ब्रिटिश संसद की विशेष समिति को सफाइयां दे रहे मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक को एक घुसपैठिये ने, ‘लालची बिलियोनेयर!’ कहते हुए फचाक से उस पर जब झागदार शेविंग क्रीम फेंका, तो दुनिया ने अपनी आंखों से उसकी फजीहत और विश्व के सबसे ताकतवर मीडिया साम्राज्य के विघटन की शुरुआत देखी। बचपन में एक बाल कविता पढ़ी थी, शीर्षक था, ऑल वॉज लॉस्ट फॉर अ हॉर्स शू नेल (सब कुछ गंवाया बस घोड़े की नाल की एक कील से)।
किस्सा मुक्तसर कुछ यों था, किसी महाप्रतापी राजा ने जंग में जाते समय अपने घोड़े की नाल में ढीली पड़ चुकी एक कील की अनदेखी कर दी। ऐन मौके पर कील गिरने से नाल निकल गई और महाराजा जू का तेज-तर्रार घोड़ा रपट गया। घोड़ा गिरा तो राजा को ताक में खड़े दुश्मन ने तीर का निशाना बना लिया। राजा को यकायक धराशायी होते देख सेना सिर पर पैर रख कर भाग ली और यों महज एक ढीली कील की वजह से परम प्रतापी राजा जंग ही नहीं हारा, राजपाट के साथ जान से भी हाथ गंवा बैठा। ब्रिटिश संसद में अंतरराष्ट्रीय मीडिया जगत के बेताज बादशाह रूपर्ट मर्डोक ने जब संसदीय समिति से माफी मांगते हुए सफाई दी कि उसका विवादास्पद टैब्लॉयड दरअसल उसके मीडिया साम्राज्य का इतना छोटा हिस्सा था कि उसकी कारनामियों को लेकर उनको कोई खास जानकारी कभी नहीं थी, तो इन पंक्ितयों की लेखिका को वही कविता फिर बेसाक्ता याद हो आई।
सिडनी से सैनफ्रांसिस्को तक फैले अपने विराट अंतरराष्ट्रीय साम्राज्य के प्रसार की शुरुआत आस्ट्रेलियाई मूल के रूपर्ट मर्डोक ने ब्रिटेन से ही की थी। तब ब्रिटिश मीडिया को नैतिकता के परे और कॉरपोरेट तिकड़मों के लिए कुख्यात इस मीडिया मुगल के हाथों बिकने से बचाने की बड़ी कोशिशें की गईं। लेकिन मर्डोक ब्रिटिश मीडिया तथा राजनीति के कुछ हिस्सों में कैरेक्टर में आ घुसा ढीलापन परख चुका था। उसने थैली का मुंह खोल दिया। जल्द ही अपना पुराना गरिमामय चोला त्याग कर द लंदन टाइम्स और फिर सन समूह फिर फॉक्स न्यूज उसके न्यूज कॉर्प की घुड़साल में बंध गए। तदुपरांत कानूनी मर्यादाओं के पक्षधर सारे वरिष्ठ संपादकों की जगह खिलंदड़े और तिकड़म से अपराधियों, पुलिस तथा राजनेताओं से ‘मधुर’ रिश्ते बनाने में चतुर युवा बिठाए गए, जिनको हर हथकंडा अपना कर एक्सक्लूसिव स्कूप पाने को मोटे बजट मिले और पेशेवर मर्यादाएं बेवकूफी भरी कह कर त्याग दी गईं। जल्द ही मर्डोक का मीडिया ब्रिटेन में लोकप्रिय चटपटी खोजी खबरों का सबसे तेज प्रतीक और राजनीतिक हलकों में विचारधारा मोडऩे का प्रभावी हथियार बन गया।
अब मर्डोक ने अमेरिका के कई चुनिंदा अखबारों की तरफ भी हाथ बढ़ाया, कई को खरीदा और अंत में लंबी लड़ाई लड़कर वॉल स्ट्रीट के प्रतीक द वॉल स्ट्रीट जर्नल को खरीदने में भी कामयाब हुआ। स्व सेनेटर टेड कैनेडी सरीखे पुराने राजनेताओं की कतई नहीं चली। सब दिन होत न एक समाना। गत दस जुलाई को प्रतिस्पर्धी अखबार द गार्जियन ने शर्मनाक भेद उजागर किया कि राजनीति से फिल्म जगत तक के सेलेब्रिटीज के परम गोपनीय राज और उनकी जिंदगी पर सचित्र चटपटी खबरें छापने के लिए मशहूर मर्डोक के टैब्लॉयड ने 2005 में एक बच्ची के अपहरण के बाद सनसनीखेज अपराध के एक्सक्लूसिव ब्योरे सबसे पहले परोसने को पुलिस को घूस दी और तफ्तीश के बीच बच्ची के फोन को हैक कर दिया। इससे कई जरूरी ब्योरे मिट गए और बच्ची की हत्या कर दी गई। यह भी उजागर हुआ कि इसके बाद बच्ची के घरवालों की लाइनों की भी जासूसी की गई।
