पीआईबी और दूरदर्शन के ये लड़कीबाज अफसर!

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: कृपासागर महिलाओं में विशेष रूचि रखते थे : राम मोहन राव ने दूरदर्शन का जमकर दोहन किया : शोषण करने वाले हरीश अवस्थी, कीर्ति अग्रवाल जैसों में कोई एड्स से मरा तो कोई अन्य खराब हालात में चल बसा : विलफ्रेड लाजर्स हमेशा शराब पिए रहता था : प्रेस इंफारमेशन ब्‍यूरो नहीं प्रेस प्राब्‍लम ब्‍यूरो बन गया है पीआईबी : कमेटी में कई ऐसे पत्रकार हैं जिन्‍हें खुद मान्‍यता नहीं मिली, दूसरे को मान्‍यता दिलवाते हैं : पीआईबी का भट्ठा बिठाने वाले अफसरों की कहानी :

कहने को तो भारत वर्ष 1947 में आजाद हो गया था, परन्‍तु आज भी भारत में वर्ष 1860 के अंग्रेजों के बनाए हुए कानून लागू हैं. हमारे देश की न्‍यायपालिका आज भी अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए ढर्रे पर चल रही है. हमारे देश की कानून की शिक्षा सीआरपीसी एवं आईपीसी दोनों ही अंग्रेजी शासन की देन है. अंग्रेज तो चले गए परन्‍तु उनके जाने के बाद जो सत्‍ता पर काबिज हुए वह काले अंग्रेज उन गोरे अंग्रेजों से ज्‍यादा खतरनाक निकले. प्रजातंत्र में जो मौजूदा सूचना तंत्र है वह अंग्रेजी जमाने से चला आ रहा है. जो उसमें परिवर्तन हुए वह अधिकारियों ने अपनी इच्‍छानुसार अपने हित के लिए किया.

आजादी से पहले सूचना विभाग का स्‍वरूप यह नहीं था. अंग्रेजी शासन के शुरू के दिनों में मुख्‍य समाचार पत्रों में कोलकाता से प्रकाशित स्‍टेट्समैन और बंबई से टाइम्‍स आफ इंडिया, इलाहाबाद से पायनियर और लाहौर से ट्रिब्‍यून मुख्‍य थे. वैसे तो बांग्लाभाषा का अमृत बाजार पत्रिका भी उसी समय का समाचार पत्र था. समाचार विभाग आजादी से पहले गृह मंत्रालय के अधीन था. आजादी से पहले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तीन महीने के लिए आकर एक रिपोर्ट बनाते थे और उसे गृह मंत्रालय को सौंप कर चले जाते थे, फिर जब 1952 में भारत में प्रथम बार चुनाव हुए तो इसे गृह मंत्रालय से हटा लिया गया और सूचना प्रसारण मंत्रालय बना. इस विभाग में रेडियो प्रेस इनफार्मेशन ब्‍यूरो, फिल्‍म प्रभाग, फील्‍ड स्‍वलिसिटी, डीएवीपी, रजिस्‍ट्रार आफ न्‍यूज पेपर (आरएनआई) बनाए गए. पहले दूरदर्शन नहीं था वह बाद में बना.

आजादी के पश्‍चात प्रेस इनफारर्मेशन विभाग में जिन लोगों की भर्ती होती थी उनके लिए देश के किसी समाचार पत्र में 5-7 वर्ष का अनुभव आवश्‍यक था. वह लोग स्‍थाई रूप से नियुक्‍त नहीं किए जाते थे. उस कड़ी में एमएल भारद्वाज जो लाहौर के सिविल मिलिट्री गजट में काम करते थे. प्रताप कपूर, राघवन, डिपेना, एलआर नायर, कुलदीप नैयर, जीजी मीरचंदानी, योजना आयोग के संपादक खुशवंत सिंह, चन्‍द्रन साहब, आजाद जगन्‍नाथ, अशोक जी आदि यह सभी लोग अपने-अपने कामों में दक्षता रखते थे. कुछ लोग तो जूनियर श्रेणी के आते थे, वह कार्यालय की ओर से भी आते थे.

