भोगवादी जीवन से उबे आदमी की आवारगी (भाग पांच)

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यह सही  है कि कई रचनात्मक लोग जीवन में टिकाऊ रिश्ते नहीं बना पाते। और कुछ तो एकदम अकेले रहते हैं। यह भी सच है कि कुछ मामलों में किसी बड़े मानसिक दुख को झेलने  के बाद किसी व्यक्ति के अंदर रचनात्मकता फूट पड़े।  लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह किसी मानसिक बिमारी के कारण है। किसी से व्यवहार न  रखने वाले बच्चे को अगर  वैसे ही विकसित होने दिया जाय तो वह अपने जीवन में किसी नए अर्थ की खोज को अपनी सबसे बड़ी जरूरत मानता है, जो किसी रिश्ते पर निर्भर नहीं करता। (एंथनी स्टोर, सोलिट्यूड: ए रिटर्न टू सेल्फ किताब से उद्धृत)

 

बड़ा सा ग्रीन एलीवेटर ‘जॉन डीरे 8020’, तिरछे पड़ते शाम की रौशनी में साउथ डाकोटा के आधे कटे खेत में अपने पहिए पर चुपचाप खड़ा था। उस मशीन के मुंह से वायन वेस्टरबर्ग का जूता बाहर झांक रहा था जो ऐसा लग रहा था जैसे कोई विशाल मशीनी सांप अपना भोजन धीरे-धीरे निगल रहा हो। “मुझे कमबख्त टूल दो, दोगे क्या?” मशीन के अंदर से गुस्सा भरे आवाज में वह बोल रहा था। “या तुम सब अपने जेब में हाथ डाले, बिना काम के ही व्यस्त हो।“ कुछ दिनों के अंदर ही मशीन तीसरी बार खराब हुआ था और वेस्टरबर्ग बहुत कोशिश कर रहा था कि रात गिरने से पहले वह उसे ठीक कर ले। एक घंटे बाद जब वह बाहर निकला तो वह ग्रीज और अनाज के छिलके में सना हुआ था। मशीन ठीक हो चुका था।

“गुस्से में बोलने के लिए माफी चाहता हूं।“ वेस्टरबर्ग ने माफी मांगते हुए कहा। “हम सब दिन के 18 घंटे काम करते हैं। मैं थोड़ा चिड़चिड़ा होने लगा हूं। वैसे भी इस सीजन में हमें आने में थोड़ी देर हो गई और हमारे पास आदमियों की भी कमी है। हम एलेक्स के वापस आने का इंतजार कर रहे थे ताकि वो हमारे साथ काम करे।“

अलास्का में मैकेंडलेस की लाश को मिले पचास दिन बीत चुके थे। सात महीने पहले, मार्च की एक सर्द दोपहरी को मैकेंडलेस कार्थेज पहुंचा और वह काम करने को तैयार था। एलेक्स ने वेस्टरबर्ग को बताया कि वह 15 अप्रील तक उसके पास काम करेगा ताकि कुछ पैसे जमा हो जाय। एलेक्स को अलास्का जाने के लिए कुछ गर्म कपड़ों के साथ अन्य सामान की जरूरत थी। कार्थेज के उस चार सप्ताह के दौरान मैकेंडलेस ने काफी मेहनत से काम किया। गंदगी के बीच लगातार ऐसे-ऐसे काम किए जिसे कोई नहीं करना चाहता था। गंदे स्टोरहाउस को साफ करना, कीटाणुनाशक का छिड़काव, पेंट करने के साथ-साथ और भी काम उसने किए। मैकेंडलेस को थोड़ा और बेहतर काम देने के लिए वेस्टरबर्ग ने उसे फ्रांट इंड लोडर(खेती में काम आनेवाला एक विशेष ट्रैक्टर) चलाना सिखाया। वेस्टरबर्ग ने बताया, “एलेक्स मशीनों के बीच नहीं रहा था, इसलिए उसका क्लच और लीवरों के बीच उलझ कर काम करना काफी हास्यास्पद सा लगता था। वह निश्चित तौर पर मशीनी दिमाग का नहीं था।“

वेस्टरबर्ग  ने कहा, “ऐसा नहीं था कि वह किसी और दुनिया का था। लेकिन  एलेक्स के सोचने में कहीं न कहीं कुछ कमी थी। मुझे याद है कि एक बार मैं उसके किचन में गया था तो वहां बहुत तेज दुर्गंध था।  मैंने माईक्रोवेव ओवेन खोलकर  देखा तो उसके सतह पर खराब हो चुके तेल का परत जमा  था। एलेक्स उसी ओवेन में  खाना बनाता था और उसे कभी  नहीं लगा कि उस तेल को धूप  लगाकर सुखा देना चाहिए। ऐसा  नहीं था कि वह आलसी था। एलेक्स हमेंशा चीजों को साफ और व्यवस्थित रखता था। फिर भी उसने उस सड़े हुए तेल पर ध्यान नहीं दिया था।“

जब मैकेंडलेस बसंत में कार्थेज पहुंचा था तो वेस्टरबर्ग ने उसे अपनी गर्लफ्रेंड गेली बोराह से मिलवाया था, जो छोटे कद की दर्द भरी आंखों और लंबे बालों वाली नाजुक सी औरत थी। वह 35 साल की विडो, दो बच्चों की मां थी। जैसे ही वह मैकेंडलेस से मिली, उससे काफी घुल-मिल गई। बोराह ने मैकेंडलेस के बारे में बताया, “वह पहली नजर में शर्मीला सा था। वह कुछ ऐसे रहता था जैसे उसे लोगों के बीच रहने में परेशानी होती थी। मैंने देखा था कि वह हमेंशा अपने साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहता था। हम एलेक्स को रोज रात खाने पे अपने घर बुलाते थे। वह बहुत खाता था। कभी अपने प्लेट में खाना नहीं छोड़ता था। वह खाना भी अच्छा बना लेता था। वह चावल बहुत खाता था। कहा करता था कि वह 25 पौंड चावल के सहारे पूरे महीने खा सकता है। एलेक्स जब मुझसे मिलता था तो बहुत सारी बातें करता था। गंभीर बातें। कुछ चीजें उसे अंदर ही अंदर खाती रहती थी। वह अपने परिवार से दूर रहता था। उसने मुझे सिर्फ अपनी बहन के बारे में बताया, जिससे उसको काफी लगाव था।”

वेस्टरबर्ग  अपनी तरफ से उसके परिवार की समस्या में कोई रुचि नहीं लेता था। उसने कहा, “अगर एलेक्स यहां रहता तो मैं उसे कहता कि वह क्यों अपने मां-बाप से बात नहीं करता, क्यों उन्हें बेकार समझता है। मेरे पास तो एक ऐसा लड़का भी काम करता था जिसके मां-बाप थे ही नहीं, फिर भी वह मां-बाप के बारे में कभी बुरा नहीं बोलता था। जितना एलेक्स ने नहीं देखा होगा उससे कहीं ज्यादा तो मुझे मां-बाप ने झेलाया था। मुझे लगता है कि कुछ ऐसी बात उसके औऱ उसके बाप के बीच में हो गई थी, जो उसके दिमाग में बैठ गया था और वह उससे मुक्त नहीं हो पा रहा था।“

वेस्टरबर्ग  ने क्रिस और उसके पिता वाल्ट  के रिश्ते के बारे में जो भी कहा था, वह एक व्यावहारिक दिमाग का सटीक बयान था।  दोनों बाप-बेटे जिद्दी थे।  वाल्ट का बच्चों को नियंत्रित  करने के लिए किया गया अतिशय  व्यवहार और मैकेंडलेस की स्वच्छंद प्रवृति के बीच कभी सामंजस्य हो ही नहीं सकता था। वाल्ट के अनुसार काम करते हुए क्रिस अपने स्कूल और कॉलेज में बेहतरीन अंकों से पास हुआ था लेकिन क्रिस का गुस्सा अंदर ही अंदर बढ रहा था। उसे मां-बाप के सोच में हिपोक्रेसी दिखी और शर्तों पर दिए गए प्यार ने उसको आतंकित किया। उसने गहराई से सोचने पर पाया कि उसके पिता में नैतिक खामियां थी। क्रिस विद्रोही हो गया। गायब होने से पहले उसने अपने मां-बाप के व्यवहार के बारे में शिकायत करते हुए कैरीन से कहा, “ उनका व्यवहार अतार्किक, दमनकारी, असम्मानजनक और अपमानित करने वाला है जो अब मेरे सहन करने की सीमा को पार कर चुका है। वे मेरी भावनाओं को नहीं समझते हैं इसलिए ग्रेजुएशन के कुछ महीने बाद तक मैं उन्हें इस मुगालते में रखना चाहता हूं कि उनकी सोच ही ठीक है और हमारे रिश्ते स्थिर हैं। जब सही समय आएगा तो मैं अचानक उन्हें अपने जीवन से निकाल फेंकूंगा। मैं उनको बेटे के रुप में तलाक दे दूंगा और जब तक जिंदा रहूंगा, इन मूर्खों से बात नहीं करुंगा। एक बार जाऊंगा तो फिर कभी लौटकर नहीं आउंगा।“

वेस्टरबर्ग  ने ये महसूस किया था कि एलेक्स का अपने मां-बाप के साथ और उसके साथ व्यवहार, दोनों  में काफी विरोधाभाष था।  यहां पर वह मिलनसार था और एक साथ कई लोगों को खुश  रखता था। जब वह साउथ डाकोटा लौटकर आया तो चिट्ठियां  उसका इंतजार कर रही थी।  वे उनलोगों की चिट्ठियां  थीं जो उनसे आवारगी की राह  पर मिले थे। वेस्टरबर्ग याद  करते हुए कहते हैं, “उनमें से एक चिट्ठी उस लड़की की थी जिसे मैकेंडलेस से प्यार हो गया था। जिससे वह टिम्बक्टू जैसी जगह, निलांद कैम्पग्राउंड में मिला था।“ एलेक्स ने वेस्टरबर्ग और बोराह को कभी भी अपने किसी रोमांटिक संबंध के बारे में नहीं बताया था। “उसने कभी किसी गर्लफ्रैंड के बारे में नहीं बताया था। हां, वह यह जरूर कहा करता था कि एक दिन वह शादी करके परिवार बसाना चाहेगा। उसने किसी संबंध को हल्के में नहीं लिया था। वह ऐसा नहीं था जो किसी भी लड़की के साथ सो जाय़। ”

ब्रह्मचर्य (सेलीबेसी) और नैतिक शुद्धता पर मैकेंडलेस ऊंचे विचार रखता था। थोरो की एक किताब की इन पंक्तियों को मैकेंडलेस ने कलम से घेरा थाः- ‘ब्रह्मचर्य से आदमी का जीवन खिलता है। जीनियस, हीरोईज्म, पवित्र आत्मा और इस तरह की चीजें इसके बाद ही मिलती हैं।‘

अमेरिकन सेक्स को लेकर पागल रहते हैं। जब कोई आम नौजवान इस मांसल सुख से दूर जाने की कोशिश करता है, तब वे उसे देखकर अंदर से हिल जाते हैं और नाक-भौं सिकोड़ते हैं। उसे संदेह की नजर से देखा जाता है। मैकेंडलेस के चरित्र में सेक्स को लेकर जिस तरह इन्नोसेंसी थी, उस तरह के चरित्र वाले मशहूर लोगों की अमेरिकी समाज में प्रशंसा होती थी, लेकिन उनके बीच में कोई ऐसा आदमी हो तो यही अमेरिकी उसकी निंदा करते थे।

मैकेंडलेस का सेक्स के प्रति रवैया उन लोगों से मिलता जुलता था, जिनके अंदर आवारगी के लिए जुनून था- जैसे थोरो(जिंदगी भर कुंवारे रहे), प्रकृतिवादी जॉन म्यूर और न जाने ऐसे कितने गुमनाम धार्मिक, खोजी, साहसिक और समाज में मिसफिट लोग। मैकेंडलेस के अंदर ऐसी कई जिज्ञासाएं थी, जिसकी तलाश में वह सेक्स को भूल सा गया था। उसकी जिज्ञासाओं का, मानवीय संपर्क समाधान नहीं कर सकता था। इसलिए, वह अलास्का की ओर भाग चला था। मैकेंडलेस ने वेस्टरबर्ग और बोराह को यह भरोसा दिया था कि जब उसकी अलास्का यात्रा पूरी हो जाएगी तो वह साउथ डाकोटा फिर आएगा। उसके बाद क्या करेगा, यह आगे की परिस्थिति पर निर्भर करेगा।

वेस्टरबर्ग  ने बताया,” मुझे लगा कि अलास्का उसकी आखिरी और बड़ी साहसिक आवारगी थी और उसके बाद वह कहीं किसी जगह घर बसा लेगा। मैकेंडलेस कहता था कि वह अपनी इस आवारगी के अनुभवों को लेकर एक किताब लिखेगा। उसको कार्थेज में रहना अच्छा लगा था। वह बहुत ज्यादा पढा-लिखा था, इसलिए कोई नहीं यह कह सकता था कि वह इस तरह मेरे पास बाकी जिंदगी खेतों में ग्रीन एलीवेटर चलाते हुए गुजारता। लेकिन, वह अलास्का से मेरे पास वापस जरूर लौटकर आता, यहां एलीवेटर चलाकर मेरी मदद करता और आगे की जिंदगी की तैयारी करता।“

