अब पत्रकार पूरे दमखम के साथ इस प्रेसरूम का इस्तेमाल कर सकेंगे। लेकिन चूंकि विवादों में रहना लखनऊ के बड़े पत्रकार अपनी किस्मत में ही लिखवाकर आये हैं, सो अब इस नयी व्यवस्था का भी तिया-पांचा करने की रणनीतियां बनने लगी हैं। हजरतगंज चौराहे पर महात्मा गांधी की प्रतिमा के पीछे लखनऊ की प्रतिष्ठा-स्मारक के तौर पर है जीपीओ भवन, जिसे प्रधान डाकघर भी कहा जाता है। पत्रकार इसे सीटीओ यानी चीफ तारघर के नाम से पुकारते हैं। करीब 85 साल पहले तक यह अंग्रेजों की इस प्राविंस का हाईकोर्ट भी था, जहां देशभक्तों के खिलाफ खूब मुकदमों की मनमानी सुनवाई के बाद उन्हें फांसी की सजा तक सुनाई गयी।
तो जिस भवन की शुरुआत ही मनमानी और दादागिरी से हुई हो और वह इसके लिए अभिशप्त ही हो, वहां शांति कैसे रह सकती है। तो यहां भी हुआ और जो कुछ हुआ, जाहिर है कि शर्मनाक हुआ। दरअसल, इस सीटीओ यानी जीपीओ में शुरुआत से ही पत्रकारों को खबरें तार करने की सुविधा मिली हुई थी, जब टेलीप्रिंटर का जमाना था। इसी बीच फैक्स और कम्प्यूटर का दौर आ गया तो बेनी प्रसाद वर्मा के संचार मंत्री बनने पर इसे अपग्रेड करते हुए एसी कक्ष में तब्दील कर दिया गया और यहां कम्प्यूटर, प्रिंटर व फैक्स की सुविधा दे दी गयी।
इसके बाद तो इसका जमकर दुरुपयोग किया गया। चूंकि संचार विभाग ने इस में तब की प्रचलित 95 डायल की सुविधा दे रखी थी, जो एसटीडी या मोबाइल के इस्तेमाल के लिए मुफीद थी, इसलिए दिन भर यहां केवल बातें ही होती थीं। खबर है कि सन 2007 में इसका बिल साढे़ तीन लाख से भी ज्यादा का आ गया। चूंकि पत्रकारों का मामला था, सो संचार विभाग वालों ने चुप्पी साधे रखी, हां आधिकारिक तौर पर ऐतराज जरूर जता दिया गया।
लेकिन अब तक यहां दादानुमा पत्रकारों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। और इसके बाद ही वहां वह सब कुछ शुरू हो गया जो बेदाग मानी जानी वाली पत्रकारिता के चेहरे पर कालिख पोत सकती हो। शराब के दौर सुबह से ही चलने लगे। कुछ लोग तो यहां ऐयाशी और वेश्यावृत्ति की बात भी दबे-छिपे शब्दों में स्वीकार करते हैं। इसके लिए इन दबंग पत्रकारों ने प्रेसरूप में नियुक्त संचार विभाग के कर्मचारियों को भी अपने गुट में शामिल कर लिया। बताते हैं कि शराब की और उसके बाद की पेशाब की ऐसी दुर्गंध यहां फैलती थी कि पूरा जीपीओ गंधाने लगा। लेकिन इस शराबखोरी का विरोध संचार विभाग के ही कुछ दबंग शराबखोर कर्मचारी नेताओं ने शराब पीने-पिलाने के चलते कर दिया।
अब तक यहां मसऊद नामक एक पत्रकार ने पूरे प्रेसरूप में अपने कब्जे में ले लिया था। मसऊद के पास ही प्रेसरूम की चाभी रहती थी और कम्प्यूटर का लाकिंग सिस्टम भी। फोन और फैक्स पर भी ताले की चाभी उनकी ही जेब में। जब तक मसऊद न आयें, प्रेसरूम बंद ही रहता था। खुलने के बाद भी उसके इस्तेमाल की इजाजत भी मसऊद ही देते थे। पत्रकारों का तो यहां तक कहना है कि वहां लगे कम्प्यूटर पर बैठा मसऊद का आदमी जब तक ताश या दूसरे खेल नहीं खेल लेता था, किसी भी पत्रकार को अपनी खबर भेजने की इजाजत नहीं मिलती थी। दरअसल, यह प्रेस रूम उन पत्रकारों के लिए था जो राज्य मुख्यालय की मान्यता न होने के कारण मुख्यमंत्री कार्यालय में बने मीडिया सेंटर में नहीं जा पाते थे, सो यहीं से अपनी खबरें भेजने आते थे। खैर, यहां बता दें कि मसऊद नेशनल हेराल्ड समूह के कर्मचारी रह चुके हैं। सो, उनके साथियों की कमी नहीं है, और यही उनकी ताकत भी है।
