वाराणसी। गलतियां हैं कि हिंदुस्तान का पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही हैं। हाल में हिंदुस्तान ने संत कबीर को सौ बरस पहले लहरतारा के एक नाले के पास पैदा किया था। अब दिनांक 19 दिसंबर, 2010 के अंक में पेज तीन कालम एक-दो में एक रुपये तीस पैसे से लेकर डेढ़ रुपये किलो की दर पर बनारस में प्याज बिकवा रहा है। अखबार में वरिष्ठ संवाददाता ‘प्याज की कीमत फिर बढ़ी’ शीर्षक से लिखता है-‘एक पखवारे पूर्व प्याज आठ सौ से साढ़े आठ सौ रुपये प्रति ‘मन’ था। शनिवार को 1300 से 1500 प्रति टन थोक में बिक्री हुई।’
वरिष्ठ संवाददाता महोदय को शायद यह पता नहीं है कि क्या होता है ‘मन’ और क्या होता है ‘टन’। नये नियमों के अनुसार अब ‘मन’ कहीं चलता नहीं है। इसकी जगह किलो या क्विंटल चलता है। लिखा-पढ़ी में अब ‘मन’ कहीं भी नहीं लिखा जाना चाहिए। पर, आम बोलचाल की भाषा में अब भी ‘मन’ चलता है। यह ‘मन’ अब 40 किलो के रूप में ही इस्तेमाल में आता है। एक टन का मतलब हुआ एक हजार किलो। अब आप ही समझ लीजिए कि 1300 से लेकर 1500 रुपये प्रति टन अगर प्याज बिक रहा है तो एक किलो एक रुपया तीस पैसे से लेकर डेढ़ या एक रुपया पचास पैसा प्रति किलो पड़ा।
अगर हिंदुस्तान अखबार पढ़कर लोगबाग बनारस में डेढ़ रुपया किलो प्याज लेने पर अड़ गए तो अखबार कहां खड़ा होगा? उसे अपना फेस बचाने के लिए अखबार पर पुलिस की तैनाती करनी पड़ जाएगी। इस खबर को छापकर हिंदुस्तान ने सोचा होगा कि आज इस तरह की खबर छापकर वह अन्य अखबारों से स्वयं को आगे साबित कर लेगा पर उसकी तेजी को उसके एक वरिष्ठ संवाददाता ने ही ब्रेक लगा दिया। शशिशेखर जी भोजपुरी में यह कहावत बेहद आम है ‘अन्हरन में कनवा राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा’। (सौजन्य से पूर्वांचल दीप डॉट कॉम)
Comments on “डेढ़ रुपये किलो प्याज?”
हिंदुस्तान बदनाम हुआ शेखर तेरे लिए।
patrakar news likhane ke bad yadi ak am pathak ki bhanti soche ,samajhe to usase galati hone ki sambhawana kam rahati hai. lekin media me kisi prakar ki galati maph nahi hai isaliye news ke sabhi pahaluo par vichar karana chahiye.
हिन्दुस्तान में सब कुछ ह¨ सकता है। शशि शेखर ने पहले अमर उजाला की लुटिया डुब¨ई अ©र अब हिन्दुस्तान का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। शशि शेखर नहीं शनि शेखर है। जिस पर नजर पड़ गई वही बर्बाद ह¨ गया। kkchauhan42@gmail.com
होइहें वही जो राम रची राखा…:-)