1992 के बसंत  में मैकेंडलेस की नजर सिर्फ और सिर्फ अलास्का जाने पर टिकी थी। जहां कहीं मौका पाता वह अपने अलास्का ट्रिप के बारे में बात करना शुरू कर देता। उसने आसपास रह रहे अनुभवी शिकारियों से जानवरों के शिकार, उसके चीर-फाड़ और मांस को सुरक्षित रखने के उपाय के बारे में जानकारी प्राप्त की। बोराह उसे गर्म कपड़े खरीदने के लिए मिशेल शहर ले गई थी। अप्रील 1992 के बीच में वेस्टरबर्ग ने मैकेंडलेस को एक-दो सप्ताह रूक जाने को कहा क्योंकि काम करने के लिए उसके पास आदमियों की कमी थी और वह खुद बहुत व्यस्त था। लेकिन, मैकेंडलेस ने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया।

वेस्टरबर्ग  ने दुखी स्वर में बताया,”एक बार एलेक्स के दिमाग में जो बात आ जाती थी, उसे कोई नहीं बदल सकता था। मैंने उसे यहां तक कहा कि दस दिन रूक जाओ, मैं तुम्हें फेयरबैंक जाने के लिए प्लेन का टिकट कटा दूंगा और अप्रील के आखिर तक तुम अलास्का में रहोगे लेकिन मैकेंडलेस ने मना कर दिया। उसने कहा कि वह उत्तर की तरफ पैदल ही आवारगी करेगा। प्लेन से जाना खुद को धोखा देने जैसा होगा। यह उसके पूरे यात्रा का मकसद ही चौपट कर देगा।“

मैकेंडलेस के कार्थेज छोड़ने के दो दिन पहले, वेस्टरबर्ग की मां मैरी वेस्टरबर्ग ने अपने घर उसे खाने पर बुलाय़ा। इस बारे में वेस्टरबर्ग ने बताया,”मां को मेरे यहां काम करने वाले किसी आदमी से मिलने में कोई रुचि नहीं थी और वह एलेक्स से मिलने के लिए भी उत्साहित नहीं थी। लेकिन, मैं उसे बार-बार कहता कि इस बच्चे से एक बार मिल लो और उसने एक दिन मैकेंडलेस को खाने पर बुलाया। दोनों मिलते ही बातें करने लगे और उनकी बातें पांच घंटे तक लगातार चलती रही।“

जहां बैठकर  मैकेंडलेस ने मैरी वेस्टरबर्ग के साथ खाना खाया था, उसी जगह बैठी मैरी ने उस रात को याद करते हुए कहा, “ एलेक्स के अंदर कुछ खास था जो किसी को भी उसकी तरफ खींचता था। एलेक्स मुझे अपने उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्व लगा। मैंने जो कुछ भी कहा, वह जिज्ञासा से उस विषय में और पूछता रहा। उसे ज्ञान की बहुत ज्यादा भूख थी। हम सबके जीवन जीने के तौर-तरीके से अलग वह अपने विचारों और विश्वासों के साथ जीना चाहता था। हम घंटों किताबों के बारे में बातें करते रहे। कार्थेज में बहुत कम लोग किताबों के बारे में बातें करना पसंद करते हैं। मैं नहीं चाहती थी कि वह रात खत्म हो। मैं अगली बार उसके कार्थेज में लौटकर आने की राह देख रही थी। मैं उसे कभी नहीं भूला पायी। मैं उसके चेहरे को हमेंशा याद करती रही। मैंने तो एलेक्स के साथ सिर्फ कुछ घंटे बिताए थे और मुझे उसकी मौत पर कितना गहरा दुख हो रहा है।“

कार्थेज की आखिरी रात को वेस्टरबर्ग और उसके आदमियों के साथ  कैबरेट में मैकेंडलेस ने जमके पार्टी की। पार्टी में खूब ह्विस्की बहा। सभी तब आश्चर्यचकित रह गए जब मैकेंडलेस बैठकर पियानों पर मधुर धुनें बजाने लगा। ऐसा नहीं था कि वह शराब के नशे में आकर अपने अंदर छुपी प्रतिभा से सबको मुग्ध कर रहा था। उस पल को याद कर वेस्टरबर्ग की प्रेमिका बोराह बोली,”एलेक्स सच में पियानो बहुत अच्छे से बजाना जानता था। हम सब तो खो गए थे उसके धुनों में।“

15 अप्रील 1992 की सुबह सभी मैकेंडलेस को अलविदा कहने के लिए एलीवेटर के पास जमा हुए। मैकेंडलेस का बैग काफी भारी था। उसके जूते में लगभग एक हजार डॉलर ठूसा हुआ था। उसने वेस्टरबर्ग के पास अपनी डायरी और फोटो एलबम सुरक्षित रहने के लिए रख गया और उसे अपने द्वारा रोनाल्ड फ्रांज के यहां बनाया गया चमड़े का बेल्ट दिया।

वेस्टरबर्ग  ने बताया, “एलेक्स कैबरेट के बार में बैठकर घंटो उस बेल्ट को निहारा करता था। जैसे कि वह किसी गुप्त चित्रात्मक भाषा को पढने की कोशिश कर रहा हो। उस बेल्ट पर उकेरी गई हर तस्वीर के पीछे एक लंबी कहानी छुपी हुई थी।“

जाते समय  जब मैकेंडलेस बोराह के गले लगकर उसे अलविदा कह रहा था तब बोराह ने उसके आंखों में आंसू देखे थे। “मैं उसके आंखों में आंसू देखकर डर गई थी। वह बहुत ज्यादा दिनों के लिए के लिए नहीं जा रहा था लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी खतरनाक मिशन पर जा रहा था और वह जानता था कि वह वापस जिंदा नहीं भी लौट सकता था। तभी से मेरे मन में आशंका भरी भावनाएं आती रहती थी कि शायद हम एलेक्स से दुबारा नहीं मिल सकेंगे।“

वेस्टरबर्ग  का एक आदमी रॉड वुल्फ, ट्रैक्टर पर सुरजमुखी लादकर साउथ डाकोटा के एन्डरलिन शहर जा रहा था। उसने मैकेंडलेस को इंटरस्टेट 94 तक ट्रैक्टर से छोड़ दिया। उसने बताया,”मैं जब उसे अलविदा कह रहा था तब उसके कंधे से लटक रहे चाकू के देखकर मुझे लगा कि रास्ते में उसे शायद ही कोई लिफ्ट देगा। फिर भी, मैंने मैकेंडलेस से कुछ नहीं कहा। उससे हाथ मिलाया, गुड लक कहा और चिट्ठी लिखने की याद दिलाई।“

मैकेंडलेस ने एक सप्ताह बाद वेस्टरबर्ग को एक छोटी सी चिट्ठी लिखी, जिसपर मोन्टाना के डाक का मुहर लगा थाः-18 अप्रील को मैं एक मालगाड़ी से ह्वाईटफिश पहुंचा। यहां पर मेरा अच्छा समय बीत रहा है। मैं आज बॉर्डर कूदकर अलास्का की तरफ उत्तर दिशा में चल पड़ूंगा। सबको मेरा प्यार।अपना खयाल रखना। एलेक्स।

उसके बाद, मई के शुरूआती दिनों में  वेस्टरबर्ग को दूसरा पोस्टकार्ड मिला, अलास्का से भेजा हुआ, जिसपर ध्रुव पर रहने वाले भालू का फोटो था। इस पर 27 अप्रील, 1992 का डाकमुहर था और उस पोस्टकार्ड पर लिखा था- फेयरबैंक से सबको सलाम करता हूं। यह अंतिम चिट्ठी है शायद। मैं यहां दो दिन पहले पहुंचा हूं। युकोन क्षेत्र से गाड़ी पकड़ने में काफी परेशानी हुई। लेकिन, मैं किसी तरह यहां पहुंच ही गया। मुझे लिखी गई हर चिट्ठी को, भेजनेवाले के पते पर वापस भेज देना। मुझे यहां से वापस लौटने में शायद ज्यादा दिन लग जाय। अगर इस साहसिक यात्रा में मेरी जान चली जाती है और अगर तुम मेरी आवाज फिर से न सुन पाओ, उससे पहले मैं तुमको बताना चाहता हूं कि वेस्टरबर्ग तुम महान आदमी हो। अब मैं अपनी आवारगी पर निकलता हूं। एलेक्स।

उसी तारीख  को मैकेंडलेस ने जेन और बॉब को भी इसी संदेश का एक पत्र भेजा, जिसमें लिखा थाः-

मित्रों,

यह मेरी आखिरी चिट्ठी है। मैं अब अपनी आवारगी और आदिम जीवन जीने की तरफ बढ रहा हूं। अपना खयाल रखना। तुम सबसे मुलाकात बहुत यादगार रहा। एलेक्स।

हालांकि  रचनात्मक प्रतिभावाले लोगों में यह स्वभाव होता है कि वो किसी भी चीज को बहुत गहराई से जीने लगते हैं, जिसके कारण उनके अंदर कोई खास अन्तर्ज्ञान पैदा होता है। लेकिन जो अपने गमों और मानसिक जख्मों से कुछ रचनात्मक चीज नहीं निकाल पाते, उनके लिए जीवन जीने का यह तरीका ज्यादा दिन नहीं टिकता। (थियोडोर रोसजाक, की किताब ‘इन सर्च ऑफ मिराक्युलस’ से उद्धृत)

अमेरिका में एक परम्परा है- अपने मानसिक जख्मों के इलाज के लिए आवारगी करो, धर्म बदल लो, कहीं आराम करो या और कोई तरीका अपनाओ। और, हेमिंग्वे की कहानी की तरह, अगर जख्म बहुत बुरा न हो तो यह बहुत ही उपयोगी चीज है। – एडवर्ड होगलैंड

जब मैकेंडलेस की लाश अलास्का में रहस्यमय परिस्थितियों में मिलने की खबर वहां के मीडिया में छपी तब बहुत सारे लोगों ने यही निष्कर्ष निकाला कि लड़के का दिमाग खराब था। इस बारे में स्टोरी जब आउटसाइड मैगजीन में छपी तो मैकेंडलेस की निंदा में लिखे गए पाठकों के पत्रों का अंबार लग गया। सबने मैकेंडलेस को मूर्ख कहा और उसकी मौत को बेकार की खबर। साथ ही, स्टोरी के लेखक पर भी मैकेंडलेस की मौत को बढा-चढाकर पेश करने का आरोप लगाया। सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रतिक्रिया अलास्का के पाठकों ने लिखी। स्टेम्पेड ट्रेल के पास के कस्बे हिली से एक पाठक ने लिखा, “मैकेंडलेस इस स्टोरी में एक आत्मकेंद्रित चरित्र है।“ इस बारे में एक अन्य पत्रकार का विचार था,”क्रिस मैकेंडलेस की जीने की शैली और आवारगी के सिद्धांत में कुछ भी सकारात्मक बात नहीं है। बिना किसी तैयारी के बर्फीले बियाबान में जाना और वहां मौत के अनुभवों के बीच जीने से कोई अच्छा आदमी नहीं बन जाता।“ एक पाठक ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए लिखा, “क्यूं कोई इस दुनिया को छोड़कर कहीं और जाकर जीने का प्रयास करता है? क्यूं कोई बेटा अपने मां-बाप को इतना ज्यादा दुख देता है?“

सबसे कटु आलोचना का पत्र आर्कटिक सर्किल से उत्तर में कोबुक नदी के पास के एक गांव एंबलर से आया, निक जेम्स का, जिसने लिखा-

‘मैं पिछले पंद्रह साल से ऐसे कई मैकेंडलेस जैसे लोगों को देख रहा हूं, सबकी एक ही कहानी हैः आदर्शवादी, उर्जा और उत्साह से भरे युवा, जिसने खुद अपनी क्षमताओं का गलत आकलन किया, देश की जिंदगी को कमतर समझा और आखिर में मुसीबतों के शिकार हुए। मैकेंडलेस इन सब से अलग नहीं था, सिवाय इसके कि वह वहां जाकर मर गया और मीडिया में हर जगह उसकी चर्चा हुई। जब मैं उसके मां-बाप के बारे में सोचता हूं, तो मैकेंडलेस के प्रति मेरी अंदर कोई सहानुभूति नहीं बचती। उस पर मैकेंडलेस का सन्यासीपन और साहित्य लिखने जैसी बातें उसका गुनाह कम नहीं करती बल्कि और बढा देती है। मैकेंडलेस की डायरी, पोस्टकार्ड या नोट्स में लिखी भाषा एक औसत आदमी के लेखनी जैसी है, जैसे किसी हाईस्कूल के बच्चे की भाषा।‘

