जागरण की नीतियों से नाराज होकर इस्तीफा दिया

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देहरादून। संघ परिवार की उग्र हिन्दुत्व की विचारधारा से खाद पानी लेकर पला-बढ़ा दैनिक जागरण द्वारा अयोध्या विवाद मामले पर सांप्रदायिक चश्मे से खबरें प्रकाशित करने के खिलाफ देहरादून में सब एडिटर दीपक आजाद ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने तीस सितम्बर से ही दैनिक जागरण दफ्तर जाना बंद कर दिया था। चौदह अक्टूबर को दीपक ने डाक के जरिये संपादक को अपना इस्तीफा भेजा। दीपक पिछले तीन साल से दैनिक जागरण, देहरादून से जुड़े हुए थे।  दीपक लोकसभा चुनाव के बाद पेड न्यूज के मामले में जागरण द्वारा अपने पत्रकारों को कालेधन के रूप में लिफाफे में हिस्सा बांटने का भी विरोध कर चुके हैं।

उन्होंने तब दैनिक जागरण द्वारा दिए जा रहे लिफाफे का विरोध करते हुए इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। तब जागरण ने इस्तीफा अस्वीकार कर दिया था। दीपक को उत्तराखंड में तीन साल पहले जपक्षधर पत्रकारिता के लिए उमेश डोभाल युवा पत्रकारिता से भी सम्मानित किया जा चुका है। भड़ास4 मीडिया से बात करते हुए उन्होंने इस्तीफा देने की पुष्टि की है।  दैनिक जागरण के सूत्रों से प्राप्त रिजाइन लेटर का मजमून कुछ इस तरह है।

सेवा में,

संपादक

दैनिक जागरण

अयोध्या विवाद पर दैनिक जागरण की उकसावेपूर्ण हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिक संपादकीय नीति के विरोध स्वरूप मैं अपने पद से त्यागपत्र देते हुए जागरण से खुद को को अलग कर रहा हूं। मुख्य रूप से संपादकीय पेज पर उकसावेपूर्ण लेखन और दिल्ली/ लखनऊ  डेटलाइन से अयोध्या विवाद मामले पर दैनिक जागरण द्वारा प्रकाशित खबरें भारतीय गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को भारी आघात पहुंचाने वाली हैं। दैनिक जागरण की बहुसंख्यकवाद की धारणा पर आधारित हिन्दु धर्मावलंबियों की धार्मिक भावनाओं का दोहन करते हुए अपने पाठक वर्ग को बांधे रखने की ऐसी संपादकीय नीति बहुधार्मिक विविधता वाले भारतीय समाज में विभिन्न धार्मिक समूहों, विशेषकर हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक विषवमन को बढ़ावा देती हैं। हालांकि मैं यहां यह भी स्पष्ट करना जरूरी समझता हूं कि संपादकीय पेज पर प्रकाशित आलेखों व दिल्ली/ लखननऊ डेटलाइन से हिन्दुत्व के विकृत रंगों में रंगी खबरों के विपरीत देहरादून केंद्र से सांद्रायिक सदभाव को पुष्ट करने वाला लेखन राहत देता है। देहरादून केंद्र से समाचारों का सदभावनापूर्ण प्रस्तुतिकरण एक अपनी तरह का विरोधाभाष भी दर्ज कराता है।  शायद, सांप्रदायिक टकरावों को कभी छुपे तो कभी दबे रूप में बढ़ावा देने के षडयंत्रों के विपरीत सदभावना से युक्त ऐसी कोशिशें ही दैनिक जागरण के मालिकानों व नीति-नियंताओं को अपनी कुत्सित संपादकीय रीति-नीति को सदभावना के पक्ष में खड़ा करने को कभी मजबूर कर पाएंगी। ऐसी उम्मीद पालने में हर्ज भी क्या है।

दीपक आजाद

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Comments on “जागरण की नीतियों से नाराज होकर इस्तीफा दिया

  • SHAILENDRA PARASHAR says:

    आज जव हम पत्रकारों को देश से भ्रस्टाचार को हटाना चाहिए था तव अज ही हमारे कुछ पत्रकार भाई एस अंडी पेड़ न्यूज़ संस्कृति का हिस्सा बन बैठे कम्बखत ऐ नेता कम थे उन्हें देखने की बजह हम खुद लिप्त होते जा रहे है आज हमारी समाज मैं जो छवि ख़राब हो रही है बो इसी पैड न्यूज़ की एक बजह है आज मोका है कुछ देश के लिए कर दिखने का ? आगे बड़ो एस गंदगी को ख़तम करो जय हिंद जय भारत

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  • अमित गर्ग. जयपुर. राजस्थान. says:

