कुछ दिनों बाद मुझे पटना टाइम टीवी के कार्यालय से संपर्क किया गया और बताया गया की आप पटना आफिस आयें. तत्पश्चात मैं अपने बायोडाटा, फोटो, कार्यानुभव आदि कागजातों को ले पटना ऑफिस पहुंचा. वहां मुझसे आधे घंटे तक चैनल के कुछ कर्मचारियों ने बातें की और बताया कि आपका सेलेक्शन टाइम टीवी में हो चुका है और कुछ दिनों में आपको फ़ोन किया जायेगा. पटना से आने के दो दिनों के बाद मुझे टाइम टीवी से फ़ोन आया और बताया गया कि आप यदि पांच हजार रुपये चैनल को दोगे तभी चैनल में आपको रखा जाएगा और तभी चैनल की तरफ से आपको माइक, चैनल लोगो, प्रेस कार्ड आदि उपलब्ध कराया जाएगा. मुझे लगभग दस दिनों तक पैसे देने के लिए फ़ोन आते रहे, जब यह न दे पाया तो मेरे जगह सहरसा से अनिल कुमार को पांच हजार रुपये ले रख लिया गया.
यहां तक जो मैंने आपको बताया वो तो सिफ ट्रेलर था. अब बताता हूं आज की लालची मीडिया की सच्ची तस्वीर. हुआ यूं कि टाइम टीवी में पैसे न दे पाने और उससे न जुड़ पाने का मुझे कुछ दुःख तो हुआ पर यह ख़ुशी भी थी कि चलो एक नए सिरे से सच्चे चैनल की तलाश करते हैं. इसी दौरान मुझे भड़ास के जरिये ये मालूम चला की देहरादून से चलने वाले वायस आफ नेशन को फिर से चालू किया गया है और वह अब नेशनल चैनल भी बन चुका है. मैंने नेट पर इस चैनल के बारे में कुछ जानकारियां इकट्ठी की तो इससे पता चला कि यह चैनल अपने रिपोर्टर को मेहनताना न देने के लिए मशहूर है. इन सभी सूचनाओं को साइड कर मैंने इसके देहरादून ऑफिस को फ़ोन किया और वहां वीओएन से जुड़ने की अपनी अभिलासा जताई. तत्पश्चात मुझे देहरादून कार्यालय से ही पटना के किसी राजीव जी का नंबर 9934070— मुझे दिया गया.
मैंने जब इस नंबर पर बात की तो मुझे बताया गया कि आप हमारे पूर्णिया कार्यालय के अंतर्गत आते हैं. वहीं संपर्क करे. फिर उन्होंने मुझे वहां का नंबर दिया. मैंने जब वहां बात की तो मुझे बोला गया कि आप पूर्णिया आयें, आपको रख लिया जायेगा. अगले ही दिन मैं सहरसा से छङ-सात घंटों की यात्रा कर पूर्णिया पहुंचा, जब मैंने वहां से पूर्णिया ऑफिस के नंबर पर फ़ोन किया तो पता चला जो मुझसे मिलते यानि जिनसे मैं इतनी दूर से मिलने पहुंचा वह चैनल के काम से सिलीगुड़ी (बंगाल) जा चुके थे और अगले दिन यानि 17 सितंबर को आते. मैंने पूर्णिया से बस पकड़ी और दो घंटे की दुखभरी यात्रा कर अपने मौसी के घर पंहुचा. चूँकि सुबह से मैं यात्रा के दौरान भूखा था इसलिए पहले मैंने जम कर खाना खाया और फिर कल वीओएन में जुड़ने की ख़ुशी को सोच-सोच सो गया.
