कि उस व्यक्ति का मन से बचाव करूँ जिसने अपने पेशे से आगे बढ़ कर अपनी मेहनत के बल पर समाज में कुछ विशेष स्थान बनाया और आज एक संवैधानिक पद पर विराजमान हैं. ऐसा भी लगा कि शायद अनामी शरण जी कई दूसरे पत्रकार साथियों की तरह अपने आस-पास के सफल लोगों में किसी प्रकार का खोट निकाल कर अपने कलेजे में ठंडक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं.
ये हारकर भी जीते हुए लोग हैं
दयानंद जी कहते हैं- “वे जो हारे हुए” पर मुझे ऐसा लगता है कि जिन लोगों को वे बाह्य स्तर पर हारा हुआ बताते हैं, उनके बारे में वे पक्के तौर पर जानते हैं कि यही वे लोग हैं जो किसी कीमत पर हारने वाले नहीं हैं. आनंद नाम का यह जीव ऊपरी निगाह से चिंतित, परेशान, तनहा, अकेला और अत्यंत संत्रास और बेचैनी में घिरा दिख रहा है पर मुझे न जाने क्यों वह आदमी अंदर से बहुत मजबूत, शांत, आश्वस्त और आत्म-विश्वास से लबरेज दिखता है.
महिला आईएएस अफसर की शौर्यगाथा
सुजाता दास पंजाब कैडर की एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं. इन्टरनेट पर दी जानकारी के अनुसार वे प्रदेश की जनता को कम दामों में सुविधाजनक तरीके से चिकित्सकीय सुविधा प्रदान करने के काम में लगी हुई हैं, जिससे ख़ास कर गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को लाभ पहुंचे. वे आयुर्वेदिक अक्यूपंक्चर और अन्येतर चिकित्सकीय प्रणाली पर भी काम करती हुई बतायी जाती हैं. शीतल दास चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से वे ये सारे काम करती बतायी गयी हैं. पर मैंने जिस काम के चलते उनका नाम सुना वह है एक तीन साल की लड़की की निर्मम पिटाई.
पांव छुवाई पर एक आईपीएस का कुबूलनामा
भड़ास पर अधिकारियों द्वारा पांव छूने की घटना से सम्बंधित वीडियो और खबरें देखा-पढ़ा. इसके बाद मैंने सबसे पहले अपनी किस्मत को धन्यवाद दिया कि उस समय इतने उन्नत टेक्नोलोजी नहीं थे जब मैं भी इस रोग से ग्रसित था. आज के समय तो भयानक रूप से टीवी और कैमरा और दुनिया भर के यंत्र-तंत्र हर तरफ लगे रहते हैं. देवरिया, बस्ती, बलिया, महाराजगंज, गोंडा, संत कबीर नगर, फिरोजाबाद, ललितपुर और पिथोरागढ़ जैसे छोटे जिलों में भी थोक के भाव लोकल टीवी बिखरे रहते हैं.
दयानंद जी के हारमोनियम के सूर्य प्रताप कौन हैं?
[caption id="attachment_19534" align="alignleft" width="83"]अमिताभ ठाकुर[/caption]हारमोनियम के हज़ार टुकड़े हों ना हों, दयानंद पाण्डेय का यह उपन्यास पढ़ने के बाद कतिपय कैरेक्टरों के टुकड़े-टुकड़े जरूर हो जाते हैं. मैंने पत्रकारिता और पत्रकारों के सम्बन्ध में कम ही ऐसे उपन्यास पढ़े होंगे, जिनमें इतनी साफगोई और ईमानदारी के साथ इस प्रोफेशन के सम्बन्ध में चर्चा हुई हो. ऊपर से यदि हम इस तथ्य को भी ध्यान में रखें कि उपन्यास के लेखक भी एक लब्धप्रतिष्ठित पत्रकार हैं, जिनका इस क्षेत्र में तीस सालों से ऊपर का तजुर्बा है, तो इस उपन्यास की प्रामाणिकता तथा महत्व और अधिक बढ़ जाता है.
आरटीआई- मदद की दरकार : आईआईएम- बुलंद इरादे
अमिताभ ठाकुर की तरफ से प्रकाशन के लिए आज दो मेल आई हैं. एक में शीर्षक है- ”पत्रकार साथियों से मदद की दरकार”. दूसरे में हेडिंग है- ”बुलंद इरादे”.
गांधीजी को अमिताभ का जोरदार सेल्यूट
: गणतंत्र दिवस के दिन फेसबुक पर ‘आई हेट गांधी’ ग्रुप बैन कराने में पाई सफलता : अमिताभ ठाकुर की लड़ाई रंग लाई. गणतंत्र दिवस के दिन ही गांधी विरोधी उस ग्रुप को बैन कर दिया गया जिसके खिलाफ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ने लखनऊ के एक थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. ग्रुप को बैन करने की कार्रवाई शिकायत मिलने के बाद फेसबुक कंपनी ने की.
