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पॉवर-पुलिस

पुलिसवालों के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज हो

सवाल सिर्फ ये नहीं है कि एक पत्रकार की मां को थाने में घंटों बैठाए रखा गया। सवाल ये भी नहीं है कि पुलिस ने ऐसा क्यों किया क्योंकि पुलिस तो जबसे पैदा हुई है तबसे ही अपराध सुलझाने, आरोपी को पकड़ने के लिए इस काम का सहारा लेती रही है। अब सवाल ये है कि जब सारे सबूत सामने हैं तो जिन पुलिसवालों ने ये किया उनके खिलाफ क्यों नहीं अपहरण का मुकदमा दर्ज किया जाए।

<p style="text-align: justify;">सवाल सिर्फ ये नहीं है कि एक पत्रकार की मां को थाने में घंटों बैठाए रखा गया। सवाल ये भी नहीं है कि पुलिस ने ऐसा क्यों किया क्योंकि पुलिस तो जबसे पैदा हुई है तबसे ही अपराध सुलझाने, आरोपी को पकड़ने के लिए इस काम का सहारा लेती रही है। अब सवाल ये है कि जब सारे सबूत सामने हैं तो जिन पुलिसवालों ने ये किया उनके खिलाफ क्यों नहीं अपहरण का मुकदमा दर्ज किया जाए।</p> <p>

सवाल सिर्फ ये नहीं है कि एक पत्रकार की मां को थाने में घंटों बैठाए रखा गया। सवाल ये भी नहीं है कि पुलिस ने ऐसा क्यों किया क्योंकि पुलिस तो जबसे पैदा हुई है तबसे ही अपराध सुलझाने, आरोपी को पकड़ने के लिए इस काम का सहारा लेती रही है। अब सवाल ये है कि जब सारे सबूत सामने हैं तो जिन पुलिसवालों ने ये किया उनके खिलाफ क्यों नहीं अपहरण का मुकदमा दर्ज किया जाए।

सवाल बहुत सीधा सा है लेकिन इसका जवाव देने की हिम्मत किसमें है। हमारा साफ तौर पर ये मानना है कि जिन अधिकारियों ने भी यशवंत की मां और परिवार की महिलाओं को जबदस्ती थाने में बैठाया उनके खिलाफ सीधे सीधे तौर पर अपहरण का मामला दर्ज होना चाहिए। ये बात कहते हुए हम ये बता दें कि निश्चित रूप से हम आरोपियों (यशवंत के परिवार का वो सदस्य जिसपर आरोप है) के साथ नहीं है लेकिन ये कहां का इंसाफ है कि अपनी खाल बचाने के लिए पुलिस आरोपी के घर जाए और सामने बैठी असहाय महिलाओं को उठाकर रात भर थाने में बैठाकर रखे।

जिनको मामले की जानकारी नहीं है उनके लिए हम बता दें कि भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत के चचेरे भाई का नाम किसी अपराध के आरोपी के रूप में थाने में दर्ज हुआ। जब पुलिस को आरोपी नहीं मिला तो वो यशवंत के घर गई और उनके परिवार की महिलाओं को उठा लाई। उन्हें रात भर जबरदस्ती थाने में बैठाकर रखा गया। वो दोपहर को तभी घर जा सकीं जब यशवंत के आरोपी चचेरे भाई ने थाने में आकर सरेंडर कर दिया। अब हम वापस मुद्दे पर लौटकर आते हैं कि क्यों नहीं आरोपी पुलिसवालों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज होना चाहिए।

1-पहली बात तो ये कि हिंदुस्तान में हर नागरिक को संविधान में कुछ अधिकार दिए गए हैं जिनकी रक्षा का वादा सरकार करती है। इनमें सबसे अहम है जीने की स्वतंत्रता का अधिकार। जब संविधान हमें ये अधिकार प्रदान करता है तो गाजीपुर पुलिस और उसके एसपी कौन होते हैं जो किसी को भी उसके घर से जबरदस्ती उठवा लें। क्या वो संविधान से भी उपर हो गए हैं।

2-दूसरी बात, जिन महिलाओं को घर से जबरदस्ती उठाकर थाने में बैठाया गया उनमें से कई गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। सवाल ये है कि अगर थाने में उन्हें कुछ हो जाता तो उसका जिम्मेदार कौन होता। क्या गाजीपुर पुलिस के एसपी के पास इस बात का जवाब है।

जाहिर है ऐसे में यशवंत के परिवार की महिलाओं का अपहरण (हम इसे अपहरण इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि कानून की नजर में भी ये अपहरण ही है, कानून किसी को भी बिना नोटिस के पूछताछ की भी इजाजत नहीं देता) करने वाले आरोपी पुलिस अफसरों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज होना चाहिए।

वैसे ऐसा होता तो बहुत पहले से रहा है लेकिन चलिए कम से कम कहीं से आरोपी को सरेंडर करवाने के इस घिनौने पुलिसिया खेल के खिलाफ आवाज उठी। इस सवाल का जवाब जानने के लिए www.policewala.in यूपी, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, बिहार, हिमाचल और उत्तराखंड के हजारों IPS और दूसरे पुलिस अधिकारियों को SMS भेजा गया है। वैसे यहां एक सवाल गाजीपुर के एसपी से भी है, हो सकता है कि शुरुआत में आपको इस प्रकरण की जानकारी न हो लेकिन अब जब आपको पता चल चुका है तो अब आरोपी पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई में देरी क्यों की जा रही है। जाहिर है सवाल आपकी मंशा पर भी उठ रहे हैं।