अंग्रेजी शासन में फेडरल पब्लिक सर्विस कमिशन कहलाता था. जिसका मुख्‍य कार्यालय शिमला में होता था. परन्‍तु बाद में इसका नाम यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन हो गया ओर इसका प्रधान कार्यालय दिल्‍ली में हो गया. जब‍ पब्लिक सर्विस कमिशन बन गया तो इनफार्मेशन विभाग में सीधे भरती होने लगी. ठेके की प्रथा बंद कर दी गई. जो लोग पहले लगभग 1950 से काम कर रहे थे, उन्‍हें स्‍थाई रूप से नियुक्‍त कर दिया गया. और आगे के लिए कमिशन यानी पब्लिक सर्विस कमिशन से भरती होने लगी. इस कड़ी में जिन्‍हें स्‍थाई नौकरी में बदल दिया गया था, उन्‍हीं को प्रधान सूचना अधिकारी बना दिया गया. जैसे एलआर नायर, एमएल भारद्वाज, डिपेना, टीवी आरचारी. उसके बाद डाक्‍टर वाजी बने परन्‍तु आपातकाल 1975 में एक आईएएस अधिकारी जिसका नाम एल दयाल था, उसे प्रधान सूचना अधिकारी की कुर्सी पर बैठा दिया गया.

आपातकाल के बाद 1977 में हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स से जीएस भार्गव को लाकर प्रधान सूचना अधिकारी के तौर पर बैठा दिया गया. आपात काल के दौरान सभी न्‍यूज एजेंसियों का एक समूह बनाकर एक नई समाचार एजेंसी बनाई गई थी. उसका संपादक विलफ्रेड लाजर्स था. 1980 में जब जनता पार्टी के शासन के बाद श्रीमती गांधी दोबारा प्रधानमंत्री बनीं, उसी समाचार एजेंसी के संपादक को प्रधान सूचना अधिकारी नियुक्‍त कर दिया गया. आपात काल में क्‍योंकि उसने इंदिरा जी का साथ दिया था इसलिए उनके विश्‍वास का व्‍यक्ति था. परन्‍तु उसकी अपनी पत्‍नी से नहीं बनती थी. वह सदा शराब पिये रहता था.

लाजर्स के जाने के पश्‍चात यूसी तिवारी प्रधान सूचना अधिकारी बनाए गए. लोगों का कहना है कि उन्‍होंने कैबिनेट के कुछ पेपर लीक कर दिए थे. इसलिए 1985 में उनकी जगह राम मोहन राव को प्रधान सूचना अधिकारी नियुक्‍त किया गया. बुद्धि से शातिर था. पीआईओ राम मोहन राव ने पीआईओ बनने के बाद एकीडेशन कमेटी के तीन सदस्‍यों बीएन नायर, विश्‍व बंधु गुप्‍ता और एचके दुआ से स्‍वीकृति लेकर पीआईबी के रिटायर लोगों को भी पत्रकार के रूप में मान्‍यता दिलवाने की संस्‍‍तुति करवा दी थी, तभी से 1985 के बाद पीआईबी के रिटायर लोग भी पत्रकार बनने लगे.

राम मोहन राव अपनी बातचीत से लोगों को प्रभावित कर लेता था. परन्‍तु प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इन्‍हें बाबू जगजीवन राम की मृत्‍यु की अपुष्‍ट खबर प्रसारित करने के कारण बर्खास्‍त कर दिया था. इनकी जगह डीएवीपी से कृपासागर को लाकर बिठा दिया गया, जो महिलाओं में विशेष रूचि रखते थे. राम मोहन राव फिर किसी तरह दोबारा प्रधान सूचना अधिकारी बन गए. उन्‍ह‍ोंने दोबारा आकर जिस प्रकार से दूरदर्शन का दोहन किया वह ऐतिहासिक है. उन्‍होंने अपनी लड़की को एक प्राइवेट न्‍यूज एजेंसी के मालिक प्रेम प्रकाश के यहां पर ट्रेनिंग के लिए भेजा. वहां दूरदर्शन कवरेज पर जाता था. दूरदर्शन से कवरेज न करवाकर प्रेम प्रकाश की एजेंसी से कवरेज करवाने लगे.  इस प्रकार प्रेम प्रकाश और राम मोहन राव बहुत निकट हो गए. बाद में दोनों संबंधी बन गए. बाद में दोनों ने मिल कर एक नई एजेंसी एएनआई बना ली. रिटायरमेंट के बाद अब राम मोहन राव उसके मुखिया हैं और प्रेम प्रकाश ने गोवा में होटल खोल लिया.