अमिताभ ने फेसबुक और आई हेट गांधी ग्रुप के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया
थाना गोमती नगर, लखनऊ में फेसबुक नामक सोशल नेटवोर्किंग साईट पर “आई हेट गाँधी” नाम से चल रहे एक ग्रुप के आपराधिक कृत्य के सम्बन्ध में फेसबुक कंपनी तथा अन्य के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट मु०अ०सं० 72/2011 अंतर्गत धारा 153, 153 A(1)(a), 153 A(1)(b), 153 A(1)(c), 153-B, 290, 504, 505 (1), 505 (2),506 आईपीसी तथा धारा 66 A इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी एक्ट 2000 दर्ज कराई गयी है. यह मुक़दमा आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर द्वारा पंजीकृत कराया गया है.
विकिपीडिया और भड़ास
विकिपीडिया जिम्मी वेल्स तथा अन्य लोगों द्वारा प्रारम्भ किया गया एक ऐसा अद्भुत प्रयास है, जिसने ज्ञान के सारे भण्डार आम आदमी के लिए खोल कर रख दिए हैं. आप सभी जानते हैं कि यह ओपन इन्साइक्लोपीडिया आज पूरी दुनिया में अपने ढंग का एक अनूठा ऐसा माध्यम हो गया है, जिसके जरिये आम आदमी दुनिया के किसी भी कोने से बैठे-बैठे किसी भी विषय पर ज्ञान हासिल कर सकता है. पर मैं यहाँ विकिपीडिया की चर्चा करने नहीं, उसके एक प्रमुख फीचर के बारे में कुछ वार्ता करने को प्रस्तुत हूँ.
उन्होंने माफी नहीं मांगी तो विधिक कार्रवाई करूंगा
इस समय फेसबुक पर “आई हेट गाँधी” नाम से एक ग्रुप अस्तित्व में है, जिसके बारे में मैंने हाल ही में जाना है. ग्रुप के रिकॉर्ड के अनुसार यह मार्च-अप्रैल 2010 में शुरू हुआ. वर्तमान में (03/01/2010, 12.25 AM) 2484 लोग ऐसे हैं जो इस ग्रुप से संबद्ध हैं. इस ग्रुप के सूचना पृष्ठ पर कुछ भी नहीं लिखा हुआ है, पर इस ग्रुप को देखने से दिख जाता है कि इसमें वे लोग हैं जो सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, महाराणा प्रताप, शिवाजी, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल जैसे अन्य महान लोगों को पसंद करने वाले लोगों का समूह है. साथ ही ये सारे लोग अति तीव्रता से महात्मा गाँधी के प्रति नफरत और घृणा का भाव रखते हैं.
कैसा हो कोई पत्रकार
तीन दिन पहले मुझे एक फोन आया. उधर से एक युवती की आवाज़ थी. धीर-गंभीर और शांत. साथ ही बहुत सहज और मृदु. लेकिन उसके साथ उसमे एक दृढ़ता और कर्मठता का भाव भी सहज ही दिख रहा था. अब आप पूछेंगे कि मुझे एक साथ इतना कुछ मात्र फोन पर कुछ क्षण के बातचीत से कैसे मालूम हो गया? उत्तर बहुत सीधा है- आपकी, हमारी आवाज़ हमारे बारे में बहुत कुछ कह जाती है, भले ही हम उसे समझना चाहें या नहीं. जी हाँ, हमारे व्यक्तित्व का काफी कुछ हमारी आवाज़ और हमारी बोलचाल के जरिये दुनिया के सामने आ ही जाता है.
Poles Apart- Articles with differing perspectives in Dr Binayak Sen case
The judgement related with Dr Binayak Sen has created some kind of debate in the society. A very large number of Articles, write ups and analysis on this judgement along with its overall context and the background of the case have already come up, with a majority of them commenting upon the judgement adversely. It is very rare to see decisions in India being condemned particularly because of the inbuilt fear of the Contempt of Courts Act. Yet, in this particular case, criticism of the decision along with protests, seminars, petitions and discussions are taking place in large numbers.
बिनायक के पक्ष में गवाही देने वालों में ज्यादातर पत्रकार
डॉ. बिनायक सेन से जुड़ा निर्णय पूरे देश में चर्चा में है और कई लोग कई प्रकार से इस पर अपनी टिप्पणी कर रहे हैं. मैं यहाँ इस प्रकरण से जुड़ा एक खास मुद्दा यहाँ उपस्थित करना चाहता हूँ जो सीधे-सीधे पत्रकारों से जुड़ा है. जहां डॉ. सेन के विरुद्ध 97 गवाह गुजरे वहीं उनके पक्ष में ग्यारह गवाह उपस्थित हुए. पत्रकारों के लिए यह गर्व और संतोष का विषय हो सकता है कि इन गवाहों में ज्यादातर पत्रकार थे.
What does Court say in Dr Binayak Sen’s case
We have been listening and reading about Dr Sen’s court decision since the day it has been pronounced. But since the original decision is in Hindi and is 92 pages long, hence many would be possibly have got the opportunity to read and understand it. I hope, u appreciate the fact that the judgement can be fully appreciated only when one has gone through it in its totality.
