क्या कर रहे हैं शशिशेखर?

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सुधांशु चौहानइन दिनों दैनिक  ‘हिंदुस्तान’ अख़बार में अशुद्धियों की बाढ़ आ गई है। अख़बार का ऐसा कोई भी पन्ना नहीं होगा, जो अशुद्धियों से मुक्त हो। कुछ महीने पहले तक ये अशुद्धियां अंदर के पन्नों की स्टोरी के अंदर तक ही सिमटी थी, लेकिन अब ये फ़्रंट पेज की लीड स्टोरी तक आ पहुंची हैं। यहां तक की बोल्ड शीर्षकों से भी अशुद्धियां झांक रही हैं। आलम यह है कि आप जिस स्टोरी पर नज़र डालें, अशुद्धियों से बच नहीं सकते।

और अगर अशुद्धियां खोजने की दृष्टि से अख़बार पढ़ेंगे, तो शायद अख़बार का पन्ना ही फेंक दें। ये अशुद्धियां भाषा और व्याकरण दोनों ही स्तर पर हैं। चाहे वो लिंग की अशुद्धि हो वचन की। लोगों को ऊ और उ में फ़र्क नज़र नहीं आ रहा है, यही हाल ई और इ का भी है। अनुस्वार तो बेचारा बिना पेंदी का लोटा बन गया है। यह कहीं भी हो सकता है। वाक्य विन्यास का भी वही हाल है। कुल मिलाकर कहें, तो आजकल लोगों ने इस अख़बार की भाषा की ऐसी की तैसी कर रखी है। ने, से, के… भी अपनी राह भटक गया है। एक ही स्टोरी में एक शब्द को दो तरीक़े से लिखा जा रहा है। यहां तक कि ख़बरें भी रिपीट हो रही हैं, वो भी एक ही पन्ने पर अगल-बगल में। कुल मिलाकर कहें, तो आजकल इस अख़बार में भाषाई अराजकता का माहौल है।

दोनों तस्वीरों को ध्यान से देखिए। नगर/नोएडा संस्करण के 25 नवंबर के 7वें पन्ने पर एक ख़बर रिपीट हुई है, वह भी आजू-बाजू में। इसी संस्करण के 28 नवंबर के 7वें पन्ने पर ही एक बोल्ड शीर्षक लगी है, जो ग़लत है।

अख़बारों में ख़बरें रिपीट होना कोई बड़ी बात नहीं है। मानवीय भूल और अनुचित प्रबंधन के कारण अक्सर ऐसा हो जाता है। लेकिन ख़बरों का यह रिपीटिशन अलग-अलग पन्नों पर हो, तो इसे मानवीय भूल कहकर टरकाया जा सकता है। लेकिन आजू-बाजू के रिपीटिशन पर कोई बहानेबाज़ी नहीं चलेगी। यह साफ़ संकेत देता है कि अख़बार की ‘डमी’ को न तो देखा जा रहा है, और न ही प्रूफ़ किया जा रहा है।

दूसरी तस्वीर में एक हेडिंग जो बोल्ड है, लेकिन ग़लत है। अब इस पर कौन सी बहानेबाज़ी चलेगी। इसका मतलब तो यही है कि डमी को बिल्कुल ही प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। पत्रकार फ़ूल ऑफ़ कॉन्फ़िडेंस में हैं कि ख़बर जो भी छपेगी सही ही होगी। या फिर कंपनी जाए भाड़ में हमें तो अपनी सेलेरी से मतलब है।

ग़लती किसी की भी मुखिया होने के नाते जवाबदेही तो संपादक/प्रधान संपादक की ही बनती है।

थोड़ा अतीत में जाएं तो, हिंदी भाषा के उत्थान में अख़बारों व पत्र-पत्रिकाओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यही नहीं, हिंदी के प्रचार-प्रसार में भी अख़बारों, पत्र-पत्रिकाओं व पत्रकारों का अहम रोल रहा है।  हिंदी के गौरव को स्थापित करने, हिंदी साहित्य को बहुमुखी बनाने, भारतीय भाषाओं की रचनाओं को हिंदी में लाने, हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि के महत्व पर टिप्पणी करने तथा इन सबके साथ सामाजिक उत्थान का निरंतर प्रयत्न करने में ये सभी पत्रकार अपने-अपने समय में अग्रणी रहे। भारतेंदु, महामना मदनमोहन मालवीय, मेहता लज्जाराम शर्मा, बाबूराव विष्णुराव पराड़कर, अज्ञेय, प्रेमचंद, गांधी ने हिंदी को शिखर तक पहुंचाया।