दो साल पहले शराबखोरो के इन दोनों गुटों में जमकर मारपीट हुई थी, प्रेसरूम के सामान तक तोड़े-फोड़े गये, खूब हंगामा हुआ। लेकिन बाद में मामला किसी तरह दोनों ही पक्षों ने आखिरकार दबा ही लिया। मगर इस बीच इस प्रेसरूम में होने वाली हरकतों-वारदातों और अव्यवस्थाओं को लेकर पत्रकारों के एक गुट में विरोध जन्मा। संचार विभाग के सूत्र बताते हैं कि बीएसएनएल के सीजीएम ओमवीर सिंह से टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स के कुछ बड़े पत्रकारों ने इसकी शिकायत की। कई दिनों तक यहां की गतिविधियों की निगरानी के बाद आखिरकार संचार अधिकारियों ने तय किया कि प्रेसरूम खत्म कर दिया जाए। इसके बाद ही दो दिन पहले संचार अधिकारियों ने इस प्रेस रूम पर अपना कब्जा कर लिया।
लेकिन इसकी भनक लगते ही रामदत्त त्रिपाठी, हिसाम सिद्दीकी, योगेश मिश्र, जितेंद्र शुक्ल, अजय श्रीवास्तव, नीरज श्रीवास्तव और अविनाश मिश्र समेत बड़ी संख्या में पत्रकार मौके पर पहुंचे और संचार प्रशासन को आश्वस्त किया कि भविष्य में इस प्रेसरूम का सलीके से ही इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए मुदित माथुर को इसका कस्टोडियन बना दिया गया। तय हुआ है कि यह प्रेस रूम अब शाम आठ बजे तक खुला रखा जाएगा और इसमें आधुनिक संचार साधनों के लिए संचार मंत्री को पत्र भी लिखा जाएगा। मुदित माथुर इसमें सुधार के लिए उप्र मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति के सामने एक ड्राफ्ट भी बना कर रखेंगे। उधर, रामदत्त त्रिपाठी ने एक पत्र लिख कर सभी पत्रकारों को उनकी इस जीत पर बधाई देते हुए कहा है कि इस प्रेस रूम की शुचिता और गरिमा को बरकरार रखने में अपना सहयोग दें।
लेकिन इस जीत के बाद पत्रकारों के दो गुट फिर आमने-सामने आ गये हैं। सवाल है प्रभुत्व का। कई दिनों से गुड़गांव में अपने पिता का इलाज कराके लौटे हेमंत तिवारी इस प्रेसरूम की व्यवस्था के लिए नये सिरे से कवायद आज शुरू कर रहे हैं। अभी तक यह तो स्पष्ट नहीं है कि इस कवायद के तर्क, आधार और नतीजे क्या होंगे, लेकिन इतना तो तय है कि कई दिनों से पत्रकारिता से अन्तर्धान हो चुके हेमंत इस मसले पर अपने लिए प्राण-वायु की व्यवस्था में जुटने वाले हैं। कमेटी का अगला चुनाव भी उनकी अर्जुन-दृष्टि में है। शुक्रवार को दोपहर बाद तीन बजे हेमंत गुट इस प्रेसरूम में पहुंचने वाला है।
लेखक कुमार सौवीर लखनऊ के जाने-माने और बेबाक पत्रकार हैं. कई अखबारों और न्यूज चैनलों में काम करने के बाद इन दिनों आजाद पत्रकारिता कर रहे हैं. उनसे संपर्क 09415302520 के जरिए किया जा सकता है.