अगले दिन मैं सुबह ट्रेन यात्रा कर पुनः पुर्णिया पहुंचा. दिन के लगभग बारह बजे थे और शायद अन्दर ही अन्दर मेरे भी बारह बज रहे थे. आधे घंटे बाद मेरी पूर्णिया वीओएन के कर्ता-धर्ता से मुलाकात हुई. उसने मेरे बायोडाटा पर नजर कम डाला. तुरंत पूछ बैठा कि पूरे चुनाव में तीन-चार पेटी दे दोगे न. मैं उनकी यह बात समझ न सका. तब मैंने कहा क्या सर? फिर उन्होंने दुबारा कहा कि पूरे चुनाव में चैनल को तीन चार लाख रुपये दोगे तो चुनाव में रखेंगे नहीं तो नहीं. यह सुनते ही मेरे होश उड़ गए. साथ-साथ पन्द्रह हजार महीना तो अलग से विज्ञापन देना ही होगा. मैं एक-दो दिनों में सोच कर कहने को कह वहां से भाग आया. उसके बाद एक दिनों के अंतराल पर ही वहां से पैसे के लिए फ़ोन आने लगा और आज-कल करता रहा. आखिरकार मैंने फ़ोन उठाना तक बंद कर दिया. क्या करूं, मुझे समझ नहीं आता. आप क्या सोचते हैं, कृपया मुझे बतायें, आपका सदा आभारी रहूंगा.
लेखक आयुष कुमार बिहार के युवा पत्रकार हैं.
Comments on “पूरे चुनाव में तीन-चार पेटी दे दोगे न”
आयुष जी पहले तो आपकी होसियारी के लिए आपको बधाई. आपके साथ घटी घटना तेज़ी से उभरते क्षेत्रीय चैनलओ खाशकर चुनावी चैनलओ से जुड़ने की तम्मना रखने वालो हर युवाओ से अलग नहीं है. फर्क इतना है की आपने इस बात को सामने लेन की हिम्मत की वरना कई ऐसे है जो इन शर्तों पर काम भी कर रहे है और करने को मजबूर भी. अब जब तक सुचना एवं प्रसारण मंत्रालय इस पर कोई कठोर कार्यवाई नहीं करता है तब तक इंसाफ की उम्मीद करना ही बेमानी है.
वाह आयुष अब जाना सच्चाई को। चलो कोई बात नहीं। बस लगे रहो मुन्ना भाई की तर्ज पर जहां चाह वहां राह है। कोई न कोई तो मिलेगा आपको सही रास्ता दिखाने वाला। मुझे अटल जी एक कविता याद आ रही है –
स्वाभिमान सम्मान बड़ा है बौना है सिंहासन कोई बता दे मैने कब किससे मांगा है सिंहासन
hum ye sochte hai aayush ki tum bebakoof ho jo in ghatiya chanelao ke liy itni bag dod ki , tumahare sath ye to hona hi tha
Tab samajh aaya idhar-udhar bhatakne ka anjam kya hota hai.kuch din to kahin sthir raho tabhi kahin safalata milegi.Yeh duniya bahut “GOLMAAL” hai samjhe? Agar nahi to in channelo se “bach ke rehna re baba”.Ye to “Anjam” hona hi tha Indianonlinenews chhorane ka.
आयुष जी ..आपने जो कार्य किया वो काबिलेतारीफ हैं.आज के जमाने मैं जहाँ लोग पैसो के बल नौकरी पाने के उत्सुक होते हैं वही आप जसी इमानदार इंसान भी हैं जो इन गलत चीजो को सामने लाते हैं..
