: क्या माखनलाल से भी बड़े पत्रकार है मैदान में? : भाषा का संयम बनाए रखें, यदि वही खो दिया तो पत्रकारिता किस काम की : ‘भडास4मीडिया’ क्या भड़ास निकालने का मंच बन कर रह गया है। जिसको जो उल्टा सीधा लिखना है, यहां से लिख सकता है? किसी ने श्रीकांतजी और पुष्पेन्द्रजी के खिलाफ एक पक्षीय रिपोर्ट लिखी, आपने छाप दिया। किसी ने नए कुलपति की तलाश शुरू जैसी मूर्खतापूर्ण खबर भेज दी, आपने झट से छाप दिया। कल को कोई आपको लिख कर भेज देगा, दोनों गुटों में समझौता, आप उसे भी देर किए बिना छाप देंगे। कोई यह लिख देगा कि अपने बचाव के लिए पीपी संघ के अधिकारियों से लगातार संपर्क कर रहे हैं, तो आप देर किए बिना उसे भी छाप देंगे।
खंडन-मंडन वाला डिस्क्लेमर अच्छा है। बस खंडन-मंडन का टैग लगाकर समेट लो जो भी माल मिले। यशवंतजी आपको चाहिए, खबर गरम। मिलावट का ख्याल भी नहीं करते। जिसे जितना मिला कर जो खबर देनी हो, यहां दे दे। आप चला देंगे। क्या आप अपने स्तर पर खबर की विश्वनीयता की जांच नहीं करते?
माखनलाल के नाम पर हो रही यह गाली गलौज संस्थान को ही बदनाम कर रही है और मुझे नहीं लगता कोई भी ऐसा छात्र या माखनलाल का कोई भी हितैषी इसके सम्मान को इस तरह बीच भड़ास में उछलता हुआ देख सकता है, मैंने माखनलाल से पढ़ाई नहीं की लेकिन उसकी कहानी पढ़-पढ़ के मन भन्ना गया। मैंने तो अगले साल माखनलाल में अपने बच्चों का नामांकन का इरादा कर लिया था। लेकिन अब वह इरादा बदल गया है। देश के इस तरह के विश्वविद्यालय की कहानी को पढ़कर सिर शर्म से झुक गया है। इसलिए लिख रही हूं। क्या इस तरह की कहानियों को पढ़ने के बाद कोई भी भला छात्र यहां आकर पढ़ना चाहेगा? जहां पढ़ाई की जगह राजनीति होती हो, वहां अपने बच्चों को पढ़ाकर मैं उनका भविष्य नहीं खराब करना चाहती। इस माहौल में वह पत्रकारिता बाद में सीखेंगे और राजनीति पहले सीखेंगे।
मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि एक सज्जन कैसे अपने कमेंट में बेशर्मी से कह रहे हैं कि वे एक ऐसे अखबार के संपादक हैं, जिसके गेट के अंदर जाना भी आम आदमी के लिए संभव नहीं है। उस कॉरपोरेट संपादक को समझना चाहिए कि ऐसे ही संपादकों ने संपादक नाम की संस्था का बेड़ा गरक किया है। खबर को बेचने का काम भी ऐसे ही संपादक करते हैं। आम तौर पर ऐसे संपादकों में रीढ़ की हड्डी नहीं पाई जाती। यह लोग मालिक के गुलाम ही होते हैं और आम आदमी के लिए साहब हो जाते हैं। क्योंकि केबिन के अंदर की कहानी तो कभी बाहर नहीं आती। क्या ऐसे ही साहब पत्रकार माखनलाल जैसे संस्थान से निकल रहे हैं?
माखनलाल चतुर्वेदी जिनके नाम पर यह संस्थान है, उनके लिए तो मैंने सुना है कि वह हर खासो-आम के लिए हमेशा उपलब्ध थे। उनके केबिन के अंदर जाने में किसी को परेशानी नहीं होती थी। अब यह कमेन्ट करने वाले एक राष्ट्रीय अखबार के बड़े संपादक पत्रकार खुद को माखनलाल से भी बड़ा पत्रकार साबित करने पर तुले हैं तो उन्हें मेरा शत्-शत् नमन। भड़ास पर पत्रकारिता संस्थान के लिए लिखने वाले भाई और बहनों से यही निवेदन है कि भाषा का संयम बनाए रखे। यदि वही खो दिया तो पत्रकारिता किस काम की?
मीनू चांदीवाल
स्वतंत्र पत्रकार
दिल्ली
meenuchandiwal@gmail.com
Comments on “खंडन-मंडन का टैग लगाकर हर माल समेटो!”
mam, u r right ye wakai mai bahut gerjimmedarana rawaiya hai. Jarurat hai isko sudharne ki. Aapko ak baat btana chahata hu ki makhanlal se phele kabhi itni negative khabar nhi aayi. But unluckly is session mai kuch dikkate aayi hai. Makhanlal mai kabhi kharab sanskar nhi shikaye jate na teacher dwara na student dwara. Yahan ke former students dwara kharab bhasa use karna wakai bura hai. Par madam ghar ka bacha bahar ja kar gaali dene lage sharab peene lage to ghar walo ko to jimmedar nhi theraya ja sakta na. So pls makhanlal ki negative image mann mai na banaye.(9039720983)
क्या फर्क पड़ता है कि यशवंत खबरों को चटपटा और जायके दार परोस रहा है…………कौन सी पत्रकारिता है जो इस हिसाब से विशुद्ध काम कर रही है…………खुद अपने बारे में सोचो तो……….फिर दूसरों पर कीचड उछाला जाये………….तमाम अखबारों में जो खबरे आ रही हैं क्या वो……प्लांट नहीं की जा रही है………….हा हा हाहा………मेरी मुर्गी की एक टांग