    आज के निर्जीव तथा मृतप्राय: संस्थानों में तथाकथित हिन्दुत्व के नाम पर ऐसे चापलूसों की भरमार है, जो अभी तक सही मायनों में हिन्दुत्व का अर्थ तक नहीं जानते हैं। इसे भी विडम्बना ही कहेंगे कि ये लोग अपने आधे-अधूरे ज्ञान के बल पर अन्य लोगों को अपने निजी कट्टरवाद को हिन्दुत्व रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, समझा रहे हैं। असल में हिन्दू वह होता है जो अन्य लोगों के लिए समय आने पर अपनी जान दे दे, ना कि उनकी जान ले ले। एक अन्य सच्चाई ये भी है कि जो संस्थान और लोग हिन्दुत्व का ठेका लिए घूम रहे हैं, वे ही हिन्दुत्व के अर्थ का सबसे अधिक बंटाधार कर रहे हैं। कट्टरवादिता के वशीभूत होकर मुल्क के आम आवाम ने कई डरावने मंजर पिछले कुछ दशकों में ना केवल देखे हैं बल्कि महसूस भी किए हैं। लेकिन, इन तथाकथित हिन्दुत्व के ठेकेदारों ने इनसे सबक लेने और सीखने की आज तक कोई कोशिश नहीं की। करते भी कैसे, दिमाग में भरी गंदगी, बीमारी आसानी से इनका पीछा थोड़े ही छोडऩे वाली है। ईश्वर, खुदा इन तथाकथित ठेकेदारों को सद्बुद्धि दे ताकि, इनका कल्याण हो।

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  • अमित गर्ग. जयपुर. राजस्थान. says:

    आज के निर्जीव तथा मृतप्राय: संस्थानों में तथाकथित हिन्दुत्व के नाम पर ऐसे चापलूसों की भरमार है, जो अभी तक सही मायनों में हिन्दुत्व का अर्थ तक नहीं जानते हैं। इसे भी विडम्बना ही कहेंगे कि ये लोग अपने आधे-अधूरे ज्ञान के बल पर अन्य लोगों को अपने निजी कट्टरवाद को हिन्दुत्व रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, समझा रहे हैं। असल में हिन्दू वह होता है जो अन्य लोगों के लिए समय आने पर अपनी जान दे दे, ना कि उनकी जान ले ले। एक अन्य सच्चाई ये भी है कि जो संस्थान और लोग हिन्दुत्व का ठेका लिए घूम रहे हैं, वे ही हिन्दुत्व के अर्थ का सबसे अधिक बंटाधार कर रहे हैं। कट्टरवादिता के वशीभूत होकर मुल्क के आम आवाम ने कई डरावने मंजर पिछले कुछ दशकों में ना केवल देखे हैं बल्कि महसूस भी किए हैं। लेकिन, इन तथाकथित हिन्दुत्व के ठेकेदारों ने इनसे सबक लेने और सीखने की आज तक कोई कोशिश नहीं की। करते भी कैसे, दिमाग में भरी गंदगी, बीमारी आसानी से इनका पीछा थोड़े ही छोडऩे वाली है। ईश्वर, खुदा इन तथाकथित ठेकेदारों को सद्बुद्धि दे ताकि, इनका कल्याण हो।

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  • एकदम झूठ। यह सत्य नहीं बोल रहा है। वजह कुछ और ही होगी। हो सकता है कि यह स्वयं हिंदू न हो, स्वयं को दलित वगैरह मान रहा हो या फिर इस्लामिक अथवा ईसाई बनने जा रहा हो। उन परंपराओं में बड़ी सुविधा है। ईसाई तो पैसे भी देते हैं। यह आजाद भी फर्जी लग रहा है। एक आजाद धर्म एवं देश के लिए मरता है, इसे धर्म एवं देश से जुड़े लेखों पर तकलीफ होती है। जागरण हिंदुत्व को पोषित करने वाला संपादकीय लिखता है तो इसे चुभता क्यों है। हिंदुत्व कोई संप्रदाय नहीं है। वह इस देश का प्राण है, वही तो देश है। हिंदुत्व के बिना वह यहां कल्पना किस जीवन पद्धति की करता है। इसे हिंदुत्व से समस्या क्या है? छद्म निरपेक्षोंने हिंदुत्व पर कुठाराघात करके इस देश को बेड़ा गर्क कर दिया। अब इसे और नरक में तो न ले जाने की सोची जाए। चाहिए तो यह कि सब मिलकर हिंदु जीवन पद्धति का प्रचार-प्रसार करें और यह साहब हैं कि हिंदुत्व विरोधी होकर महामना बनने का प्रयास कर रहे हैं। चमकेंगे कुछ दिन, किसी कांग्रेसी अखबार में चौकरी भी मिल जाएगी, परंतु वह समय जल्द आएगा जब अपने आप पर प्रायश्चित करेंगे। जीने के रास्ते बहुत सीमित हैं-जीवन का वास्तविक पथ हिंदुत्व से-भारतीयत्व से होकर जाता है। दूसरी चीज, भइया आज यानि 25 अक्तूबर के अंक में तो जागरण ने भी इसी की भाषा बोली है। उसने लीड ही भगवा आतंकवाद लगाया है। खुश रहो मुन्ना। यह देश एक बार गांधी के कारण बिखरा, अब तो गांधी गली-गली में हैं। जय हो। [b][/b]

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