आलोक, यशवंत, अमिताभ- इतिहास गवाह है
मैं यहाँ तीन ऐसे लोगों के बारे में छिद्रान्वेषण करूँगा जो हैं तो तीन अलग-अलग स्थानों के, अवस्था और वय में भी थोड़े आगे-पीछे हैं और शकल-सूरत से तो शायद बिलकुल नहीं मिलते. यानी बाहरी तौर पर इन तीनों में ज्यादा समानता नज़र नहीं आएगी. पर आंतरिक तौर पर इन तीनों में कुछ ऐसा ऐंठपन, जिद्दीपन और झक्कीपना है कि कभी-कभी मुझे लगता है कि कहीं ये तीनों पिछले जनम के भाई तो नहीं हैं.
If journalists can’t finish paid news, paid news will finish the journalists- P Sainath
P Sainath talked a great deal about the phenomenon of Paid news in great details. He said that Paid news has been defined extremely well by the Press Council of India as any news or writing appearing as having been done in consideration of cash or kind. This phenomenon had been there in Indian media industry for at least the last decade as an undercurrent but 2009 became the year of Tsunami for Paid news. He said that he felt really satisfied by the fact that he could take credit for breaking the story of Paid news in Hindu during the period April to November 2009 during the Maharashtra assembly elections.
Journalists were at best minor Villains or comic relief in the Radia Tapes- P Sainath
[caption id="attachment_18977" align="alignleft" width="236"]P Sainath[/caption]P Sainath needs no introduction. The man who is considered the leading proponent of development journalism in India and one who has his feet firmly grounded in rural India with as much ease as he is seen interacting with the intellectual giants around the globe, Sainath is a Magsaysay award winner and has many more recognitions to his credit.
मीडिया और कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट
तहलका पत्रिका के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर हुए अवामानना याचिका ने एक बार फिर इस प्रश्न को चर्चा में ला दिया है. खास कर के मीडिया, अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के दृष्टिगत. लोगों की आम धारणा है कि न्यायपालिका के पास एक ऐसा हथियार है जो इसे भारी शक्ति प्रदान करता है. यह कथित ताकत है अवमानना का अधिकार. न्यायालय की अवमानना एक गंभीर अपराध है. आखिर यह न्यायपालिका की अवमानना है क्या और इसकी क्या कानूनी स्थिति है?
इस तरह कायम हुआ असांजे के खिलाफ अपराध
जूलियन असांजे लन्दन में गिरफ्तार किये गए और अब काफी हो-हल्ला के बाद कोर्ट द्वारा जमानत पर रिहा किये जा चुके हैं. लेकिन शायद अभी भी हम में से बहुत लोग यह नहीं जानते कि असांजे के खिलाफ अपराध कैसे कायम हुआ. दस्तावेजों के अनुसार दरअसल यह कहानी शुरू हुई 11 अगस्त 2010 को जब असांजे स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम पहुंचे थे.
आलोक तोमर और अच्छे-बुरे आदमी
मैं आप सबके सामने यह कहने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करता कि मैं अलोक तोमर नामक इस जीव का एक बहुत बड़ा फैन हूँ. मैं उन्हें पहले ज्यादा नहीं जानता था, जैसे वे मुझे बिलकुल नहीं जानते रहे होंगे (क्योंकि मैंने कोई भी ऐसा सुकृत्य या दुष्कृत्य नहीं किया था जो देशस्तरीय हो और जिसके कारण अलोक तोमर जैसा दिल्ली में बैठा एक बड़ा पत्रकार मेरा नाम जानने को बाध्य हुआ हो). हां, उनका नाम जरूर सुन रखा था, दिल्ली के एक नामचीन पत्रकार के तौर पर.
Abhisar Sharma’s Eyes of the Predator
Facebook account of Abhisar Sharma says about him- “ I m an Author Journalist. I won the Ramnath Goenka Indian express award for the Hindi TV story of the year for 2008-2009. I cover external affairs/national political stories for the channel and anchor the flagship program of Aajtak telecast at ten pm DASTAK”.
राडिया जी, आपको धन्यवाद
देखिये ये सब मिल कर,
बता रहे हैं आपको एक विलेन,
उस राडिया को जो है,
अपनी तरह की एक बहादुर महिला,
पुकार रहे हैं अलग-अलग नामों से,
बता रहे हैं समस्त बुराइओं की जड़,
शुरू होगा ‘कार-ओ-बार’ पर तनिक धैर्य रखो सरकार
निगाह पड़ी- ”नोएडा फिल्म सिटी में ‘कार-ओ-बार’ बंद!” पर. समझने में कुछ समय लगा. शायद किसी कारोबार की बात होगी जो इस समय नोयडा फिल्म सिटी में किन्ही कारणों से बंद पड़ा होगा. फिर लेख देखना शुरू किया तो पहला वाक्य ही मुझे संबोधित था-“कप्तान साहब से टीवी जर्नलिस्टों की अपील”. उसके आगे लिखा था- “जरा जल्दी रेट फाइनल कर लें”. ठीक है, अभी कप्तान नहीं हूँ, अगर कभी प्रमोट हो गया तो शायद दुबारा कप्तान भी ना बनूँ. पर उत्तर प्रदेश में नौकरी पा कर और दस जिलों में पुलिस कप्तान बन कर इतना तो हक मान ही लेता हूँ कि यदि कप्तान साहब की बात चल रही है तो उसमें मैं भी धक्का दे कर शामिल हो सकता हूँ. लिहाजा इसमें कुछ अपना सा दिखा और फिर आगे पढ़ना शुरू कर दिया.
