ब्रिटिश संसद की विशेष समिति को सफाइयां दे रहे मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक को एक घुसपैठिये ने, ‘लालची बिलियोनेयर!’ कहते हुए फचाक से उस पर जब झागदार शेविंग क्रीम फेंका, तो दुनिया ने अपनी आंखों से उसकी फजीहत और विश्व के सबसे ताकतवर मीडिया साम्राज्य के विघटन की शुरुआत देखी। बचपन में एक बाल कविता पढ़ी थी, शीर्षक था, ऑल वॉज लॉस्ट फॉर अ हॉर्स शू नेल (सब कुछ गंवाया बस घोड़े की नाल की एक कील से)।
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अरविंदजी, भूल सुधार या क्षमा याचना आपके विवेक पर छोड़ती हूं : मृणाल पांडे
आदरणीय अरविंद जी, सामान्यत: मैं निंदापरक टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया नहीं देती लेकिन आपने अध्यापन जैसे पवित्र पेशे से जुडे होने के बावजूद जागरण में छपे सुभाषिनी जी के लेख के आधार पर मुझ पर (बिना मेरी किताब पढने का कष्ट उठाये) साहित्यिक चोरी का जो गलत सलत आरोप लगाया है, उसपर प्रतिवाद ज़रूर करना चाहती हूँ. उम्मीद है अध्यापक होने के नाते आप खुद इस किताब को पढ कर भूल सुधार का प्रयास करेंगे.
साहित्य की चौर्य परंपरा में मृणाल पांडे का भी नाम जुड़ा!
साहित्य की चौर्य परंपरा मे एक नया नाम प्रसार भारती की सर्वेसर्वा मृणाल पांडे का भी जुड़ गया है। 26 अप्रैल के हिंदुस्तान के संपादकीय पृष्ठ पर सुभाषिनी अली ने मराठी से विष्णु भट्ट गोडसे वरसईकर कृत यात्रावृतांत के मराठी से हिंदी अनुवाद को मृंणाल पांडे का अदभुत कारनामा सिद्ध किया है। विद्वान लेखिका को शायद जानकारी नहीं है कि विष्णु भट्ट गोडसे की इस अत्यंत चर्चित पुस्तक का बरसों पहले कई विद्वान लेखकों ने अनुवाद कर दिया है जिनमें पं. अमृतलाल नागर भी शामिल हैं।
प्रसार भारती अध्यक्ष मृणाल पांडे का कार्यकाल बढ़ा
प्रसार भारती के अध्यक्ष के रूप में मृणाल पांडे के कार्यकाल को तीन वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है. सूत्रों ने बताया कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की अध्यक्षता वाली समिति ने मृणाल के कार्यकाल में विस्तार को मंजूरी दी. इस समिति के अन्य सदस्यों में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में सचिव रघु मेनन और भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जी एन रे शामिल हैं.
धंधई लक्ष्मण रेखा से अनजान नहीं थे पत्रकार : मृणाल
सबको खबर देने और सबकी खबर लेने का दावा करने वाला, अपने को जनता का पक्षधर और सबसे तेज, निर्भीक व निष्पक्ष बताने वाला मीडिया राडिया टेपों के प्रकाश में आने के बाद जनता के बीच खुद सवालों के कठघरे में खड़ा है। देर से ही सही, तीन शीर्ष संस्थाओं ने हमपेशा लोगों के साथ इन सामयिक सवालों पर समवेत चर्चा की प्रशंसनीय पहल की। यह सही है कि गहरी स्पर्धा के युग में ताबड़तोड़ जटिल स्टोरी का पीछा करते हुए एक पत्रकार को हर तरह के लोगों से मिलना होता है। पर दलील दी जा रही है कि पत्रकार अगर दोस्ती का चरका देकर (स्ट्रिंगिंग एलॉन्ग) किसी ऐसे महत्वपूर्ण स्रोत से संपर्क साधे, जो कारपोरेटेड घरानों का ज्ञात और भरोसेमंद प्रवक्ता तथा राजनीतिक दलों से उनके हित साधन का जरिया भी हो, तो क्या उससे फोन पर बात करना पत्रकार के दागी होने का प्रमाण है?
घोटाला : अंबिका सोनी मृणाल पांडेय बीएस लाली
राष्ट्रमंडल खेल में घपले-घोटालों की नित नई कहानियां पता चल रही हैं लेकिन किसी की निष्पक्ष जांच नहीं हो रही क्योंकि निष्पक्ष जांच होगी तो कांग्रेसियों के चेहरे पर कालिख पुत जाएगी. बड़े-बड़े घपले-घोटाले करके बिना डकार लिए उसे पचा जाने में माहिर कांग्रेसियों ने पूरे मुद्दे को राजनीतिक रंग दे दिया है. भाजपा नेता सुधांशु मित्तल के यहां छापे डलवाकर भाजपा को इशारा कर दिया कि ज्यादा हो-हल्ला किया तो तेरे लोगों को भी फंसा देंगे.
