: मध्य प्रदेश के हिंदी दैनिक ‘राज एक्सप्रेस’ में तीखे और पोलखोल खबरों के प्रकाशन से परेशान मध्य प्रदेश सरकार ने अखबार के मालिक के माल-क्लब-निर्माणों आदि को तुड़वाने-गिराने का जो कार्य शुरू किया है, वह न सिर्फ निंदनीय है बल्कि दूसरे मीडिया हाउसों को सत्ता से पंगा न लेने का इशारा है और मीडिया को सत्ता के असीमित अधिकारों से आतंकित कर सत्ता के तलवे चाटते रहने को मजबूर करने का कुकृत्य भी है :
अरुण सहलोत बिल्डर हैं. बड़े बिल्डर हैं मध्य प्रदेश के. दुस्साहसी हैं. बतौर बिल्डर अच्छा खासा पैसा कमाने के बाद भास्कर वालों की ब्लैकमेलिंग से परेशान होकर इनको जवाब देने के लिए अपना अखबार निकाल दिया. ”राज एक्सप्रेस” नाम से. भास्कर के स्टाफ को मुंहमांगा पैसा देकर अपने अखबार से जोड़ा. मध्य प्रदेश में कई जगहों से राज एक्सप्रेस को लांच किया. अखबार को भी बिल्डिंग बनाने की स्टाइल से चलाते रहे. कभी इस संपादक को निकाला तो कभी उस संपादक को. अरुण सहलोत अचानक निर्णय लेते हैं. हृदयेश दीक्षित आउट. रवींद्र जैन इन. अब रवींद्र जैन आउट हो चुके हैं. रवींद्र जैन ने मध्य प्रदेश सरकार और प्रशासन के खिलाफ जमकर खबरें लिखीं.
सरकार और नौकरशाही के पाखंडों, घपलों को उजागर किया. और करते ही चले गए. रवींद्र जैन के इस तेवर की सबने सराहना की. खुद अरुण सहलोत ने रवींद्र जैन को ब्लैंक चेक दे रखा था, जो चाहे लिखो. सो, एक प्रखर संपादक की भांति रवींद्र जैन ने मध्य प्रदेश सरकार की इतनी बखिया उधेड़ी की सरकार को गुस्सा आ गया. सरकार ने अरुण सहलोत सो निपटाने का फैसला किया. अरुण सहलोत बिल्डर ठहरे और उनका प्राण उनके प्रोजेक्टस में बसता है. सो, सरकार ने उनके प्राण पर अटैक करने का इरादा किया. करीब दस वर्षों पहले बने राज ग्रुप के मकानों व मालों को उड़ा देने का फैसला लिया गया. इसके लिए पुराने कागज पत्तर निकाले गए. गल्तियां व कमियां तलाशी गईं. और एक दिन अरुण सहलोत के ड्रीम प्रोजेक्ट मीनाल मॉल को डायनामाइट लगाकर उड़ा दिया गया.
भोपाल का प्रसिद्ध मीनाल मॉल ढहाए जाने के बाद अब इस माल के आसपास के निर्माणों को ढहाया जा रहा है. इसी क्रम में कल मीनाल मॉल में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करने के नाम पर पहुंचे नगर निगम दस्ते और स्थानीय लोगों के बीच जमकर हंगामा हुआ. इसी हंगामे के दौरान मीनाल माल के पास के बहुमंजिले हेल्थ क्लब के उपरी दो फ्लोर को डायनामाइट से उड़ा दिया गया. नगर निगम का दस्ता जब अतिक्रमण हटाने के लिए मौके पर पहुंचा तो स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया. इस पर गुस्साए नगर निगम कर्मचारियों ने कानून व्यवस्था अपने हाथ में ले ली और वहां खड़े दुपहिए वाहनों के साथ तोड़फोड़ की.