मैं पटना मई न ही रहता हु और जनता हु की कौन कैसे हैं..आपको ‘नीमा कुमारी’ नाम की एक लड़की ने भी कमेन्ट दिया हैं ,शायद उन्हें मालूम नहीं की आप शुरू से अब तक tv100 से ही जुड़े रहे..और आप उन में हो जो पैसो आदि के बल पर नौकरी लेना पसंद नहीं करते.और शायद नीमा जी की तरह भी नहीं हो..जो ”नौकरी के लिए साला कुछ भी करेगा” को मान अपने जीवन में नौकरी प्राप्त करती हैं..आप जीवन में आगे बढ़ो..शुभ आरम्भ [b][/b]
जी धन्यवाद आयुष जी, आप तो कई कला मे निपुण हैं। जब कोई न मिला तो खुद रूपेश के नाम से कॉमेन्ट कर दिया, भाई आप कैसे लिखते हैं यह पता चल नहीं पाता है। आप आधा अशुद्व कॉमेन्ट लिखते हैं। मैं भड़ास फॉर मीडिया रोज पढती हूं मैने आपका एक बार और कॉमेन्ट देखा था। मुझे विशेष याद नहीं आ रहा है लेकिन इतना याद है कि एक हीं आईपी आईडी से आपने कई नामों से कॉमेन्ट किया था। जिसे यशवन्त जी ने फ्लैश कर दिया था। कम से कम पहले लिखना तो सीख जाइए। तब रिपोर्टर बनने की बात करेंगे। यदि आप टीवी 100 में हैं तो फिर टाइम टीवी और वॉयस ऑफ नेशन मे जाने की क्या जरूरत आ पड़ी? ”नौकरी के लिए साला कुछ भी करेगा” मैं नहीं आप कर रहे हैं जिसका उदाहरण आप पेश कर चुके हैं, कि आपसे दो चैनल वाले पैसा मांगा है। मैं तीन साल से एक हीं जगह काम कर रही हूं और खुश हूं।
नीमा
आयुष आप एक युवा पत्रकार हैं……..आपको अभी बहूत कुछ सिखने की जरुरत है….. आपने जो कहानी लिखी है वो नई नहीं है……..फिर भी आपने इस तरह नौकरी पाने के लिए इतना कष्ट सहा ये काबिलेतारीफ है………अब बात फ़तेह की………मै नीमा की बात से सहमत हूँ……सबसे पहले ये समझ में नहीं आ रहा की एक पत्रकार जो नौकरी कर रहा है वो ये सब जानते हुए कि वो जहाँ जा रहा है उस जगह उसके साथ क्या होने वाला है फिर भी वो जाता है……वो एक बार धोखा नहीं खाता बल्कि दुबारा भी धोखा खाने के लिए वही काम करता है……………इस पुरे घटना क्रम में अगर गौर किया जाये तो आयुष का स्वार्थ साफ़-साफ़ झलक रहा है…….
neema ji,mai bhi lagbhag do saal se tv100 se juda hu .main aaj bhi mehnat kar kaam mangta hu aur usi ke bal aage badhunga aur aap kis
“network” par kaam mangti aur karti hain wo shayad mujhe bhli-bhati malum hain.aapne ye jang shuru ki hain aur iska jeet ka swad main chkhunga..aapka ………
जंग में जीत का स्वाद वही चखता है, जो रणभूमि में पूरे जोश खरोश के साथ आता है। जिसे अपने आप पर भरोसा होता है, जो कर्म को पूजा मानता हो ! वह कभी नहीं जीतता जो सिर्फ बात बनाता हो, अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो, काम से ज्यादा नाम की इच्छा रखता हो। यदि आप सचमुच दो साल से पत्रकारिता करते आ रहे हैं तो एक छोटा सा सवाल का जबाब दे दीजिए इलेक्ट्रानिक मीडिया का जनक किसे कहा गया है? दूसरी बात सहरसा का प्रथम जिलाधिकारी कौन थे?
में ये कमेन्ट नीमा जी के लिए लिख रहा हूँ, हालाँकि में ये लिखना नहीं चाहता था पर रहा नहीं गया, नीमा जी आप कोई बड़ी तीसमारखा पत्रकार है क्या, उसने सही बात लिखी है और आप जिलाधिकारी का नाम पूछ रही है, आपको शर्म नहीं आती ऐसी बकवास लिखते हुए, में भी १७ साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ और आपसे तो काफी अनुभवी हूँ, मुझसे भी मेरे संस्थान ने कभी पैसे नहीं मांगे इसका मतलब ये हुआ की बाकि सभी इमानदार हो गए, आप टाइम टीवी की जन्मकुंडली जानती है क्या, लिखने से पहले अपना दिमाग लगाओ और स्तर की ही बात करो, भड़ास मीडिया के ये मतलब नहीं की जो मन में आओ लिख दो.