हर अखबार में दो खेमे हैं : मृणाल पांडे
: एक पाठक के हित की बात करने वाला तो दूसरा अखबार के शेयरधारकों का खेमा : जनसंवाद माध्यम स्वयं तैयार करे ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ : नागपुर में राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान आयोजित : मीडिया जरूरत से ज्यादा अहंकार से ग्रस्त : वर्तमान दौर में बदलती स्थितियों में जनसंवाद माध्यमों को स्वयं आगे आकर अपना ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ तैयार करना होगा। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार व प्रसार भारती की अध्यक्ष सुश्री मृणाल पांडे का। वे नागपुर के धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में आयोजित राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रही थीं। महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा एवं दैनिक भास्कर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का मुख्य विषय ‘राज, समाज और आज का मीडिया’ था।
राजेंद्र कभी नहीं रहे शशि के आदमी!
कहानी दिलचस्प होती जा रही है. जिस राजेंद्र तिवारी को शशि शेखर ने संस्थान के साथ दगाबाजी व विश्वासघात का आरोप लगाकर अचानक झारखंड के स्टेट हेड पद से हटाकर चंडीगढ़ पटक दिया, उस राजेंद्र तिवारी के बारे में सबको यही मालूम है कि उन्हें हिंदुस्तान में लेकर शशि शेखर आए थे. शशि शेखर के ज्वाइन करने के बाद राजेंद्र तिवारी ने हिंदुस्तान ज्वाइन किया, यह तो सही है लेकिन यह सही नहीं है कि राजेंद्र तिवारी को शशि शेखर हिंदुस्तान लेकर आए. हिंदुस्तान, दिल्ली में उच्च पदस्थ और शशि शेखर के बेहद करीब एक सीनियर जर्नलिस्ट ने भड़ास4मीडिया को नाम न छापने की शर्त पर कई जानकारियां दीं. इस सूत्र ने भड़ास4मीडिया को फोन अपने मोबाइल से नहीं बल्कि पीसीओ से किया क्योंकि उसे भी डर है कि कहीं फोन काल डिटेल निकलवा कर और विश्वासघात का आरोप लगाकर उसे भी न चलता कर दिया जाए.
तो इसलिए गाज गिरी राजेंद्र तिवारी पर!
कभी गंभीर-गरिष्ठ साहित्यकारों के हवाले थी पत्रकारिता तो अब सड़क छाप सनसनियों ने थाम ली है बागडोर : झारखंड के स्टेट हेड और वरिष्ठ स्थानीय संपादक पद से राजेंद्र तिवारी को अचानक हटाकर चंडीगढ़ भेजे जाने के कई दिनों बाद अब अंदर की कहानी सामने आने लगी है. हिंदी प्रिंट मीडिया के लोग राजेंद्र पर गाज गिराए जाने के घटनाक्रम से चकित हुए. अचानक हुए इस फैसले के बाद कई कयास लगाए गए. पर कोई साफतौर पर नहीं बता पा रहा था कि आखिर मामला क्या है. लेकिन कुछ समय बीतने के बाद अब बातें छन-छन कर बाहर आ रही हैं.
खबरें खोते अखबार
आज जुझारू पत्रकार हैं पर योग्य संपादक व जुझारू प्रबंधन का अभाव : एक भरोसेमंद मीडिया साइट के अनुसार अभी हाल में दो महिला पत्रकार बुरी तरह उलझ पड़ी। एक का आरोप था कि दूसरी ने अपने दोस्त की मदद लेकर उसका स्टोरी आइडिया एकाधिक बार चुराया था। मामला पुलिस तक गया। बाद में रफा-दफा करवा दिया गया। एक अन्य अखबार ने अपनी साइट पर पहले एक नकली स्टोरी डाली, फिर उसे भी टीपने वाले चैनलों ने अखबारी साइटों के नाम सप्रमाण छापे।
घीसू, धनिया, होरी से बाजार नहीं चलता मृणालजी
मृणाल पांडे ने इस बार सर्वहारा के ज्ञान से लेकर बाजार और हिन्दी पत्रकारों की खोई गरिमा तक पर अच्छा भाषण दिया है। मैंने उन्हें काफी देर से पढ़ना शुरू किया है इसलिए उनके बारे में ज्यादा नहीं जानता पर जो भी पढ़ा है उससे यही लगता है कि वे बड़ी उलझी हुई हैं और गुस्से में भी। यह विडम्बना ही है कि जीवन भर हिन्दी पत्रकारिता करने के बावजूद वे खुद को हिन्दी पत्रकारों की श्रेणी में नहीं रखती हैं। दूसरी ओर, 2002 में नौकरी छोड़ देने के बाद भी मृणाल जी हिन्दी पत्रकारों के बारे में जो सरलीकरण करती हैं उससे मैं आहत होता हूं। कोशिश करूंगा कि अब मैं उनका लिखा न पढ़ूं और इस तरह प्रतिक्रिया करने के लिए मजबूर न होऊं। इसीलिए मैंने जनसत्ता लेना बंद कर दिया पर यशवंत जी ने उनके आलेख को भड़ास पर प्रकाशित कर यह सब करने के लिए मजबूर कर दिया।
हिंदी पत्रकार अपनी निगाहों में अपनी खोई गरिमा पाएं