राम मोहन राव के पश्‍चात एस. नरेन्‍द्र पीआईओ बने. वे यहां पर डीएवीपी से आए थे. एस नरेंद्र अपनी पत्‍नी के नाम से डीएवीपी के लिए फिल्‍में बना कर डीएवीपी को ही बेचा करते थे. पीआईओ के रूप में एस नरेन्‍द्र पहले अधिकारी थे जो पब्लिक सर्विस कमिशन के द्वारा भरती किए गए थे. इसलिए उनमें अफसरों वाला अहंकार भी था. वह सदा अपने अधीनस्‍थ अधिकारियों को डराते रहते थे. उनकी केवल एक ही अधिकारी शर्मा से बनती थी, जो लाइब्रेरी इंचार्ज थे. शर्मा के पीआईबी से चले जाने पर नरेन्‍द्र को कोई अपने पास नहीं बैठाता था, वह जब भी आते तो लाइब्रेरी में ही बैठते थे.

नरेन्‍द्र के चले जाने पर पीआईबी में जाटों का साम्राज्‍य हो गया था. पहले यहां पर साहब सिंह प्रधान सूचना अधिकारी बने. पीआईबी में आने से पहले आप फौज में मेजर थे. इसलिए अनुशासन प्रिय थे और अपने काम में दक्षता रखते थे. इसके बाद शकुंतला महाबल और तीसरी जाटनी दीपक संधू पीआईओ बनीं. दीपक संधू के जाने के पश्‍चात थोड़े दिन के लिए उमाकांत मिश्रा प्रधान सूचना अधिकारी बने. यह पीआईबी में भारतीय पुलिस सेवा से आए थे. वर्तमान नीलम भाटिया हैं, जो शादी के पश्‍चात नीलम कपूर बन गईं.

पत्र सूचना कार्यालय यानी पीआईबी से ही रेडियो विभाग या दूरदर्शन या डीएवीपी, आरएनआई सभी विभागों में अधिकारी और कर्मचारी जाते हैं. दूरदर्शन में पत्रकार और अधिकारीगण भी पत्र सूचना कार्यालय यानी पीआईबी के द्वारा ही भेजे जाते हैं. जब से दूरदर्शन बना था तो लोगों के लिए यह एक मुख्‍य आकर्षण का केन्‍द्र था. खासकर दूरदर्शन में खबर पढ़ने के लिए यानी समाचार वाचक या प्रोग्रामों में हिस्‍सा लेने वालों का गला और तला ठीक होना चाहिए. पहले इसके लिए या तो अधिकारियों की पत्नियों और बेटियों या मंत्री महोदय की सिफारिश पर बड़े घरानों की बहू-बेटियों को रखा जाता था. उसके लिए उन्‍हें थोड़ी कुर्बानी देनी पड़ती थी. दूरदर्शन के समाचार संपादक और प्रोड्यूसर उनका शोषण करते थे. मैं कितने ही अधिकारियों को जानता हूं, जैसे हरीश अवस्‍थी, कीर्ति अग्रवाल जैसे कितने ही अधिकारी जिन्‍होंने कितनों का शारीरिक शोषण किया और अंत में बीमार होकर मरे. किसी को एड्स हुआ तो कुछ अन्य खराब स्थितियों में मरे.

पिछली घटनाओं को छोड़ो, दूरदर्शन के निवर्तमान डीजी बीएस लाली विदेशी चैनलों को कामनवेल्‍थ गेम्‍स दिखाने के अरबों रुपये के घोटाले में फंसे हैं. दूरदर्शन के लिए अरबों रुपये का सामान आयात किया जाता है. जिसका अधिका‍रीगण कमीशन खा लेते हैं परन्‍तु वह बेकार पड़ा रहता है. दूरदर्शन के लिए प्रोग्राम बनाने के प्रोडयूसरों को बिना पैसा दिए प्रोग्राम बनाने का आर्डर नहीं मिलता. इसी प्रकार समाचार पत्रों के लिए अखबारी कागज आयात करने के लिए जो लाइसेंस मिलता है वह भी घोटालों का केन्‍द्र रहा है, मशीनें आयात करने में भी भारी रकम चुकानी पड़ती थी.