इसके विरोध में लोगों ने प्रदर्शन किया और तोड़फोड़ मचाई. पुलिस के साथ हुई झड़प में कम से कम 15 लोग घायल हो गए. कई गाड़ियों को आग लगा दी गई. इससे पहले 8 मई को अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई करते हुए भोपाल प्रशासन ने मीनाल मॉल के एक बड़े हिस्से को डायनामाइट से उड़ा दिया था. भोपाल के मीनाल रेसीडेंसी में बना हुआ है मीनाल मॉल. सरकार इसे अतिक्रमण बता रही है. लोग कह रहे हैं कि इतने वर्षों से ये अतिक्रमण नहीं था, और आज अचानक ये अतिक्रमण हो गया. मीनाल रेजीडेंसी के लोगों को डर है कि कहीं उनके घरों को भी निशाना न बना दिया जाए. सो, ये लोग विरोध करने को सड़क पर उतर आए हैं.
इस पूरी कहानी से कई सबक मिलते हैं. एक तो ये कि अगर आप पत्रकारिता के नाम पर धंधा करते हैं और फिर सरकार से पंगा लेंगे तो सरकार आपको नंगा कर देगी. बिल्डर अरुण सहलोत ने राज एक्सप्रेस के जरिए मध्य प्रदेश सरकार के कारनामों को खूब उजागर किया-कराया. माध्यम बनाया रवींद्र जैन को. पर सरकार ने अरुण सहलोत के मीनाल माल को उड़ाकर कह दिया कि आप अपनी पत्रकारिता करो, अब हम अपने पावर का ईमानदार इस्तेमाल आपके खिलाफ करेंगे. मतलब साफ है. अगर बिल्डर और बनिये अपने मूल धंधे से खूब पैसा कमाकर पावर को कब्जा में करने के मकसद से अखबार खोलते हैं या चैनल निकालते हैं तो उन्हें एक बात समझ लेनी चाहिए कि अगर उनके तेवर स्वार्थवश कड़क हुए तो उन्हें ये सरकारें औकात में लाने में तनिक देर न लगाएंगी. इस देश और पत्रकारिता के कई दुर्भाग्य हैं.
मीडिया में ऐसे लोग आ रहे हैं जिनका मकसद पत्रकारिता के उच्च मानदंडों का पालन करना नहीं बल्कि अपने मीडिया माध्यम के जरिए सरकार, मंत्री, नौकरशाह को दबाव में लेकर अपना काम कराना और दलाली करना है. जब किसी मीडिया मालिक का कोई काम सरकार, मंत्री या नौकरशाह नहीं करते तो वे अपने अखबार या चैनल को उनके खिलाफ आक्रामक कर देते हैं. सहारा मीडिया का उदाहरण सामने है जिसके सर्वेसर्वा उपेंद्र राय ने प्रवर्तन निदेशालय के एक अधिकारी को इसलिए धमकाना शुरू करा दिया क्योंकि वह सहारा से जुड़े किसी जांच में सहारा के मनमुताबिक काम करने को तैयार नहीं था. तब सहारा मीडिया के लोगों ने उस अधिकारी की कुंडली प्रकाशित करने की तैयारी शुरू कर दी और इसके लिए प्रश्नावली तैयार कर अधिकारी के पास भेज दी. तब उस अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई जिसके बाद मिली फटकार से सहारा समूह हक्का बक्का है.
राज एक्सप्रेस शुरू करके अरुण सहलोत ने सैकड़ों लोगों को रोजगार भले दे दिया हो लेकिन उन्होंने अपने व्यवहार से यह कतई साबित नहीं किया कि पत्रकारिता के प्रति उनका इरादा पवित्र है. ऐसे लोगों को उन्होंने राज एक्सप्रेस में संपादक बनाया जो विचारवान कम, धंधेबाज ज्यादा हों. सो, शुरू में ही राज एक्सप्रेस की छवि मध्य प्रदेश में एक ब्लैकमेलर अखबार की बन गई. रवींद्र जैन को संपादक बनाकर अचानक सरकार के खिलाफ फायरिंग शुरू करा दी गई. तो, सरकार का भी पलटवार करना लाजिमी था. फिलहाल अरुण सहलोत अपने जीवन के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. सरकार के सामने सरेंडर करने का संकेत देने के लिए उन्होंने अपने संपादक की कुर्सी से रवींद्र जैन को हटा दिया. लेकिन सरकार है कि सुन नहीं रही है. मीनाल माल और आसपास के निर्माणों को तोड़े जाने का क्रम जारी है.