डुबकीधर्मी देश में सर्वहारावाद : मेरे इस प्रस्ताव से कि हिंदी अखबारों के हर घालमेल का ठीकरा पहले वरिष्ठ संपादकीय कर्मियों पर फोड़ने और फिर उन्हीं से स्थिति बदलने की मांग करने के बजाय, क्यों न खुद आम पाठक भी जागरूक उपभोक्ता का दायित्व निभाते हुए ऐसे अखबारों का समवेत विरोध और बहिष्कार करें, एक महोदय बेहद गुस्सा हैं। उनकी राय में हिंदी अखबारों का आम पाठक तो एक ‘सर्वहारा’ है। पेट भरने की चिंता का उस पर दिन-रात उत्कट दबाव रहता है, इसलिए उससे लामबंद प्रतिरोध की उम्मीद करना गलत है। और उपभोक्तावाद तो नए पैसे का एक निहायत निंदनीय प्रतिफलन और उपभोग का बाजारू महिमामंडन है। इसलिए सर्वहारा को उपभोक्ता कहना उसका अपमान करना है, आदि।
प्रसार भारती को बीबीसी बनाना चाहती हूं : मृणाल
बहुत बढ़िया बात है. हम सब भी यही चाहते हैं. अगर आप ये कर पाती हैं तो निश्चित रूप से इतिहास बदल देंगी. आपके पुराने सारे अपराध लोग भूलकर आपकी जय जय करने लगेंगे. होना भी यही चाहिए. कोई अगर बड़े पद पर जाता है तो उसे मुंशी प्रेमचंद की पंच परमेश्वर वाली कहानी के हिसाब से सही को सही और गलत को गलत कहने का जज्बा पैदा कर लेना चाहिए, भले ही वो अतीत में ऐसा न कर पाया हो. भारत देश और खासकर मीडिया के लोग आपकी तरफ आशा भरी निगाह से देख रहे हैं. ‘दूरदर्शन’ और ‘आकाशवाणी’ को रोल माडल की तरह होना चाहिए. अब तक नहीं हुआ. पर आपके विचार बहुत उम्दा हैं. उम्मीद करते हैं कि आप इस पर खरी उतरेंगी. सारे मीडिया वाले आपके नए चैलेंज और नए काम की तरफ आशा भरी निगाह से देख रहे हैं.
-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
क्या लिखती और क्यों पढ़ी जाती हैं मृणाल पांडे
मृणाल पांडे को प्रसार भारती का चेयरपर्सन बनाने की घोषणा क्या हुई जनसत्ता ने उनका पाक्षिक कॉलम छापने का भी एलान कर दिया। और मृणाल जी ने अपना पहला लेख लिखा – ‘असली चुनौतियां इधर हैं’ जिसे भड़ास4मीडिया ने ब्लॉग जगत के नियतिहीन कोने में दम नहीं शीर्षक से प्रकाशित किया। मैंने पूरा लेख कई बार पढ़ लिया पर समझ में नहीं आया कि मृणाल जी कहना क्या चाहती हैं और जो कहना चाहती हैं उसे साफ-साफ क्यों नहीं कहतीं। भड़ास4मीडिया ने जो शीर्षक लगाया है वह उनके लेख का एक वाक्य है। अपने इस कथन के पक्ष में उन्होंने कुछ नहीं लिखा है और यह बताने की कोशिश भी नहीं की है कि ब्लॉग जगत का कोना क्यों नियति हीन है और उसमें दम क्यों और कैसे नहीं है। दम है यह कैसे समझ में आएगा या माना जाएगा। दम होने का पैमाना क्या है। या दम डालने के लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए। जनसत्ता के शीर्षक – असली चुनौतियां इधर हैं, से भी नहीं समझ में आता है कि इधर का मतलब क्या है। पूरा लेख पढ़कर यही लगता है कि इसमें कोई दम नहीं है। लेकिन उनकी कुछ बातें गौर करने लायक है। सबसे पहले तो उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि हिन्दी मीडिया से उनका क्या तात्पर्य है?
ब्लाग जगत के चंद नियतिहीन कोनों में दम नहीं : मृणाल
इक्कीसवीं सदी के इस पहले दशक ने हिंदी मीडिया को ऐतिहासिक रूप से एक विशाल उपभोक्ता-वर्ग दिला दिया है। और हिंदी की विशाल पट्टी के ग्यारह राज्यों की जनता तक सूचनाओं का इकलौता राजपथ बना हिंदी मीडिया हमें भारत की सूचना-प्रसार दुनिया का बेताज बादशाह नजर आता है। अगर हिंदी पत्रकारिता के पुरोधाओं के सपने संसाधनों के अभाव में साकार नहीं हो पा रहे थे, तो विज्ञापनों की प्रचुर आमदनी से दमकते हिंदी मीडिया को अब तो समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों, संसाधनों को लूटने वाले हर वर्ग से पूरे आत्मविश्वास के साथ बार-बार मोर्चा लेना चाहिए था।
मृणाल पांडे प्रसार भारती की नई चेयरपर्सन
एक बड़ी खबर है. शशि शेखर के चीफ एडिटर बनकर ‘हिंदुस्तान’ अखबार आने के कारण एचटी ग्रुप को टाटा-बाय-बाय करने को मजबूर हुईं मशहूर पत्रकार और लेखिका मृणाल पांडे को प्रसार भारती का नया चेयरपर्सन बना दिया गया है. अभी तक प्रसार भारती के सीईओ बीएस लाली चेयरमैन का अतिरिक्त काम भी देख रहे थे. पिछले साल मई महीने में चेयरमैन पद से अरुण भटनागर के इस्तीफा देने के बाद सरकार ने उनसे कुछ समय के लिए पद पर बने रहने का अनुरोध किया था. भटनागर का इस्तीफा दिसंबर में स्वीकार कर लिया गया था. उसके बाद से लाली ही चेयरमैन का काम देख रहे थे. सूत्रों का कहना है कि शुक्रवार को यूपीए सरकार ने मृणाल पांडे के नाम पर मुहर लगा दी. सरकार ने प्रसार भारती के सदस्य के रूप में तीन लोगों की नियुक्ति को भी फाइनल कर दिया है. इनके नाम हैं श्याम बनेगल, मुजफ्फर अली और सुमन दुबे. श्याम बेनेगल और मुजफ्फर अली जाने-माने फिल्म निर्माता हैं तो सुमन दुबे पत्रकार. प्रसार भारती की नई टीम दूरदर्शन और आकाशवाणी के संचालन के लिए जिम्मेदार होगी.