किसी समाचार पत्र-पत्रिका में विज्ञापन उसकी मेरूदंड है. बिना विज्ञापन के समाचार पत्र, पत्रिका नहीं चल सकते. विज्ञापन उस समाचार पत्र, पत्रिका के द्वारा प्रकाशित प्रतियों के आधार पर मिलता था, मिलता है. उसके माध्‍यम से भी अधिकारियों ने करोड़ों डकारें. डीएवीपी से बड़े समाचार पत्र अपनी ही शर्तों पर विज्ञापन की दरें तय कराते हैं, इसलिए अधिकारीगण इन समाचार पत्रों से डरते भी हैं इसलिए दोनों वर्गों में आपसी तालमेल रहता है. उसी कारण से छोटे और मझोले पेपर वंचित रह जाते हैं. अब तो एक नया मीडिया इलेक्‍ट्रानिक मीडिया के आने से विज्ञापन का अधिकतम भाग इलेक्‍ट्रानिक मीडिया की ओर चला जाता है.

अब हम उन अधिकारियों के बारे में चर्चा करते हैं जो सूचना तंत्र में हैसियत रखने वाले या तो सरकार को या समाचार पत्र या पत्रिकाओं को लूटने का कार्य किया. इस सभी कार्यों के लिए समय-समय पर प्रदर्शन-धरने-पुतला दहन तक होता रहा. परन्‍तु मंत्रियों और सचिव स्‍तर के व्‍यक्तियों द्वारा इन्‍हें संरक्षण मिलता रहा क्‍योंकि हिस्‍सा तो उन्‍हें भी मिलता रहा. लूटने वाले अधिकारियों में जो कुछ वर्ष पूर्व ही रिटायर हुए उनमें लोग बहादुर सिंह, एनजी कृष्‍णा, एस नरेन्‍द्र का नाम मुख्‍य रूप से लेते हैं. वहीं एक अधिकारी जो आज भी वहीं पर हैं, उनका भी नाम लेते हैं.

अब हम वर्तमान व्‍यवस्‍था में पत्र सूचना कार्यालय के अधिकारियों की चर्चा करेंगे. यहां पर वर्तमान समय में पीआईओ की जगह डायरेक्‍टर जनरल के पद पर नीलम कपूर मुख्‍य अधिकारी नियुक्‍त हैं, उन्‍होंने जब पत्रकारों को मान्‍यता देने के लिए जिस कमेटी का गठन करवाया, उसमें से उस एसोसिएशन का नाम ही अपने एक नजदीकी से उड़वा दिया. सूचना के अधिकार के बाद जब कागजों की जांच हुई तो यह लोग दोषी पाए गए और फिर उन्‍हें कमेटी में रखा गया. पत्र सूचना कार्यालय की कमेटी में वर्तमान समय में कितने ही ऐसे पत्रकार हैं जिनको खुद को अभी मान्‍यता नहीं मिली, परन्‍तु वह कमेटी के सदस्‍य होकर मान्‍यता दिलवाते हैं. कितने ही कमेटी के सदस्‍य विभिन्‍न प्रांतों से आते हैं. उन्‍हें दिल्‍ली में होटल में ठहरने का खर्चा, टैक्‍सी का खर्चा, हवाई जहाज से आने-जाने का खर्चा दिया जाता है.

कुछ सदस्‍य ऐसे भी हैं जो किसी संगठन से नहीं आते, उन्‍हें मंत्री महोदय या पीआईओ ने स्‍वयं को अपनी सेफ्टी के लिए रखा है. क्‍योंकि अपने मनमाने ढंग से गाइड लाइन में परिवर्तन करने के लिए इन्‍हीं लोगों की मदद ली जाती है. अभी हाल में मान्‍यता देने के लिए एक नया शिगूफा छोड़ा गया था कि जिस पत्रकार का प्रोविडियंट फंड नहीं कटता, उसे मान्‍यता नहीं मिलेगी. जब पत्रकारों ने इसका विरोध किया और कहा कि आप अपनी थानेदारी क्‍यों दिखा रहे हैं. प्रोविडियंट फंड कटा है क्‍यों नहीं कटा यह तो प्रोविडियंट फंड कार्यालय देखेगा, वह अखबार मालिक से पूछेगा क्‍यों नहीं काटा गया. क्‍योंकि समाचार पत्र के मालिक को भी उतना ही पैसा जितना काटा है, उसे जमा करना पड़ेगा. परन्‍तु समाचार पत्र जब पोविडियंट फंड नहीं काटता तो वह जमा ही नहीं कराता. इसकी सजा पत्रकार को क्‍यों दी जाए. कमेटी के सदस्‍यों ने इसके बाद उस प्रोविडियंट फंड कटाना है या नहीं उसे वा‍पस ले लिया.

