वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर जी ब्रम्हलीन हो गये हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। चम्बल के बीहड़ों से निकलकर देश की राजधानी दिल्ली में पत्रकारिता जगत में जो मुकाम उन्होंने हासिल किया है। वह वास्तव में अद्भुत है। आलोक तोमर जी के दिवंगत होने के पश्चात उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर समकालीन और वरिष्ठ व कनिष्ठ वे पत्रकार जो उनके पत्रकारीय जीवन के सहयात्री रहे लगातार लिख रहे हैं।
उनके लिक्खाड़ होने की तस्दीक लगभग सभी पत्रकार कर रहे हैं। लेकिल मैं उनके प्रिंट मीडिया में महारथ हासिल करने के बिन्दुओं को इसीलिये नहीं छू सकूंगा। क्योंकि मैंने उनके साथ काम नहीं किया है। अलबत्ता मैं उनके न्यू मीडिया के धमाकों का जिक्र करना इसलिये समीचीन मानता हूं क्योंकि उन्होंने जो पारंगता प्रिंट मीडिया में प्राप्त की थी। वह अनवरत न्यू मीडिया में भी जारी रही।
हाल की उनकी दो बड़ी खबरें न्यू मीडिया के माध्यम से ऐसी सामने आयी हैं, जिन्होंने राजनेताओं को और व्यवस्था को हिला कर रख दिया है। एक खबर है उनकी 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की। जिसके लिये उन्होंने लगभग अभियान सा चला रखा है। जिसमें उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई है। दूसरी खबर उनकी एनडीए के संयोजक और जनता दल नेता जार्ज फर्नाडिस की सम्पत्ति को लेकर उनकी पत्नी लैला कबीर, बच्चे और अन्य तथा जया जेटली से जुड़ी हुई थी।
श्री तोमर के न्यू मीडिया के पक्ष पर लिखना इसलिये आवश्यक हुआ क्योंकि आलोक तोमर जी और मैं तथा भड़ास4मीडिया के यशवंत सिंह, न्यू मीडिया लेखक वर्तिका नंदा, रेडिफमेल की रेनूका मित्तल, मीडियामंच के लतिकेश शर्मा, आजतक दिल्ली के भूवनेश सेंगर, ईएमएस के सनत जैन और सहारा समय के प्रकाश हिन्दुस्तानी इन्दौर में दो मई 2010 को संपन्न हुये भाषायी पत्रकारिता महोत्सव के अवसर पर ई-मीडिया के बढ़ते कदम सेमीनार में एक साथ मंचाशीन थे।
बारी बारी से मंचाशीन पत्रकारों ने अपनी-अपनी बात रखी। उन्होंने ई-मीडिया के बढ़ते कदम पर जो पक्ष रखा था। वह वाकई गजब का था। उन्होंने ऐसा पक्ष रखा जैसे की कोई आईटी विशेषज्ञ सूचनाएं दे रहा हो। वे न केवल सोशल मीडिया से वाकिफ थे। बल्कि वेबस्ट्रीमिंग की जानकारी से लेस थे। साथ ही विभिन्न मीडिया की वेबसाइट फेसबुक और ब्लॉग पर लगातार प्रकट होते थे। अनेक पत्रकारों और उनके शुभचिंतकों के फेसबुक एकाउंट में गतिविधियां और अभिरूचि में उनका नाम डेटलाइन इंडिया के साथ सदैव देखा जा सकता है।
आलोक तोमर जी के बारे में यह कहा जाता था कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर लिखने में उन्होंने महारथ प्राप्त की है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी से उन्होंने राजनीतिक पत्रिका माया के 15 मार्च 1995 के लिये विशेष लंबी बातचीत की थी। उस बातचीत को माया पत्रिका में प्रकाशित किया गया। बातचीत इतनी प्रभावी थी कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर केन्द्रित पुस्तक राजनीति की रपटीली राहें में उस को पुनः प्रकाशित किया गया है।
23 सवालों पर आधारित साक्षात्कार काफी देर तक चला। साक्षात्कार की भूमिका आलोक जी ने इस प्रकार लिखी – ’’नई दिल्ली के रायसीना रोड़ का 6 नं. बंगला। श्री अटल बिहारी वाजपेयी कमरे में अकेले थे और कनपटी से गमछा लगाए बैठे थे। थोड़ी देर पहले ही वे दॉंत निकलवाकर आए थे और बहुत रूक-रूककर बोल रहे थे। लेकिन जब बात शुरू हुई तो वे अपना दर्द भूल गए। जीवन-जगत के उनके सरोकारों से लेकर राजनीति तक पर ’माया’ 15 मार्च, 1995 के लिए आलोक तोमर से उनकी लंबी बातचीत हुई। प्रस्तुत है बातचीत का पहला सवाल- आपको पता है कि लोग आपको बड़ा आदमी मानते हैं? जवाब- ठीक है, मेरा कुछ नाम है, कुछ लोग पसंद भी करते हैं, लेकिन मैं कितना बड़ा आदमी हूं, हूं भी या नहीं, इस पर मैं क्या कहूं।
आखिरी सवाल- फिर से अयोध्या ही केंद्रीय मुद्दा होगा? जवाब- कांग्रेस सरकार को घेरने के लिए हमारे पास बहुत सारे अस्त्र हैं। बेरोजगारी है, महॅंगाई है, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है, जो सबसे ज्यादा गंभीर है। संकेत है कि भारतीय जनता पार्टी को एक गंभीर और निष्कलुष विकल्प के तौर पर मतदाता की मान्यता मिल रही है। ठीक है, सारे दल सत्ता की प्रतियोगिता में शामिल हैं। लेकिन उस तरह के हमारे अनुभव अच्छे नहीं हुए, जहॉं सत्ता पहले मिल जाती है और दल बाद में बनते हैं। अभी तो हम अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे और फिर जब सरकार बनाने की बात आएगी तो गुण-दोष के आधार पर पार्टी जो फैसला करेगी वह जब होगा तब देखा जाएगा। मेरी श्री आलोक तोमर जी को श्रद्धांजलि।
लेखक सरमन नेगले पत्रकार हैं.