मृणाल-प्रमोद की कहानी से सबक लेंगे संपादक?
[caption id="attachment_16678" align="alignleft"]विनोद वार्ष्णेय[/caption]एक साल भी न हुआ कि नौकरी लेने वाले खुद नौकरी गंवा बैठे : बीस जनवरी को एक साल हो जायेगा. हिंदुस्तान के कुछ लोग इस दिन को “मुक्ति दिवस” के रूप में मनाने जा रहे हैं. ये वे लोग हैं जिन्हें दो साल के कांट्रेक्ट रिनूअल के दो महीने बाद अचानक आर्थिक मंदी के नाम पर कह दिया गया कि “जाओ, एचटी बिल्डिंग छोड़कर जाओ, मन लगाकर मेहनत करना और ईमानदारी क्या होती है, यह हम नहीं जानते; बस, घंटे भर में जाओ तीस-पच्चीस-छत्तीस साल की तुम्हारी मेहनत क्या होती है, हमें नहीं पता, बस निकल जाओ.” सब जानते थे कि यह मंदी से अधिक सम्पादक की कुटिल और स्वार्थी मानसिकता का नतीजा थी. यह भी सब जानते थे कि मंदी सिर्फ बहाना है, मृणाल पान्डे को कुछ लोगों से छुट्टी पाना है; मैनेजमेंट के सामने कमाल कर दिखाने का खिताब पाना है. और जो चाटुकार नहीं, केवल पत्रकार थे, उन्हें अपने स्वाभिमान की कीमत चुकाना है. यह नया नैतिक शास्त्र था जिसमें संपादक संपादक न रहे, वे मैनेजमेंट की जीभ से निकले शब्दों से हिलने वाली उसकी पूंछ हो गए.
शशि शेखर, जवानी आपकी भी जाएगी
हिंदुस्तान से प्रमोद जोशी, सुषमा वर्मा, शास्त्रीजी, प्रकाश मनु, विजय किशोर मानव हो रहे हैं विदा : ‘इस्तीफा नहीं दिया है’ जैसी बात कहते हुए भी हिंदुस्तान, दिल्ली के सीनियर रेजीडेंट एडिटर प्रमोद जोशी चले जाने की मुद्रा में आ गए हैं। एकाध-दो दिन आफिस वे आएंगे और जाएंगे लेकिन इस आने-जाने का सच यही है कि वे फाइनली जाने के लिए आएंगे-जाएंगे। दरअसल, एचटी मीडिया से हिंदुस्तान अखबार को अलग कर जो नई कंपनी हिंदुस्तान मीडिया वेंचर्स लिमिटेड (एचएमवीएल) की स्थापना की गई है, उसमें रिटायरमेंट की उम्र 60 की बजाय 58 साल रखी गई है। रिटायर होने की उम्र पहले 58 ही हुआ करती थी लेकिन केंद्र सरकार ने इसमें दो साल की वृद्धि की तो नियमतः सभी निजी-सरकारी संस्थानों ने भी अपने यहां 60 साल कर लिया। पर इस लोकतंत्र में नियम केवल नियम हुआ करते हैं, पालन करने योग्य नहीं हुआ करते। कई निजी कंपनियों में तो लोग 44 या 55 की उम्र में ही रिटायर कर दिए जाते हैं। ऐसा ही एक मुकदमा बनारस में चल रहा है।
एचटी ने गलती सुधारी, मृणालजी का नाम हटा
‘एडिटोरियल – हिंदुस्तान’ की हेड अब भी मृणालजी हैं!