अब पीआईबी में जो नियुक्तियां होती हैं वह सीधे पब्लिक सर्विस कमिशन के द्वारा होती हैं. इन अधिकारियों का कोई अनुभव होता. वह सीधे अपने आपको ब्‍यूरोक्रेट समझने लगे जब‍कि यह विभाग सरकार और जनता के कोआर्डिनेशन के लिए बनाया गया था. वर्ष 1973 तक प्रोफेशनल अधिकारी थे. जिन्‍होंने पहले लोगों के साथ बैठकर सीखा था. उन्‍हें उसका फायदा भी हुआ. 1983 में नया रिक्रूटमेंट आया. फिर बीच में कोई भर्ती नहीं हुई. यह बीच का गैप दुखदायी बना. 1993 में वह सभी लोग रिटायर कर गए, जो कभी अखबारों के कार्यालयों से आए थे. 1993 से नॉन प्रोफेशनल लोग आने लगे. सीधे बीए, बीएससी, एमए, एमएससी पास किया और सीधी भर्ती हो गई. इनलोगों की अनुभवहीनता के कारण विभिन्‍न मंत्रालयों ने अपने विभाग की पब्लिसिटी के लिए अपना सूचना अधिकारी और अपने पब्लिसिटी का विंग बना लिया. यह मंत्रालय समाचार पत्रों को सीधे ही खबरें देने लगे. पीआईबी में जो कुछ थोड़ा-बहुत बचाखुचा है, खानापूर्ति के लिए विभाग इन्‍हें भेज देते हैं.

इसलिए इन अधिकारियों के कारण पीआईबी का भट्ठा बैठ गया. इन अधिकारियों से पूछिए तो जवाब मिलेगा कि वेबसाइट पर देख लो. प्रेस नोट भी वहीं देख लो. क्‍योंकि यह तो अब ब्‍यूरोक्रेट बन गए. अपने कार्यालयों के सामने तख्तियां टांग दी. मेरे पीए से मिल लो. जैसे आईएएस अधिकारी के कमरे के सामने लिखा होता है. इसलिए प्रेस फैसिलिटी की जगह प्रेस प्रॉब्‍लम विभाग बन गया है.

लेखक विजेंदर त्यागी देश के जाने-माने फोटोजर्नलिस्ट हैं. पिछले चालीस साल से बतौर फोटोजर्नलिस्ट विभिन्न मीडिया संगठनों के लिए कार्यरत रहे. कई वर्षों तक फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट के रूप में काम किया और आजकल ये अपनी कंपनी ब्लैक स्टार के बैनर तले फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हैं. ”The legend and the legacy : Jawaharlal Nehru to Rahul Gandhi” नामक किताब के लेखक भी हैं विजेंदर त्यागी. यूपी के सहारनपुर जिले में पैदा हुए विजेंदर मेरठ विवि से बीए करने के बाद फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हुए. वर्ष 1980 में हुए मुरादाबाद दंगे की एक ऐसी तस्वीर उन्होंने खींची जिसके असली भारत में छपने के बाद पूरे देश में बवाल मच गया. तस्वीर में कुछ सूअर एक मृत मनुष्य के शरीर के हिस्से को खा रहे थे. असली भारत के प्रकाशक व संपादक गिरफ्तार कर लिए गए और खुद विजेंदर त्यागी को कई सप्ताह तक अंडरग्राउंड रहना पड़ा. विजेंदर त्यागी को यह गौरव हासिल है कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से लेकर अभी के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीरें खींची हैं. वे एशिया वीक, इंडिया एब्राड, ट्रिब्यून, पायनियर, डेक्कन हेराल्ड, संडे ब्लिट्ज, करेंट वीकली, अमर उजाला, हिंदू जैसे अखबारों पत्र पत्रिकाओं के लिए काम कर चुके हैं.

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Comments on “पीआईबी और दूरदर्शन के ये लड़कीबाज अफसर!

