भाई यशवंत जी, दैनिक जागरण के लोगों द्वारा गुरुवार को मेरे तथा चार माह पुराना हो चले दैनिक ब्रहमखोज के खिलाफ कापीराइट एक्ट के तहत मुकदमा करने की मंशा को पूरा कर लिया गया। मजे की बात यह रही कि इस प्राथमिकी को जिले के कथित ब्यूरोचीफ ने दर्ज कराई है। आप को बताते चले कि समाज में व्याप्त कुरीतियों अंधविश्वासों के प्रति समाज में जागृति के लिए अखबार के माध्यम से जनसेवा के लिए उतरना अब कष्ट का एहसास दिलाने लगा है।
मुझे दैनिक जागरण के पत्रकार बृजेश और उसके बदमाश भाई लालबहादुर यादव के अपराधिक कृत्यों को सार्वजनिक कर उनके खिलाफ खड़ा होना अब एक बड़ा पाप महसूस होने लगा है। मुझे विश्वास था कि जागरण प्रबंधन बृजेश यादव के अपराधिक कृत्यों को गंभीरता लेगा और पत्रकारिता का पवित्र कहा जाने वाला पेशा बदनामी से बच जाएगा। मेरी सोच गलत निकली। मैंने सोचा कि शायद बड़े अफसरों को यहां के लोगों की करतूत के बारे में जानकारी नहीं है, जिसके कारण पत्रकारिता बदनाम हो रही है। मैं खुद को इनके खिलाफ खड़ा करके बहुत बड़ी गलती कर बैठा हूं। मजे की बात यह रही है कि जो खबरे मैं ने अखबार में प्रकाशित की है, वह सभी प्रकाशन से पहले रिपोर्टरों के द्वारा बताई और लिखवाई गई है। मेरे द्वारा भी जागरण के लोगों का खबरों के माध्यम से सहयोग किया जाता रहा है।
मुझे यह तो नहीं पता कि चार माह पुराना मेरा ब्रहमखोज भारी भरकम दैनिक जागरण के सामने कितने दिन टिक पाएगा?लेकिन मैं अब इस लाइन को सत्य मानने लगा हूं कि ’समरथ को नहीं दोष गोसाई’। किसी भी बड़े लोगों को छूने के लिए हर व्यक्ति को इस लाइन पर एक बार जरूर विचार कर लेना चाहिए। बीते 13 तारिख से दैनिक जागरण ने मेरी नींद हराम कर दी है। जिस तरह की साजिश मेरे और मेरे ब्रहमखोज को लेकर रची जा रही है उसमें मैं पता नहीं कब तक चल पाउंगा? यह सब अब परमेश्वर के हाथ में है। जागरण के कारण मन से तनाव अब दूर नहीं हो रहा है। अब तक दैनिक जागरण के रिपोर्टरों के द्वारा चारित्रिक हनन को लेकर साजिश रची जा रही थी तो अब कापी राइट के तहत फंसाने की साजिश पर काम पूरा कर लिया गया है।
बताते चले कि ब्रहमखोज ने दैनिक जागरण के बृजेश यादव और उसके भाई लाल बहादुर यादव के अपराधिक कृत्यों को उजागर करते हुए बिनय जायसवाल को उनके द्वारा कारित अपराध का हिस्सेदार बताकर पत्रकारिता की आड़ में कारित अपराधों को सार्वजनिक किया था. ऐसी पत्रकारिता के सोच मात्र से रोएं रो पड़ते है, जीने की लालसा ऐसा लग रहा है कि समाप्ति की ओर है। धन्य है भारत के बड़े दैनिक जागरण अखबार की पत्रकारिता और पत्रकार. भगवान मुझे अंत दे तथा उनको सद्दबुद्धि- इसी के साथ मैं अपनी इस पीड़ा को विराम दे रहा हूं। सहयोग का आकांक्षी।
ब्रह्मानंद पांडेय
सम्पादक
ब्रह्मखोज
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कुमार सौवीर, लखनऊ
September 30, 2011 at 2:18 pm
समर्थ तो वही होता है जिसमें जूझने का हौसला होता है। जो आप में है।
हौसला रखिये। आप ही जीतेंगे, यकीन मानिये।
हां, राह कुछ कंटीली जरूर हो सकती है, लेकिन असम्भव नहीं।
मैं ही नहीं, हम सभी लोग आपके साथ हैं
अमित बैजनाथ गर्ग, जयपुर, राजस्थान.
September 30, 2011 at 2:51 pm
जिस अखबार में गुंडे और अपराधी तत्व के लोग पत्रकारिता का चोला पहनकर बैठे हों, उस अखबार से उम्मीद भी क्या की जा सकती है…! दुनिया में जागरण की बात करने वाला दैनिक जागरण पहले खुद तो जाग्रत हो जाएँ…!
Noval Thakur
September 30, 2011 at 3:53 pm
जागरण का हिमाचल, विशेषकर शिमला में क्या सूरते हाल है? जागरण प्रबंधन को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। साम, दाम, दंड, भेद अपनाने के बाद भी शिमला शहर में जागरण की रीडर शिप लगातार गिर रही है।