सरकारी वेबसाइटें अपडेट न होने की खबरें आए दिन अखबारों में छपती रहती हैं लेकिन अगर एचटी मीडिया की ही वेबसाइट अपडेट न हो तो इसे क्या कहेंगे? जी हां, एचटी मीडिया की वेबसाइट की बात मानें तो हिंदुस्तान के संपादकीय विभाग की सर्वेसर्वा अब भी मृणाल पांडे हैं। तभी तो एचटी मीडिया की वेबसाइट के ‘Contact Us‘ सेक्शन में ‘Key contacts for Hindustan in All‘ में ‘Editorial- Hindustan‘ पर क्लिक करने पर सामने मृणाल पांडे का नाम और उनकी मेल आईडी ‘mpande@hindustantimes.com‘ प्रकट होती है। इस राज की जानकारी एक बेरोजगार पत्रकार ने भड़ास4मीडिया को दी।
पर किसी ने मृणालजी का नाम नहीं लिया

हिंदुस्तान की बरेली यूनिट कई लिहाज से खास है। इसे ऐतिहासिक भी कहा जा सकता है। इस यूनिट ने दो प्रधान संपादक देखे। मृणाल पांडे और शशि शेखर। मृणालजी के जमाने में बरेली यूनिट लांचिंग की तैयारियां शुरू हुई। प्रेस और आफिस का उदघाटन मृणालजी ने अपने हाथों से किया। स्थानीय संपादक रखने से लेकर संपादकीय स्टाफ की नियुक्तियां भी उन्हीं की देखरेख में हुई। पर लांचिंग के वक्त मृणालजी नहीं थीं। उनके पद पर शशि शेखर आ गए। सो, शशि शेखर की देखरेख में बरेली यूनिट की लांचिंग का कार्यक्रम कल संपन्न हुआ। लेकिन दुख की बात तो यह कि लांचिंग समारोह में मृणालजी का कोई नामलेवा तक नहीं था।
हांडी के हर चावल की जांच करना संभव नहीं
[caption id="attachment_15698" align="alignleft"]कुमार सौवीर[/caption]यशवंत भाई, पत्रकार ही नहीं, भारत का जागरूकता के स्तर तक हर पढ़ा-लिखा और मीडिया फ्रेंडली आदमी यह जरूर जानना चाहता है कि आखिर हिन्दुस्तान, मृणाल पांडे और शशिशेखर के मामले में ताजा अपडेट क्या हैं और मृणाल जी द्वारा छोड़ी गयी हिन्दुस्तान की टीम का अब क्या रवैया होगा, बावजूद इसके कि मृणाल जी उन्हें इस्तीफा न देने का निर्देश जैसा सुझाव दे चुकी हैं। भड़ास4मीडिया में यह विषय खूब लिखा-पढ़ा जा चुका है। कुछ लेखकों की निगाह में मृणाल पांडे जी ललिता पवार जैसी खलनायिका दिखायी पड़ती हैं तो कुछ लोग उनमें गुण भी देख रहे हैं। कुछ बातें मैं भी कहना चाहता हूं। मृणाल जी के बारे में मैंने बहुत सुना था। एक बार जोधपुर में अपनी तैनाती के दौरान मैंने उन्हें दीदी कहते हुए एक खत लिखा।
शशि की जगह कोई नहीं रखा जाएगा
अमर उजाला के स्थानीय संपादकों के संबंध में कई अफवाह : दिल्ली संस्करण में गोविंद का नाम जाएगा : निदेशक माहौल सामान्य बनाने में जुटेंगे : शशि के ज्वाइन करने से पहले हिंदुस्तान में सात खबरें रिपीट : मृणाल पांडे और शशि शेखर के अपने-अपने संस्थानों से हटने से इन दोनों अखबारों हिंदुस्तान और अमर उजाला में अंदरखाने जो बदलाव होने लगे हैं, उसको लेकर कई तरह की खबरें हैं। सबसे पहली खबर तो यह कि अमर उजाला प्रबंधन ने अगले कुछ महीनों तक शशि शेखर की जगह पर किसी को भी न लाने का फैसला किया है। ऐसा अमर उजाला में स्थिति को सामान्य बनाने के मकसद से किया गया है। तेजतर्रार निदेशक अतुल माहेश्वरी अब खुद अमर उजाला के कामधाम को देखेंगे।
‘Mrinal ji or Shashi ji are no exceptions’
[caption id="attachment_15094" align="alignleft"]श्रीकांत अस्थाना[/caption]Dear Yash, I hope the ongoing series on changes in the editorial departments of two mainstream Hindi publications must have attracted newer readers to your already most popular portal on media world. I congratulate you for making sincere efforts on bringing out details that might interest the community. Meanwhile, in between the news items and comments on the issue I found certain issues which I think should be addressed in proper reference. Dear, we all are human beings. None of us is god or demon. Every one of us has a trail of successes and failures. Unfortunately, we in our habit of idolization try make idols of common people. We tend to forget that success and failure are relative terms and a situation being described as success may as well be a failure in other terms.
