राज एक्सप्रेस का इतिहास गवाह है कि यहां पर कोई भी स्थायी तो क्या लंबे समय तक टिकाऊ भी नहीं है। यही वजह है कि बदलाव की बयार की चपेट में इस बार रविंद्र जैन आए हैं। रविंद्र जैन अपने आपको समूह संपादक कहा करते थे(वैसे कभी भी उनका नाम मध्यप्रदेश से प्रकाशित होने वाले राज एक्सप्रेस के सभी संस्करणों में इस पदनाम के साथ नहीं गया और हमने भड़ास पर ही पढ़ा था कि उनका पद भी बढ़ गया है और सैलरी भी)।
उनके पद और कद को कतरते हुए अब उन्हें सिर्फ भोपाल संस्करण तक सीमित कर दिया गया है। ग्वालियर संस्करण में अभी तक अरुण सहलोत का नाम प्रधान संपादक के रूप में जा रहा था। अब इसमें स्थानीय संपादक के रूप में मिलिंद बायवार का नाम जुड़ा है। इसी तरह जबलपुर एडीशन में स्थानीय संपादक के रूप में प्रभु मिश्रा का नाम जाने लगा है। यह बदलाव रविवार से शुरू हो गया है। माना जा है कि रविंद्र जैन द्वारा ग्वालियर-जबलपुर एडीशन में किए जा रहे अनावश्यक हस्तक्षेप के चलते उनका कद और पद सीमित कर दिया गया है।
भड़ास4मीडिया के पास आई एक मेल पर आधारित. अगर इस सूचना में दिए गए तथ्यों पर किसी को आपत्ति हो तो अपनी बात नीचे कमेंट बाक्स के जरिए कह सकता है.
विवेक
January 11, 2011 at 10:04 pm
यही वो खबर थी जिसके कारण रविन्द्र जैन का नाम राज एक्सप्रेस के सभी संस्करणों से हटा दिया गया है, और उसे भी हटाया जा रहा है. आपने ये खबर नहीं दी थी. रवींद्र ने राज एक्सप्रेस मे सभी को सार्वजनिक रूप से कहा था कि भड़ास कि हिम्मत नहीं है कि मेरे खिलाफ कुछ छाप दे, जश्न की जांच के बाद ही अरुण सहलोत ने रविन्द्र के नाम को हटाया है.
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समूह संपादक की शादी की सालगिरह का जश्न
रविवार को भोपाल में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बतौर मुख्यमंत्री पाँच साल पूरा करने पर एक विशाल जमावड़ा हुआ। भाजपा के सभी बड़े नेता इस दिन भोपाल में जमा थे। बताते हैं कि इसके लिए पूरी सरकारी मदद ली गई। लेकिन, इसके अलावा एक और बड़ा आयोजन राज एक्सप्रेस के समूह संपादक रविंद्र जैन की शादी की 25वीं सालगिरह का भी हुआ। इसके लिए भी जमकर चंदाखोरी हुई! बताते हैं कि यह आयोजन भाजपा के कार्यक्रम वाले दिन किए जाने के पीछे की रणनीति यह थी कि भोपाल आने वाले नेताओं को भी इसका हिस्सा बनाया जाए और एक प्रशर टेक्टिस बिल्डअप की जाए। यह रणनीति पूरी तरह कामयाब नहीं हुई, क्योंकि जमावड़े से ऊबे नेता भागने की फिराक में थे।
राज एक्सप्रेस के इस समूह संपादक के बारे में कहा जा रहा है कि शादी की रजत जयंती के लिए भोपाल के अलावा इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर के अधिकारियों से वसूली की गई थी! खास कर आयकर, वाणिज्यकर, विकास प्राधिकरण, नगर निगम समेत कई दफ्तरों में अधिकारियों को धमकाया गया कि वे शादी की गिफ्ट के नाम पर कुछ न कुछ दें। किसी ने दिया तो किसी ने साफ मना कर दिया। जिसने नहीं दिया, उसे चंदा खोरों ने धमकी भी दी कि उन्हें बाद में देख लिया जाएगा! सालगिरह मनाने वाले संपादक ने इंदौर में अपने एक गुर्गे के मार्फत तो कई विज्ञापनदाताओं से केश ट्रांजेशन कर लिया। आधा अपनी जेब में रखा और आधा भोपाल भेज दिया!