वे अच्छे आईएएस हैं तभी तो उन्हें कमिश्नर पद से हटाकर खादी विभाग में भेज रहा हूं
[caption id="attachment_18826" align="alignleft" width="236"]डा. कमल टावरी[/caption]: अयोध्या कांड में एक गलत बात न मानने पर कमल टावरी को तत्कालीन सरकार ने दी थी सजा : मुख्यमंत्री की उस हरकत से खफा टावरी ने पोस्टिंग के लिए कभी किसी से बात न करने का फैसला किया : “प्रणाम, प्रणाम. कैसे हैं अमिताभ जी? मैं दस मिनट में आपके घर पहुंच रहा हूं. आपसे और नूतन जी से मिलना है” यदि इस तरह की तेज, बुलंद और बेहद अपनेपन से भरी आवाज दूसरी तरफ से आएगी तो आप यही समझेंगे कि मेरा कोई मित्र मुझसे फोन पर बातें कर रहा होगा.
मीडिया हुई लापतागंज
[caption id="attachment_18823" align="alignleft" width="83"]अमिताभ ठाकुर[/caption]शरद जोशी तो आज से लगभग बीस साल पहले सन 1991 में दुनिया से विदा हो गए और खुद बच गए पर वे अपने पीछे इतना कुछ बवाल छोड़ गए हैं जिन्हें हम सबों को झेलना पड़ रहा है. जी हाँ, आप खुद देखिये कि आज से बीस साल पहले की दुनिया और आज की दुनिया में कितना अंतर आ गया है- उस हद तक जिसे शायद शरद जोशी जैसा युग-द्रष्टा भी पूरी तरह नहीं देख पाया होगा. वैसे तो इस बवाल में शरद जोशी का भी कोई कम हाथ नहीं रहा है जिन्होंने अपनी लेखनी से देश, समाज, तंत्र और व्यवस्था की कई सारी ऐसी परतें खोल कर सामने रख दी हैं जो पहले दबी-छिपी होने के नाते अन्दर-खाने ही बजबजाती रहती थीं, नज़र नहीं आती थीं, लेकिन उन्होंने अपनी कलम की तीखी धार और सोच की गहराईयों से उन परतों को साफ़ करते हुए सबों के सामने कर दिया.
The Day of India Today
It was 1985 and I had just entered IIT Kanpur. It was also the year when Rajiv Gandhi got his landslide victory, the biggest in Independent Indian history so far. I remained a student of IIT Kanpur between 1985 and 1989 and like any other studious student, was a regular reader of India Today (IT for short). It was nearly at this time when the word Bofors was first heard and had soon become the most-discussed and narrated word, so much so that it was making effect in the entire Indian political system. It was also the time when two personalities other than Rajiv Gandhi- V P Singh and Gyani Zail Singh, were jutting in to occupy the center-stage of Indian political and public life.
अखबार नंबर वन!
मैं अपने घर चार अखबार मंगवाता हूँ हिंदी में दैनिक जागरण, हिंदुस्तान और अंग्रेजी में हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ़ इंडिया. इसका यह मतलब नहीं कि मैं बाकी के अखबारों को इनसे किसी तरह कमतर आंकता हूँ. अव्वल तो मेरे ऊपर-नीचे आंकने से कोई अंतर नहीं पड़ता और उससे बढ़ कर मैं व्यक्तिगत रूप से तो यही चाहता हूँ कि अधिक से अधिक संख्या में अखबार मंगवाऊं पर बीच में मेरी धर्मपत्नी नूतन आ जाती हैं, जो प्रति अखबार खर्चा जोड़ कर इसे घर के बजट से जोड़ते हुए तुरंत ही इस पर अपनी कैंची चलाने को तैयार रहती हैं. मैं कुछ कहने को होता हूँ तो तुरंत मेरी तनख्वाह नहीं मिलने और घर चलाने की जिम्मेदारी जैसे ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर बहस करने लगती हैं जिस पर मैं गलती से भी नहीं जाना चाहता.
K A Abbas : Father of journalism based films in India
Khwaja Ahmad Abbas was one of the first journalists in India who was also closely associated with the art of film-making in more than one respect. He was a screenwriter as also director of some very important Hindi films. Other than being the screenwriter for some of the best Raj Kapoor films like Awaara, Shri 420, Mera Naam Joker and Bobby , he is also credited for having introduced the Big B to the Indian screen through his almost forgotten Saat Hindustani.
