‘सत्ता, दहशत और मीडिया’ का समाज और आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ता है, मीडिया अपने दायित्वों को कितना निभा रहा है और पत्रकारिता और राजनीति का घालमेल समाज को किस दिशा की ओर लेकर जा रहा है। इन तमाम पहलुओं पर शनिवार को पत्रकारिता जगत के वरिष्ठ लोगों ने बेबाकी से अपनी राय रखी और पत्रकारिता के युवा छात्रों के सवालों का जवाब दिया।
मौका था फाउण्डेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स द्वारा आईसीसीएमआरटी ऑडिटोरियम में आयोजित ‘सत्ता, दहशत और मीडिया’ पर पैनल चर्चा का। जिसमें समाचार चैनल आईबीएन 7 के प्रबंध संपादक आशुतोष ने कहा कि पत्रकारिता गलत दिशा में नहीं जा रही है। वह न तो द्रौपदी है और न चौराहे पर खड़ी है। हम पत्रकारिता को लेकर पहले से ही कोई अवधारणा न बनाएं। इसे किसी खास चश्मे से देखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। पत्रकारिता दिन प्रतिदिन शक्तिशाली और बेहतर होती जा रही है।
आशुतोष ने इसके लिए अन्ना हजारे के कार्यक्रम को मीडिया द्वारा बेहतरीन तरीके से पेश करने का उदाहरण दिया। जिन्हें कुछ समय पहले तक महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव के लोगों के सिवा कोई नहीं जानता था। उन्होंने कहा कि व्यवसायिकता को तव्वजो देने का आरोप झेलने वाले समाचार चैनलों ने इस दौरान अपने व्यवसायिक हित को दरकिनार करते हुए घण्टों अन्ना के कार्यक्रम का सजीव प्रसारण किया। इस दौरान विज्ञापन नहीं चलने से करोड़ों का व्यवसाय प्रभावित हुआ। उन्होंने कहा कि सत्ता अपने मूल में दहशतगर्द है। उसका स्वभाव चीजों को दबाना है। समाज में एक सीमा के बाद सरकार दहशतगर्द न हो, इसके लिए मीडिया की जरूरत है। हमारा काम सरकार का सन्तुलन तोड़ना नहीं उसे आईना दिखाना है। उन्होंने कहा कि सत्ता का चरित्र चाहे कोई भी राज्य हो और कोई भी सरकार को, सब एक जैसा है। इस खेल के अन्दर क्या मीडिया अपनी भूमिका निभाने को तैयार है, ये अहम है।
पैनल चर्चा में कोबरा पोस्ट के अनिरूद्ध बहल ने कहा कि जब हम आम आदमी के लिए पत्रकारिता करते हैं, तो उसमें बेहद सुकून मिलता है। उन्होंने टीवी पत्रकारिता की तारीफ करते हुए कहा कि इसी की वजह से अगर कहीं कोई दरोगा किसी आम आदमी को बेबर्दी से मारता है, दबंगी दिखाता है, तो उसके खिलाफ इन्क्वायरी बैठती है। ये बेहद सकारात्मक है। कालचक्र के सम्पादक विनीत नारायण ने हवालाकाण्ड सामने लाने के बाद अपने उत्पीड़न के समय के अनुभव बताए कि किस तरह उन्हें मजबूर होकर देश के बाहर जाना पड़ा। उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि उस दौरान मीडिया जगत के लोगों ने ही उनका साथ नहीं दिया। श्री नारायण ने कहा कि बड़े बैनर के साथ सीमाएं ज्यादा है। अखबार-चैनल देश का निर्माण करने के लिए नहीं हैं। इनका मूल लक्ष्य अपने संसाधन बढ़ाना है। मुनाफा कमाना है। जितने बड़े अखबार हैं, उनके संवाददाता बेहद गरीब हैं।
श्री नारायण ने जिला स्तर और ग्रामीण स्तर पर पत्रकारों को अपने उत्पीड़न के खिलाफ सामाजिक संगठन, किसान और मजदूर संगठन सहित ऐसी विचारधाराओं को साथ लेकर चलने को कहा। जिससे उनकी आवाज आगे तक पहुंच सके। उन्होंने मीडिया के शीर्ष लोगों से भी अपील की अगर वह ऐसी लड़ाई में खुलकर सामने नहीं आ सकते तो कम से कम पीछे से सहायता की हथेली तो जरूरी लगायें। श्री नारायण ने इस बात पर भी ऐतराज जताया कि इतने बड़े मुल्क में जब भी किसी बात पर चर्चा होती है तो गिने-चुने चन्द मुट्ठी भर लोग ही हमेशा समाचार चैनलों पर नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि ये लोग पूरे देश का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकते हैं।