सवाल उठता है कि इस जटिल स्थिति में हम-आप किसको सपोर्ट करें. सरकार को या राज एक्सप्रेस को. अगर निर्माण अवैध है तो इतने साल तक सरकार चुप क्यों थी, और इस अवैध निर्माण को बनने देने के लिए जिम्मेदार अफसरों, नेताओं, मंत्रियों पर क्या कार्रवाई की गई… यह बड़ा सवाल है जो सरकार की नीयत पर शक उठाता है. अगर कोई मीडिया हाउस तीखे और तेवरदार खबरें प्रकाशित करता है और इससे खफा होकर बदले में उस हाउस के वित्तीय स्रोत को नेस्तनाबूत करने की सरकारी कोशिश होती है तो इसकी निंदा की जानी चाहिए.
मैं निजी तौर पर अरुण सहलोत के साथ खड़ा हूं. राज एक्सप्रेस के साथ खड़ा हूं. दलालों और दलाली के इस दौर में अगर राज एक्सप्रेस ने सरकार के भ्रष्टाचार व पाखंड का खुलासा किया तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. सैकड़ों अखबार और चैनल निकलते हैं हर प्रदेश की राजधानी से. कितने लोग सरकार के प्रति इतने हमलावर होते हैं जितना राज एक्सप्रेस रहा है. मध्य प्रदेश की सरकार ने राज एक्सप्रेस के मालिक के आर्थिक स्रोत पर हमला करके प्रदेश के दूसरे मीडिया हाउसों को भी औकात में रहने का इशारा कर दिया है. अगर इस समय राज्य सरकार का विरोध नहीं हुआ और सारे मीडिया हाउसों ने मिलकर राज्य सरकार की बैंड नहीं बजाई तो उत्साहित राज्य सरकार कल दूसरे मीडिया हाउसों के मूल धंधों की शिनाख्त कर उनके मालिकों की गर्दन दबोचेगी. तब उनके लिए भी कोई खड़ा नहीं होने आएगा.
मीडिया हाउसों के मालिक अपने गिरेबान में झांकें, ये बहुत जरूरी है. वे एक साथ मलाई खाने और त्याग करने जैसा काम बहुत देर तक नहीं कर सकते. कभी न कभी उनके पाखंड से पर्दा उठेगा. दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर बड़े मीडिया हाउस हैं और पुराने अखबार हैं. इन अखबारों के मालिकों को वो संतुलन पता है जिसके जरिए ये कंटेंट, बिजनेस, गवर्नमेंट, समाज सबको साधते रहते हैं और खुद को नैतिक बनाकर पेश करते रहते हैं, भले ही वे असल में नैतिक न हों. यही कारण है कि इन मीडिया हाउसों के खिलाफ कभी कोई सरकारी कार्रवाई नहीं होती. यहां तक कि ये जब खुलेआम पेड न्यूज करते हैं चुनावों में तो भी कोई नेता मंत्री इनका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, कुछ एक उदाहरणों को छोड़कर. सो, दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण नंगई करने के मामले में लगातार नए रिकार्ड बना रहे हैं.
