यशवंतजी, पत्रकार राहुल कुमार का प्रकरण मुझे याद है। अभी मैं इस चर्चा में नहीं पड़ रहा हूं कि पुलिस को उसके खिलाफ कार्रवाई करना चाहिए कि नहीं या कार्रवाई सही है अथवा गलत। मुझे लग रहा है कि इस मामले से खुद को जोड़कर आप भी उसी भावुकता का परिचय दे रहे हैं, जो राहुल ने दिया था।
राहुल ने जो किया, उस पर कायम रहा और वह तो आपको ही गलत बता रहा था। ऐसे में आप इस मामले से खुद को जोड़कर राहुल को बिलावजह मजबूती दे रहे हैं। हालांकि यह आपकी संपादकीय आजादी का मामला है और मैं आपको बिना मांगे सलाह दे रहा हूं। जहां तक मुझे याद है, राहुल कुमार का लेख छपने के बाद पुलिस ने जब जांच-पड़ताल शुरू की तो आप राहुल के साथ पुलिस जांच में सहयोग के लिए गए थे।
वहां आपकी जो बातचीत हुई और उसके बाद लेख को साइट से हटा लेने के आपके निर्णय को राहुल ने आपकी कमजोरी मानते हुए दूसरा लेख दे मारा था और आपने अपनी सफाई के साथ उसे भी प्रकाशित किया था। मेरा मानना है कि मूल लेख घोर आपत्तिजनक था और आपने जो सफाई दी थी उस पर यकीन न करने का कोई कारण नहीं है और उसे हटा लेना कोई कायरता नहीं थी और न उस पर टिके रहना कोई अक्लमंदी। इसीलिए दिल्ली पुलिस ने आपको पार्टी नहीं बनाया है और राहुल के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।
लेकिन आप लिख रहे हैं, ” …ऐसे में दिल्ली पुलिस का राहुल को दोषी मानते हुए उनके खिलाफ एफआईआर लिखना और उन्हें फरार घोषित करना चिंताजनक है। अगर वाकई लेखक के रूप में राहुल कुमार दोषी हैं तो प्रकाशक के रूप में मैं खुद भी दोषी हूं, तो दिल्ली पुलिस को मेरे खिलाफ भी उसी एक्ट के तहत एफआईआर लिख लेना चाहिए।” आपने यह नहीं लिखा है कि आलेख को हटाने के बाद राहुल ने क्या लिखा और किया।
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मुझे लगता है कि लेख हटाए जाने के बाद आपने और राहुल ने जो लिखा उसी से पुलिस की आगे की भू्मिका तय हुई। राहुल को मैं नहीं जानता और अगर वह अपने पुराने पते पर नहीं है तथा पुलिस को बताए बगैर (अगर उसे मुकदमे की जानकारी नहीं होगी तो उसे पुलिस को सूचना देने की कोई जरूरत नहीं लगी होगी) कमरा बदल लिया हो, वापस अपने घर बेगूसराय चला गया हो तो पुलिस की नजर में वह फरार ही है।
ऐसे में आपकी यह अपील, ” ….इस प्रकरण में राहुल कुमार को अपराधी नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि हमने-उनने प्राथमिक तौर पर अपनी गलती स्वीकार कर ली थी…” तथ्यों से अलग है। पता नहीं आपने राहुल के दूसरे लेख का जिक्र क्यों नहीं किया है पर मुझे लगता है कि पुलिस की कार्रवाई उसके दूसरे लेख के कारण है- पहले का मामला तो आपने बताया ही था, लगभग निपट गया था। आम मान्यता है कि पाठकों की याददाश्त कमजोर होती है पर ध्यान रखिए आपके पाठक पत्रकार हैं।
हम पत्रकारों के साथ एक दिक्कत है कि किसी से हिसाब बराबर करने के लिए भी हम अपने कलम का उपयोग करते हैं। वैसे ही जैसे खुशवंत सिंह ने अरूण शौरी के खिलाफ किया है। पर जब दूसरा पत्रकार नहीं होगा तो वह बदले की कार्रवाई अपने हथियार (पुलिस डंडे से, वकील कानून की पेचीदगी से, अपराधी हथियरा व पैसे) से ही करेगा और तब हम पत्रकारीय आजादी का रोना रोने लगते हैं। देश का आम आदमी किसी सिपाही से पंगा नहीं ले सकता है।
राहुल कुमार पत्रकार हैं तो गृहमंत्री से पंगा ले रहे हैं। यह कम नहीं है। उन्हें अपनी कलम की ताकत तो मालूम है पर गृहमंत्री की ताकत का अंदाजा नहीं है। जबकि अनुभव की बात बताऊं तो अभी तक कोर्ट कचहरी का कोई चक्कर नहीं लगा है पर जो थोड़े बहुत अनुभव हैं उसके आधार पर यही मानता हूं कि अदालत से सजा या गैर जमानती मामले में जेल हो आना तो बहुत बड़ी बात है, गवाह के रूप में भी पुलिस अदालत का चक्कर पड़े तो वाकई नानी याद आ जाती हैं।