लेकिन आज काफ़ी लज्जा के साथ कहना पड़ रहा है कि देश का एक प्रमुख समाचार पत्र अशुद्धियों का पुलिंदा बनने की ओर अग्रसर है। अब इस अख़बार से कोई  कितनी अपेक्षा कर सकता है, इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है।

इस अख़बार में हो रहे ताबड़तोड़ अशुद्धियों की वजह जानने के लिए कुछ बातें जानना बेहद ज़रूरी है। दरअसल, शशि शेखर और उनके तमाम चाहने वालों के अमर उजाला छोड़कर जाने के बाद स्थानीय संपादकों, संपादकों व कई वरिष्ठ पत्रकारों की नोएडा में मीटिंग हुई थी। मीटिंग में अमर उजाला के कई दिग्गज शामिल हुए थे। कहा जाता है कि एक तरह से यह मीटिंग अख़बार के लिए आत्मचिंतन मीटिंग के समान थी। मीटिंग के दौरान सभी ने अपनी बातें रखीं। सबकी बातें सुनने के बाद एक बात सामूहिक तौर पर निकल कर सामने आई कि शशि शेखर के कार्यकाल में निचले पदों पर ज़्यादातर अक्षम लोग रखे गए थे। योग्य व तेज़-तर्रार पत्रकारों को तवज्जो ही नहीं दी गई। ऐसे लोग जो पहले से थे, उन्हें बाहर निकाल दिया गया या फिर उन्हें परेशान कर उपेक्षित रखा गया। नियुक्ति में अच्छे टैलेंट को तवज्जो नहीं दी गई। इसका ख़ामियाज़ा अमर उजाला को आईआरएस 2010 की रिपोर्ट के रूप में भुगतना पड़ा। अमर उजाला को न केवल 3.49 लाख पाठकों से हाथ धोना पड़ा, बल्कि देश का तीसरा सबसे बड़ा अख़बार होने का गौरव भी उसके हाथ से निकल गया।

अब दैनिक हिंदुस्तान की बागडोर शशि शेखर ने संभाली है। उसके बाद अमर उजाला के कई लोग दैनिक हिंदुस्तान पहुंचे। मतलब शशि शेखर की अमर उजाला की पूरी टीम हिंदुस्तान में दाख़िल हो गई। अब अक्षम पत्रकारों  ने अपना खेल शुरू कर दिया। नतीजतन अशुद्धियों का दौर चल पड़ा। उपसंपादक तो उपसंपादक, ख़ुद प्रधान संपादक ने भी अपने लेखों में ग़लतियां की।

इंडियन रीडरशीप  सर्वे के अनुसार, नवभारत टाइम्स और हिंदुस्तान अपने को दिल्ली-एनसीआर का सबसे बड़ा अख़बार मानते हैं। जहां तक नवभारत टाइम्स की बात है, उनकी लिपि देवनागिरि न होकर अब रोमन की ओर बढ़ रही है। इसलिए भाषाई दृष्टिकोण से देखा जाए, तो इसके पाठकों का भाषाई रूप से कोई भला नहीं होने जा रहा है। लेकिन दैनिक हिंदुस्तान ने अभी तक देवनागिरी लिपि का दामन नहीं छोड़ा है। इसलिए भाषाई दृष्टिकोण से अभी भी लोगों का भरोसा दैनिक हिंदुस्तान पर है। लेकिन जिस तरह से अशुद्धियां हो रही हैं, उसे देखकर तो यही लगता है कि अब दैनिक हिंदुस्तान का बेड़ा गर्क होने में ज़्यादा दिन नहीं।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि आज अख़बार के सिस्टम को हो क्या गया है? क्या अब प्रूफ़ के नियमों का पालन नहीं होता?  क्या अब डमी नहीं बनती? क्या अब डमी का प्रूफ़ नहीं होता? क्या अब संपादक के पास इतना भी समय नहीं कि वे अपने अख़बार को देखें? या फिर अख़बारों के सारे प्रिंटर ही ख़राब पड़ें हैं? या फिर पत्रकारों को यह घमंड हो गया कि उन्होंने एक बार जो लिख दिया वह पत्थर की लकीर है, उसमें अशुद्धियों की कोई गुंजाइश नहीं?

