जिस टीआरपी को लेकर टीवी चैनल अपने कार्यक्रम और कंटेंट की ऐसी की तैसी करते हैं. उस टीआरपी मापन प्रणाली में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय फेरबदल की योजना बना रहा है. फिलहाल जो सिस्टम हैं उसमें मात्र 8000 घरों में लगे बाक्सों से ही टेलीविजन रेटिंग पॉइंट यानी टीआरपी तय कर दी जाती है. अब मंत्रालय इसकी संख्या 30000 तक बढ़ा सकता है.
सूत्रों के अनुसार यह सिफारिश टीआरपी की समीक्षा के लिए बनी समिति ने सरकार से की है. समिति ने देश में टीआरपी निकालने वाली दो कंपनियों के छोटी सेंपल साइज के इस्तेमाल को गंभीरता से लेते हुए टीआरपी मापन में सेंपल साइज बढ़ाने की सिफारिश की है. इतना ही नहीं अब तक सिर्फ शहरी इलाके ही टीआरपी में शामिल होते थे, समिति ने अब ग्रामीण इलाकों को भी शामिल करने की सिफारिश की है. अगर समिति की सिफारिशों को मान लिया जाता है तो चैनलों की रेटिंग मापने का सिस्टम पहले से ज्यादा पारदर्शी और भरोसेमंद हो सकेगा.
टीआरपी वह तरीका है जिससे टीवी चैनल और उनके कार्यक्रमों की व्यूवरशिप मापी जाती है. टीआरपी केवल लोकप्रियता मापने के लिहाज से ही अहम नहीं है बल्कि इसलिए भी अहम है कि इसी के आधार पर चैनलों का बाजार तय होता है यानी उनको विज्ञापन मिलता है. इसी के चलते टीआरपी को लेकर अक्सर तमाम चैनलों के बीच मारकाट मची रहती है. फिलहाल टीआरपी सिस्टम के तहत 32 राज्यों के 165 शहरों के 8,000 परिवारों में लगे बाक्सों के आधार पर ही चैनलों की टीआरपी तय होती है. जो किसी भी स्थिति में पूरे देश के लोगों की पसंद नहीं माना जा सकता. बावजूद इसके टीवी में विज्ञापनों का बाजार इसी आधी अधूरी टीआरपी से अभी तय होता है.
सरकार ने टीआरपी की समीक्षा के लिए मई 2010 में एक समिति बनाई थी, जिसने अपनी रिपोर्ट सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी को सौंप दी. सूत्रों की माने तो समिति ने टीआरपी सिस्टम में भारी खामियां बताई हैं. समिति का मानना है कि मौजूद सिस्टम न सिर्फ कुछ परिवारों के सैंपल सर्वे पर सीमित हैं बल्कि इनका दायरा भी काफी छोटा है. इसी कारण टीआरपी को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं.
समिति ने अपनी सिफारिश में उत्तर पूर्व और जम्मू कश्मीर को भी इसमें शामिल करने की सिफारिश की है. सैंपल टीवी सेटो की संख्या पहले चरण में 15000 तक तथा अगले कुछ सालों में इसे बढ़ाकर 30000 करने का सुझाव दिया गया है. फिक्की के महासचिव अमित मित्रा की अध्यक्षता वाली इस कमेटी ने कहा है इससे ग्रामीण इलाकों को भी जोड़ा जाए, इससे टीआरपी में पारदर्शिता आएगी.
Comments on “बदलेगा टीआरपी का फंडा”
we have to increase the no. of sets installed in the houses. but we can take it as a good initiative,which further needs to strenghten
टीआरपी मुद्दे पर समिति ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री को रिपोर्ट सौंपी टीआरपी आकलन की समीक्षा करने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा गठित समिति ने आज सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती अम्बिका सोनी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। समीक्षा रिपोर्ट फिक्की के महासचिव डॉ. अमित मित्रा ने प्रस्तुत की। इस अवसर पर सुश्री नीरजा चौधरी और श्री राजीव मेहरोत्रा उनके साथ थे।
टेलीविजन रेटिंग प्वाईंट्स (टीआरपी) के बारे में सरकार को शिकायतें प्राप्त हुई थीं कि उसमें कई प्रकार की खामियां हैं, जिसके कारण सरकार ने उसका आकलन करने का निर्णय किया था। टीआरपी का टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों पर खासा प्रभाव होता है। इसलिए जरूरत इस बात की होती है कि इस प्रणाली में जवाबदेही, पारदर्शिता और वस्तुनिष्ठता हो, क्योंकि गलत और गुमराह करने वाली रेटिंग से ब्रॉडकास्टरों और विज्ञापन दाताओं के अलावा दर्शकों का भी नुकसान होता है।
रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के अवसर पर श्रीमती सोनी ने कहा कि इस रिपोर्ट से देश की टीआरपी प्रणाली की समीक्षा करने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को दिशा मिलेगी। उन्होंने कहा कि समिति ने टीआरपी की पूरी कार्यप्रणाली की समीक्षा की है और मंत्रालय समिति की सिफारिशों पर विचार करेगा। समिति के अध्यक्ष डॉ. अमित मित्रा ने कहा कि समिति को जो अधिकार प्रदान किए गए थे, उसके आधार पर समिति ने प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए उचित उपाय सुझाए हैं।
याद रहे कि टीआरपी कार्यप्रणाली भारत में निजी वर्ग करता है, इसलिए सरकार टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की विषयवस्तुओं से संबंधित टीआरपी के महत्व और जिम्मेदारियों को समझती है। मंत्रालय ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण से टीआरपी संबंधी सिफारिशों के लिए आग्रह किया था। उसके बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फिक्की के महासचिव डॉ. अमित मित्रा की अध्यक्षता में इसी मुद्दे पर पांच मई, 2010 को एक स्वतंत्र समिति का गठन किया था।