अलास्का के लोगों के लिए मैकेंडलेस एक साधारण, अपरिपक्व नौजवान था जो अपने प्रश्नों के उत्तर के खोज में बिना किसी तैयारी के बियाबान उजाड़ में चला गया, जहां उसे सिर्फ मच्छड़ और अकेली मौत मिली। उनकी नजर में ऐसे दर्जनों लोग इसी तरह अलास्का के बीहड़ में जाते हैं और उधर ही गायब हो जाते हैं। उनमें से कुछ लोगों की यादें आज भी अलास्का के वासियों में ताजा हैं।

1970 में  तनाना गांव से एक ऐसा  ही संस्कृतिविरोधी आदर्शवादी  नौजवान गुजरा था जिसका  कहना था कि अब वह बाकी  की जिंदगी प्रकृति के  साथ संवाद करने में  बिताएगा। उसी जाड़े के बीच में उसका सारा सामान- दो रायफल, कैंप लगाने का सामान, एक अबूझ इकोलोजिकल थ्योरी और सत्य एवं सौंदर्य के बारे में तर्क से परे भाषणनुमा लिखी बातों वाली डायरी- टोफ्टी के एक खाली केबिन में मिला, जिसमें हवाओं द्वारा उड़ाकर लाया गया बर्फ भरा था। उस नौजवान का कहीं कुछ पता नहीं चला।

उसके कुछ  साल बाद  वियतनाम का एक आदमी ब्लैक नदी के किनारे एक झोपड़ी बनाकर दुनिया से दूर जाकर रहने लगा। फरवरी के अंत तक उसके पास भोजन खत्म हो चुका था और वह भूख से मर गया, लेकिन उसने कहीं से भोजन पाने की कोई कोशिश नहीं की जबकि वहां से सिर्फ तीन मील दूर उसे खाना मिल सकता था। इसी तरह के मौत के बारे में एडवार्ड होगलैंड लिखते हैं- अकेलेपन पर प्रयोग के लिए अलास्का, दुनिया में बेहतर जगह नहीं है।

1981 में  प्रिंस विलियम साउन्ड  के समुद्री किनारे चलते  हुए मैं (जॉन क्राउकर) एक सनकी जीनियस से मिला था। मछली मारने के बोट पर नौकरी की तलाश में मैं अलास्का के कारडोवा के जंगल में कैंप लगाए हुए इंतजार कर रहा था, सालमोन मछलियों के व्यावसायिक सीजन आने का। एक बरसाती शाम को जब मैं शहर में घूम रहा था, तब मेरे बगल से एक मानसिक परेशान और बेतरतीब सा आदमी गुजरा जिसकी उम्र चालीस के करीब थी। उसकी बड़ी-बड़ी दाढी और कंधे तक लंबे बाल थे। लंबे बालों को चेहरे पर लटकने से बचाने के लिए उसने उसे पुराने-गंदे नायलन के हेडबैंड से बांध रखा था। एक कंधे पर लदे छह फुट लंबे लकड़ी के भारी टुकड़े के भार से झुकते हुए वह मेरे सामने से तेज कदमों से चला आ रहा था। वह जैसे ही पास आया, मैंने उसका अभिवादन किया और उसने भी बुदबुदाते हुए जबाब दिया। हम उस बारिश की फुहारों के बीच बात करने के लिए रूके। मैंने उससे यह नहीं पूछा कि जंगल में ऐसे अनेक लकड़ी के टुकड़े रहते हुए भी वह यह गीला और भारी टुकड़ा क्यूं ले जा रहा है। कुछ मिनट इधर-उधर की सामान्य बातें करने के बाद हम दोनों अपने-अपने रास्ते पर चल पड़े। लेकिन इस छोटी सी बातचीत से मैंने निष्कर्ष निकाला कि वह आदमी बेहद आत्मकेंद्रित किस्म का था। उसे वहां के स्थानीय लोगों ने हिप्पी कोव का मेयर नाम दिया था। शहर के उत्तर में ज्वारभाटा द्वारा बनाए गए पानी के स्रोत के किनारे पर वह लम्बे बालों वाला आवारा मेयर कुछ सालों से रह रहा था।

कारडोवा के हिप्पी कोव में रहने वाले मेरे जैसे अधिकांश लोग वहां मछलियों के व्यापारिक केंद्र में ऊंचे वेतन की नौकरी पाने की लालसा से रहते थे या वहां काम न मिलने पर सालमोन मछली के पैकिंग फैक्टरी में काम करते थे। लेकिन, मेयर हम सबसे बिल्कुल अलग किस्म का जीव था। मेयर का असली नाम जेने रोजेलिन था। वह सियेटल के अरबपति विक्टर रोजेलिन का बड़ा सौतेला लड़का था और 1957-65 के बीच रहे वाशिंगटन के मशहूर गवर्नर अल्बर्ट रोजेलिन का भतीजा था। जेने रोजेलिन अपनी जवानी में अच्छा एथलीट और पढने में बहुत तेज था। वह बहुत पढता था, उसने योग का अभ्यास किया और मार्शल आर्ट में पारंगत था। वाशिंगटन और सिएटल विश्वविद्यालय में पढते हुए उसने मानवविज्ञान, इतिहास, दर्शनशास्त्र और भाषाशास्त्र का विशद अध्ययन किया, जबकि वह किसी और विषय में डिग्री ले रहा था। उसका मानना था कि उसे ज्ञान पाने के लिए किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं थी।

सियेटल  को छोड़ने के बाद रोजेलिन  उत्तर की ओर ब्रिटिश कोलम्बिया  के समुद्री किनारे से होते हुए अलास्का चला आया। 1977 में वह कारडोवा आया  और शहर के किनारे के जंगल में मानव विज्ञान पर एक महत्वाकांक्षी प्रयोग करने में अपना जीवन लगा दिया। 1987 में वहां के अखबार डेली न्यूज के रिपोर्टर मैकिने को उसने बताया,”मेरी रुचि यह जानने में है कि क्या आधुनिक तकनीक से आदमी स्वतंत्र हो सकता है कि नहीं?” वह जानना चाहता था कि क्या आज का इंसान अपने पूर्वजों की तरह उस समय का जंगली जीवन जीने में सक्षम था, जब बड़े-बड़े खतरनाक जानवर खुलेआम धरती पर घूमते थे या इंसान अपनी जड़ों इतना दूर आ चुका था कि बिना बारुद, स्टील और सभ्यता के हथियार के बिना नहीं जी सकता था? इस बात को जानने के लिए उस जीनियस ने अपने आपको आधुनिक समाज की हर चीज से दूर कर लिया और अपने आसपास की चीजों से, खुद के द्वारा बनाए गए उन औजारों को सहारे जीने लगा जिसका इस्तेमाल लाखों साल पहले सभ्यता पूर्व मानव किया करता था।

अखबार डेली न्यूज के रिपोर्ट मैकिने ने रोजेलिन के बारे में कहा, “वह मानता था कि सभ्यता और आधुनिकता के विकास के साथ मानव जीवन धीरे-धीरे निम्न स्तर के जीव बनता चला गया और रोजेलिन का लक्ष्य उसी सभ्यता पूर्व प्राकृतिक अवस्था के जीवन को प्राप्त करना था। उसने सभ्यता के हर चरण के जीवन- रोमन काल, लौह-सभ्यता, तांबा सभ्यता-को जीकर खुद पर प्रयोग करना शुरू किया। वह अपने जीवन के अंतिम दिनों पत्थर के औजारों वाले युग में पहुंच गया था।”

रोजेलिन अपने भोजन के रूप में जड़ों, जंगली बेरी, समुद्री पौधों और भाले से शिकार किए गए जानवरों का इस्तेमाल करता था, चीथड़े पहनता था और भयंकर जाड़े को सहन करता था। ऐसा लगता था जैसे उसे इस तरह के कठिन जीवन में आनंद आता था। अपना झोपड़ा भी बिना किसी कुल्हाड़ी या औजार के बनाया था जिसमें कोई खिड़की नहीं थी। रिपोर्टर मैकिने ने उसके बारे में बताया,”वह दिनभर अपना समय लकड़ी के लट्ठ को धारदार पत्थर से चीरने में बिताता था। जैसे अपने ऊपर खुद के द्वारा थोपे गए कठिन जीवन का मेहनत काफी नहीं था उसके लिए, इसलिए जब कोई काम नहीं रहता तो वह जमकर कसरत किया करता था। भारी चीजें उठाता, खूब दौड़ता और प्रायः अपनी पीठ पर भारी पत्थर लादकर चलता रहता। गर्मी के दिनों में भी वह प्रतिदिन अठारह मील की दूरी तय करता था।“

रोजेलिन का यह प्रयोग दस साल से ज्यादा समय तक चलता रहा और एक दिन उसे लगा कि उसके प्रश्न का उत्तर उसे मिल गया था। उसने एक मित्र को पत्र में लिखाः- ‘मैंने अपनी जवानी की शुरूआत इस परिकल्पना से किया था कि पत्थर युग के आदमी की तरह फिर से बना जा सकता था। तीस साल तक मैं अपने जीवन को वैसा बनाने के लिए तैयारी में लगा रहा और प्रयोग करता रहा। मैं ये दावा करना चाहूंगा कि आखिरी दस सालों में मैंने पत्थर युग के जीवन के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक यथार्थ का सही-सही अनुभव किया। उस सत्य अनुभव का सीधे-सीधे सामना करने के बाद मैं ये कह सकता हूं कि आज के इंसान का अपनी जमीन औऱ आधुनिक सभ्यता छोड़कर किसी और जीवन को अपनाना संभव नहीं है।‘

रोजेलिन ने अपने परिकल्पना और प्रयोग में मिली असफलता को शांति  से स्वीकार किया। उनचास  बरस की उम्र में रोजेलिन  ने खुशी-खुशी घोषणा किया कि अब वह अपने पत्थर युग में  जीनेवाले लक्ष्य को छोड़ देगा और आगे वह विश्व में सालों भर प्रतिदिन 18 से 27 मील पैदल आवारगी करते हुए अपना जीवन बिताएगा। लेकिन वह अपना यह ट्रिप शुरू नहीं कर सका। नवंबर 1991 में उसकी लाश झोपड़े में पेट के बल जमीन पर पड़ी मिली, उसके छाती में एक खंजर घुसा हुआ था। जांच के बाद पता चला कि उसने खुद को खंजर मार लिया था। लेकिन सुसाइड नोट नहीं लिखा था। रोजेलिन ने ऐसा कुछ पीछे नहीं छोड़ा था जिससे यह जाना जा सके कि उसने इतने बुरे तरीके से खुद को क्यों मार डाला था। रोजेलिन की मौत और उसके अजीबोगरीब अस्तित्व की कहानी डेली न्यूज अखबार में प्रमुखता से पहले पन्ने पर छापी गई थी।

उसी अखबार  में जॉन वाटरमेन के अपने साहसिक यात्रा के दौरान गायब हो जाने की घटना को कम प्रमुखता मिली थी। 1952 में जन्मे जॉन, वाशिंगटन के उसी क्षेत्र में पला-बढा था जहां का क्रिस मैकेंडलेस था। उसके पिता गे वाटरमेन संगीतज्ञ और स्वतंत्र लेखक के रूप में मशहूर थे, जिन्होंने राष्ट्रपतियों और वाशिंगटन के कई महत्वपूर्ण नेताओं के भाषण लिखे थे। गे वाटरमेन खुद पर्वतारोही (माउंटेनियर) थे और अपने तीनों बेटों को कम उम्र में उसने पहाड़ चढना सिखाया था। जॉन वाटरमेन उनका मझोला बेटा था जो तेरह बरस में पहली बार पहाड़ पर चढा था। वह प्रकृतिप्रेमी था। जब भी उसे मौका मिलता, चट्टान पर चढना शुरू कर देता। उसने पहाड़ चढने का जमकर ट्रेनिंग लिया। वह खूब कसरता करता औऱ हर रोज तेजी से चलते हुए ढाई मील दूर स्कूल जाता था। दोपहर को वापस लौटकर वह दुबारा स्कूल चल देता था। 1969 में जॉन, सोलह बरस में अलास्का के माउंट मैकिनले की ऊंची चोटी चढकर अमेरिकी महाद्वीप में कम उम्र में ये काम कर दिखाने वाला तीसरा शख्स बना था। अगले कुछ सालों तक उसने अलास्का, कनाडा और यूरोप के कई महत्वपूर्ण ऊँचाईयों को छुआ। जब तक वह 1973 में फेयरबैंक के अलास्का विश्वविद्यालय में एडमिशन लेता तब तक उत्तरी अमेरिका में नौजवान पर्वतारोही के रूप में मशहूर हो चुका था।

जॉन मुश्किल  से पांच फीट तीन इंच लंबा था। उसका चेहरा बच्चों जैसा, बदन मजबूत और जिमनास्ट जैसा था। उसे जानने वाले बताते हैं कि वह असामाजिक, आत्मकेंद्रित, अवसादग्रस्त पागल किस्म का बच्चा था जो लोगों से बहुत भद्दा मजाक किया करता था। उसके पर्वतारोही दोस्त जेम्स ब्रेडी ने बताया,”मैं जब पहली बार उससे मिला था तब वह कॉलेज कैंपस में इधर-उधर घूम रहा था, उसके हाथ में एक घटिया किस्म का गिटार था और जो भी सुनता उसे अपने साहसिक यात्रा के बारे में लंबे-लंबे गीत गिटार को बेतरतीब ढंग से बजाते हुए सुनाता। फेयरबैंक शहर, इस तरह के कई उटपटांग किस्म के लोगों को आकर्षित करता है लेकिन जॉन तो फेयरबैंकीय स्तर से कहीं बड़ा पागल था। कई लोगों के सामने ये मुश्किल रहती थी कि सामने आ जाने पर कैसे उससे निबटा जाय।“