सीएसडीएस के निदेशक विपुल मुधगल बताया कि राजधानी दिल्ली से निकलने वाले तमाम समाचार पत्रों का जब विश्लेषण किया गया तो पाया गया कि उनमें ग्रामीण क्षेत्रों की खबर महज 02 फीसदी थीं और इस 02 फीसदी में भी सबसे ज्यादा खबरें हादसे, कानून व्यवस्था जैसे विषय पर थी। उन्होंने कहा कि टीवी और अखबारों से आम आदमी गायब है। अखबार वो बेच रहे हैं, जो उसके पाठक चाहते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति का भी मीडियाकरण हो गया है। जो हम देखते हैं वो दूसरे स्तर की वास्तविकता होती है। जो हमें दिखाया जाता है, जरूरी नहीं वहीं पूरा सच हो। उन्होंने इस दौरान रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान एक ही विषय पर विभिन्न समाचार पत्रों की खबरों का भी जिक्र किया, जो अलग-अलग बात दर्शा रहीं थीं।
इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार और कैनविज टाइम्स के प्रधान संपादक प्रभात रंजन दीन ने कहा कि मौजूदा समय में पत्रकारिता की धार खत्म होती जा रही है। युवा छात्रों के सवालों के जवाब भी आने वाले दिनों में हर चीज आन्दोलन के बाद ही मिलने की बात कही। उन्होंने कहा कि भविष्य में दाल के लिए भी आन्दोलन करना होगा। उन्होंने कहा, ‘बिना एक्टिविजम के कोई प्रोफेशनलिज्म नहीं होता।’ वहीं अजय उप्रेती ने युवा पत्रकारों से हर खबर के पीछे तथ्यों के सहीं संकलन पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अगर तथ्य सही होंगे और रिर्पोटर को कभी कोई नुकसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अगर कुछ करने की क्रान्ति करनी हो तो पत्रकारिता से अच्छा कोई पेशा नहीं है। सिर्फ नौकरी करने वालों को यहां नहीं आना चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारों द्वारा सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने की शुरुआत से ही उन पर दबाव बनने का काम शुरू हो जाता है और इसके बाद मुकदमेबाजी से लेकर दूसरे तरीकों से उनका उत्पीड़न किया जाता है। किसी को भी अपनी आलोचना पसन्द नहीं। इसलिए पत्रकार को तथ्यों को साथ लेकर पत्रकारिता करनी चाहिए।
Comments on “पत्रकारिता न तो द्रौपदी है और ना ही चौराहे पर खड़ी है : आशुतोष”
मेरे भाई कहते हे की तुम लोगो की ये विचार विचारधारा वैगरह वैगरह असल में कुछ नहीं होती हे और असल में हम सब लोग गुमा फिरा कर अपने हित की या अपने मिजाज के अनुकूल की ही बाते करते रहते हे क्या ये सच हे ? आशुतोष जी जेसे लोग मेरे भाई की बात को सही साबित करते हे इनके नियमत रूप से छपने वाले लेख बताते हे की बहुत ही साधारण पर्तिभा के बिलकुल सामान्य इंसान हे मगर नयी इलेक्ट्रोनिक मीडिया क्रांती में नियति के कारण बकोल भड़ास ही की 4 – 5 लाख रूपये महिना या शायद ज्यादा ही तनखा पीट रहे हे और नतीजा जो अपना हित वहि पुरे देश का व् समाज का हित विचारधारा के तहत अब ये हर जगह येही कहते हुए देखाई पड़ते हे की “सब बढ़िया चल रह हे बहुत मस्त चल रहा हे हम पूरी निष्ठां से काम कर रहे हे सब O K हे FINE हे हमारे मीडिया में सब बेस्ट चल रहा हे सब हमें APPRICIATE करो ”
आशुतोष जैसा बड़बोला पत्रकार तो आज की पत्रकारिता को जस्टीफाई करेगा ही,भले ही पत्रकारों की एक बड़ी जमात इस बात से इत्तेफाक रखती हो कि पत्रकारिता की धार कुंद पड़ी है और कि इस पेशे में ईमानदार लोगों की कमी है..भाई यशवंत जी 5 या 7 लाख रुपए की मोटी सैलरी उठाने वाले पत्रकारों की भाषा हमेशा आशुतोष जैसी ही होती है।दूर मत जाएं।इन्हीं के ग्रुप के सीनियर पत्रकार राजदीप सरदेसाई का असली चेहरा लोग देख चुके हैं।असल में ये सब सरकार के आगे-पीछे रहने वाले लोग हैं जो गलत को गलत नहीं कहते हैं..ये बिके हुए पत्रकार हैं।आशुतोष जी आप तो मोटी सैलरी लेते हैं।ज़रा उन चैनलों की बात भी तो करें जहां पत्रकारों का शोषण होता है।उनके साथ उन्हीं के कथित सीनियर बदतमीज़ी से पेश आते हैं।जिस आक्रामक शैली में आप एंकरिंग करते हैं क्या कभी इसी आक्रामक अंदाज में आपने पीड़ित पत्रकार भाइयों के हक की आवाज बुलंद की..
ashutosh ji aap mere kuchh prashno ka uttar de dijiye 1- media wale dooshro ki ladai larte hai ,per apni ladai nahi lad pate aisa kyon ?2- kya koi 3000 men noida jaise shahar men parivar lekar rah sakata hai ?3- kya bade bhai ko chhote bhai ke bare men sochana galat hai ,ager nahi to aap lakho kamate hai ,to un 3000 hazar walo ke bare kyon nahi sochate ?