: एक महीने के लिए मानद डीजीपी बने आरके तिवारी : तो आखिरकार मुख्यमंत्री मायावती के किचन-कैबिनट की मायावी चालों ने वह स्तम्भ भी ध्वस्त कर दिया जो समाज की सुरक्षा का सबसे पुराना हथियार माना जाता है। यानी पुलिस। करमवीर सिंह के रिटायर होने के बाद अब यह कमान किसी को नहीं सौंपी गयी है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह पद खाली ही पड़ा रहेगा, बल्कि पीएसी के महानिदेशक आरके तिवारी इस पद का काम तदर्थ तौर पर देखेंगे। आखिर एक महीने तक तो किसी जुगाड़ से डीजीपी का पद किसी खास के लिए रोके रखना भी तो मौजूदा सरकार के लिए जरूरी ही है।
करमवीर सिंह। हालांकि अपनी बेलौस ईमानदारी और कार्यप्रणाली के लिए यह शख्स अपनी सेवाकाल की शुरुआत से ही मशहूर रहा है, लेकिन जोरदार चर्चा में यह नाम तब आया जब करीब डेढ़ साल पहले डीजीपी की कुर्सी से उस शख्स को बड़ी बेमुरव्वती से उतार फेंका गया, जो कभी मायावती की नाक का बाल होने का दावा करता था। मुख्यमंत्री मायावती के जन्मदिन पर सारे पुलिसिया कायदे-कानूनों को ताक पर रख कर डीजीपी की कुर्सी पर बिठाये गये विक्रम सिंह नामक इस शख्स ने बातें तो खूब की, लेकिन अपनी ही बात के खिलाफ वह सारा काम कर दिखाया जो पुलिस जैसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विभाग के मुखिया को कत्तई शोभा नहीं देता। हालांकि पुलिस के आला हाकिमों में चाटुकारिता का चस्का पिछले काफी समय से लगा हुआ था, लेकिन विक्रम सिंह के समय में तो यह हरकत पुलिस का अधिकांश छोटा-मोटा अफसर करने पर उतारू हो गया।
सत्ता के चरण-चांपने के इस सिलसिले को आगे बढ़ाया पहले लखनऊ के आईजी रहे एके जैन ने, जो बाद में एडीजी का प्रमोशन पाकर आधे यूपी के कानून-व्यवस्था की मलाई पा गये। मुख्यमंत्री की सुरक्षा का दायित्व उन्हें अलग से मिल गया। लेकिन आधी रोटी कट जाने से आहत अफसरों ने बस कुछ ही दिन में उनको ऐसी दुलत्ती मारी कि वे चारों खाने चित्त होकर चारबाग रेलवे स्टेशन पर सैल्यूट मारने लगे। आज तक यही कर रहे हैं। यह वही एके जैन हैं जो कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा का घर फूंके जाते समय मौके पर मौजूद बताये गये थे और आरोप लगे थे कि वे आगजनी का विरोध करने वालों को मौके से लठियाकर भगा रहे थे। उस घटना के समय मौजूद सभी पुलिस अफसरों को माया-मैडम ने खूब पुरस्कृत किया और मलाईदार पोस्टिंग का गिफ्ट भी।
इसका अगला चरण दिखा पद्म सिंह के तौर पर जो अपनी माया मैडम की जूतियां अपने रूमाल से साफ करते कैमरे में कैद हुए। डीएसपी पद्म सिंह की ताकत का अंदाजा इसी से लग जाता है कि उसके साथ उसकी ओर से सफाई देने के लिए कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह, प्रमुख सचिव गृह फतेहबहादुर, डीजीपी करमवीर सिंह और एडीजी बृजलाल तक प्रेस कांफ्रेंस करने पर मजबूर हो गये। सत्ता की ताकत से जोशीले हो चुके यूपी के टोपीक्रेट्स ने इसके बाद तो सारी हदें तोड़ने का जिम्मा उठा लिया जो आज तक जारी है। समाजवादी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के लोगों के तो गले ही बैठ चुके हैं इस पर चिल्लाते-चिल्लाते।