जॉन के इस तरह के व्यक्तित्व होने के कई कारण थे। पारिवारिक  सूत्रों के अनुसार, जब वह छोटा था तभी उसके माता-पिता के बीच तलाक हो गया था और दोनों ने जॉन को छोड़ दिया।  पिता उससे कोई मतलब नहीं रखता था, इस वजह से वह टूट गया। तलाक के बाद जब बड़े भाई  को लेकर पिता से मिलने गया  तो पिता ने मिलने से इंकार  कर दिया। दोनों भाई फेयरबैंक में चाचा के पास आकर रहने लगे। एक बार जब जॉन ने पिता के फेयरबैंक में पर्वतारोहन के लिए आने की बात सुनी तो वह काफी खुश हुआ। लेकिन, पिता ने फेयरबैंक आकर भी उससे मिलने की जहमत नहीं उठाई।  जॉन का दिल और टूट गया।

अपने बड़े भाई बिल के साथ जॉन का बहुत ज्यादा भावनात्मक लगाव था। मालगाड़ी पर चढते समय  हुई दुर्घटना में बिल  अपना एक पैर खो चुका था। 1973 में बिल, बड़े ट्रिप पर जाने की बात एक चिट्ठी में लिखकर  अचानक गायब हो गया था।  जब जॉन पहाड़ पर चढना सीख  रहा था उसी दरम्यान उसके आठ नजदीकी दोस्त या तो दुर्घटना में जान गवां बैठे थे या फिर आत्महत्या कर चुके थे। यह सहज ही अनुमान लगाया  जा सकता है कि इन सब दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से जॉन के कच्चे  मानसिक स्थिति पर बहुत बुरा प्रभाव डाला था। मार्च 1978 में जॉन ने अपने सबसे बड़े साहसी पर्वतारोहन की योजना की घोषणा की। माउन्ट हन्टर, जिसपर तीन पर्वतारोही टीम अबतक चढ पाने में असफल रही थी, वह उसपर अकेल चढने जा रहा था। उसके इस साहस के बारे में क्लाईम्बिंग मैगजीन के पत्रकार ग्लेन रैंडाल ने लिखा कि जॉन ने अपने साथियों को बताया था कि वह हवा, बर्फ और मौत की चढाई करने जा रहा था।

माउन्ट  हंटर के मीलों बियाबान में हर तरफ बर्फ जमा था। बर्फ की खड़ी दीवारें ऐसी भुरभुरी थी जैसे कठोर बर्फ पिघलाकर फिर से जमाया गया हो। फिर आगे, कम चौड़े और ढलान वाले छोटे पर्वतों की श्रृंखला थी, जिसे एक-एक करके, पैर फैलाते हुए लंबे-लंबे डग मारते पार करना पड़ा था। बहुत बार तो वह दर्द और अकेलेपन के कारण टूट जाता और बहुत रोता। 81 दिन की बेहद खतरनाक और थका देनेवाली चढ़ाई करने के बाद जॉन 14573 फीट ऊंचे अलास्का के माउन्ट हंटर पहाड़ की चोटी पर जाकर खड़ा हो गया। अगले नौ सप्ताह उसी खतरों से भरे रास्ते से नीचे उतरा। इस तरह 145 दिन जॉन पहाड़ों में बिल्कुल अकेले चलता रहा। जब वह फिर से फेयरबैंक लौटा तो उसका 20 डॉलर में किराए पर लिया गया फ्लैट टूट चुका था और उसे अपना पेट पालने के लिए सिर्फ एक काम मिल पाया- प्लेट धोने का।

फेयरबैंक  के पर्वतारोहियों के छोटे से समूह में उसे इस साहसिक यात्रा के लिए हीरो माना गया। उसने उस चढाई का स्लाईडशो सबको दिखाया जिसके बारे में  याद करते हुए उसके दोस्त  ब्रेडी ने बताया, ”वह बेहद यादगार अनुभव था। उसने अपने सारे विचार और भावनाओं, असफलता और मृत्यु से डर के बारे में हमें इतने सजीवता से बताया कि लग रहा था जैसे कि चढाई के दौरान हम उसके साथ ही चल रहे थे।“

इस ऐतिहासिक काम के महीने बाद जॉन  ने अनुभव किया कि उसे आराम से नहीं बैठना चाहिए। माउंट  हंटर की सफलता ने उसे और उत्साह से भर दिया था। जॉन का दिमाग आगे कुछ और करने की सोचने लगा। ब्रेडी ने उसे याद करते हुए कहा,”जॉन अपनी आत्म-आलोचना किया करता था, हमेंशा खुद को जानने-समझने की कोशिश करता था। वह जुनून से भरा हुआ आदमी था, दीवाना था। वह अपने साथ हमेंशा नोटपैड रखता था। उसमें वह रोज अपने दिन भर किए गए काम के बारे में लंबी-चौड़ी बातें लिखा करता था। एक बार मैं उससे मिलने गया और जैसे ही मिलकर जाने लगा, उसने तुरंत अपना नोटपैड निकाला और हमारे बीच जो भी बातें हुई थीं, उसे लिख डाला। हमने ज्यादा बात नहीं की थी फिर भी उसने इसपर तीन-चार पेज लिख डाला था। वह कहीं पर उन सारे कागजों को ढेर जमा किए हुए था और मुझे लगता है जिसकी महत्ता सिर्फ जॉन समझ सकता था और कोई नहीं।“

जल्दी ही जॉन अपने स्कूल में चुनाव लड़ा, जिसमें स्वच्छंद सेक्स और गहरे नशा वाले ड्रग्स को कानूनी वैधता को उसने मुद्दा बनाकर राजनीतिक अभियान चलाया। हलांकि वह चुनाव हार गया जिसके बारे में उसे छोड़ सबको विश्वास था। जॉन चुप नहीं बैठा रहा। उसने अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए अभियान चलाने लगा। फीड दी स्टार्विंग( भूखे को भोजन दो) पार्टी के बैनर तले वह चुनाव लड़ गया और उसके घोषणापत्र में पहली प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना था कि इस ग्रह पर कोई भी भूख से ना मरे। अपने चुनाव प्रचार के लिए उसने फिर से जाड़े में देनाली के दक्षिणी पहाड़ के सबसे बड़े ढाल पर कम से कम भोजन साथ में लेकर अकेले चढने की योजना बनाई। इसके लिए खुद को प्रशिक्षित करने के दौरान वह बर्फ से भरे बाथटब में खुद को डूबा लेता था।

जॉन हेलीकॉप्टर से काहिल्तना ग्लेशियर तक पहुंचकर दिसम्बर 1979 में  ऊपर चढना शुरू किया लेकिन  चौदह दिन बाद उसने अपनी यात्रा रोक दी। उसने अपने पायलट को कहा,”मुझे यहां से ले चलो, मैं मरना नहीं चाहता।“ दो महीने बाद उसने दूसरी बार चढने की तैयारी की। लेकिन, देनाली के दक्षिण के एक गांव में, जहां पर्वतारोही अलास्का के पहाड़ों पर चढने से पहले रूकते थे, जॉन के केबिन में आग लगने से उसका सारा सामान और नोटपैडों का ढेर-जिसमें उसकी कविताएं और रोज के जीवन का वर्णन लिखा था और जिसे वह अपने जीवन की कृति मानता था- जलकर खाक हो गया।

जॉन इस नुकसान से काफी आहत हुआ। एक दिन  बाद उसने खुद को एंकरेज मनोचिकित्सालय में भर्ती  करवा लिया लेकिन दो सप्ताह बाद उसने वह जगह छोड़ दिया, जब उसे विश्वास हो गया  कि वहां उसे हमेंशा के लिए बंद रखे जाने की साजिश की जा रही थी। 1981 के जाड़े में उसने फिर से एक बार देनाली के पहाड़ पर अकेले चढना शुरू किया। लेकिन इस बार उसने इस काम के लिए और भी कठिन रास्ता चुना। उसने तय किया कि वह समुद्र के किनारे से 160 मील के कठिन वृताकार रास्ते पर चलते हुए पहाड़ की तलहटी तक पहुंचेगा। उसने फरवरी में चलना शुरू किया लेकिन रूथ ग्लेशियर तक जाते-जाते उसका उत्साह खत्म हो गया, जहां से चोटी तीस मील दूर थी। वह बीच से ही लौट गया। लेकिन, मार्च में फिर से उसने ऊपर चढने के लिए कमर कस लिया और जाने से पहले उसने अपने पायलट दोस्त क्लिफ हडसन से कहा,”हो सकता है कि मैं तुमको दुबारा न देख सकूं।“

अलास्का के पहाड़ों में उस मार्च  में कुछ ज्यादा ही सर्दी  थी। उस महीने के आखिर में  रुथ ग्लेशियर के पास एक पर्वतारोही मग्स स्टम्प की मुलाकात जॉन से हुई। स्टम्प विश्व प्रसिद्ध पर्वतारोही था। जॉन से मिलने के कुछ  दिन बाद वह सिएटल में  मेरे(इस किताब के लेखक) पास आया था और बताया,”जॉन खोया-खोया सा लग रहा था। उसने पागलपन भरी कुछ बातें की। वह देनाली के सर्द पहाड़ पर चढ रहा था लेकिन उसके पास बहुत कम सामान था। उसने एक सस्ता सा गर्म सूट पहन रखा था और उसके पास स्लीपिंग बैग नहीं था। उसके पास खाने के नाम पर कुछ आटा, चीनी और तेल का एक बड़ा गैलन था।

अपने किताब  ब्रेकिंग प्वाइंट में ग्लेन  रैंडाल ने लिखाः-जॉन कई सप्ताह तक रूथ ग्लेशियर के पास शेलडोन पहाड़ के क्षेत्र में एक केबिन में पड़ा रहा। काटे बुल, जो जॉन का दोस्त था और उसी क्षेत्र में चढाई कर रहा था, ने बताया कि जॉन नीचे उतर रहा था और लापरवाह था। उसने अपने पायलट क्लिफ हडसन को वह रेडियो लौटा दिया था जिससे संकट के समय जॉन उसे खबर करता था। उसने हडसन से कहा,”मुझे अब इसकी जरूरत नहीं है।“ जॉन को अंतिम बार 1 अप्रील को रूथ ग्लेशियर के नार्थवेस्ट फॉर्क के पास देखा गया जिससे आगे वह उस रास्ते की ओर से गया जिसमें कई बड़े-बड़े बर्फीले दरार थे। उसके बाद उसका कुछ पता नहीं चला। ऐसा माना गया कि वह किसी दरार में गिरकर मर गया। नेशनल पार्क सर्विस उसे एक सप्ताह तक खोजती रही लेकिन उसका कहीं नामोनिशान नहीं मिला। कुछ पर्वतारोहियों को शेलडन पहाड़ में जॉन के केबिन में पड़े उसके सामान वाले बैग के ऊपर रखा एक कागज मिला जिसपर लिखा था- मेरा आखिरी सलाम, 13/3/1981, 1-42 पीएम।

क्रिस मैकेंडलेस के साथ हुई घटना की तुलना अलास्का के लोग जॉन वाटरमेन से करने लगे। क्रिस मैकेंडलेस की तुलना एक और शख्स से की गई जिसका नाम था कार्ल मेकन था। कार्ल टेक्सास से फेयरबैंक आया था और उस समय ट्रांस अलास्का पाइपलाईन प्रोजेक्ट में उसे अच्छे वेतन की नौकरी मिली थी। वह मिलनसार लेकिन खोया-खोया सा रहनेवाला आदमी था। 1981 के मार्च में जब जॉन अपनी आखिरी यात्रा पर जा रहा था, उसी समय कार्ल ने एक पायलट को किराया देकर उसे सुदूर कोलीन नदी के पास बने एक झील के पास की झाड़ियों में उतारने को कहा, वह जगह युकोन किले से उत्तर-पूर्व में 75 मील दूर ब्रूक्स पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी छोड़ पर था।

पैंतीस  साल के शौकिया फोटोग्राफर कार्ल ने अपने दोस्तों से कहा कि वह जंगली जीवन की तस्वीर लेने के लिए इस ट्रिप पर जा रहा था। उसने 500 फिल्म रोल, .22 और .30 कैलिबर के रायफलें, एक शॉटगन और चौदह सौ पौंड खाने का सामान अपने साथ लेकर वहां गया। उसका उद्देश्य अगस्त तक उसी बियाबान में रहना था। लेकिन, उसने गर्मी के खत्म होने के बाद उसे वहां से निकालकर दुनिया में ले आने के लिए किसी पायलट को पहले से कह के नहीं रखा और इसका परिणाम हुआ कि कार्ल की वहीं मौत हो गई।