मर्डोक के अखबार तथा चैनल लगातार हैकिंग और घूस की मार्फत ब्रिटिश राजपरिवार, नापसंद प्रधानमंत्रियों, हॉलीवुड के सितारों तथा अफगानिस्तान, इराक में मारे गए कई सैनिकों के परिजनों तक के गोपनीय अंतरंग ब्योरे छापकर उनके निजी और सार्वजनिक जीवन को तबाह करने के दोषी कहे जाते रहे हैं, पर आम नागरिक को निशाना बनाना बेहद नागवार पाया गया। चूंकि इसके एक पूर्व संपादक मौजूदा ब्रिटिश प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार थे और मर्डोक की लाड़ली प्रमुख संपादक भी उनकी करीबी हैं, विपक्ष आक्रामक हो उठा और बात ने राजनीतिक रंगत पकड़ ली। मर्डोक को अपने इस साम्राज्य के सबसे (168 बरस) पुराने और बेहद लोकप्रिय ब्रिटिश टैब्लॉयड द न्यूज ऑफ द वर्ल्ड का प्रकाशन बंद करना पड़ा, उसके एकाधिक शीर्ष प्रबंधक व संपादक पुलिसिया गिरफ्त में आ गए। पुलिस प्रमुख को इस्तीफा देना पड़ा, पर खुद मर्डोक तथा उसके बेटे को माफी मांगने के बावजूद ब्रिटेन तथा अमेरिका में कठोर कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। जानकारों की राय है कि पूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन तथा जाने-माने अमेरिकी अभिनेताओं द्वारा अपनी निजी जिंदगी केदुखद क्षणों में ताक झांक के आरोप साबित हुए, तब तो मर्डोक मंडली का भगवान ही रखवाला है।
उम्मीद है कि यह किस्सा हमारे मीडिया के मर्डोकवादियों को भी आगाह करेगा, जिन्होंने लगातार मर्डोक की बिजनेस शैली का अनुसरण किया है। वे कहते रहे कि देखो रूपर्ट कितना लड़ाकू, जुझारू है, कैसे बाजार में पिटते परंपरावादियों को धता बताकर उसने साबित कर दिया है कि पुरानी परंपरा तोड़कर मीडिया बिजनेस भी बेपनाह दौलत कमाने और राजनीति में सत्ता परिवर्तन कराने तक का हथियार बन सकती है। पर अब मर्डोकिया कार्यशैली और उसके पोसे पूंछ हिलाऊ संपादकों को बहुत ज्ञानी, साफ सुथरा और जन हितैषी मानने को कोई राजी नहीं। देशों में मर्डोक के प्रवेश से पहले भी मीडिया में आक्रामक तरीके से खबरें खोजने देनी की परंपरा थी। पर इसके कुछ अकाट्य उसूल थे जिनकी तहत ब्लिट्ज के करंजिया से तहलका के तेजपाल तक सभी मीडियाकार अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल अन्य नागरिकों की आजादी को बेवजह छेडऩे से परहेज करते रहे। टैब्लॉयड अखबार अन्य अखबारों की तुलना में अपनी चटपटी और सेक्सी खबरों की वजह से लोगों, खासकर मजदूरों व निम्न वर्गों में बेहद लोकप्रिय तथा कमाऊ साबित होते हैं, लेकिन वे भी अपराध जगत व पुलिस से अपनी करीबी के बावजूद राष्ट्रीय हितों या सुरक्षा से समझौता नहीं करते। और जब उनसे बड़े लोगों के निजी दु:ख के क्षणों में (जैसे युद्ध काल में या राजकुमारी डायना के निधन पर) बेबाक निजी रंगीन खबरों को न छापने को कहा जाता है, वे सरकारी अनुरोध मानते रहे। पर आज हमारे मीडिया के कई हिस्सों में भी मर्डोक की पैसा फेंक तमाशा देख, विक्रय शैली का साफ असर पेड न्यूज तथा राजनैतिक हितसाधक स्टिंग ऑपरेशनों में झलक रहा है। और प्रेस काउंसिल भी इस पर लगाम साधने से हिचक रही है।
हमारे मीडिया संस्थानों को बात को दबाने की बजाय ईमान से मानना होगा कि संविधान की दी अभिव्यक्ति की आजादी के बंधनों को लगातार ढीला होते देखकर भी उसकी अनदेखी की गई, तो बेलगाम दौड़ते मीडियाई घोड़े और शहसवार दोनों देर सबेर बुरी तरह धराशायी हो जाते हैं। आज का मीडिया उपभोकता-मतदाता बीस बरस पहलेवाला सरल आस्थावान नागरिक नहीं है। उसे सूचना क्रांति ने लोकतंत्र, मीडिया और बाजार की भीतरी सचाइयों की बाबत तमाम जानकारियां हासिल करा दी हैं। वह गैरजिम्मेदारी, शिथिलता और झूठ न सरकार में सहेगा, न बाजार और न मीडिया में।
लेखिक मृणाल पांडे प्रसार भारती की अध्यक्ष हैं. उनका यह लेख अमर उजाला में छप चुका है. इसे वहीं से साभार लेकर प्रकाशित किया गया है.
Comments on “मीडिया में लव, सेक्स और धोखा”
aap ki baat me dum hai
पर मृणाल जी , आप कहां कम हैं ? आपने भी वही किया और कर रही हैं जिसे नहीं करने के लिए ये लंबा लेख परोसा है
thats a real problem
ye to sahi baat hai , or baat me bhi dum hai