‘कोई इस्तीफा न देगा, शशि को सपोर्ट करें’
मृणाल पांडे ने विदाई समारोह में कर्मियों से अपील की : हिंदुस्तान की प्रमुख संपादक मृणाल पांडे ने कल हिंदुस्तान के दिल्ली स्थित आफिस के न्यूज रूम में सभी सहकर्मियों की बैठक में वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी से प्रतीक चिन्ह ग्रहण किया। उन्होंने हिंदुस्तान के संपादकीय विभाग के अपने सभी साथियों को संबोधित भी किया। फेयरवेल पार्टी, बोले तो, विदाई समारोह सरीखे इस संक्षिप्त आयोजन में मृणाल पांडे ने हिंदुस्तानियों से शशि शेखर को सपोर्ट करने और किसी कीमत पर इस्तीफा न देने का अनुरोध किया। उन्होंने जो कुछ कहा, उसका सार-संक्षेप इस प्रकार है- ”मुझे खुशी है कि मैंने संस्थान को एक ऊंचाई पर पहुंचाया। इस अखबार के पहले बहुत कम पाठक होते थे। पाठक संख्या अब मिलियन में पहुंच चुकी है। मैंने अच्छा काम किया है। एक बेहतर आर्गेनाइजेशन खड़ा किया। मुझे जाना है। कभी न कभी तो जाना है ही। दुनिया से नहीं जा रही हूं।
मृणाल की कंप्लेन पीएम से भी हुई थी

मृणाल पांडे के हिंदुस्तान से जाने की खबर के बाद से कई नई जानकारियां सामने आ रही हैं। भड़ास4मीडिया के पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक हिंदुस्तान, दिल्ली से जिन एक दर्जन से ज्यादा पत्रकारों को एक साथ निकाला गया था, उनमें से कई ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से एचटी ग्रुप के रवैए की लिखित शिकायत की थी। यह लिखित शिकायत भी प्रधानमंत्री की सलाह पर की गई, जिसका उल्लेख शिकायत पत्र के उपर दिए गए पहले पैरे में भी है।
काश, मृणालजी ने भी तब ऐसा किया होता
[caption id="attachment_15672" align="alignleft"]विनोद वार्ष्णेय[/caption]टिप्पणी (2) : मृणाल जी के इस्तीफे की खबर के बाद से लगातार फ़ोन आ रहे हैं. मैं सचमुच चकित हूँ कि लोग इतने खुश हैं. निश्चित रूप से उनमें उनकी बड़ी संख्या है, जो उनके सताए हुए थे. कई की तो वे नौकरी ले चुकी हैं, मेरी भी. मुझे अपने लिए गम नहीं, मैं तो 36 साल से अधिक नौकरी कर चुका. अब मैं समय कां इस्तेमाल पढ़ने में कर रहा हूँ. घर परिवार के लम्बे समय से उपेक्षित काम निपटा रहा हूँ, नियमित लेखन का सिलसिला शुरू होने वाला है़. पर उन्होंने कई ऐसे लोगों को निकाला जो यंग थे. पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे हुए थे. अपना बेस्ट देकर पत्रकारिता और नौकरी के बीच संतुलन कायम किए हुए थे.
मृणालजी, शशिशेखर और एचटी प्रबंधन
टिप्पणी (1) : मृणालजी की हिंदुस्तान से दुर्भाग्यपूर्ण विदाई का समाचार भड़ास4मीडिया से पता चला। उनके जाने पर मिश्रित प्रतिक्रिया भी आपके ही माध्यम से जानी। मृणालजी का मैं भी एक शिकार रहा हूं और मेरा इस्तीफानामा भी भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित हो चुका है। एक निजी पत्र को भड़ास4मीडिया ने सार्वजनिक कर दिया था, फलतः जिसने भी वो पढ़ा होगा, वो यही सोच रहा होगा कि मैं उनके खिलाफ बयान दूंगा। जबकि सच्चाई इसके सर्वथा उलट है। सच तो ये है कि मृणालजी का जाना हिंदुस्तान के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है ही, उससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है उनके घोषित उत्तारधिकारी का नाम। समझ में नहीं आता है कि आखिर एचटी मैनेजमेंट के संपादक चयन का पैमाना क्या है?
आइए, ‘विदाई’ के मर्म को समझें
[caption id="attachment_15668" align="alignleft"]हिंदुस्तान के आज के अंक में मृणाल पांडे के स्तंभ के आखिर में प्रकाशित सूचना[/caption]हिंदुस्तान का आज का अंक और ‘विदाई’ के तीन संदेश : हिंदुस्तान के दिल्ली संस्करण का आज का अंक कई मायनों में ऐतिहासिक है। पूरे अखबार को गंभीरता से देखने पर तीन पन्नों पर एक चीज कामन नजर आती है। वह है- विदाई। पहले पन्ने पर लीड खबर की हेडिंग है : ‘आडवाणी-राजनाथ की विदाई तय‘। पेज नंबर तीन देखकर पता चलता है कि एचटी मीडिया और बिड़ला ग्रुप के पुरोधा केके बिड़ला आज के ही दिन इस दुनिया से विदा हो गए थे। एचटी ग्रुप ने उन्हें स्मरण करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। एडिट पेज देख पता चलता है कि हिंदुस्तान की प्रमुख संपादक मृणाल पांडे इस अखबार से विदा ले रही हैं।
करीबी मायूस, पूर्व हिंदुस्तानी प्रसन्न
क्या प्रमोद जोशी और नवीन जोशी भी जाएंगे : प्रमुख संपादक पद से मृणाल पांडे के इस्तीफे के बाद हिंदुस्तान ग्रुप में हड़कंप मचा हुआ है। दो तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। जो लोग मृणाल पांडे के कार्यकाल में उपेक्षित रहे या निकाल दिए गए, उनके चेहरे तो खिले हुए हैं लेकिन हिंदुस्तान में काम कर रहे ज्यादातर स्थानीय संपादक और संपादकीय विभाग के ज्यादातर वरिष्ठ पदों पर काबिज पत्रकारों के चेहरों पर मायूसी है। सभी को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। कहा जा रहा है कि मृणाल पांडे के जान के बाद दिल्ली संस्करण में नंबर दी की हैसियत प्राप्त वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी भी इस्तीफा दे सकते हैं। इसी तरह लखनऊ में स्थानीय संपादक के रूप में कार्यरत नवीन जोशी के बारे में भी बताया जा रहा है कि मृणाल के जाने के बाद उनका स्थानीय संपादक पद पर लंबे समय तक बने रह पाना मुश्किल है। नवीन जोशी को प्रमोद जोशी के बाद मृणाल पांडे का तीसरा सबसे खास और ताकतवर आदमी माना जाता है। उधर, मृणाल पांडे के कार्यकाल में जिन वरिष्ठ पत्रकारों की अपमानित करके और बिना मौके दिए निकाल दिया गया था, वे लोग इस घटनाक्रम से बेहद खुश हैं। भड़ास4मीडिया से बातचीत में सभी लोग इसे प्रकृति का न्याय बता रहे हैं।