रविंद्र जैन के बारे में विख्यात है कि उन्होंने राज एक्सप्रेस का भट्टा बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे अखबार के समूह संपादक हैं, पर किसी एडीशन में स्थानीय संपादक नहीं है। सारा कंट्रोल भोपाल से चलता है और एडीशनों को लंगड़ा करके रख दिया। ऐसी हालत में अच्छा खासा संस्थान मर गया और कई पत्रकार बेरोजगार हो गए। इसके बावजूद रविंद्र जैन ने नासमझ मालिक अरूण सहलोत को भरोसा दिला रखा है कि हम होंगे कामयाब एक दिन … पर कब? यह तो शायद कभी होगा नहीं, क्योंकि राज एक्सप्रेस जिस तरफ बढ़ रहा है, वहाँ सिर्फ गहरी खाई है और कुछ नहीं!
rakesh
January 10, 2011 at 7:51 am
ravindra yaad hai? kuch samaye pahle jab tumne kisi ko replace kiya tha tab mote pet par belt aur kale dil par tye kaste hue kaha tha-MD SIR KAM KARNE WALO KO PASAND KARTE HAI< FALTU LOGO KO NAHI> ab achanak kya ho gaya? AAP FALTU HO GAYE> AAPKE PAR KATAR DIYE GAYE> ab logo se yahi kahaoge- kam ka load tha, isliye maine khud ko baki edition se door kar liya> bahiya itna bhe DOOR MAT KARNA KI BAHAR HE HO JAOO> aap jase logo malik samajta to hai par deer se. CHALAO MD SIR NE AAPKA KALA DIL TO PACHANA>
तनवीर बक्षी
January 10, 2011 at 8:36 am
सुना है कि राज एक्सप्रेस अखबार के मालिक अरुण सहलोत ने अपने करीबियो को इत्तला कर दिया है कि रविन्द्र जैन पर वह कड़ी कार्रवाई के मूड में है क्यूंकि जैन जी ने अपने किये वादे अब तक पूरे नहीं किये है और तो और जितना वादा किया उतना तो छोडिये उसका 20 टका भी नहीं कर पा रहे है , मध्य प्रदेश के नौकरशाहों का एक समूह रविन्द्र जैन के राज से निकाले जाने का इंतज़ार कर रहा है . इंतज़ार क्यों किया जा रहा है ये तो सभी को पता है .
pankaj
January 10, 2011 at 6:48 am
Kar bhala to ho bhala
aur
Kar bura to ho bura
Kyo is janam me kabha kisi ke saath accha kiya hai nahi na to bhugto bacchu RAJ EXPRESS ek aisa laddo hai jo khaaye vo bhi pachtai jo na khaaye vo bhi pachtai to aap ne khhake pachtaya kyo ab ye na leelte banraha lai na ugalte
हुकुमचन्द्र ठाकुर
January 10, 2011 at 6:43 am
इस मक्कार का हश्र यही होना था ,अभी कुछ दिन पहले इस दुर्जन ने आरटीआई के दुरूपयोग की जो दास्ताँ लिखी उसे देखकर पत्रकारिता का दामन जो दागदार हुआ है उसे धोना केवल रविन्द्र जैन रुपी ” लीत पत्रकारिता के रावण ” के दहन से ही मुमकिन है . आरटीआई क़ानून को जनहित से ना जोड़कर धनहित में जोड़ने वाला ये मक्कार पत्रकार नहीं बल्कि तस्कर है , इस धूर्त व्यक्ति का पत्रकारिता में आना एक काला अध्याय मानकर इसे भूलाना ही पत्रकारिता के मूल कर्तव्यों से अपने को जोड़ना होगा.
Raman Singh
January 10, 2011 at 6:42 am
अरे रविन्द्र जी ये क्या हुआ. आप तो कहते थे कि भड़ास वाला यशवंत आपकी जेब में है. आप जिसके खिलाफ चाहें छपवा सकते हैं, आपने कई लोगों के खिलाफ झूठे समाचार भड़ास में छपवाए भी, लेकिन आज तो आपके खिलाफ ही छप गया. क्या हुआ आप जो भड़ास वाले यशवंत को हर महीने मुद्राएं भेजा करते थे वो भेजना बंद कर दीं या वो सब झूठ था.
जीवन जैन
January 10, 2011 at 6:36 am
रविन्द्र जैन के बारे में मशहूर है कि ये जनाब मंत्रालय में बैठे अफसरों के केबिन खाली झोला लेकर जाते है और उनको ब्लेकमेल करके झोला भर भर कर बाहर निकलते है .मजेदार बात तो ये है कि जे महाशय अपने मालिको को उल्लू बनाकर उस झोले में आये रुपये बड़े होशियारी से अपने जेब में भर लेता है , यहाँ तक कि अपने बेहद अनुशासित समाज में भी ये बंधू अच्छे खासे बदनाम है परन्तु सत्ता के नज़दीक बैठे इस पत्रकार की आभा से भयाक्रांत समाज के लोग खुद खुलकर विरोध नहीं कर पाते है . अपने मालिक को आर्थिक रूप से चपत लगाने वाले सेंधमार रविन्द्र जैन की दुर्गति का तो अभी ये ट्रेलर है “बोया बीज बबूल का तो आम कहा से होय”
कृष्णा
January 10, 2011 at 6:32 am
सच है मध्य प्रदेश में पत्रकारिता कम..पक्षकारिता ज्यादा होती है…अबे साले चूतियें शुभचिंतक…रवींद्र जैन के बारे में इस तरह के विचार लिखके ये तो तूने साबित कर दिया कि तू अबल दर्जे का चुतिया है..बराबरी कर ना….बुराईक्यों कर रहा है….