राडिया, मीडिया और भड़ास
: नीरा प्रकरण और वेब की दुनिया : आज नीरा राडिया प्रकरण में पत्रकारों की भूमिका को ले कर बहस खुद उसी टेलीविजन पर हुई है, जिस टीवी चैनल में उन महत्वपूर्ण नामों में से एक बरखा दत्त खुद एक प्रमुख स्तम्भ के रूप में काम करती रही है. यह कहानी आज से करीब छह महीने पहले मई में शुरू हुए थी. मुझे याद है मई महीने की शुरुआत में यहीं भड़ास पर मैंने पहली बार इस महान महिला नीरा जी का नाम सुना, जिन्हें आज इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है और आज जिनका नाम बड़े “सम्मान” के साथ लिया जा रहा है. उस समय किसी भी छोटे-बड़े समाचार-पत्र में कम से कम मैंने तो इस भद्र महिला का नाम नहीं देखा था.
Lobbying, crime and truth
Tough I have previously made some critical comments on the role of Vir and Barkha in the Bira Radia tape episode but today, I read the defence/ statement of the three big journalists Vir, Barkha and Prabhu Chawla who are finding their names making headlines (for wrong reasons) in the infamous Nira Radia tapes controversy and a different way of thinking started emerging. As we all know, the issues erupted initially in May 2010 when for the first time the Internet got flushed with supposedly leaked Top-secret documents of a senior police official.
Nira Radia Episode and the Foreign Press
The Indian Media is strangely silent about the Nira-Barkha-Vir episode, as if nothing of substance has happened. We cannot deny the fact that we have a very large and extremely vibrant media in our country which believes in having a hugely pro-active and somewhat hyper-reactive attitude towards anything sensational. Hence, when the same media starts ignoring news which are otherwise of great significance and also have a huge potential of being eye-catchers then other people start suspending of the entire episode.
बिहार चुनाव : पिक्चर अभी बाकी है दोस्तों
“विकास की जय”… “काम का इनाम”… “फलां ने फलां को नेस्तनाबूद कर दिया”… “फलां को अंत”… आज सुबह जो भी अखबार देख रहा था तो इसी तरह की खबरें दिख रही थीं. हिंदी ही नहीं, अंग्रेजी अखबारों में भी और मराठी, पंजाबी के अखबारों में भी. बल्कि कल से ही य बातें सारे टीवी चीख-चीख कर कह रहे हैं और राजनैतिक विश्लेषक भी यही बात कर रहे हैं. इस रूप में मुझे एक बात जो पत्रकारों की विचित्र सी लगती है वह है अंतिम सत्य का उदबोधन.
मंजुनाथ समाज के लिए सच्चे आदर्श : अमिताभ ठाकुर
: पुण्यतिथि पर याद किए गए : इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड डाक्युमेंटेशन इन सोशल साईंसेज (आईआरडीएस) तथा नेशनल आरटीआई फोरम की तरफ से आईआईएम लखनऊ के पूर्व छात्र मंजुनाथ शंमुगम की याद में एक मीटिंग आयोजित की गयी. मंजुनाथ शंमुगम की हत्या खीरी लखीमपुर जिले में वहाँ के एक पेट्रोल पम्प मालिक ने अपने गुंडों के साथ मिलकर मात्र इसीलिए कर दिया था, क्योंकि मंजुनाथ ने उसके गलत मीटर इस्तेमाल और मिलावटी पेट्रोल के खिलाफ कार्रवाई की थी.
त्वरित न्याय का गंगाजल
“पापा, पता नहीं आप सारे पुलिस वाले गंगाजल फिल्म इतना पसंद क्यों करते हैं? मैंने यही हाल रांची में देखा, पटना में भी और आपको भी देखती हूँ.” बेटी तनया ने कल रात जब यह बात कही तो मुझे लगा बात में कुछ दम है. मैं औरों का तो नहीं जानता पर यह सही है कि जब भी यह फिल्म टीवी पर आती है तो मैं उसे हर बार देखने लगता हूँ, जबकि पत्नी नूतन और दोनों बच्चे इसका विरोध करते हैं. फिर सोचता हूँ कि ऐसी क्या बात है इस फिल्म में जो बार-बार मुझे इसकी ओर सम्मोहित कर देती है.
बरखा और वीर आज उसी कटघरे में खड़े हैं
अंग्रेजी में एक कहावत है- “फीट ऑफ क्ले” (जो कुछ हद तक हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और से मिलता-जुलता माना जा सकता है). इसी प्रकार एक हिंदी कहावत है छुपा रूस्तम. कुछ ठेठ भाषा में देहात वाले कहते हैं- “बांवन हाथ का अंतरी.” रंगा सियार एक इसी प्रकार का दूसरा मुहावरा है. नीरा राडिया, बरखा दत्त तथा वीर संघवी की बातचीत के टेप मुझे ये सारी लोकोक्तियाँ और मुहावरे याद दिला दे रहे हैं. एनडीटीवी और वीर सांघवी की तरफ से आए बयान और कुछ साबित करें या न करें, इन टेपों के सही होने की बात साबित कर देते हैं. इन दोनों में से किसी ने भी इन टेपों को गलत नहीं ठहराया है. आज से करीब चार-पांच महीने पहले जो शासकीय दस्तावेजों की छाया-प्रतियाँ बड़ी तेजी से सामने आई थीं वे भी इसी ओर इशारा करती हैं.