कार्ल द्वारा किए गए इतने बड़े गलती के बारे में जानकर नौ महीने तक उसके साथ पाइपलाइन कम्पनी में काम कर चुके फेयरबैंक के नौजवान मार्क स्टोपेल को कोई आश्चर्य़ नहीं हुआ। मार्क ने उसके बारे में कहा,”कार्ल बहुत दोस्ताना, सीधा-सादा सा और हम सबके बीच मशहूर था। हलांकि वह स्मार्ट लगता था, लेकिन वह थोड़ा स्वप्नशील था और दुनिया की वास्तविकता से जरा दूर था। वह रंगीन मिजाज था और जमकर पार्टी में मस्ती करता था। साथ ही वह बहुत जिम्मेदार इंसान था लेकिन कभी-कभी किसी भावावेग में आकर भी कोई काम कर बैठता था जिसमें बहुत साहस की जरूरत होती थी। कार्ल के उस बियाबान से वापस लौटने की पहले से तैयारी, भूल जाने की बात सुनकर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। वैसे भी मैं किसी बात से जल्दी चकित नहीं होता क्योंकि मेरे मित्रों में किसी की हत्या हो गई, कोई डूब कर मर गया तो कोई इसी तरह के किसी दुर्घटना का शिकार हो गया। अलास्का में इस तरह की अजीबोगरीब घटनाएं होती रहती हैं।”

अगस्त के आखिर में जब दिन छोटा होने लगा, ब्रूक्स रेंज के पहाड़ों  में हवा का तीखापन बढने लगा और तब जाकर कार्ल को चिंता होने लगी, जब उसे वहां से बाहर निकालने के लिए कोई पायलट नहीं आया। कार्ल ने डायरी में अपनी गलती स्वीकार करते हुए लिखा,”मैं सोचता हूं कि मुझे यहां आने से पहले दूरदृष्टि के साथ यहां से निकलने के बारे में योजना बनाना चाहिए था। मैं कोई न कोई रास्ता खोज लूंगा।“ कार्ल की यह डायरी, उसके मरने के बाद पांच भागों में फेयरबैंक डेली न्यूज में छापा गया।

सप्ताह  दर सप्ताह कार्ल ने जाड़े  को बढते हुए महसूस किया।  उसका खाना खत्म होने पर था।  कार्ल ने उस वक्त तक अपने बंदूक के दर्जनों गोलियों  को बेकार मानकर झील में  फेंक दिया था। उसने इस बात  पर दुखी होकर डायरी में  लिखा-“मैं दो महीने पहले झील में फेंके गए उन गोलियों के बारे में देर तक सोचता रहा। मेरी जब-जब उन गोलियों के पांच डब्बों पर नजर पड़ती थी तब-तब मुझे लगता था कि मैं मूर्ख था जो इसे ले आया और मैंने उसे झील में फेंक दिया। मुझे क्या पता था कि जाड़े में मुझे भूखे रहने से बचाने में, इन गोलियों की जरूरत शिकार करने में पड़ सकती थी।“

तभी, सितम्बर  की एक सुबह को ऐसा लगा जैसे कि वह इस खतरे से बच जाएगा। कार्ल  अपने बचे-खुचे गोलियों से बत्तख के शिकार में लगा  हुआ था कि तभी वहां की शांति  एक हवाईजहाज की आवाज से टूटी।  जल्दी ही जहाज कार्ल के सर के ऊपर था। पायलट ने दूर से कैंप देखकर थोड़ा  नजदीक से देखने के लिए  जहाज की ऊंचाई को कम करके दो गोलाकार चक्कर लगाया। कार्ल अपने स्लीपिंग बैग  के नारंगी चमकीले कवर को लहराने लगा। लेकिन जहाज में पहिए लगे थे इसलिए वह उन झाड़ियों में नहीं उतर सकता था। जहाज के जाने के बाद कार्ल को यह विश्वास था कि पायलट ने उसे देख लिया था औऱ वहां उतर सकने वाले जहाज को वह जरूर भेजेगा उसे ले जाने के लिए। वह इतना आश्वस्त था कि उसने अपनी डायरी में लिखाः’जब जहाज चला गया तो मैंने तुरंत अपना बैग पैक करने और कैंप समेटने में लग गया।‘

लेकिन उस दिन कार्ल को लेने कोई  प्लेन नहीं आया, अगले दिन  भी नहीं, उसके अगले दिन भी नहीं। कार्ल की नजर जब शिकार करने के लाइसेंस पर पड़ी तब उसे लगा कि कोई जहाज फिर से क्यों नहीं आया। उस लाइसेंस पर, धरती से हाथों के द्वारा ऊपर से गुजरते जहाज को सूचना देने के चित्र छपे थे। कार्ल ने अपनी डायरी में लिखा,’ मुझे याद आया कि जहाज के दूसरे चक्कर के दौरान मैंने मुट्ठी बांधकर अपने दाहिने हाथ को ऊपर उठाकर लहराया। दरअसल यह खुशी का प्रतीक है। दुर्भाग्य से मुझे बाद में पता चला कि एक हाथ हवा में उठाकर लहराना एक युनिवर्सल सिग्नल है जिसका मतलब है ‘सब ठीक है’, मदद की जरूरत नहीं है। दोनों हाथ उठाने के सिग्नल का अर्थ है ‘संकट में हूं, जल्दी मदद भेजो।‘’

कार्ल ने आगे लिखा,’जहाज को दूर उड़ा ले जाने के बाद पायलट एक चक्कर लगाने फिर वापस लौटकर आया और मैंने उसे कोई सिग्नल नहीं दिया। मुझे उस वक्त अपनी पीठ को उस जहाज की ओर कर लेना चाहिए था। हो सकता था कि वे मुझे अंजान जानकर बम से उड़ा देते।‘

सितंबर  के अंत से बर्फ के ढेर जमा  हो रहे थे, झील का पानी जम चुका था। कार्ल का खाना खत्म हो चुका था। कार्ल  ने गुलाब के फलों को जमा  करने और खरगोशों को फंसाने की कोशिश की। झील में  जाकर मरे एक ध्रुवीय हिरण को चीर-फाड़ कर उसका मांस निकाल  कर उसने रख लिया था। अक्टूबर तक कार्ल के शरीर का सारा वसा खत्म हो चुका था और अब लंबे सर्द रातों में उसे खुद को गर्म रखना कठिन हो रहा था। उसने अपनी डायरी में लिखा,’शहर में किसी को तो मेरे बारे में सोचना चाहिए था कि मैं अब तक क्यों नहीं लौटा?’ लेकिन कोई नहीं आया।

कार्ल के दोस्त मार्क स्टोपेल ने उसे याद करते हुए बताया,” यह कार्ल ही सोच सकता था कि उस परिस्थिति में कोई जादू से वहां आकर उसे बचाएगा। वह खूब ट्रक चलाता था और उसे चलाते हुए विचारों में खो जाता था। वहीं बैठे-बैठे उसने ब्रूक्स के पहाड़ों में जाने का सोचा था। इस खोज को उसने काफी गंभीरता से लिया था। वह वहां जाने के लिए योजना बनाता रहता और मुझसे पूछता था कि वहां जाने के लिए कौन-कौन से सामान ले जाने चाहिए। इतनी सावधानी से तैयारी करने के बावजूद उसके कुछ आवारा कल्पनाएं भी थी। जैसे कि कार्ल उन झाड़ियों में अकेले नहीं जाना चाहता था। उसका बहुत बड़ा सपना ये था कि वह किसी सुंदर औरत के साथ जंगल में जाकर रहेगा। वह हमारे साथ काम करने वाली कुछ लड़कियों की तरफ काफी आकर्षित था और उससे बात करने की कोशिश में अपना काफी समय और उर्जा नष्ट करता था-यह भी उसका कल्पनालोक ही था। वहां कुछ भी उसके अनुसार होने की कोई गुंजाईश नहीं थी। मेरा मतलब है कि उस पाइपलाईन कैंप में जहां हम काम करते थे, हर औरत के लिए चालीस लड़के मौजूद थे। लेकिन कार्ल स्वप्नशील आदमी था। वह ब्रूक्स रेंज की ओर जाने तक सोचता रहा कि शायद इनमें से कोई लड़की अपना इरादा बदलकर उसके साथ चल दे। वह लोगों से हमेंशा झूठी आशाएं लगाए रखता था। इसलिए जब वह खतरे में फंसा तो वहां भी उसे वही आशा रही कि कोई अचानक उसके खतरे में होने के बारे में जानेगा और उसे बचाने चला आएगा। लेकिन उसकी कल्पना की दुनिया इतनी दूर थी कि उससे कोई खुद को जोड़ नहीं पाता था।“

जब कार्ल का भोजन खत्म हो गया तब उसने अपनी डायरी में लिखा, “मैं अब ज्यादा चिंतित हो रहा हूं। इमानदारी से कहूं तो अब मुझे डर लगना शुरू हो चुका है।“ वहां का तापमान शून्य से पांच डिग्री फारेनहाइट नीचे चला गया था, जिसके कारण कार्ल के हाथ और पैर की उंगलियों में सर्दी के फफोले निकल आए थे। वह कमजोर हो गया और होश भी कम रहने लगा था। सर्दी ने उसकी सूख रही हड्डियों को और तोड़कर रख दिया। उसने अपनी डायरी में लिखा,’हाथ, नाक और पैर की स्थिति धीरे-धीरे खराब होती जा रही है। नाक पर काफी सूजन और फफोले निकल आए हैं। निश्चित तौर पर धीरे-धीरे बहुत दुखदायी मौत मेरे करीब आ रही है।‘ कार्ल ने एक बार सोचा कि कैंप को छोड़कर युकान फोर्ट की ओर पैदल चला जाय लेकिन फिर उसने सोचा कि वह इतना मजबूत नहीं रह गया था और वहां पहुंचने से पहले ही वह रास्ते में सर्दी और थकान से मर जाएगा।

“मैं इस तरह से नहीं जी सकता” कार्ल ने नवंबर के अंत में अपनी डायरी के आखिर में लिखा, जिसका सौ पन्ना अब तक भर चुका था। “हे ईश्वर, मुझे मेरे पापों और कमजोरियों के लिए क्षमा करना। मेरे परिवार का खयाल रखना। उसके बाद वह अपने टेंट के दीवाल के सहारे पीठ लगाकर लेट गया। अपने रायफल की नाली को अपने सर से लगाया और अंगूठे से ट्रिगर दबा दिया। 2 फरवरी 1982 को अलास्का राज्य के सिपाहियों को उसका कैंप मिला। अंदर झांककर देखा तो उसका कंकालनुमा लाश पत्थर जैसा कठोर हो चुका था।

रोजेलिन, जॉन, कार्ल और मैकेंडलेस के साथ हुई घटनाओं के बीच काफी समानताएं हैं। रोजेलिन और जॉन की तरह मैकेंडलेस खोजी था एवं प्रकृति की कठिन परिस्थितियों के प्रति अव्यावहारिक रोमांचक कल्पनाओं से भरा था। जॉन और कार्ल की तरह उसमें भी कॉमन सेंस का अभाव था। लेकिन जॉन की तरह मैकेंडलेस मानसिक रोगी नहीं था। कार्ल की तरह वह इतना स्वप्नशील नहीं था कि वह सोचता कि उन बियाबान के झाड़ियों में उसे कोई बचाने के लिए प्रकट होगा।

मैकेंडलेस इन सबसे अलग था। हलांकि वह खतरों के प्रति गंभीर नहीं था, अलास्का में रहने के लिए प्रशिक्षित भी नहीं था और मूर्खता की हद तक असावधान था, लेकिन फिर भी उसमें क्षमताएं थी तभी वह 113 दिन तक उस सर्द बियाबान में जिंदा रह सका। ना तो वह पागल था, ना तो असामाजिक। मैकेंडलेस कुछ और था- जिसे आसानी से परिभाषित नहीं किया जा सकता था।

शायद सत्य का खोजी था। मैकेंडलेस के साथ हुई त्रासदी को समझने के लिए दक्षिणी यूटा में हुए इसी तरह की एक घटना के अध्ययन की जरूरत है। 1934 में बीस साल का लड़का अमेरिका के दक्षिणी यूटा की तरफ रेगिस्तान में गया और कभी वापस नहीं लौटा। उसका नाम एवरेट रुस (Everest Ruess) था।

डेविस क्रीक  सालों भर नाले जैसा पतला धारा बना रहता है और कभी-कभी तो वो भी नहीं। फिफ्टीमाइल प्वाइंट  के ऊंचे चट्टानों के दरार से निकलता एक झरना दक्षिणी यूटा(अमेरिका का एक राज्य) के गुलाबी बलुआ पत्थरों के बड़े-बड़े टुकड़ों के बीच से चार मील बहता हुआ 190 मील के दायरे में फैले पावेल झील में जाकर मिल जाता है। इन नदियों के किनारे डेविस गुल्च एक बेहद खूबसूरत घाटी है, जिसकी तलहटी का थोड़ा सा उपजाऊ रेगिस्तानी जमीन इस सूखे पथरीले देश से गुजरने वाले लोगों को जीवन देता है। इसके टेढे-मेंढे दीवारों की भित्तियों पर अतीत के मानवों द्वारा बनाए गए 900 साल पुराने चित्र सजे हैं। इन चित्रों को बनाने वाले अमेरिकन आदिवासी जनजाति केयेंटा अनासाजी, यहां से बहुत पहले चले गए थे और वहां सुरक्षित कोनों में बने उनके पत्थरों के घर अब खंडहर बन चुके थे। उन आदिवासियों के छोड़े गए टूटे-फूटे बर्तन, उन जंग खा रहे टिन के डिब्बों के साथ मिलकर वहीं के बालू में पड़े थे, जो बाद की शताब्दी में उस घाटी में अपने जानवरों को चराने और पानी पिलाने के लिए आने वाले किसानों के द्वारा फेंके गए थे।

