: पीसीआई और मेरी यादें – पार्ट चार : प्रेस क्लब में घपले होते रहे. क्लब लुटता रहा. क्लब के लिए 7 नंबर रायसीना रोड पर एक जगह अलाट हुई. पदाधिकारी गण उसे 25 से 30 हज़ार रुपये रोज़ के रेट से किराए पर देने लगे. एक दिन इस कोठी को सरकार ने सील कर दिया. उसमें जो सामान रखा गया था उसका कहीं कोई पता नहीं है.
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वह गर्लफ्रेंड के साथ नाचने लगा तो पत्नी ने चप्पलों की बौछार कर दी
: पीसीआई और मेरी यादें – पार्ट तीन : प्रेस क्लब में एक की हत्या हो गई, हत्यारे छूट गए क्योंकि सबने कहा- हत्या होते मैंने नहीं देखा: विजय पाहुजा प्रेस क्लब से मुर्गा-शराब उठाकर उस अड्डे पर ले जाते थे : दक्षिण एशिया के पत्रकारों का संघ बनाकर विनोद शर्मा दूसरा खेल खेल रहे थे : चेतन चड्ढा नामक पत्रकार शहर के जुआरियों का खास आदमी था :
एक रात क्लब सदस्यों ने हल्ला मचाया- शराब में मिट्टी का तेल मिला है
: पीसीआई और मेरी यादें – पार्ट दो : 1980 में इंदिरा गांधी दुबारा प्रधानमंत्री बनीं. उसी साल अगस्त में मुरादाबाद में दंगा हो गया. मैंने उस दंगे की तस्वीरें खींची थीं. उनमें से एक तस्वीर दुनिया के कई अखबारों में छपी थी. इस तस्वीर में वह घटना थी, जिसमें चार-पांच सूअर ईदगाह के पास एक आदमी की लाश को खाते दिख रहे थे.
इन्हें प्रेस क्लब आफ इंडिया में घुसते हुए डर लगता है
[caption id="attachment_20744" align="alignleft" width="151"]विजेंदर त्यागी[/caption]: पीसीआई और मेरी यादें – पार्ट एक : बात 1978 की है. वीएम सलूजा “पाना इंडिया” नाम की एक फोटो एजेंसी चलाते थे. मैं न्यूज़ की तस्वीरें लाकर उनको देता था. एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि 11:30 बजे प्रेस क्लब आ कर मिल लो, कोई ज़रूरी काम है. मैं निर्धारित समय पर प्रेस क्लब पहुंच गया, लेकिन क्लब के अंदर जाने की हिम्मत नहीं बटोर सका.
सोनिया के सिब्बल यानि ठाकुर का भैंसा
एक पत्रकार सम्मेलन में मैंने जब तत्कालीन पट्रोलियम मंत्री सतीश शर्मा से पूछा, मंत्री जी आजकल पेट्रोल पम्प और गैस की एजेन्सी पर कितना प्रीमियम चल रहा है? क्योंकि अंग्रेजी भाषा में छपने वाले बिजनेस संबंधित समाचार पत्रों में प्रीमियम शब्द का वर्णन होता है। मैंने आग्रह किया कि आप निःसंकोच होकर बताइये, यहां तो सभी अपने लोग हैं।
पीआईबी और दूरदर्शन के ये लड़कीबाज अफसर!
: कृपासागर महिलाओं में विशेष रूचि रखते थे : राम मोहन राव ने दूरदर्शन का जमकर दोहन किया : शोषण करने वाले हरीश अवस्थी, कीर्ति अग्रवाल जैसों में कोई एड्स से मरा तो कोई अन्य खराब हालात में चल बसा : विलफ्रेड लाजर्स हमेशा शराब पिए रहता था : प्रेस इंफारमेशन ब्यूरो नहीं प्रेस प्राब्लम ब्यूरो बन गया है पीआईबी : कमेटी में कई ऐसे पत्रकार हैं जिन्हें खुद मान्यता नहीं मिली, दूसरे को मान्यता दिलवाते हैं : पीआईबी का भट्ठा बिठाने वाले अफसरों की कहानी :
मायावती को राजनीति का भस्मासुर किसने बनाया!
””….मैंने प्रधानमंत्री नरसिंह राव से उस समय सवाल किया था- ”राव साहब आप गांधीवादी नेता हैं और बहुजन समाज पार्टी के लोग गांधी को गाली देते हैं, यह कैसा समझौता है?” इस पर राव साहब ने जवाब दिया- ”आप अच्छी तस्वीर खींचें।” तब मैंने उनसे कहा- ”मैं तस्वीर खींचू या लिखूं, इससे आपका कोई मतलब नहीं होना चाहिए, लेकिन मुझे आपसे सवाल करने का हक है। कृपया करके आप सवाल का जवाब दें।”….””
प्रभु चावला की कहानी, विजेंदर त्यागी की जुबानी
एक दिन ‘सीधी बात’ वाले टेढ़े आदमी ने मुझे टेलीफोन किया. ”त्यागी जी मुझे आपसे एक व्यक्तिगत काम है”. मैंने पूछा- ”चावला जी, मुझसे ऐसा कौन सा काम आ पड़ा. आप तो पत्रिका के संपादक हैं और पत्रकारिता के स्टार यानी सितारे”. उनका जवाब था – ”मजाक छोडि़ये, मेरी आज मदद कीजिए. आपने पत्रकारों के सरकारी मकान जो खाली कराने का अभियान चलाया है उससे सभी संबंधित कागजात ले आएं”.