हिंदी को क्यों नहीं मिलते होलटाइमर
मुझे वह लेखक बता दो हिंदी का, जो सिर्फ लिखता है और उसी पर खा-जी रहा है. मुझे उस हिंदी लेखक से मिला दो, जो आईएएस, आईपीएस, इनकम टैक्स अधिकारी या बैंक का अधिकारी या कर्मचारी, रेलवे विभाग, डाक विभाग, म्युनिसिपेलिटी में सेवा नहीं कर रहा है या किसी प्राइवेट सेक्टर में बड़े या छोटे ओहदे पर नहीं है. और इन सबसे पहले वह विश्वविद्यालय, कॉलेज, स्कूल या ऐसे ही किसी भी शिक्षण या अध्ययन संस्थान में नहीं है. जी हाँ साथियों, ये नहीं हुए तो महाशय या महाशया किसी बड़े या छोटे अखबार और मैगजीन में होंगे ही. नहीं कुछ तो वह ऐसा नेता तो जरूर ही होगा, जिसके अन्दर मेरी ही तरह हिंदी साहित्यकार बनने का कीड़ा नहीं काट रहा हो.
मुझे तो आना ही था, शादी नहीं तो मौत पर ही सही
‘पत्रकार भी कभी मरता है. जो मर गया समझो डर गया’… इस तरह के डॉयलाग सुनने में तो बहुत अच्छे लगते हैं पर असल जीवन में शायद इनका कोई मतलब नहीं है. असल जीवन बहुत अधिक सामान्य किस्म का होता है, जिसमें आदमी जिन्दा है तो जिन्दा है, मर गया तो बस मर गया और इसी के साथ उसकी कहानी खतम हो गयी.
एक बीहड़ जीव और उसका जीवन दर्शन
[caption id="attachment_18501" align="alignleft" width="151"]आशीष बाबू[/caption]: सीएमएस और चुटिया : लगता है कुछ लोग नौकरी के लिए बने ही नहीं होते हैं, ये लोग तो राजा होते हैं, अपने मन के राजा, अपनी दुनिया के बादशाह, अपनी मर्जी के मालिक. खुदा ने सामान्य लोगों को बनाया है सामान्य से कार्य करने के लिए, घर-दुआर देखने के लिए, लोगों के आगे-पीछे घूम कर अपने छोटे-बड़े काम निकलवाने के लिए और इन्ही बातों के उधेड़-बुन में अपने आप को रमाये रखने के लिए.
मी लोर्ड, ये हाथ भी मेरे हैं और ये पॉकेट भी
[caption id="attachment_18456" align="alignleft" width="99"]एडवोकेट अशोक पांडेय[/caption]: अशोक पांडेय उर्फ गुरुजी उर्फ मस्त कबीरा : “यार गुरु, इस बार ऐसा रिट दायर किया है कि दिल्ली तक हंगामा मच जाएगा. मजा आ गया.” प्रसन्न भाव से उछलते-कूदते अशोक पाण्डेय इस तरह ही बात कहते हुए आपको अक्सर लखनऊ हाई कोर्ट के परिसर में दिख जायेंगे. कोई जरूरी नहीं कि परिणाम वैसा ही हो जैसा वे कह रहे हैं. कई बार तो नतीजा बिलकुल उल्टा ही हो जाता है, जब हंगामा मचने के स्थान पर अशोक जी को फाइन देने का आदेश मिल जाता है.
अरुंधति राय कानूनन दंड पाने योग्य हैं
: देशद्रोह बनाम निर्दोष : अरुंधती रॉय देश की विख्यात लेखकों-सामाजिक कार्यकर्ताओं में मानी जाती हैं. देश-विदेश में उनके समर्थकों और चाहने वालों की एक बहुत लंबी कतार है. कई विषयों पर उनके अपने स्वयं के विचार हैं जो बहुधा विवादास्पद भी हो जाते हैं. संभव है उन्हें इन तमाम विवादों से लाभ भी मिलता हो और उनकी सामजिक छवि में इजाफा होता हो.
देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने को पत्र भेजा
सय्यद अली शाह गिलानी, अरुंधती रॉय तथा एसएआर गिलानी से जुड़ा एक गंभीर प्रकरण सामने आया है. 21 अक्टूबर 2010 को दिल्ली में “कश्मीर- आज़ादी, एक मात्र विकल्प” नाम से सभा का आयोजन हुआ. इन लोगों ने भाषण में खुलेआम देशद्रोह की बातें कहीं जो आईपीसी की धारा 121 ए तथा 124 ए के तहत स्पष्टतया दंडनीय अपराध हैं.