डेविस गुल्च  घाटी में नीचे उतरने का मतलब था किसी नए दुनिया में  प्रवेश करना। इस खूबसूरत  और छुपे हुए घाटी में लगभग छह दशक पहले बीस साल का नौजवान एवरेट रुस ने भित्तीचित्रों पर बने आदिम चित्रों के ठीक नीचे अपना छद्म नाम ‘नेमो 1934’ लिखा था, यही नाम उसने उस खंडहरनुमा घर के दरवाजे पर भी लिखा था जिसमें आदिवासी अनाज जमा किया करते थे। एवरेट ने ठीक वही काम किया था जिसे 58 साल बाद क्रिस मैकेंडलेस ने किया, जिसने अपना नाम अलास्का के बियाबान में खड़े बस की दीवार पर लिखा था,’एलेक्जेंडर सुपरट्रैंप’,मई 1992’। अद्भुत बात यह कि घाटी के भित्तिचित्रों पर लिखने वाले आदिम लोगों ने भी शायद इसी तरह के भावना के आवेग में इन पथरीले दीवारों पर रहस्यमय चित्रों को उकेरा होगा।

घाटी में  अपना नाम उकेरने के कुछ  दिन बाद ही एवरेट रुस  गायब हो गया और उसका कहीं कुछ पता नहीं चला। उसके खोज के बड़े-बड़े प्रयासों के बाद भी कोई जानकारी  नहीं मिली कि उसका क्या हुआ। उसे घाटी का रेगिस्तान  निगल गया था। आज साठ साल  बाद भी वह रहस्य बना हुआ  है, कि एवरेट रुस गया कहां?

एवरेट रुस 1914 में कैलिफोर्निया के ऑकलैंड में पैदा हुआ था। उसके पिता क्रिस्टोफर रुस; कवि, दार्शनिक होने के साथ कैलिफोर्निया पेनल सिस्टम में अधिकारी थे। उसकी मां स्टेला, कलाकार मिजाज होने के साथ-साथ बोहेमियन (आवारा) प्रवृति की थी। उसके मां-बाप ऑकलैंड से फ्रेन्सो होते हुए फिर लॉस एंजेल्स पहुंचे और वहां से बॉस्टन के बाद ब्रूकलिन होते हुए न्यू जर्सी से इंडियाना में गए। फिर, वहां से भी निकलकर अखिर में स्थायी रूप से दक्षिणी कैलिफोर्निया में जा बसे। एवरेट उस समय चौदह साल का था।

सोलह साल  की उम्र में एवरेट पहली बार अकेले लम्बे ट्रिप  पर गया, उसने 1930 की पूरी गर्मी  पैदल और लिफ्ट लेकर आवारगी करते हुए योसेमाइट के घाटियों  से गुजरते हुए कारमेल की पहाड़ियों की एक बस्ती में पहुंचा। वहां पर उसने एडवर्ड वेस्टन का दरवाजा खटखटाया। एडवर्ड वेस्टन फोटोग्राफर था और उसने अगले दो महीने तक उस लड़के को पेंटिंग और ब्लॉक प्रिंटिंग का काम करते देखकर खूब उत्साहित किया और अपने स्टूडियो का इस्तेमाल करने की छूट दी।

गर्मी के अंत में एवरेट ने हाईस्कूल डिप्लोमा लेने के लिए घर लौटा, जिसे उसने 1931 में हासिल किया।  एक महीने से भी कम समय बाद  वह फिर से रोड पर था और यूटा, एरिजोना और न्यू मेंक्सिको की घाटियों में आवारगी करता रहा, जो क्रिस मैकेंडलेस के अलास्का जैसा ही रहस्यमय जगह था। उसके बाद वह सिर्फ दो बार मां-बाप से मिलने गया। उसने पढाई बीच ही छोड़ दी जिसके कारण उसके पिता काफी निराश हुए। इसके अलावे उसने एक जाड़ा कुछ पेंटरों के साथ रहते हुए बिताया। फिर उसके बाद वह बाकी जिंदगी बहुत कम पैसों के साथ, धूल भरे रास्तों पर सोते हुए और कभी-कभी दिन भर फाकाकशी करते हुए खुशी-खुशी आवारा जीवन बिताने लगा। वालेस स्टेगनर के शब्दों में,”एवरेट बेहद रुमानी, सौंदर्य प्रेमी और बियाबान की शांति में घूमने वाला आदिम प्रकृति का था।“  18 साल की उम्र में वह जंगल की खाक छानने, पहाड़ों की चोटी पर चढने और सौंदर्य से भरपूर बियाबानों में घूमने के सपने देखा करता था। एवरेट ने जो भी सपना देखा उसे पूरा करने के लिए निकल गया, सालों उन गुमनाम रुमानी जगहों की आवारगी करने के लिए।

जानबूझकर  उसने अपने शरीर को कष्ट दिया ताकि किसी भी परिस्थिति को सहने की क्षमता का उसमें विकास हो सके। जिन बियाबानों की तरफ लोग जाने से मना करते थे वह उसी रास्तों पर जानबूझकर गया। पहाड़ों, घाटियों की आवारगी करते हुए उसने अपने मां-बाप और दोस्तों को लम्बे-लम्बे पत्र लिखे जिसमें उसने समाज और शहरी सभ्यता वाले जीवन की आलोचना की। उसने कई जगहों से ऐसे कई पत्र लिखे। इन पत्रों में एवरेट के प्रकृति से गहरे जुड़ाव और अपनी आवारगी के प्रति दीवानगी का इजहार है। उसने लिखा,”मैं इन बियाबानों में कई खतरनाक अनुभवों से गुजरता रहता हूं और ये सब मुझे बहुत रोमांचित करते हैं। यह मेरे जीने के लिए बेहद जरूरी हैं।“

एवरेट रुस  के पत्र और क्रिस मैकेंडलेस की डायरी और पत्रों में लिखे विचारों में काफी समानता है। एवरेट के पत्रों में लिखे कुछ अंशः-

‘मैं हमेंशा से सोचता रहा हूं कि मैं इसी तरह बियाबानों की अकेली आवारगी भरी जिंदगी जीना चाहता हूं। पगडंडियां मुझे अपनी तरफ खींचती हैं। और, तुम मेरी इस दीवानगी को समझ नहीं सकते। ये अकेली पगडंडियां मेरे लिए बेहतर हैं और मैं कभी अपनी आवारगी नहीं छोड़ूंगा। और जब मेरे मरने का समय आएगा, तो मैं उसके लिए बहुत वीरान और गुमनाम बियबान में चला जाऊंगा।‘

‘प्रकृति का सौंदर्य मेरा जीवन है। मैं शहर में अपने आप को जीवन से कटा हुआ पाता था। वहां मेरे कुछ दोस्त हैं लेकिन उनमें से किसी के अंदर भी मुझे समझने की जरा भी ताकत नहीं थी। इसलिए मैं अकेला उन सबसे दूर चला गया। दुनिया के लोग जिस तरह का जीवन जीते हैं मैं उससे हमेंशा असंतुष्ट रहा। मैंने हमेंशा एक भावपूर्ण और बेहतर जीवन जीना चाहा।‘

‘इस साल अपनी आवारगी में मैंने वैसी जगहों को चुना जिधर साहस की ज्यादा जरूरत थी। और, कितने दिल को छूने वाले खूबसूरत जगहों में गया- दूर तक फैले समतल मैदान, गुमनाम पठारियां, सिंदूरी रेत वाले रेगिस्तान के ऊपर खड़े बड़े-बड़े नीले पहाड़, अनेक घाटियां और इंसानों द्वारा हजारों साल पहले छोड़ दिए चोटियों पर मौजूद झोपड़ें।‘

एवरेट रुस  के इस पत्र के लगभग आधी शताब्दी  बाद क्रिस मैकेंडलेस ने इसी तरह की बात वायन वेस्टरबर्ग को पोस्टकार्ड में लिखाः-

‘मैंने तय किया है कि आवारगी का ये जीवन मैं और जीउंगा। मुक्ति और सौंदर्य के इस रूप को मैं नहीं छोड़ सकता।‘

एवरेट रुस  के विचारों की प्रतिध्वनि क्रिस मैकेंडलेस के उन पत्रों में भी है जो उसने रोनाल्ड फ्रांज को लिखे थे। एवरेट रुस, क्रिस मैकेंडलेस के जैसा ही रुमानी था और दोनों ने ही अपने जीवन की सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। पुरातत्ववेत्ता क्लेबार्न लॉकेट ने 1934 में एक चोटी पर आंसाजी आदिवासियों के घर की खुदाई करते समय एवरेट को अपने यहां रसोईए का काम दिया था। उसने बताया,”एवरेट बेहद लापरवाह तरीके से खतरनाक चोटियों की चढाई करता था।“

इस बात  को एवरेट ने भी बड़े उत्साह से एक पत्र में लिखा,’सैकड़ों बार मैं एकदम सीधी खड़ी चोटियों या ढहते बलुआ पत्थरों पर, पानी या आदिवासियों के घरों की खोज में अपने जीवन को दांव पर लगाकर चढा। दो बार तो जंगली सांढो के हमले से बाल-बाल बचा। इन सब खतरों से बचते हुए मैंने अपनी साहस भरी आवारगी लगातार जारी रखी।‘

उसने अपने आखिरी पत्र में अपने भाई  को लिखाः- ‘मैं जहरीले सांपों और ढहते पहाड़ी ढलानों पर गिरने से कई बार बचा। एक बार तो जंगली मधुमक्खियों ने मुझे डंक मारा। मैं तीन-चार दिनों तक उसके जहर के कारण सो नहीं पाया।‘

एवरेट रुस  भी मैकेंडलेस की तरह शारीरिक परेशानियां से डरता नहीं था, बल्कि जैसे उसका स्वागत करता था। एवरेट ने एक पत्र में अपने दोस्त बिल जैकब को लिखा,”जहरीले फल के असर से छह दिन तक मैं छटपटाता रहा और मेरा दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था। दो दिन तक तो मुझे होश ही नहीं रहा कि जिंदा था या मर गया। गर्मी में दो दिन तक मेरा शरीर ऐंठता रहा और बैचैनी से करवट बदलता रहा, चींटियां और मक्खियां मेरे शरीर पर मंडराती रहीं, जहर के कारण मेरे चेहरे, बाहें और पीठ पर बड़े-बड़े चकत्ते हो गए। मैं कुछ खा नहीं सका- वहां आसपास कुछ नहीं था सिवाय मेरी पीड़ा के। मेरे साथ ऐसी कई घटनाएं हुई लेकिन मैंने जंगल को नहीं छोड़ा।‘

मैकेंडलेस की तरह ही एवरेट रुस ने आवारगी करने से पहले अपना नया नाम रखा- एक नहीं, कई नाम। 1 मार्च 1931 को उसने अपने परिवार को लिखा,’मैंने अपना नया नाम रख लिया है- लेन रेम्यू। आप सब मेरे नए नाम को स्वीकार करें।‘ दो महीने बाद उसन फिर एक पत्र में लिखा,’मैंने फिर से अपना नाम बदल लिया है- इवर्ट रूलेन। पिछले नाम को सुनकर सबको अजीब लगता था और वह नाम फ्रेंच(फ्रांस का) जैसा लगता था।‘ और फिर अगस्त में उसने अपना पुराना नाम एवरेट रुस को अपना लिया, अगले तीन साल तक वह खुद को इसी नाम से बुलाता रहा। डेविस गुल्च घाटी में घुसने के बाद उसने अपना नाम ‘नेमो’ रख लिया जिसका मतलब था, ‘कोई नहीं’। उसने अपने नए नाम को घाटी के भित्तियों के नर्म चट्टानों पर दो बार खोद-खोद कर लिखा। उसके बाद गायब हो गया। उस समय वह बीस साल का था।

