गोपाल अग्रवाल मेरठ के प्रतिष्ठित पालिटिशियन, व्यवसायी, लेखक हैं. समाजवादी आंदोलन से गहरा जुड़ाव रहा है. वे गाहे-बगाहे समकालीन हालात पर विविध फार्मेट में लिख-बोल कर अपनी भड़ास निकालते रहते हैं. गोपाल ने ताजी रचना मैडम माया के दौरे पर भेजी है, पद्य रूप में. इसे पढ़ आपको बचपन में रटित ‘गुब्बारेवाला आया’ कविता जरूर याद आएगी. उम्मीद करते हैं कि ”मैडम आयीं…” कविता को बहनजी के अफसरान प्राइमरी स्कूलों में जरूर डलवा देंगे ताकि मैडम की ‘महानता’ वाली तस्वीर गांव-देहात के छोटे-मोटे बच्चों के दिमाग में छुटपन से ही टंक जाए. जय हो. -यशवंत
मैडम आयीं, मैडम आयीं
-गोपाल अग्रवाल-
मैडम आयीं, मैडम आयीं
दीखे न कोई परछायीं
चप्पे-चप्पे वर्दी वाले
बल्ली पीछे भोले भाले
धड़कन थमे लगे जिसकी पुकार
किसी को फटका किसी को दुलार
थाना तहसील थे गुलजार
दस दिन से थमा था बाजार
उड़न खटोला गुर्र गुर्रे
बच्चे बोले हुर्र हुर्रे
काले झंडे कोई दिखाता
मुँह लटकाता कोई रह जाता
मैडम गयीं मैडम गयीं
सिस्टम को रूखसत कर गयी
फिर से मचेगी धमा चौकड़ी
ठगी रह गई लल्लू की खोपड़ी
रचनाकार गोपाल अग्रवाल से संपर्क agarwal.mrt@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.
Comments on “मैडम आयीं, मैडम आयीं”
bhahi mast likha hai apne maza aa gaya padh kr
ha..ha..ha..ha.. bahut khub.