दिनेश कुमार

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मैनेजिंग एडिटर

www.policewala.in

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0 Comments

  1. राजकुमार शर्मा

    October 28, 2010 at 6:39 am

    यशवंत जी, मां के साथ हुई घटना को जानकर बहुत बुरा लग रहा है, लगे भी क्यों न, यह पढ़कर भी जिस साथी का खून न खौले, खून नहीं वह पानी है… यूपी पुलिस पूरी तरह से बेकाबू हो चुकी है, मां के साथ ही नहीं, इस तरह की घटनाएं पूरे प्रदेश में आम हो चुकी है, जनप्रतिनिघियों का पुलिस, प्रशासन पर किसी तरह का नियंत्रण नहीं रहा है, अंघे-बहरे सिस्टम से न्याय की उम्मीद बेमानी है’…. मुझे नहीं लगता कि पत्रकारों के इस कैम्पेन का तंत्र पर कोई असर हो सकेगा. मुझे लगता है कि इस मामले में कोर्ट की शरण लेनी चाहिए, 1563 में इस मामले में मुकदमा हो सकता है. अब जब लड़ाई शुरू हुई है’ तो उसे हर हाल में अंजाम तक पहुंचना चाहिए.

    राजकुमार शर्मा
    आगरा

  2. sanjay bhati editor Danik Supreme news

    October 28, 2010 at 3:04 pm

    yasvant je aap is ghatna k liye keval police ko doshi man rahe hoge jab ki iss k liye ham sub doshi hai kyoki sabhi patarkar har roj kaval police ki di hui khabar hi likhte hai .patarkar kabhi bhi un loge ke bare me nahi likhte jo ma ki thara avadh rup se thane me rakhe jate hi hame ese sabhi mamlo ki khaber likhni chahiye .akele ma ka hi mamla esha nahi hai har roj thane ishi thera k mamlo se bhare rahte hai .ham sab une nahi dekhte jiske karan police ko hamari kamjoriyo ka pata chal gaya hai ki hame hamare sansthan sapot nahi karte phir bhi ham un se jude hai karan ham un k nam par dhanda kar rahe hai . police is bat ko janti hai . or yadi easa nahi hai to ham ab tak police ki rail bana chuke hote. mujhe lagta hai ki MA ke liye ham 1000 se bhi adhik patarkar sathi nayay pane ke liye eak jut hai is liye mujhe nahi lagata ki yadai ham sab police ka chittha kohelna suru kar de to police hame 5-7 din bhi jhel payegi . patarkarita mari padi hai ya nashe me hai ya punjipatiyo ki mafilo me ghaungru bandh kar thirak rahi hai anytha eak patarkar ke ma ke sath easha nahi hota .yasvant bhai ham apni MA k sath sath sabhi dusre logo ke sath ho rahe policeya atank ka virodh karte hai or karte raheyge mera mana hai ki ye hi ma ko nayay dilane k liye hamar misson ho. ma ke sath huye anyay ko dhan me rakhte huye police ke har gar kanuni bat ka virodh karo taki kuch to sudhar ho . ………………………………………………………………………………………………….Sanjay Bhati Editor ……………………………………………………………… DANIK SUPREME NEWS 9811291332

  3. योगराज शर्मा

    October 28, 2010 at 9:59 pm

    [b]सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों में स्पष्ट गाइड-लाइन दे, जो पालन नहीं कर रहे उन पुलिसवालों को दंडित करे[/b]

    आरोप किसी पर हो, और पुलिस किसी और को ले जाए… वो भी महिला को… किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता… इस तरह का ये पहला मामला नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट चाहे तो इसे उदाहरण मानकर ही स्पष्ट गाइडलाइन दे सकता है… क्या इससे पहले अखबारों, नेट या टीवी पर आने वाली खबरों पर अदालतों ने कभी संज्ञान नहीं लिया… इस बार अदालतों की ये खामोशी क्यों… मायावती या मनमोहन सिंह की सरकार ऐसे मामलों पर चुप बैठ सकती है, आंखें मूंद सकती है… लेकिन अदालत पर तो आज भी देश का भरोसा है…
    यशवंत जी की माता जी के साथ किए पुलिस के दुर्व्यवहार पर सरकारों की चुप्पी बहुत ही शर्मनाक है… पुलिस के उन अधिकारियों की खामोशी भी उन्ही की पोल खोल रही है, जो न्याय दिलाने की कसमें खाकर वर्दी और कुर्सी का रौब झाड़ने में लगे हैं…
    मेरी विनती है माननीय अदालतों से अपना हक दिखाएं… अपनी ताकत का एक बार फिर परिचय दें… अदालत आदेश जारी कर सकती है, उच्च स्तरीय जांच करवा सकती है… लेकिन यूपी पुलिस से नहीं, हम चाहते हैं कि किसी रिटायर्ड जज को जिम्मेदारी सौंपे…
    न्याय पर लोगों का विश्वास बढेगा…

    योगराज शर्मा
    एडिटर इन चीफ
    जर्नलिस्ट टुडे नेटवर्क

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