अंतिम पत्र उसने 11 नवंबर 1934 को अपने मां-बाप और भाई को डेविस गुल्च घाटी से 50 मील उत्तर के एक जगह एस्केलेंटे से लिखा कि वह एक-दो महीने तक कोई संवाद नहीं कर पाएगा। उसने भाई को पत्र में लिखाः- ‘मैं सोचता हूं, जब फिर से लौट के सभ्यता वाली दुनिया में लौट के जाऊंगा, वह समय जल्दी नहीं आनेवाला है। मैं प्रकृति के बियाबानों में आवारगी करते हुए थका नहीं हूं। मुझे प्रकृति का सौंदर्य और अपने घुमक्कड़ जीवन में हमेंशा से दीवानगी की हद तक आनंद आता रहा है। मुझे मोटरकार के बदले घोड़े की सवारी करना, छत के बदले चमकते सितारों से भरा आसमान, हाइवे के बदले कोई अजनबी और कठिन पगडंडी जो किसी अंजानी जगह ले जाती हो और शहरों के असंतुष्ट माहौल के बदले बियाबान की गहरी शान्ति पसंद है। मैं ऐसा महसूस करता हूं जैसे मैं इसी तरह के वातावरण में जीने वाला आदमी हूं। क्या अब भी तुम यहां जीने की मेरी ईच्छा की आलोचना करोगे? मैं जिस अद्भुत सौंदर्य से घिरा रहता हूं, मेरे लिए इतना ही काफी है। मैं तुम्हारी तरह रूटीन में बंधी वही रोज की एक जैसी जिंदगी जीने के लिए बाध्य नहीं हो सकता। मैं कभी भी कहीं पर स्थायी रूप से नहीं रह पाउंगा। मैं जीवन की गहराई में जाकर बहुत कुछ जान चुका हूं और मैं तुम्हारे जैसे निरर्थक जीवन में वापस नहीं लौट सकता।‘

उस चिट्ठी लिखने के आठ दिन बाद एवरेट  को रास्ते में दो चरवाहे मिले, जिसके कैंप में उसने दो रातें बिताईं। ये दोनों  चरवाहे अंतिम लोग थे जिन्होंने  उसे आखिरी बार जिंदा  देखा था। एवरेट के एस्केलेंटे छोड़ने के तीन महीने बाद, उसके मां-बाप के पास वह सारी चिट्ठियां वापस लौट आयी  जिसे उन्होंने एवरेट को एरिजोना  के पते पर लिखा था जहां एवरेट  काफी लंबे समय तक रूका था।  मां-बाप ने चिंतित होकर एस्केलेंटे के अधिकारियों से संपर्क किया और मार्च 1935 में एक खोजी दल एवरेट को खोजने रवाना किया गया। खोज उन चरवाहों के कैंप से शुरू की गई जहां एवरेट को आखिरी बार देखा गया था। आसपास के क्षेत्रों में खोजने पर डेविड गुल्च घाटी के तलहटी में एवरेट के दोनों गधे मिल गए, जो वहां की झाड़ियों में चर रहे थे। वहां से थोड़ा नीचे की तरफ जाने पर एक कैंप मिला, जिसमें सुबूत मिले कि एवरेट यहां रूका था। उसके पास में ही आदिवासियों द्वारा हजारों साल पहले छोड़े गए एक अनाज भंडारघर के दरवाजे के पत्थरों पर खुदा हुआ था, ‘नेमो 1934’। वहीं पर आदिवासियों के टूटे-फूटे बर्तनों को एक चट्टान पर सजाकर रखा गया था। और नीचे जाने पर तीन महीने बाद खोजी दल ने घाटी के एक दीवार पर फिर वही नाम लिखा पाया, जिसके आसपास आदिवासियों द्वारा बनाए गए रहस्यमय चित्र थे। सिवाय एवरेट के दोनों गधों के एवरेट रुस का कोई भी सामान कहीं नहीं मिला।

सबने ये सोचा कि एवरेट रुस, घाटी की दीवारों पर चढने के दौरान  गिर कर मर गया। उस घाटी की अधिकांश ढलानों पर चढने के रास्ते में चिकनी भुरभुरी  किस्म की चट्टानें थी और इन खतरनाक रास्तों पर एवरेट  के चढने के शौक को देखते  हुए वहां से गिरकर मरने की बात विश्वसनीय लग रही  थी। लेकिन आसपास और दूर  की ढलानों में खोजने के बाद कहीं किसी मानव के अवशेष  का निशान नहीं मिला।

लेकिन ध्यान  देने वाली बात ये थी कि गुल्च  घाटी से आगे एवरेट अपने भारी-भरकम सामानों को बिना गधों पर लादे आगे कैसे जा सकता था? इसलिए इस रहस्यमय परिस्थिति में खोजकर्ताओं के द्वारा  उसकी मौत के बारे में एक दूसरा अनुमान लगाया गया- उस घाटी में घूमनेवाले चोरों के गिरोह ने एवरेट रुस को मारकर या तो उसकी लाश को जमीन में गाड़ दिया या फिर कोलोराडो नदी में फेंक दिया और वे उसका सामान चुराकर ले गए। लेकिन इस अनुमान को साबित करने वाला कोई भी सुबूत नहीं मिला।

एवरेट के अपना नाम ‘नेमो’ रख लेने की बात का राज खोलते हुए उसके पिता ने कहा कि उनका बेटा जूल्स वेर्ने की किताब ‘ट्वेंटी थाउजेंड लीग्स अंडर दी सी’ पढा करता था जिसके हीरो का नाम कैप्टन नेमो था, जो साफ दिलवाला था और जिसने दुनिया की सभ्यता वाले जीवन को छोड़कर, धरती से सारा रिश्ता तोड़ लिय़ा था। एवरेट रुस के जीवनीकार डब्ल्यू एल रुसो उसके पिता की बातों से सहमति जताते हैं और कहते हैं,”उसका संगठित समाज से नाता तोड़ लेना, दुनिया के सुखों को छोड़ देना और घाटी में जाकर अपना नाम नेमो रख लेना इस बात की ओर संकेत करता है कि वह अपनी पहचान जूल्स वर्ने की किताब के नायक से करता था।“

एवरेट रुस  का कैप्टन नेमो से प्यार के प्रकट होने के बाद, उसकी मौत  के रहस्यों की खोज करनेवाले के इस अनुमान को बल मिला कि गुल्च  घाटी छोड़ने के बाद एवरेट  नए पहचान के साथ कहीं किसी कोने में गुमनामी की जिंदगी जी रहा था।

एक साल  पहले एरिजोना के किंगमेन के एक गैस स्टेशन पर मेरी(जॉन क्राउकर) बात वहां एक कर्मचारी से हुई जो बड़े विश्वास से कह रहा था कि वह 1960 के आखिर तक एवरेट रुस को जानता था जो नवाजो(अमेरिकन आदिवासी) इंडियन रिजर्वेशन के एक सुदूर बस्ती में रहता था। उस कर्मचारी के दोस्त के अनुसार, एवरेट ने वहीं एक नवाजो आदिवासी औरत से शादी कर लिया था और उसका एक बच्चा भी था। लेकिन, एवरेट के बारे में इस तरह की सूचनाएं कितने सही हैं, कहना मुश्किल है।

केन स्लेट  ने एवरेट रुस के मौत के रहस्य को खोजने में काफी समय बिताया। केन को यह विश्वास है कि एवरेट 1934 से 1935 के बीच में मरा था और कैसे मरा था, इसका राज वह जानता है। 65 साल का केन स्लेट पेशे से रिवर गाईड(नदियों की सैर करानेवाला) था और स्वभाव से गुस्सैल था। स्लेट उस क्षेत्र में चालीस साल से रह रहा था और एवरेट के बड़े भाई वाल्डो को साथ लेकर उस हर जगह की उसने खाक छानी थी जहां एवरेट गया था; उन सभी लोगों से उसने बातें की थी जो एवरेट से रास्ते में मिले थे।

स्लेट ने बताया,” वाल्डो सोचता था कि एवरेट की हत्या हुई थी लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचता। जिन लोगों पर हत्या करने का संदेह था, मैंने उनकी बस्ती के कई लोगों से बात की। मैं नहीं सोचता वे हत्यारे थे लेकिन कौन जानता है, ऐसा हो भी सकता था। छुपकर कौन क्या करता है, इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। कुछ लोगों का मानना है कि एवरेट घाटी के ढलान से गिरकर मर गया। हां, यह भी सही हो सकता है क्योंकि ऐसा इस देश में होता रहता है। लेकिन मैं नहीं सोचता कि ऐसा हुआ होगा। मेरा मानना है कि एवरेट की मौत नदी में डूबने से हुई।“

एक साल  पहले गुल्च घाटी से नीचे जाते समय केन स्लेट ने करीब चालीस मील पूरब में सेनजुआन  नदी के पास आदिवासियों के अनाज रखनेवाले घर के दरवाजे पर नेमो लिखा देखा। स्लेट  का अनुमान था कि यह नाम डेविस  घाटी के छोड़ने के बहुत दिन  बाद नहीं लिखा गया था।  स्लेट ने आगे कहा,” अपने गधों को उसने वहीं छोड़ दिया और सामानों को कहीं किसी गुफा में छिपा दिया। उसके बाद वह उपन्यास का पात्र कैप्टन नेमो बन गया। नवाजो रिजर्वेशन में उसके कई आदिवासी मित्र थे। इसलिए मैं सोचता हूं कि वह यहां से उधर की ओर चला। नवाजो के लिए जाने के लिए कोलोराडो नदी को पार कर एक पहाड़ी रास्ते से गुल्च घाटी पार करते हुए सैन जुआन नदी तक जाना पड़ता है। एवरेट उसी सैनजुआन नदी को पार करने की कोशिश करते समय डूबकर मर गया। ऐसा मैं सोचता हूं। अगर एवरेट नदी पारकर उस पार जिंदा पहुंच गया होता और नवाजो में रहता तो उसके लिए अपनी पहचान छुपाकर ज्यादा दिन रहना संभव नहीं था। एवरेट वहां के लोगों के बीच ज्यादा दिन तक टिक कर नहीं जी पाता। वह अकेला रहनेवाला आदमी था। एवरेट मेंर स्वभाव जैसा ही था और लगता है कि मैकेंडलेस भी उसी स्वभाव का था। हम किसी का साथ पसंद करते हैं लेकिन लोगों के साथ ज्यादा दिन तक टिककर नहीं रह सकते। इसलिए हम वहां से भाग निकलते हैं और कुछ दिन बाद फिर वापस लौटकर, फिर उस नर्क से निकल आते हैं। यही काम एवरेट भी कर रहा था। एवरेट कुछ अलग किस्म का था। उसने और मैकेंडलेस ने कम से कम अपने सपनों का पीछा तो किया। वही उनको महान बनाता है। उन्होने जो किया, वह बहुत कम लोग कर पाते हैं।“

एवरेट रुस  और क्रिस मैकेंडलेस के जीवन को समझने के लिए उनके कामों और विचारों को गहराई से देखने की जरूरत है। आइसलैंड के दक्षिणी-पश्चिमी किनारे पर एक द्वीप है-पापोस। उत्तरी अटलांटिक से गरजकर आनेवाली तेज हवाओं के चोट को झेलते वृक्षविहीन और चट्टानों से भरे इस द्वीप का नाम यहां पहले-पहल बसने वाले उन आइरिस साधुओं के नाम पर पड़ा जो पापर कहे जाते थे और जो इस जगह को छोड़कर जा चुके थे। मैं(जॉन क्राउकर) गर्मी के एक दोपहर को उन पथरीले चबुतरों के अवशेषों पर टहल रहा था जहां हजारों साल पहले कभी उन साधुओं ने अपना घर बनाया था।

ये साधु आयरलैंड के पश्चिमी किनारे की ओर से नावों से, आइसलैंड के इस पापोस द्वीप पर पांचवीं शताब्दी की शुरूआत में आ गए थे। आयरलैंड से साधुओं का यह समूह अपने छोटे नावों में विश्व के सबसे खतरनाक समंदर में चल पड़ा था, बिना ये जाने कि आगे उन्हें कौन सा जगह मिलेगा या मिलेगा भी कि नहीं। इसी तरह इन साधुओं ने जान दांव पर लगाया और कई बार उसे खो भी दिया- ऐसा करने का उद्देश्य ना तो पैसों की खोज थी और ना ही नाम की और ना ही उन साधुओं को किसी की जमीन पर कब्जा करना था। आर्कटिक के महान खोजी और नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रित्जोफ नानसेन ने बताया,”ये सभी समुद्री यात्राएं शान्त जगहों की तलाश में की गई थी, जहां ये साधु शान्ति से रह सकते थे, दुनिया के शोर-गुल और लालच से दूर।“

आइसलैंड के समुद्री किनारे पर, जहां साधू रह रहे थे, नवीं शताब्दी  में नार्वे के कुछ लोग  चले आए। साधुओं ने उनको देखकर सोचा कि अब उस जगह  पर भीड़ हो रही थी, हलांकि अभी तक वहां के बड़े क्षेत्र  पर कोई भी नहीं बसा था।  सभी साधु अपनी नावों पर सवार हुए और समुद्र में  नाव खेते हुए  ग्रीनलैंड  की ओर चल पड़े। खतरनाक लहरों  वाले उस समंदर में वे इधर-उधर  जाते रहे, उसके पीछे उनके आत्मा  के शांति से जीने की भूख  थी। आत्मा की शांति की इतनी खतरनाक और जान से भी ज्यादा प्यारी तीव्र प्यास, आधुनिक भोगवादी जीवन की कल्पना से भी बाहर की बात है। इन साधुओं के जीवन को जानने के बाद, उनके साहस की पराकाष्ठा और अपनी इच्छा को पाने की दीवानगी की कहानी किसी पर भी गहरा प्रभाव छोड़ती है। इन साधुओं के जीवन से एवरेट रुस और क्रिस मैकेंडलेस के जीवन को समझने में मदद मिलती है।