दैनिक भास्कर ने डीबी नाम से कई तरह के धंधे शुरू कर दिए हैं, पावर प्लांट से लेकर जाने क्या क्या तक का. सरकारें दैनिक भास्कर के मालिकों के आगे बिछी रहती हैं. दैनिक जागरण वालों के भी जाने कितने धंधे हैं, होर्डिंग से लेकर शुगर मिल तक. कभी इनका बाल बांका नहीं होता, अपित नियमों की ऐसी तैसी करके इन मालिकों और इनकी कंपनियों को कई तरह के लाभ दिए जाते हैं. इसी कारण ये अखबार सरकारों के खिलाफ खुद कोई अभियान नहीं चलाते, जब तक कि कोई घपला-घोटाल खुद ब खुद न प्रकट हो जाए. इन बड़े अखबारों की सरकारों के साथ शीर्ष लेवल पर एक अंडरस्टैंडिंग होती है. छोटे मोटे अफसरों, नेताओं आदि को ये अखबार तो निपटाते रहते हैं, खबरें छापते रहते हैं पर सत्ता के शीर्ष पर बैठे किसी शख्स को ये कभी नहीं छेड़ते.
अरुण सहलोत के सामने जो मुश्किल है, जो लर्निंग उन्हें मिल रही है, वह बेजोड़ है. हर मुश्किल में एक अच्छा पक्ष छिपा होता है. अरुण सहलोत अब ज्यादा मेच्योर तरीके से आपरेट करेंगे. उन्हें बड़ा सबक मिला है. उनके आंखों के सामने सत्ता को दोगलापन प्रकट हुआ है. उन्होंने एक साहसी मीडिया मालिक की तरह पूरे प्रकरण को झेला है और झेल रहे हैं. इस सरकारी मार को अगर वे झेल ले गए और टूटे नहीं तो इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले दिनों में अरुण सहलोत मध्य प्रदेश की धरती पर ज्यादा प्रखर व मुखर मीडिया मालिक के रूप में कार्य करेंगे.
इस पूरे प्रकरण में मैं निजी तौर पर अरुण सहलोत और राज एक्सप्रेस के साथ खड़ा हूं. मीडिया हाउस पर सीधे चोट करने की जगह मध्य प्रदेश सरकार ने मीडिया हाउस के संचालन के लिए आने वाले पैसों के स्रोत पर जो प्रहार किया है, वह निंदनीय है. मध्य प्रदेश सरकार के इस कदम के खिलाफ भोपाल समेत पूरे देश के मीडियाकर्मियों को अभियान छेड़ना चाहिए. मैं अरुण सहलोत से यही कहूंगा- डरना नहीं, झुकना नहीं, मुश्किल के दिन हैं दो चार, यह शिवराज भी एक दिन होगा बेकार, तब इससे हिसाब लेना पाई पाई का बार-बार.
यशवंत सिंह
एडिटर
भड़ास4मीडिया
journalist
May 22, 2011 at 7:19 am
aap ne bilkul theek likha hai. lekin media malik sirf dalali kar rahe hai aur patrkar ko aapna naukar samjh rahe hai. inko ye maloom hona chahiye ki patrkarita karna babu giri nahi hai. isme aab bhi pariwar ka balidan hai, Rs. kam hai. iske baad bhi long poori jindgi ise proffes. me bita dete hai. paper sirf patrkar hi nikal sakta hai. MP Govt. ne ek vyapari ke yaha todhphodh shoor ki hai patrkar ke khilaf nahi. isme hum longo ko aane ki abhi jaroorat hi nahi hai.
