: CNEB और NEWZPOLL का एक्जिट पोल सर्वे : बिहार विधानसभा चुनाव के एक्जिट पोल से ये पता चलता है कि बिहार में जेडीयू और बीजेपी फिर से सरकार बनाने में सफल रहेंगे. सीएनईबी (नेशनल न्यूज एंड इनटरटेनमेंट चैनल) ने न्यूजपोल के साथ मिलकर सर्वे किया…जिसका उद्देश्य है कि चुनावों के बाद ये साफ हो सके कि राज्य में किस दल या गठबंधन की सरकार बनेगी।
एक्जिट पोल में दलीय स्थिति इस तरह की रही-
जेडीयू- 79-85,आरजेडी- 60-65,बीजेपी – 45-50,
कांग्रेस-20-25,एलजेपी-09-14,बीएसपी-04-08, अन्य-08-13
चुनावों में पार्टियों को निम्नलिखित फीसदी वोट मिले
जेडीयू- 24.50%, बीजेपी- 12.50%, आरजेडी-22.05%, एलजेपी- 09.05%, कांग्रेस- 11.20%, अन्य- 18.00%
एक्जिट पोल एक सर्वे पर आधारित है। बिहार के सभी 243 विधानसभा सीटों के लिए हमने ये सर्वे किया और इसके लिए मल्टी स्टेज स्ट्रेटिफाइड रैंडम सैंपलिंग टेक्निक का इस्तेमाल किया गया। हमने सबसे पहले 243 विधानसभा क्षेत्रों के 972 मतदान केंद्रों पर सर्वे किया। और 12150 मतदाताओं की राय जानने की कोशिश की।
प्रत्येक विधनासभा से हमने चार मतदान केंद्रों को चुना और फिर बाकी बचे मतदान केंद्रों की एक सूची बनाई गई। फिर किसी एक विधानसभा के सभी मतदान केंद्रों को हमारे द्वारा चिन्हित किए गए चार मतदान केंद्रों से विभाजित कर किया गया। और इसी प्रकार 243 विधानसभा सीटों के लिए यही प्रक्रिया अपनाई गई। प्रेस विज्ञप्ति
Comments on “फिर बनेगी जेडीयू-बीजेपी की सरकार!”
मित्र पहले तो अपने बोलने के सलीके में शालिनता लाओं फिर एग्जिट पोल और विकास की बात करना… तुम चाहे जो कोई भी हो तुम्हारी बातों से किसी खास पार्टी के पक्षधर होने की बू आती है…नीतीश के विकास को नकाराने वाले तुम पहले शख्स हो ऐसा भी नहीं है…सवाले ये है कि तुमने खुद बिहार के कितने जिलों, गली- मुहल्लों का दौरा किया है… अब बात एग्जिज पोल और विकास… तो ये बता दें आपको कोई भी न्यूज चैनल या सर्वे एजेंसी हर गली मुहल्ले तक जाकर सर्वे नहीं करती…सर्वे सेंपल के आधार पर होता है… किस दुनिया में जी रहे हो मेरे मित्र बिहार में जाति धर्म और पैसे के आधार पर वोट बीते जमाने की बात हो गई है…किसी एक विधानसभी सीट…या गांव को आधार नहीं माना जाता है…अब आपको एक बात और साफ कर दूं ना तो मैं नीतीश का हिमायती हूं ना लालू का दुश्मन…लेकिन सीधी बात ये है कि नीतीश के प्रशासन में लोगों ने जो सुरक्षा का भाव महसूस किया है…उसे कतई नकारा नहीं जा सकता…अब बात माओवादी क्षेत्रों की तो मेरे मित्र बिहार से ज्यादा बदतरीन हालात में छत्तीसगढ़ के आदीवासी है…लेकिन उनके इन हालात के लिए सरकार से ज्यादा जिम्मेदार खुद को उनाक हिमायती बताने वाले माओवादी ही हैं…मैं दिल्ली में बैठ कर अरुंधती राय की रिपोर्ट पढ़ कर मन नहीं बनाने वालों में हो…मैंने 2 साल छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में गुजारी…माओवादी क्षेत्रों का दौरा किया…कोंडागांव…बीजापुर…नारायणपुर..जगदलपुर में जाकर उनके हालात को करीब से जानने की कोशिश की है…खैर विषय से भटकाव के लिए क्षमा…बात चुनावों की हो रही थी…इसलिए आप अपना ज्ञान बढ़ाएं कोई न्यूज चैनल किसी एग्जिट पोल रिपोर्ट में किसी पार्टी के सरकार बनने के दावें करता है तो जनता के रिपोर्ट के आधार पर…इससे चैनल अपने तर्क नहीं देता ना किसी की हिमायत करता है