atul
January 10, 2011 at 6:30 am
aalok je sahi likha. bhopal se 800 kilometer door baitha aadmi sirf dadandas bandha sakta hai, jo kam aap bakahui kar rahe hai. jo khabar hai uske mutabik ravindra jain apne bhai prem ke chalte nipat gaye. unka bhai gwalior me chember ka chunav lad raha hai aur ravindra ne raj express ko bhai liye pemplet bana rakaha tha jo bat malik ke kanoo me pauch gaye. ab be jabalpur-gwalior edition me tang nahi aada sakte. jaisa kiya vaisa bhara.
bawra
January 9, 2011 at 6:22 pm
सरासर झूठ बोले जा रहा है
हुंकारी भी अलग भरवा रहा है
ये बंदर नाचता बस दो मिनट है
ज्यादा पेट ही दिखला रहा है
दलालों ने भी ये नारा लगाया
हमारा मुल्क बेचा जा रहा है
तुझे तो ब्याज की चिन्ता नही है
है जिसका मूल वो शरमा रहा है
आलोक तोमर
January 9, 2011 at 2:12 pm
डमरू बजा नहीं मगर बन्दर नाचने लगे. अरुण सहलोत ने इतना बड़ा साम्राज्य खडा किया है, सब की हवा गुल करने वाला अखबार निकाला है तो वहां फैसले भी वे ही करेंगे. उनके किसी फैसले से अखबार कमज़ोर नहीं पडा.
रही रवींद्र जैन की बात तो लोग भूल जाते हैं कि प्रबंधन ने रवीन्द्र जैन को प्रोत्साहन और पूरा विश्वास दिया, तब ये ठहाका लगाने वाले अपनी गुफाओं में बंद थे. फिर बंद हो जायेंगे जब पता चलेगा कि रवीन्द्र को राज्य के सब संस्करणों का प्रभारी बना दिया गया है.
ये वे कुंठित लोग हैं जिन्होंने खुद जीवन में कुछ अर्जित नहीं कर पाया और दूसरों की उपलब्धियों से कुंठित हो जाते हैं . रवींद्र जैन प्रतिभाशाली पत्रकार हैं. और बने रहेंगे. पत्रकार एक दूसरे को कलंकित करके खुद जूते खाने के पात्र बनते हैं.
ram singh
January 9, 2011 at 1:09 pm
ravindraji bahut ud liye ab jameen par aa gaye achha hua. such hui kahawat jaisi karni waisa phal aaj nahi to nishxhay kal
shankar
January 9, 2011 at 11:36 am
very good mr. ravindra jain sahab very good
ye kaya hua kuch din pahele aap to green color ki garandy me najaar aa rahe the. ye achanak kaya hua jo cycle me aa gaye, ye sab aapke kiye gaye karmo ka phal hai arun je ke pas jakar dusroon ka bhala bura ka jaal failaya aur usi jaal ne aaj aapko lapet liya, sirf do ediotion ka editor haahaaaaaa ye bhi jane wala hai
happy new year
एक शुभचिंतक
January 9, 2011 at 11:27 am
अभी तो केवल पर ही करते हुए हैं, पिक्चर अभी बाकी है दोस्तो. रविन्द्र जैन मूलत: एक काले दिल वाला आदमी है. उसके नाम के सामने लिखा होना, संपादक पदनाम को गाली है. वो एक ब्लैकमेलर है और दुख की बात तो यह है राज एक्सप्रेस के प्रधान संपादक अरुण सहलोत ने उसकी बातों में आकर पूरे राज एक्सप्रेस को ही ब्लैकमेलर अखबार बना डाला. आरटीआई लगाओ, अधिकारियों को धमकाओ और पैसे बनाओ, पहले रविन्द्र जैन का धंधा हुआ करता था, संपादक बनाए जाने के बाद अब पूरे राज एक्सप्रेस का यही एक मिशन हो गया है. जैसे जैसे अखबार मालिक को इसका पता चलेगा, रविन्द्र जैन का बहुत कुछ करत दिया जाएगा और जिस दिन उसे राज एक्सप्रेस से बाहर निकाला गया, उसे भूमिगत होना पड़ेगा, लेकिन राज एक्सप्रेस अभी भी नहीं सुधरने वाला, क्योंकि उसके संपादकीय गुलिस्तां में, कई डालों पर उल्लू बैठे हैं, अंजामे गुलिस्तां अच्छा कैसे होगा.
यह मत सोचना कि मैने अपना नाम नहीं लिखा क्योंकि मैं रविन्द्र जैन से डरता हूं. वो तो केवल इसलिए अपना नाम छिपाया है, क्योंकि वो भी इसी तरह अपना नाम छिपाकर खेल खेलता है.