वर्धा : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में सुप्रसिद्ध पत्रकार व विवि के प्रो.रामशरण जोशी ने ‘वर्धा संवाद’ की ओर से ‘भारत की राजनीतिक-अर्थव्यवस्था’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान विचार व्यक्त करते हुए कहा कि केंद्रीय कानून मंत्री का यह बयान कि ‘यदि आप (न्याय पालिका) चोटी के व्यापारियों को जेल में ठूंसेंगे तो पूंजी नियोजन कैसे होगा.. आज विकास और नियोजन को प्रोत्साहित करने की जरूरत है…’, इस पर हमें विमर्श करने की अवश्यकता है।
वर्तमान व्यवस्था बहुसंख्यक गरीबों, पिछड़ों के लिए न होकर चंद धनकुबेरों के पक्ष में है। यह कैसा न्याय है कि जिस न्याय पालिका ने भ्रष्टाचार के मामले में महाघोटालेबाजों को बंद किया है। देश के विधिमंत्री कह रहे हैं कि आर्थिक नियोजन के खयाल से धनपतियों को बाहर किया जाना चाहिए तो मेरा कहना है कि फिर गरीबों को छोटे से अपराध के लिए आखिर जेल क्यों भेजा जाता है। विश्वविद्यालय के गांधी हिल में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रतिकुलपति प्रो. ए.अरविंदाक्षन ने की। इस अवसर पर विवि के राइटर-इन-रेजीडेंस से.रा.यात्री, वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर, साहित्य विद्यापीठ के प्रो. के.के. सिंह मंचस्थ थे।
प्रो. जोशी ने कहा कि देश की कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच आज टकराव की स्थिति बनती जा रही है। कार्यपालिका न्यायपालिका से कह रही है कि पिछले बीस वर्षों में जो नई आर्थिक नीति यानी जुलाई 1991 से भूमंडलीकरण, उदारीकरण, विनिवेशीकरण और निजीकरण की धाराएं चली हैं और उससे जो राजनीतिक-अर्थव्यवस्था बनी है इसके चरित्र को समझने की आवश्यकता है। उन्होंने सवाल उठाया कि आज पॉलीटिकल इकोनामी किन लोगों के लिए है। काले धंधेवाले पूंजीपतियों के पक्ष में योजनाबद्ध तरीके से मीडिया में माहौल बनाया जा रहा है। देश के एक दर्जन उद्योगपतियों ने सरकार से कहा है कि भूमि अधिग्रहण, घूसखोरी को लेकर कानून में संशोधन किये जाएं, इसको उदार बनाया जाय। ताकि उद्योगपतियों को भूमि अधिग्रहण करने में कानून आड़े न आ पाए।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया (जो कि भूमंडलीकरण के प्रबल समर्थक हैं) ने कहा था कि गरीबी की सीमा रेखा को 26 व 32 रूपये में आंकना तो ठीक नहीं है। अचानक से उन्होंने अपना सुर बदला और वे कहते हैं कि परिवार की तो कमाई 4824 रुपये की है। मैं पूछता हूं कि क्या 5 सदस्यीय परिवार 4824 रूपये मासिक में वह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाएगा। एक तरफ अमीन जिंदल की मासिक तनख्वाह 5 करोड़ है और एक तरफ रोजाना 26 या 32 रुपये में गुजारा करने वाला। हमें यह समझना पड़ेगा कि ये पॉलीटिकल-इकोनामी किसके लिए बनायी जा रही है। अगर सरकार उद्योगपतियों को ठूंसने के खिलाफ है तो फिर गरीब आदमी को जेल में क्यों ठूंसा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि सरकार कहती है कि भारत में अरबपतियों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो फिर गरीबों की संख्या में कम क्यों नहीं हो पा रही है। भारत की न्याय व्यवस्था निष्पक्ष व ईमानदार है। विधि मंत्री को ये भी कहना चाहिए कि अगर किसी व्यक्ति की भूख मिटाने के लिए केंद्र व राज्य सरकार आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं करा सकती है, तो उसे कुछ भी क्राइम करने की छूट हैं और उसे जेल न भेजा जाएं, तो हम समझेंगे कि सरकार की नज़र में आम आदमी और मुकेश अंबानी (जो कि अपनी पत्नी के बर्थडे की गिफ्ट में ढ़ाई सौ करोड़ का हवाई जहाज देता है) दोनों बराबर है।
विमर्श को आगे बढ़ाते हुए प्रो. के.के.सिंह ने कहा कि आम आदमी को ध्यान में रखकर राजनीतिक-अर्थव्यवस्था की बात की जानी चाहिए। कानून मंत्री संवैधानिक संस्थाओं द्वारा लिए गए निर्णयों को भी कटघड़े में खड़ा कर रहे हैं, इसकी जड़ें बहुत गहराई में छिपी हैं, इस पर हमें विचार करने की जरूरत है। पत्रकार राजकिशोर ने आज विचार की कमी नहीं है, का जिक्र करते हुए विकल्प की तलाश करने पर बल दिया। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रतिकुलपति प्रो. ए. अरविंदाक्षन ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी वैचारिक रूप से काफी सक्रिय हैं और इनसे यह उम्मीद की जा सकती है कि ये वैचारिक ऊर्जा से समाज को कुछ नया दे पाएं।
विवि के दूरस्थ शिक्षा के सहायक प्रोफेसर अमरेन्द्र कु.शर्मा ने मंच का संचालन किया। इस दौरान श्रोताओं ने कई रोचक प्रश्न कर समारोह को जीवंत बनाया। इस अवसर पर विवि के शैक्षणिक, गैर-शैक्षणिक कर्मी, शोधार्थी व विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।