  • wah kya kahne….. in jaise logon ko he patrakarita ke so called dhurandhar kaha jata hai….. inhe jaise logon ne media me gandagi macha rakhi hai…. is tarah se inki ghatiya harkaton ka bhanda fod karne ka bahut bahut dhanyawad tyagi ji……

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  • राम मोहन राव का मैं भुक्भोगी हूँ. बस इतना ही कहूँगा की अगर आपको बॉस गिरी सीखनी हो तो आप ज़रूर राव साहब से मिल ले. वे बात बात पर ये बताना नहीं भूलते की उन्होंने कहाँ कहाँ और कितने ऊचे ओहदे पर काम किया है. वे अपने साथ काम करने वाले लोगो को अपना नौकर समझते हैं. उनके बारे में किसी को बोलने से कोई फ़ायदा नहीं होता. उन्हें कोई नहीं समझा सकता. लेकिन वो सभी पर अपनी राय या हुकुम ज़रूर लादते हैं. अभी भी जिनका पाला राव साहब से पड़ता होगा वो उनकी कहर को झेल रहे होंगे. मेरी सहनुभूति उनके साथ है.

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  • Vinod Kapoor says:

    Very well written. Should have written more about the goings on in Prasar Bharati, a defunct autonomous organization known only for wrong doings now ! Appreciable. Good Attempt.

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  • dhirendra pratap singh says:

    aadarniy rupesh ji sadar namaskar aap ne achhi jankari di h.lekin aapki jankari me m 1 bat jodana chahunga ki hindusthan samachar news agency 2001 se punah suru ho chuki h aur aaj pure desh me usake lagbhag 40 centers ke sath nepal thailand aur america jaise desho me bhi center h. inhi centero me se 1 uttarakhand ka m state head hu….mahoday aur kuchh isake baare me aap janana chahe to kabhi bhi mere mobile no–09410367071 pr call kar sakte h. khair umda jankari ke liye aapka dhanyvaad.
    dhirendra pratap singh—–dehradun uttrakhand

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  • tyagili ne jo likha hai usse aaj ke patrkaron ki aankhen khul jani chahiye….pichhale dino parbhu chawla ki kahani . batayi thi …tayagiji …………dhanyavad. jankari dete rahiye..

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  • Vijender Tyagi ke lekh me diye gaye facts ko journalism me research karne wale students note karke rakh len aur aane wali peedhi ko apni pustakon me batayen. Tyagi ne jo kuch likha, 100 per cent sach hai. Isme main kuch jodna chahoonga

    1975 me Emergency ke dauran V C Shukla (tab ke I & B minister) ne charon news agencies : PTI, UNI, Hindusthan Samachar aur Samachar Bharati ko merge karwakar Samachar agency chaalu karwaya tha. Wilfred Lazarus piyakkad jo PTI me the, ko Gandhi family se nikattta ke karan, Samachar ka editor banwaya gaya. Samachar bananae ke liye Bharat Sarkar ne ek society register karwayi thi. Yehi Samachar agency deshbhar me akhbaron ko Emergency ke dauran censored news diya karti thi. February 1977 me chunav prachar ke dauran Samachar ne galti se khabar chalwa di ki Vipakshi dal Congress For Democracy ke netaq Jagjivan Ram beemar pad gaye aur unki chunav meeting cancel ho gayi. Ye khabar galat nikali. Jagjivan Babu bahut naaraaaz hue. Unhone apni khundak tab nikaali jab woh Janata Party me satta me aaye. Hua yeh, ki Janata Party ne Samachar ko bhang karne ka faisla kiya. Kuldip Nayar ke netritwa me committee bani jisme C R Irani jaise log the. Nayar committee ne sifarish ki ki bharat me do news agencies banen – Sandesh aur Varta. Sandesh English news agency bane aur Varta Hindi me kaam kare. Lekin CR Irani aur doosre akhbar malikon ne Jagjivan Ram , jo ki Group of Ministers ke adhyaksh the (Jaise ki aajkal Pranab Mukherjee hua karte hain) ki samachar ko bhang kar chaaron purani agencies ko reinstate karo. Wahi Hua. Babu Jagjivan Ram ne apni khundak nikaali. PTI, UNI, Hindustan Samachar aur samachar Bharati phir se chaalu hui. Donon Hindi agenciyan kuch hi saal baad band ho gayi. PTI, UNI chalne lagi. Mirchandani ne UNI ka jamkar dohan kiya. PTI me sarkari directors hua karte the. Pahle Chandran, phir Unnikrishnan aur uske baad M K Razdan PTI ke sarve sarva bane. Sthitii ye hai, ki M K Razdan 65 saal se bhi zyada hone ke baad bhi PTI ke sarve sarva bane hue hain.

    Journalism ke research students in facts ko bhi note kar len. Bhaavi peedhi ki khaatir.

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