२४३ क्षेत्र के मात्र ९७२ बुथों के आधार पर सर्वे कर रहे हो। पागल हो क्या। बिहार में जाति धर्म और पैसे पर मतदान होता है। एक जाति बाहुल्य वाले २०-३० बुथो पर जाओगे तो कुछ और राय और दुसरी जाति वाले के बुथ पर कुछ और। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की कोई किरण नही है। नीचे लिंक है। नक्सल क्षेत्रों का वहां विडियो भी लोड है। २० नवंबर के चुनाव का। टाईम्स नाउ की जागोरी धर भी अपनी टीम के साथ घुम रही थी । उससे भी पुछ लो बता देगी कैसा विकास है।
http://www.youtube.com/my_videos?feature=mhum
sahi baat..
शकील अनवर जी मैं राजनिति नही करता और इस बार तो मैने पहली बार सभी उम्मीदवार को ईंकार किया। ४९ ओ का प्रयोग किया। जिसके तहत अगर आप कीसी को वोट नही देना चाहते , तब आप १७ ए में नाम दर्ज होने के बाद पीठासीन पदाधिकारी को कह सकते हैं की आपको मतदान नही करना है। और आपकी बात को १७ ए के अभियुक्ति वाले कालम में दर्ज किया जायेगा । मेरी बहुत दिनों से मांग रही है की वोट मशीन पर यानी ई वी एम पर एक बटन एसा हो जिसका प्रयोग वैसे मतदाता करें जो सभी उउम्मीदवारों को नकारना चाहते है। और अगर नकारे जाने वाले वोट की संख्या जितने वाले के वौट से ज्यादा हो तब उस क्षेत्र का aतदान रद्द करते हुये खडे सभी प्रत्याशियों को १० साल तक चुनाव लडने से रोका जाय । रही मतदान क्षेत्रों में घुमने की बात तो कम से कम १००० से ज्यादा केन्द्रों पर तो घुमा हीं हूं और इनमें वह क्षेत्र भी शामिल हैं जहां तथाकथित सर्वे करने वाले चैनलो की ओ बी भान नही गई। वैसे तो मै कीसी क्षेत्र विशेष की बात कम हीं करता हुं, लेकिन आप गया के ईमामगंज बाराचट्टी , गुरुआ, टिकारी, फ़तेहपुर नया बोधगया, शेरघाटी वगैरह घुम लें पता चल जायेगा विकास । रह गई जाति, धर्म और पैसे की तो आप को वास्तविकता का कोई ग्यान नही है। हर विधानसभा क्षेत्र में मत का आधार यही थें।
न्यूज चैनलो ने तो तर्क के बजाय सरकार हीं बाना दी। रह गई नक्सल क्षेत्रों की तो उनको भी पैसे दे कर खरीदा गया । बिहार के किसी भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नक्सली हिंसा से कोई मौत नही हुई बल्कि बमों को निष्क्रिय करते समय बम फ़टे और सबसे मजेदार तथ्य यह था जहां – जहां बम था उस जगह का पता पुलिस को था और बम को निष्क्रिय करने के काम में सभी लोग लग गयें। यानी फ़र्जी मतदान के लिये पुरी सुविधा उपलब्ध थी । विरान पडे मतदान केन्द्रों पर भी १०-११ बजे हीं ३० प्रतिशत मतदान हो चुका था। मेरी बात तो छोडिये प्रकाश झा ने भी आपके सर्वे की आलोचना की है।