ऐसे में आपका यह कहना, ” …इस मसले पर मैं देश के (खासकर दिल्ली-एनसीआर के) सभी पत्रकार साथियों से अपील करूंगा कि वे राहुल कुमार को पुलिस द्वारा फंसाए जाने का विरोध करें और अपनी नाराजगी, अपना विरोध, अपना अनुरोध प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री पी. चिदंबरम तक पहुंचाएं” मेरे ख्याल से गैर-जरूरी है। मेरा मानना कि इस मामले में पुलिस क्या करती है और राहुल कुमार का स्टैंड क्या होता है, यह देखने वाली चीज होगी। इसके अलावा, मैं नहीं समझता कि पुलिस ने राहुल को फंसाया है। मेरा मानना है कि राहुल ने जानबूझकर देश के गृहमंत्री से पंगा लिया है और यह पत्रकार के रूप में कम, राहुल कुमार के रूप में ज्यादा था।
ऐसे में राहुल को खुद निपटने देना चाहिए। पुलिस ने अगर उन पर कानून की कुछ धाराएं लगाई हैं तो राहुल और उनके वकील इसका कानूनन जवाब देंगे या माफी मांगेंगे। हमें-आपको जब लगेगा कि पुलिस ज्यादती कर रही है तो राहुल का साथ देने और पुलिस (या गृहमंत्री) का विरोध करेंगे। पर अभी तो मामला शुरू ही हुआ है। राहुल को खुद निपटने दीजिए। उसने तो आपको कायर और डरपोक कहा ही था। हमें जरा उसकी बहादुरी भी देखने दीजिए।
लेखक संजय कुमार सिंह लंबे समय तक हिंदी दैनिक जनसत्ता में वरिष्ठ पद पर कार्यरत रहे हैं. इन दिनों बतौर उद्यमी अनुवाद कंपनी का संचालन कर रहे हैं. उनसे संपर्क anuvaadmail@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.
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Comments on “यशवंतजी, हमें जरा राहुल कुमार की बहादुरी भी देखने दीजिए!”
दरअसल, यशवंत की हालत कुछ ऐसी है, जैसे:-
दूसरों की मदद करने के लिए खुद ही किसी खूंटे पर बैठ कर उठक-बैठक लगाता विदूषक।
उसका लेख भी छापा, गालियां भी छापीं और गालियां खायीं भी। दिल्ली पुलिस मुख्यालय तक गुनाह बेलज्जत दौड़ भी लगायी और फट्टू होने का विशेषण भी किसी परमवीर चक्र की तरह हासिल कर लिया। बीसियों गालियां दे गया यह राहुल। अबकी बार दिखे तो साले को वहीं जुतिया लेना, पानी पिला-पिलाकर। लेकिन मैं जानता हूं कि यह काम तुमसे होगा नहीं। सौ सौ जूता खाये, तमाशा घुस कर देखै।
इसे ही कहते हैं कि चले थे हरि भजन को और ओटन लगे कपास।
खैर, अब बताओ, क्या करना है।
अभी तो पूरे देश के पत्रकारों को राहुल की बेहूदगी का समर्थन करने के लिए बांग लगा रहे थे- लाउडस्पीकर पर।
अब बजाने के लिए पिपिहरी तक नहीं बची, जिसकी लड़ाई लड़ने के लिए इतना हल्ला-गुल्ला मचा रहे थे, वही अपने छुपने के लिए सराय खोजने बेगू भाग गया।
चलो, हम तो खैर उस हर शख्स के साथ हैं जो दूसरों की मदद करने के लिए अपना सिर खुद ही ओखली में डाल लेता हैं।
मगर कुछ भी हो भैया, कम से कम मैं तो यशवंत के साथ हूं
।
कुमार सौवीर, लखनऊ
चाहे जो भी हो, राहुल की लेखनी आग बरसाती थी। मैं तो उसके पहले लेख ”मैं मर्द हूं, तुम औरत, मैं भूखा हूं, तुम भोजन!!” का फैन हो गया था जिसमें उसने मीडिया में हो रहे नारी शोषण पर करारा व्यंग्य किया था। हो सके तो उस तक मेरा सैल्यूट (लाल सलाम नहीं) पहुंचा दें।
yashwant ji lagta hai sanchar madhyamo ke sastepan ke chakkar me sasti baaten bhi hone lagee hai….. patrakar apni seema aur maryadayen bhul rahe hai… shabdo me sastapan aa chuka hai…..Rahul ji ki kalam me takat hai to aaj kanoon unko galat kyu keh raha hai…rahul ka ek aur lekh maine padha tha jo had darje tak starheen tha…isse aapki website ki trp bhale hi badhe per isse galat (rahul) logo ka hausla bhi badhta hai….Sauweer ji ne jpo bhi kaha hai uchit kaha hai….