हिंदुस्तान से मृणाल पांडेय गईं
[caption id="attachment_15664" align="alignleft"]मृणाल पांडेय[/caption]हिंदी मीडिया इंडस्ट्री की बड़ी खबर। हिंदुस्तान अखबार की प्रमुख संपादक मृणाल पांडेय ने इस्तीफा दे दिया है। अमर उजाला के ग्रुप एडिटर और डायरेक्टर न्यूज शशिशेखर एक सितंबर से हिंदुस्तान ज्वाइन करने जा रहे हैं। भड़ास4मीडिया को कई विश्वसनीय और उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मृणाल पांडेय ने शशिशेखर की नियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए इस्तीफा दिया है। बताया जाता है कि प्रबंधन ने उन्हें शशिशेखर की नियुक्ति के बारे में जानकारी दी तो मृणाल पांडेय ने विरोध स्वरूप अपना इस्तीफा सौंप दिया। देश की जानी-मानी साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडेय कई वर्षों से हिंदुस्तान अखबार के सभी संस्करणों की प्रधान संपादक के रूप में काम कर रहीं थीं। उनके कार्यकाल में कई बड़े विवाद भी हुए और उन पर कई तरह के आरोप भी लगे। दशकों से जमे-जमाए वरिष्ठ पत्रकारों समेत प्रत्येक यूनिट से कई-कई लोग अचानक निकाल दिए गए। कई लोग हिंदुस्तान के माहौल के कारण खुद छोड़कर दूसरे अखबारों में चले गए।
दिल्ली का एक दिन का स्थानीय संपादक
[caption id="attachment_14749" align="alignleft"]23 अप्रैल 2009 की दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली की प्रिंटलाइन में स्थानीय संपादक के रूप में दिनेश जुयाल का नाम[/caption]दिल्ली ने बहुतों को बनते-बिगड़ते-उजड़ते-बसते देखा है। ‘कुर्सी मद’ में चूर रहने वालों की कुर्सी खिसकने पर उनके दर-दर भटकने के किस्से और दो जून की रोजी-रोटी के लिए परेशान लोगों द्वारा वक्त बदलने पर दुनिया को रोटी बांटने के चर्चे इसी दिल्ली में असल में घटित होते रहे हैं। दिल्ली के दिल में जो बस जाए, उसे दिल्ली बसा देती है। दिल्ली की नजरों से जो गिर जाए, दिल्ली उसे भगा देती है। दिल्ली में स्थायित्व नहीं है। दिल्ली में राज भोगने के मौके किसी के लिए एक दिन के हैं तो किसी [caption id="attachment_14750" align="alignright"]
24 अप्रैल 2009 की दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली की प्रिंटलाइन में स्थानीय संपादक के रूप में प्रमोद जोशी का नाम[/caption]के लिए सौ बरस तक हैं, बस, दिल्ली को जो सूट कर जाए। पर यहां बात हम राजे-महाराजाओं या नेताओं की नहीं करने जा रहे। बात करने जा रहे हैं हिंदी पत्रकारिता की। क्या ऐसा हो सकता है कि दिल्ली से दूर किसी संस्करण के स्थानीय संपादक का नाम उसी अखबार के राष्ट्रीय राजधानी के एडिशन में बतौर स्थानीय संपादक सिर्फ एक दिन के लिए छप जाए? ऐसा मजेदार वाकया हुआ है और यह हुआ है वाकयों के लिए मशहूर दैनिक हिंदुस्तान में। जी हां, दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली का 23 अप्रैल 2009 का अंक देखिए। इसके अंतिम पेज पर बिलकुल नीचे प्रिंटलाइन पर जाइए। इसमें स्थानीय संपादक का नाम प्रमोद जोशी नहीं लिखा मिलेगा। वहां नाम लिखा मिलेगा दिनेश जुयाल का। दिनेश जुयाल भी दैनिक हिंदुस्तान में हैं और स्थानीय संपादक हैं, लेकिन वे दिल्ली के नहीं बल्कि देहरादून संस्करण के स्थानीय संपादक हैं। 23 अप्रैल को जिन पत्रकारों की निगाह प्रिंटलाइन पर पड़ी, वे सभी चौंके थे।
जवाब हम देंगे (4)
मीडिया के घोड़े और उनका सच
मीडिया का एक चेहरा ऐसा भी है जो लोकतंत्र की जड़ों को खोखला करता है। यह लोकतंत्र पाठक-मीडिया या फिर मीडिया-मीडिया के बीच का हो सकता है। मीडिया के इस चेहरे के लिए खबरें और खबरों के पीछे छिपी खबरें महज गॉसिप होती हैं अगर वो उसके आर्थिक उद्देश्यों और बाजारी बादशाही के उद्देश्यों की पूर्ति न करे। मंदी का रोना रोते मीडिया के उस चेहरे को कुख्यात माफियाओं के फुल पेज विज्ञापन छापने पर कोई ऐतराज नहीं।
जवाब हम देंगे (3)
नर्क का द्वार नहीं है नया मीडिया
पिछले हफ्ते इसी दिन हिन्दुस्तान की संपादक मृणाल पांडेय ने नये मीडिया के नाम पर एक लेख लिखा था. अपने लेखनुमा संपादकीय में उन्होंने और बातों के अलावा समापन किया था कि नया मीडिया घटिया व गैर-जिम्मेदार है. बाकी लेख में वे जो कह रही हों पर इस एक वाक्य पर ऐतराज जताने का हक बनता है. नये मीडिया के बारे में जानने से पहले जानें कि मृणाल की नये मीडिया के बारे में यह धारणा बनी क्यों?