लेखक सुधांशु चौहान युवा और प्रतिभाशाली जर्नलिस्ट हैं. न्यूज चैनल पी7न्यूज, नोएडा के वेब सेक्शन में बतौर जूनियर सब एडिटर कार्यरत हैं.

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Comments on “क्या कर रहे हैं शशिशेखर?

  • अरे साहब इतना ही नहीं। रोज कोई न कोई ऐसी खबर देखी जा सकती है, जिससे समन्वय की कमी झलकती है। पिछले महीने में दिल्ली हिंदुस्तान के पेज चार पर एक छोटो छपा था जिसमें एक बंदा चाक पर मिट्टी का बर्तन बना रहा था, और इस तस्वीर पर हिंदुस्तान के एक फोटोग्राफर का नाम था। फिर वही तस्वीर अखबार के आखिरी पेज पर भी छपी थी, जिसमें एजेंसी क्रेडिट दी गई थी। और तो और पिछले हफ्ते पामेला एंडरसन से संबंधित एक खबर को देश दुनिया पेज पर पांच कॉलम में जगह दी और फिर वही खबर क्वाटर साइज में गाजियाबाद, नोएडा तथा गुडगांव पुलआउट के आखिरी पेज पर भी दे दी। कितनी गलतियां बताएं साहब। देश का एक बड़ा नामी और तेजी से बढ़ते अखबार से ऐसी क्वालिटी की उम्मीद नहीं की जाती है। यहां तक कि दिल्ली की खबरों के लिए रिपोर्टर के बजाय एजेंसी के फीड्स लिए जाते हैं। पता नहीं आखिर प्रधान संपादक महोदय अपनी टीम से करवा क्या रहे हैं। अखबार की क्वालिटी तो दिनोंदिन गिर रही है। लेआउट, प्रेजेंटेशन तथा कोआर्डिनेशन, सभी दोयम हैं। लगता है मालिकान का ध्यान अपने अंग्रेजी अखबार में है, हिंदी में नहीं। तभी तो यह हालात हैं।

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  • sikanderhayat says:

    bahut badia bhai asal me angrazi capitalisat yathaisthiti vadiyo amaricaparasat peshacho ka beraham dabav pure desh me khastor par hindi media lekhan tv cinema par badta hi ja rha ha vicharo se inhe alargy ha hindi wale inke aakhri sakiray dushman ha khubsurat or kamakal ladkiya inka bada hathiyar ha natiza hindi wale complex ma aakar kai bavakufiya kar rehe ha ye nbt or hindustan isi ka natiza ha

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  • gautam tripathi says:

    bhai sahab aapne dusron ko shiksha dete-dete khud hi galati kar di hai. aapne lekh ke teesre paragraph men padhiye. aapne likha hai ’28 november ke 7wen panne par hi ek bold shirshak lagi hai’ shirshak lagti nahin – lagta hai. thank you, don’t worry be happy.

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  • Shobhit Sharma says:

    sir darasal ye log jo kaam kar rahe hai ase, in logo ko hindi me to typing aati nahi hai aur english ke hindi wale font se type kar dete hai to galti ka hona swabhvik hai..
    ase logo ko jald se jald typing seekh leni chahiyen kyonki galti wo log karte hai aur naam news paper aur news paper se jude bade chehro ka kharaab hota hai…

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  • देवप्रिय शास्त्री says:

    सुधांशु जी ने जो लिखा उससे कोई क्या असहमत होगा, पर इतना साफ है कि शशिशेखर जी की छवि को चमाकाए रखने की खातिर कुछ चम्पू फौरन कूद कर सामने आ जाते हैं।

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  • anamisharanbabal says:

    kamalhai ss sahab ab tak to aapne editoriey ke nam par dandagirj ki h but ht me editor ban kar dikhaye ss har jagah dande se kam chalta yo newspaper ke off ki jagah kushti dangal ka akhada khul jayeg? khair chinta na kare ss sir ht to pahle b lottery walo ka nwspaper tha last 10 yr se ye nwspaper ka aakar leta ja raha tha lihaja galatiyo, trutiyo par jor dene ki bajay aap apni………….kamal h sir kam karo ya na karo magar jag me rahkar nam karo …hahahahahah:):):);D

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  • शशिशेखर जी par labal jald lagega ki jhan gay lutiya dubo di amar ujala ka bantbara krane main शशिशेखर hi main kirdar the. ab हिंदुस्तान ki lutiya dubone wale hain
    kk chauhan

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