syed arman
May 22, 2011 at 7:51 am
यशवंत जी ,
अरुण सहलोत के पक्ष में लिख कर आपने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि सहलोत ने आपको मोटा माल दिया है.अरुण सहलोत जैसा निकृष्ट इंसान इस धरा पर नही होगा.ये वो है जो इंसान के रूप में भेड़िया है.इसने पता नही कितने ग़रीबों के परिवार उजाड़े हैं.कितनों को पीट पीट कर अध मरा किया है .सिर्फ़ इस लिए कि वो इसके साथ काम नही करना चाहते थे.कितनों कि सॅलरी मारी है.खुल कर गुंडा गर्दि की है. हिन्दुस्तान का कोई क़ानून इसके संस्थान में लागू नही होता है.लेबर लॉ कि इसने खुल कर धज्जियाँ उड़ाई है.टी.डी.एस.और पी.एफ.गिने चुने लोगों के नसीब है.इसने हर व्यापारिक संस्थान को धमकाया है.एड एजेन्सीस के मालिकों कि मा बहन की है.घोर पापी है ये इंसान.मीडिया कि आड़ में इसने अपने काले कारनामे दबा रखे हैं.सी.बी.आई .और इनकम टॅक्स विभाग के लिए पका पकाया केस है.इसने दौलत किन स्तोत्रो से कमाई है यह भी एक जाँच का विषय है.लिखने से पहले ज़रा एक भोपाल का चक्कर लगालेते तो यह लिखते समय आपकी कलम काँप गयी होती.कृपया दुश्टों और पापीयों का साथ देकर अपनी साख पर बट्टा ना लगाएँ.
shivendra khamparia
May 22, 2011 at 12:51 pm
विश्लेषण के हिसाब से ताली दोनों हाथों से बजती दिखती है मिनाल माल दो चार दिन में तो बना नहीं होगा सवाल इस बात का है की ये अनियमितता पहले दिखाई नहीं देती थी जो आज बखिया उधेडी जा रही है आपने बैलेंस लिखा है सन्देश एकदम साफ़ है खिलाफ लिखोगे तो निपटा दिए जायोगे. एक बात और आग दोनों और बराबर लगी दिखती है
naveen
May 22, 2011 at 2:28 pm
यशवंत जी ………….आखिर आप भी गोली खा ही गये……..चले जहां सब वहां आप भी तो क्या नई बात है….बधाई……आपको……आज से भ़डास फोर मीडिया पढना बंद…
lokendr
May 22, 2011 at 3:20 pm
आप एक अखबार मालिक की हैसियत से अरुण सहलोत का पक्ष ले रहे हो लेकिन इन्होने जो एक अपराधी की तरह अपने संपादक रविन्द्र जैन का फोटो अपने अखबार में छापा है क्या यह सही है आखिर रविन्द्र जैन ने जो ख़बरें इतने दिन तक लिखी क्या यह सम्भव है की वे सब इनकी जानकारी में नहीं थी. एक पत्रकार का अपराधियों की तरह फोटो छपवाने वाले का इससे भी बुरा हश्र होनाचाहिए
shyam
May 22, 2011 at 4:52 pm
sahi likha yasvantji
trpti prasad
May 23, 2011 at 2:35 pm
यशवंतजी, रवीन्द्र जैन को पत्रकारिता के लिए शहीद मानने वाले लोगों को बता दूं कि ये भास्कर से पहले पेज पर विज्ञापन छापकर निकाले गए थे। इन्होंने करोड़ों की दौलत बना ली है, जबकि कभी यह दैनिक स्वदेश में बंडल बांधने का काम किया करते थे।
ratt kaa reporter
May 25, 2011 at 10:16 am
yasvant ji namskar
app ravindra jain ki itni bhadai kyoo kar rahe hai mee nahi janta par itana jantu hu ki ravindra jain jaissa gaddar koi nAHI HAI USNEE JIS THALI ME KHYAA USSI ME CHAD KIYAA JIS NE BHI USKI MADDA KI US NE USKAA HI UPYUOG KIYAA CHEE FIR BOO CHANDA BARGAL VIJAY SUKLLA RAKESH AHNIHOTREE , HARDESH DIXIT KIRSNA MUEEN KHANN SATISH PIMPLEE ETC .
RAVINDRA JAIN PATRCAR KE NAAM PAR EK GALLI HAI PAR APP KYOO USKA SAPOT KAR RAHI HAI YEH SAMAJ SE PARHEE HAI
app ka sathi