सत्ता की सरपरस्ती का ताजा मामला तो बीपी अशोक का है जो बसपाई रिंग टोन लगाकर चलते हैं। बस, उसका मन हुआ और आईबीएन-7 के पत्रकार शलभमणि त्रिपाठी और मनोज राजन पर लाठियां लेकर इस लिए पिल पड़ा क्योंकि वे डॉ. सचान की जेल में हुई मौत पर सवालों की झड़ी अपने चैनल पर लगाये हुए थे। इस पर पत्रकार खफा हुए और मुख्यमंत्री आवास पर धरना देकर देर रात तक बैठे रहे। सरकार की ओर से मौके पर आये मुख्यमंत्री के सचिव नवनीत सहगल और ओएसडी सूचना दिवाकर त्रिपाठी। नवनीत सहगल ने पहले तो समझाने की कोशिश की लेकिन मामला तूल पकड़ता देखकर बीपी अशोक को सस्पेंड कर दिया। पत्रकारों ने मुकदमा लिखाया, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई करना तो दूर, बीपी अशोक को बस कुछ ही दिन बाद बिना किसी जांच पड़ताल के मेरठ में एसपी सिटी बना दिया गया। इस पूरे प्रकरण में करमवीर सिंह बाकायदा घुग्घू बांदर की तरह खामोश रहे। तो यह था प्रदेश के पुलिस महानिदेशक करमवीर सिंह की ईमानदारी का हाल।
बहरहाल, अब आये हैं आरके तिवारी। महज एक महीने के लिए। सितम्बर में ही ये पुलिस सेवा से हमेशा के लिए विदा हो रहे हैं। यानी रिटायर। हां, तिवारी पर कभी बेइमानी के आरोप तो नहीं लगे, लेकिन लोगों को उनका व्यवहार बेहद नागवार गुजरता है। बेहद अक्खड़ किस्म के आरके तिवारी से आप मिलें तो पायेंगे कि जैसे वे अपनी आप से बात करके अहसान कर रहे हैं। अपनी तारीफों के पुल खुद ही बांधने में भी तिवारी को खासी महारत है। हालांकि मंगलवार की शाम तक तय हो रहा था कि अतुल गुप्ता को डीजीपी बनाया जाएगा, लेकिन सियासत और टोपोक्रेसी के गंठजोड़ ने आखिकार आरके तिवारी को प्रदेश के पुलिस महानिदेशक का अस्थाई प्रभार सौंप दिया। वे रहेंगे तो पीएसी के ही डीजी, लेकिन साथ में डीजीपी का काम भी देखेंगे। यह पहली बार हुआ है जब डीजीपी पद के लिए यह तदर्थ व्यवस्था की गयी।
लेकिन इस नयी व्यवस्था के पीछे कारण भी जोरदार हैं। बताते हैं कि इस पद पर बृजलाल को बिठाने की गोटियां चली जा चुकी हैं। बृजलाल की तैनाती महज इसलिए नहीं की गयी क्योंकि वे अभी तक डीजी के पद पर प्रमोट नहीं हुए हैं। यह काम अगले महीने तक पूरा हो जाएगा क्योंकि एक महीने के भीतर ही डीजी के दो पद रिक्त हो रहे हैं। यानी इधर आरके तिवारी की विदाई हुई और उधर ब्रजलाल ने डीजीपी की कुर्सी सम्भाल ली। यह इस लिए भी होना है क्योंकि माया सरकार के पूरे कार्यकाल के दौरान वे कानून-व्यवस्था के पद ही जमे रहे। अब आने वाले चुनाव में उन्हें चुनाव आयोग इस पर हस्तक्षेप कर सकता है। ऐसा हुआ तो प्रदेश सरकार के लिए यह शर्मनाक होगा। तो बृजलाल को जल्दी ही कहीं फिट करने की कवायद तो होनी ही थी। जो आरके तिवारी के रिटायर होने तक हो जानी है। लो, बन गया काम। बधाई हो बृजलाल, बसपाई सत्ता के इस धांसू समीकरण में यह पद हथियाने की गोटियां बिछाने
लेखक कुमार सौवीर लखनऊ के जाने-माने और बेबाक पत्रकार हैं. कई अखबारों और न्यूज चैनलों में काम करने के बाद इन दिनों आजाद पत्रकारिता कर रहे हैं. उनसे संपर्क 09415302520 के जरिए किया जा सकता है.