एक आईपीएस भी है अन्याय का शिकार
: पत्नी लिखेंगी अपने पुलिस अधिकारी पति के संघर्ष की कहानी : पूरी कहानी किताब के रूप में दो महीने में हाजिर होगी : नाम होगा- “अमिताभ ठाकुर स्टडी लीव केस” : बात बहुत छोटी सी थी. और आज भी उतनी बड़ी नहीं. मसला मात्र छुट्टी का था. लेकिन कहते हैं ना कि बात निकले तो बहुत दूर तलक जायेगी. इसी तरह यह बात भी जब शुरू हुई तो बस बढती ही चली गयी. और अब तो इस मामले में छह-छह केस हो चुके हैं.
Legal Provision regarding arrest-detention
I just went through the Article written by Mr Yashwant Singh about his mother’s alleged detention in the Nandganj police station in Ghazipur district in Uttar Pradesh. There I saw the voice of a son who had been deeply and vigorously purturbed by whatever had happened to his mother, far away from his place of residence.
कहानी है छोटी, एक युवक नन्हा पत्रकार…
अमिताभ ठाकुर लखनऊ में पदस्थ आईपीएस अधिकारी हैं. कई जिलों में पुलिस अधीक्षक रह चुके हैं. इन दिनों शोध कार्य कर रहे हैं, और इसी कारण वे पुलिस की नौकरी से अवकाश पर चल रहे हैं. इस अवकाश के दौरान शोध कार्य के बाद बचे समय का सदुपयोग वह कई तरह से कर रहे हैं. विभिन्न मीडिया माध्यमों में जमकर लिखना भी उनका एक काम है. लेकिन अभी तक वह गद्य लिखते थे.
एक आईपीएस की नजर में पुलिसिया दबंगई
[caption id="attachment_18293" align="alignleft" width="94"]अमिताभ ठाकुर[/caption]वर्दी; ऐसा शब्द, जो आजकल सुरक्षा भाव कम, खौफ ज्यादा पैदा करता है. रक्षा-सुरक्षा के लिए सृजित वर्दी की अब ज्यादातर चर्चा इसके भक्षक पक्ष पर केंद्रित होने लगी है. वर्दी; जिसे विपक्ष में रहlते हुए हर नेता गरियाता है, लेकिन सत्ता में आते ही इस वर्दी को साथ लिए चलने, उपयोग-दुरुपयोग के लिए बेताब होता है. इसी वर्दी के बारे में भड़ास4मीडिया पर भिलाई के प्रतिभाशाली जर्नलिस्ट आरके गाँधी की रिपोर्ट पढ़ी- “वर्दी वाले इन गुंडों को औकात में कौन लाएगा“. इसमें इन्होंने दो मामलों का जिक्र किया है.
जिंदगी के इम्तहान और हंसराज के बलिदान
डाक्टर और वकील का बड़ा गहरा साथ होता है और कई बार दोनों एक साथ एक-दूसरे के आगे-पीछे चलते हैं. इन दोनों के बीच की कड़ी के रूप में कई बार पुलिस भी हो जाती है. इस बार भी कुछ ऐसा ही हो रहा है, जब एक डाक्टर और एक वकील को एक पुलिस वाला मिला रहा है. लेकिन यहां विशेष बात ये कि डाक्टर और वकील दो नहीं, एक ही हैं, यानी कि डबल रोल. और बीच का लिंक बना मैं, पुलिस वाला, जो इस डाक्टर और वकील का मित्र भी है, सुहृद भी और छोटा भाई भी.
चितरंजन सिंह और जिंदगी की आबादी-बर्बादी
कुछ आदमी भले आदमी होते हैं क्यूंकि उनमें भलेपन के सारे गुण होते हैं. वे शरीफ होते हैं, अच्छे से बातें करते हैं, कम बोलते हैं, इज्जत के साथ दूसरों को संबोधित करते हैं, शिष्टाचार के नियमों का पूर्ण पालन करते हैं, और सज्जन पुरुषों के लिए निर्धारित समस्त नियमों का विधिवत पालन करते हैं. आप उनके घर जायेंगे तो वे आदर के साथ अपने दरवाजे पर आपका स्वागत करेंगे.
”पापियों का नाश हर हाल में उचित है!”
[caption id="attachment_18112" align="alignleft" width="71"]अमिताभ[/caption]: आतंकवादी के इनकाऊंटर पर फेसबुक पर छिड़ी बहस : आज मैंने एक प्रश्न अपने फेसबुकी मित्रों के सम्मुख प्रस्तुत किया- “एक आतंकवादी जो किसी अन्य तरीके से नहीं समाप्त हो पाता, एक पुलिस अधिकारी द्वारा किसी माध्यम से मार दिया जाता है. क्या आप इस कृत्य का समर्थन करते हैं?”
नेशनल आरटीआई फोरम के साथ चलें, साथ दें
उद्देश्य : सूचना अधिकार क्षेत्र में कार्य कर रही संस्था है नेशनल आरटीआई फोरम. इसका मुख्य उद्देश्य सूचना का अधिकार के क्षेत्र में कार्य कर रहे समस्त साथियों के लिए साझा मंच का निर्माण करना है. इस मंच के जरिए वे सभी इस क्षेत्र में हो रही सारी प्रगतियों, समस्यायों, बुनियादी सवालों और मानदंडों के विषय में विस्तार-पूर्वक बहस व विचार-विमर्श कर सकें.