एंकरेज, 12 सितंबर- पिछले रविवार, अलास्का  के सुदूर बियाबान के एक कैंप में घायल अवस्था में  वहां से नहीं निकल पाने के कारण एक आवारे युवक की मौत हो गई। वह कौन है, अभी पता  नहीं चला है। लेकिन, उसके पास से मिले डायरी और दो नोट से एक दर्दनाक कहानी  का पता चलता है, जिसमें युवक के जिंदा रहने के अथक और निराशाजनक कोशिशें दर्ज हैं। डायरी से पता चलता है कि यह युवक अमेरिकन है और इसकी उम्र 20 से 30 के बीच है। शायद, वह झरने में गिरने से घायल हो गया था और कैंप में तीन महीने से फंसा था। उसने वहां शिकार या जंगली जड़ों को खाकर जान बचाने की कोशिश की, लेकिन वह कमजोर होने से नहीं बच सका। उसने जो दो नोट लिखे हैं, उनमें से एक को वह छोड़ जाता था, जब वह आसपास के क्षेत्रों में भोजन की तलाश में जाता, जिसमें लिखा था कि कोई उसकी मदद करे। दूसरे नोट में उसने दुनिया को अलविदा कहा था।

फेयरबैंक  में हुए पोस्टमार्टम  के रिपोर्ट में कहा गया  है उसकी मौत जुलाई के अंत  में भूख से हुई है। उसके पास मिले नोट में एक नाम  लिखा है, जो विश्वास किया जाता है कि उसी का है। लेकिन, उसकी पहचान के बारे में अभी पुख्ता सुबूत नहीं मिलने के कारण उस नाम को अभी गुप्त रखा जा रहा है। (न्यूयार्क टाईम्स, सितम्बर 13, 1992)

न्यूयार्क टाईम्स में ये खबर छपने से एक सप्ताह पहले से अलास्का  पुलिस उस युवक के असली पहचान  की खोज कर रही थी। मैकेंडलेस जब मरा तो उसके बदन पर एक नीले रंग का शर्ट था। उसकी लाश के साथ मिले रहस्यमयी डायरी के अधिकांश पन्नों में वनस्पतियों से जुड़े गहरे निरीक्षण को लिखा गया था, जिससे यह अनुमान लगाया गया कि मैकेंडलेस जीवविज्ञानी था। लेकिन इस अनुमान से उस लाश के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं चला। न्यूयार्क टाइम्स में छपने के तीन दिन पहले 10 सितम्बर को उस आवारे के मरने की यह खबर एंकरेज डेली न्यूज के मुख्य पृष्ठ पर छप चुका था। जब जिम गिलियन, जिसने एलेक्स को स्टेम्पेड ट्रेल तक छोड़ा था, की नजर उस खबर पर पड़ी, जिसमें एक मैप भी छपा था जिसके अनुसार यह लाश स्टेम्पेड ट्रेल के पास मिला था, तो उसके रोएं-रोएं में सिहरन सी दौड़ गई। उसके मन में एलेक्स की याद अब भी ताजा थी, जो उसके द्वारा दिये गए जूते को अपने जूतों के ऊपर से पहनकर उसकी नजर के सामने से उस स्टेम्पेड ट्रेल की पगडंडी पकड़कर गया था।

गिलियन  ने याद करते हुए बताया,”अखबार में छपी थोड़ी सी सूचना से ऐसा लग रहा था कि यह एलेक्स ही था। मैंने अलास्का पुलिस को बुलाया और कहा कि मैंने इस लड़के को लिफ्ट दिया था।“

“क्या तुम विश्वास के साथ ऐसा कह सकते हो? पिछले एक घंटे में तुम ऐसे छठे आदमी हो जिसने दावा किया है कि इस युवक को जानते हो” अलास्का पुलिस के एक जवान रोजर इलिस ने पूछा। गिलियन ने उसे विश्वास दिलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रोजर हिल को विश्वास नहीं हो पा रहा था। गिलियन ने तब ऐसे कई ऐसे सामानों के नाम बताए जिसका जिक्र अखबार में नहीं था लेकिन जो लाश के पास पाया गया था। तभी रोजर ने नोटिस किया कि उसकी डायरी में पहले पन्ने पर लिखा था,” फेयरबैंक को अलविदा, गिलियन के साथ बैठा, आगे शुभ हो।“ तब तक पुलिस को उस आवारे के पास मिली फिल्म रोल के फोटो से उसकी खुद अपनी खींची गई कई तस्वीरें मिल चुकी थी।

गिलियन  ने बताया,” जब पुलिस वो तस्वीरें मेरे पास लेकर आयी तब तो कोई संदेह ही नहीं रह गया कि वह एलेक्स ही था।“ मैकेंडलेस ने गिलियन को बताया था कि वह साउथ डाकोटा का रहनेवाला था इसलिए पुलिस ने आगे उस युवक के सगे-संबंधी की खोज शुरू कर दी। उसके बाद रेडियो बुलेटिन पर उस गुमनाम मैकेंडलेस के मरने की सूचना प्रसारित की जाने लगी जिसका घर साउथ डाकोटा बताया जा रहा था। कार्थेज, जहां वायन वेस्टरबर्ग के साथ मैकेंडलेस रुका था, साउथ डाकोटा से बीस मील दूर पर बसा एक छोटा शहर था। पुलिस ने सोचा कि उसने युवक के घरवालों को खोज निकाला था लेकिन यह आशा झूठी साबित हुई।

मैकेंडलेस ने बसंत में वेस्टरबर्ग को फेयरबैंक से पत्र लिखने के बाद उसके बाद फिर संपर्क नहीं किया था। 13 सितम्बर को जब मोंटाना के खेतों से काम समेटकर अपने आदमियों के साथ कार्थेज लौट रहा था तो जेम्सटाउन के पास उसके ट्रक में लगा रेडियो बज उठा,”वायन, मैं बॉब बोल रहा हूं।“

“हां, बॉब, बताओ वायन बोल रहा हूं।“

“जल्दी से समाचार सुनो, पॉल हार्वे क्या कह रहा है। वह किसी लड़के के बारे में बता रहा है जो अलास्का में भूख से मर गया। पुलिस नहीं जानती, वह कौन है। लग रहा कि वह एलेक्स है।“

वेस्टरबर्ग  ने समाचार सुना तो उसमें दी गई सूचना से उसे भी दुख के साथ अंदेशा हुआ कि वह एलेक्स ही था। जैसे ही दुखी वेस्टरबर्ग कार्थेज पहुंचा, तुरंत उसने अलास्का पुलिस को फोन कर कहा कि वह मैकेंडलेस को जानता था। तब तक देश भर के मीडिया में उस लड़के के मरने और उसके डायरी आदि के बारे बहुत कुछ प्रसारित हो चुका था। उसके बाद से पुलिस के पास अनेकों कॉल आ चुके थे जिसमें लोग दावा कर रहे थे कि वह उस लड़के से परिचित थे। इस कारण वेस्टरबर्ग के फोन को भी पुलिस गंभीरता से नहीं ले रही थी।

पुलिस ने वेस्टरबर्ग से कहा कि अब तक 150 कॉल आ चुके थे जिसमें एलेक्स को किसी ऩे अपना बेटा बताया तो किसी ने दोस्त, भाई या और कुछ। तब वेस्टरबर्ग ने कहा,”  मैं झूठ नहीं कह रहा। मेरे पास मैकेंडलेस काम कर चुका है और मेरे पास उसका सोशल सिक्युरिटी नंबर मौजूद है।“

वेस्टरबर्ग  को बहुत खोजने पर मैकेंडलेस द्वारा भरे गए दो फार्म मिले। पहले फार्म में उसने झूठी सूचनाएं दी थीं। लेकिन दूसरा फार्म, जिसे उसने अलास्का जाने से दो सप्ताह पहले 30 मार्च 1992 को भरा था, उसमें सही-सही सूचना दी थी। उसमें उसका नाम क्रिस्टोफर जे मैकेंडलेस और सोशल सिक्यूरिटी नंबर- 228-31-6704- लिखा था। वेस्टरबर्ग ने फिर अलास्का पुलिस को फोन किया और इस बार पुलिस ने उसे गंभीरता से लिया।

मैकेंडलेस द्वारा लिखा गया सोशल सिक्यूरिटी नंबर सही निकला। उससे पता चला कि उसका घर उत्तरी वर्जीनिया में था। अलास्का पुलिस ने वर्जीनिया के अधिकारियों को इस बात की सूचना दी। उसके बाद वहां फोन डायरेक्टरी में मैकेंडलेस के फोन नंबर की खोज शुरू हुई। तब तक मैकेंडलेस के मां-बाप उस जगह को छोड़कर मैरीलैंड में जा बसे थे और वर्जीनिया का उनका फोन नंबर नहीं था। लेकिन मैकेंडलेस का बड़ा भाई अन्नाडेल में रह रहा था जिसका नंबर डायरेक्टरी में मौजूद था। 17 सितम्बर को सैम मैकेंडलेस के पास फेयरफैक्स शहर से एक पुलिस जासूस अधिकारी का फोन आया।

सैम मैकेंडलेस, क्रिस से नौ साल बड़ा था और वह भी वाशिंगटन पोस्ट अखबार में किसी आवारा के मरने के लेख को पढ़ चुका था। “मैंने उस लेख को पढ़ा तब दिमाग में दूर तक ऐसा कोई खयाल नहीं आया कि वह क्रिस हो सकता था। मुझे वो पढकर लगा था कि ओह कितनी बड़ी त्रासदी है और उस लड़के के परिवार के बारे में सोचकर भी परेशान हुआ था। कितनी दुखद कहानी थी।“

सैम क्रिस  का सौतेला भाई था जो अपने मां के पास कैलिफोर्निया और कोलोराडो में पला-बढा  था। वह 1987 में जब वर्जीनिया  आया तब तक क्रिस पढाई के लिए अटलांटा जा चुका था।  इसलिए वह अपने भाई से अच्छी  तरह परिचित नहीं था। जब जासूस अधिकारी ने सैम  से फोन पर क्रिस के बारे में बात की तब सैम को लगा,”मुझे विश्वास हो चला था कि वह क्रिस ही था। मैं जानता था कि वह अकेले ही अलास्का गया था।“

जासूस के कहने पर सैम मैकेंडलेस फेयरफैक्स पुलिस विभाग गया जहां अधिकारी ने उसे उस आवारे के पास से मिली तस्वीरें दिखाई, जिसे फेयरबैंक से फैक्स किया गया था। सैम ने उस घटना को याद करते हुए कहा, ”लाश की तस्वीर सिर की तरफ से खींची गयी थी। उसके लंबे बाल, बड़ी दाढ़ी और बदन कंकालनुमा था। मैकेंडलेस तो छोटे बाल रखता था और वह क्लीन-शेव्ड रहता था। फिर भी, निस्संदेह वह क्रिस ही था। मैं तुरंत घर वापस लौटा, अपनी पत्नी मिशेल को साथ लेकर अपने पिता और मैकेंडलेस की मां बिली के पास मैरीलैंड चल पड़ा। मुझे सूझ नहीं रहा था कि मैं ये सब बातें उनको कैसे बता पाउंगा। आप किसी को कैसे कहेंगे कि उनका बच्चा मर चुका है?”

अमेरिका के भोगवादी जीवन से ऊबे क्रिस्टोफर ने खुद को जानने के लिए आवारगी का रास्ता चुना। सारे पैसे दानकर, परिचय-पत्र फेंककर और परिवार को बिना कुछ बताए उसने गुमनामी-घुमक्कड़ी का जीवन जीना शुरू किया। दो साल बाद वह अलास्का के निर्जन इलाके में जाकर रहना शुरू कर दिया। वहां जीवन की विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुए जीवन की खोज जारी रखी। वह ऐसा क्यों बना… अलास्का में उसके साथ क्या हुआ.. यह सब-कुछ जॉन क्राउकर नाम के पत्रकार ने बहुत शोध के बाद अपने किताब ‘Into the wild’ में लिखा। सीन पेन ने इसी नाम से एक बेहतरीन फिल्म बनाई जो विश्व के सौ महान सिनेमा में गिनी जाती है। Into the wild’ का हिंदी में अनुवाद कर रहे हैं युवा पत्रकार राजीव कुमार सिंह। इसका पहला, दूसरा, तीसरा और चौथा पार्ट आप लोग पढ़ चुके हैं। ये था पांचवां पार्ट। राजीव ने इस उपन्यास का अनुवाद करके पत्रकारिता क्षेत्र में दस्तक दी है। उनके अनुवाद में कई कमियां-गल्तियां हैं, ऐसा उनका कहना है। पर इसे एक युवा पत्रकार का शुरुआती गंभीर प्रयास मानते हुए कमियों की अनदेखा की जाए, ऐसा वह अनुरोध करते हैं। राजीव की इच्छा है कि उनके परिचय में लिखा जाए- एक बेरोजगार पत्रकार जिसे एक अदद नौकरी की तलाश है। राजीव से संपर्क rajeevsinghemail@gmail.com के जरिए किया जा सकता है। -एडिटर, भड़ास4मीडिया

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