भोपाल। पिछले 10 दिनों से मध्य प्रदेश जनसम्पर्क संचालनालय के सामने कुछ पत्रकार धरने पर बैठे हुए हैं। आंदोलनकारी पत्रकार विभाग के कुछ अधिकारियों-कर्मचारियों को विज्ञापन शाखा से हटाने की मांग कर रहे हैं। इनमें जनसम्पर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के जनसम्पर्क अधिकारी मंगला मिश्रा का नाम भी शामिल है। चर्चा है कि इस आंदोलन के पीछे कथित रूप से बड़े कहे जाने वाले एवं धंधेबाज़ पत्रकारों की खोपड़ी काम कर रही है।
गौरतलब है कि प्रदेश का जनसम्पर्क विभाग लम्बे समय से तथाकथित पत्रकारों की चारागह बना हुआ है, आलम यह है कि कई पत्रकारों की वेबसाइटें और फीचर एजेंसियां चल रही हैं, जिन्हें हर माह हज़ारों रुपये विज्ञापन के रूप में दिये जाते हैं। धंधेबाजी की पराकाष्ठा देखिए की पर्दे के पीछे से आंदोलन चलाने वाले एक सफेदपोश राष्ट्रवादी पत्रकार की फीचर और वेब साइट को हर माह सत्तर हज़ार रुपये दिए जाते हैं।
चर्चा है कि यही महाशय बिना उन्होंने बिना आरएनआई नम्बर वाले अपने समाचार पत्र को विज्ञापन दिलाने के लिए जनसम्पर्क विभाग पर दबाव बना रहे हैं, लेकिन विज्ञापन शाखा में पदस्थ कुछ अधिकारियों को यह मंजूर नही है औरआरएनआई नम्बर वाले समाचार पत्र को विज्ञापन देने से मना कर दिया है। इन्हीं की तरह कई लोग और भी हैं जो पत्रकारिता के नाम पर शुद्ध रूप से धंधा कर रहे हैं, लेकिन जनसम्पर्क मंत्री के पीआरओ व विज्ञापन शाखा में पदस्थ अधिकारियों ने इस फर्जीवाड़े के विरूद्ध बीड़ा उठाया है, जिससे इनकी दुकानें बंद हो गयी हैं। यही कारण है कि अब वह अपने छर्रों को आगे करके जनसम्पर्क विभाग पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
अरशद अली खान
भोपाल
Comments on “भोपाल के कुछ पत्रकारों के आंदोलन का सच”
आज के समय में लोगो ने पत्रकारिता को धंधा बना लिया है
जनसम्पर्क विभाग भोपाल कौनसा दूध का धुला है ? – अजुर्न राठौर
भोपाल में जनसम्पर्क विभाग के कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ आंदोलन चल रहा है । कुछ लोग इस आंदोलन को धंधेबाज पत्रकारों व्दारा संचालित होना बता रहे हैं ऐसा हो भी सकता है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि जनसम्पर्क विभाग कौनसा दूध का धुला है ? पिछले कुछ महीनों में यह विभाग पूरी तरह से रिश्वतखोरी की भेंट चढ़ गया है ? यकीन न हो तो खुद प्रयोग करके देख लीजिए किसी भी अखबार के टाइटल के नाम पर पहुंच जाइए भोपाल और खुलेआम कमीशन की बात करके जितना चाहे विज्ञापन कबाड़ लीजिए । जनसम्पर्क विभाग तो इस समय रिश्वतखोर अधिकारियों का चरागाह बना हुआ है ऐसे सुरेश तिवारी जैसे अधिकारी इस विभाग का जमकर दोहन कर रहे हैं ये पहले फिल्म विभाग में पदस्थ थे जहां से इन्होंने अपने दोस्तों को बगैर टेंडर के लाखों रूपए छोटी फिल्में बनाने के लिए दे दिए जब इस पूरे मामले की शिकायत हुई तो इन्हें इस विभाग से आयुक्त राकेश श्रीवास्तव ने हटा दिया । लेकिन थोड़े ही दिनों बाद सुरेश तिवारी ने घेराबंदी करके प्रचार विभाग कबाड़ लिया अब यहां भी सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के नाम पर खूब चांदी कट रही है यकीन ना हो तो सूचना का अधिकार जिंदाबाद है । रहा सवाल विज्ञापनों का तो जो बेचारे अखबार सालों से 26 जनवरी और 15 अगस्त जैसे त्यौहारों पर विज्ञापन पाते थे उन्हें भी घर बिठा दिया गया है । हिसाब किताब सीधा सच्चा है कमीशन दे सकते हो तो यहां आऔ नही ंतो अपने घर बैठो । किसने कहा था अखबार या पत्रिका निकालने के लिए ? समाज की पत्रिकाओं के नाम पर जनसम्पर्क विभाग लाखों रूपए लूटा रहा है आखिर जनधन की ऐसी बर्बादी का औचित्य क्या है ?