जवाब हम देंगे (2)
मृणाल पांडेय के आलेख ‘बदलती अखबारी दुनिया और पत्रकारिता की चुनौतियां‘ के जवाब में भड़ास4मीडिया के पास देश भर के सैकड़ों पत्रकारों ने अपने विचार भेजे हैं। जवाब हम देंगे सीरीज की शुरुआत संजय कुमार सिंह के आलेख से की गई थी। अब बेंगलोर के वेब जर्नलिस्ट दिनेश श्रीनेत ने मृणाल द्वारा उठाए गए बिंदुओं का एक-एक कर जवाब देने की कोशिश की है। जवाब हम देंगे सीरिज में आगे भी पाठकों के लेखों व विचारों को पेश किया जाएगा। –एडिटर, भड़ास4मीडिया
जवाब हम देंगे (1)
स्ट्रिंगरों का माफियानुमा दबदबा और मृणाल जी की हिटलरी !!
दैनिक हिंदुस्तान की प्रमुख संपादक मृणाल पांडेय का संपादकीय लेख पढ़कर ही लगा था कि इसका जवाब लिखना बेहद जरूरी है। मैंने लिखकर रोजी रोटी चलाने की कोशिश की थी पर मामला जमा नहीं और मुफ्त में लिखने का शौक या छपास रोग रहा नहीं। इसलिए लिखना हो नहीं पाया। पर भड़ास4मीडिया के यशवंत सिंह ने मानो चुनौती दी है कि मृणाल पांडेय को जवाब देना बहुत मुश्किल है।
है कोई मृणाल जी को जवाब देने वाला !
”….इंटरनेट पर कुछेक विवादास्पद पत्रकारों ने ब्लाग जगत की राह जा पकड़ी है, जहां वे जिहादियों की मुद्रा में रोज कीचड़ उछालने वाली ढेरों गैर-जिम्मेदार और अपुष्ट खबरें छाप कर भाषायी पत्रकारिता की नकारात्मक छवि को और भी आगे बढ़ा रहे हैं। ऊंचे पद पर बैठे वे वरिष्ठ पत्रकार या नागरिक उनके प्रिय शिकार हैं, जिन पर हमला बोल कर वे अपने क्षुद्र अहं को तो तुष्ट करते ही हैं, दूसरी ओर पाठकों के आगे सीना ठोंक कर कहते हैं कि उन्होंने खोजी पत्रकार होने के नाते निडरता से बड़े-बड़ों पर हल्ला बोल दिया है।
इस्तीफानामा- 3 : मृणाल जी, जा रहा हूं !
मशहूर खेल पत्रकार पदमपति शर्मा के इस्तीफेनामे के पहले व दूसरे भाग के बाद पेश है तीसरा और अंतिम भाग…
”अजय जी से पहली मुलाकात में ही मैंने स्पष्ट कर दिया था कि स्थानीय संपादक पद में मेरी कभी भी रुचि नहीं रही है। मेरी तो यही कामना है कि जब मरूं तो लोग कहें कि देखो, वह खेल वाले पदमजी का शव जा रहा है। हां, चूंकि खेल डेस्क को मास्टर पेज सभी संस्करणों के लिए बनाने हैं, अतः स्वायत्तशासी डेस्क हो। खेल प्रभारी सीधे संपादक से जुड़ा रहेगा।
मृणाल पांडे : संपादक से पहले अब प्रमुख का पद
[caption id="attachment_13758" align="alignleft"]Mrinal Pandey[/caption]दैनिक हिंदुस्तान की प्रधान संपादक मृणाल पांडे के पद से प्रधान शब्द हटाकर सिर्फ संपादक बनाए जाने के बाद अब उनके पद में प्रमुख शब्द जोड़ा गया है। इस तरह अब वे प्रमुख संपादक बन गई हैं। भड़ास4मीडिया पर पिछले दिनों प्रकाशित खबर प्रधान शब्द डिलीट, अब सिर्फ संपादक कहीं जाएंगी के प्रकाशन के बाद अब ताजे घटनाक्रम में उनकी नई पदवी प्रमुख संपादक की हो गई है।
वकीलों के माध्यम से बात करूंगी : मृणाल पांडे
प्रधान की पदवी डिलीट, अब सिर्फ संपादक कही जाएंगी
मीडिया के गलियारों की एक बड़ी चर्चा। दैनिक हिंदुस्तान की संपादक मृणाल पांडेय और उनके कई स्थानीय संपादकों की विदाई के कयास लगाए जाने लगे हैं। इसके पीछे कई मजबूत तर्क है। सबसे बड़ा घटनाक्रम यही है कि मृणाल पांडेय का पद प्रधान संपादक की जगह संपादक कर दिया गया है। इस बदलाव का गवाह है दैनिक हिंदुस्तान का कल और आज का अखबार। प्रिंट लाइन में मृणाल पांडेय का पद घटा दिया गया है।