‘हां, डीजीपी तो मेरा पुराना साथी है’
“ओहो, तो आप अमिताभ की वाईफ हैं. हाँ, परसों मिला था विक्रम भाई के ऑफिस के सामने.” ये वे शब्द हैं जो आम-तौर पर मुझे तब सुनने को मिले जब मैं लखनऊ में किसी पत्रकार से मिली और मेरा परिचय कराया गया. यहाँ अमिताभ हुए मेरे पति अमिताभ ठाकुर, जो उत्तर प्रदेश में एक आईपीएस अधिकारी हैं और विक्रम भाई हुए विक्रम सिंह या कोई भी वह आदमी जो उस समय उत्तर प्रदेश पुलिस में डीजीपी हों.
धर्म-धर्म सगे भाई
“आज तक” के भाइयों, तुम केवल विदेश में अपराध कर के आई लड़की को छिपाने, हाईड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट में कमीशन खाने, मॉरिशस से ब्लैक मनी को सफ़ेद करने और शनि के नाम पर पैसे वसूलने की बात कर रहे हो. जबकि यह सच्चाई है कि धर्म के नाम पर और धर्म की आड़ में इससे कई गुना घिनौने, कुत्सित और जघन्य खेल आज से नहीं सदियों से चलते आ रहे हैं. अपने देश में ही नहीं, विदेशों में भी, सारी दुनिया में.
अमित, बिश्वजीत, संजीव को आरटीआई एवार्ड
राइट टू इनफारमेशन उर्फ आरटीआई क्षेत्र में कार्य कर रही सामजिक संस्था ‘नेशनल आरटीआई फोरम’ वर्ष 2010 के लिए आरटीआई गैलेंट्री अवार्ड के लिए चयनित किये गए लोगों के नामों की घोषणा करते हुए गौरवान्वित महसूस कर रहा है.
अति स्थानीयता या कूप मंडूकता?
: मीडिया के लोकलाइजेशन के नुकसान : पत्रकारिता के क्षेत्र में तेजी से आए बदलाव हतप्रभ करते हैं. पिछले 20-25 सालों में काफी कुछ बदल गया है. खबरों का अंदाज, तेवर, परिदृश्य, फलक… सब बदला है. बानगी देखिए. नीचे दो खबरें दे रहा हूं. एक वर्ष 1974 में प्रकाशित है तो एक इसी महीने. दोनों के फर्क को महसूस करिए….
ये लोग साहित्यकार हैं या साहित्य के मदारी!
: ‘विभूति कांड’ के बहाने साहित्येतर रचना-धर्मिता पर चर्चा : साहित्यकारों को उस रात जैसा देखा-सुना वह अकल्पनीय : महिला साहित्यकार को अपनी जंघा पर बैठाने पर कटिबद्ध दिखे युग-पुरुष : विभूति नारायण राय हिंदी साहित्य की एक चर्चित हस्ती हैं. स्वाभाविक तौर पर प्रत्येक चर्चित व्यक्ति की तरह उनकी बातों और उनके शब्दों का अपना एक अलग महत्व और स्थान होता है.
दो युवा शहीदों का समुचित सम्मान करो
[caption id="attachment_17788" align="alignleft" width="71"]अमिताभ ठाकुर[/caption]मंजुनाथ शंमुगम और सत्येन्द्र नाथ दुबे का नाम भूल गए या याद है? सच्चाई के लिए जान देने वालों के वास्ते किसके पास फुर्सत है!. पर बहुत से लोग हैं जो मंजुनाथ और सत्येंद्र को अपने अंदर जिंदा रखे हुए हैं. उनकी तरह सच के राह पर चलते हुए. ऐसे लोग चाहते हैं कि दो युवा शहीदों का समुचित सम्मान हो.
देवता को गाली से दुखी अधिकारी का पत्र
जरूरी नहीं कि आप हिंदू हों तभी हिंदू देवताओं को गाली दिए जाने का विरोध करें. आप किसी धर्म मजहब, जाति संप्रदाय के हों, किसी को गाली देने का हर हाल में विरोध कर सकते हैं. एक अनीश्वरवादी भी किसी की धार्मिक भावनाओं को बुरी तरह आहत किए जाने के कृत्य का विरोधी हो सकता है. उदाहरण के तौर पर अमिताभ ठाकुर को ही लें. अमिताभ उन कुछ साहसी पुलिस अधिकारियों में से हैं जो समाज विरोधी ताकतों से तो बहादुरी से निपटते ही हैं, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी हिम्मत के साथ मुखर रहते हैं. यकीन न हो तो ये पत्र पढ़िए.
Barkha Vir Tata
[caption id="attachment_17425" align="alignleft" width="119"]अमिताभ ठाकुर[/caption]Some very highly startling revelations have been made in the media in last few days where allegations of very serious nature have come up. They relate to some of the top political persons, industrial houses and media persons. The persons being named in these reports are extremely influential and powerful ones.