मध्य प्रदेश में स्थानीय समाचार चैनल तो हैं, लेकिन बेहाल हैं। दरअसल स्थानीय खबरों को ही अपनी खासियत मानने वाले इन चैनलों को नामी ब्रांड के मुहर वाले क्षेत्रीय खबरिया चैनलों से जबरदस्त टक्कर मिल रही है। नतीजा, उनकी माली हालत खस्ता हो रही है।
राजधानी भोपाल में इस वक्त 3 चैनल स्थानीय खबरें दर्शकों तक पहुंचाते हैं। इंदौर में इनकी संख्या 5 है। ये चैनल जाहिर तौर पर स्थानीय केबल नेटवर्क के दम पर चलते हैं। इनमें अपने-अपने शहरों की खबरें ज्यादा दिखती हैं। भोपाल के प्रमुख स्थानीय चैनल बीटीवी के समाचार प्रमुख रवींद्र कैलाशिया ने बताया, ‘हमारे लिए तो स्थानीय खबरें ही खास हैं। इसमें शहर में होने वाले कार्यक्रमों से लेकर जनता के मुद्दे तक सभी हम दिखाते हैं।’
कवरेज ही इन चैनलों की खासियत है। इस मामले में ये राष्ट्रीय चैनलों से कम नहीं हैं। लाइफ स्टाइल हो या ज्योतिष या कोई समसामयिक मसला, ये चैनल सभी पर कार्यक्रम दिखाते हैं। हालांकि समाचार बुलेटिनों पर ज्यादा जोर दिया जाता है। इंदौर के ऐसे ही एक चैनल के शीर्ष अधिकारी ने बताया, ‘समाचार बुलेटिन पर हमारा ज्यादा ध्यान रहता है। जरूरत पड़े तो विशेष कार्यक्रम भी तैयार किए जाते हैं।’ लेकिन क्षेत्रीय सैटेलाइट चैनलों ने कमाई के मोर्चे पर इनका जीना हराम कर दिया है। बड़े कारोबारी घराने तो स्थानीय चैनलों को अनदेखा करते ही हैं, कई बार छोटे कारोबारी भी उनसे कन्नी काट जाते हैं। दरअसल स्थानीय चैनल टिकर (स्क्रीन पर नीचे चलने वाली पट्टी) पर दिन भर विज्ञापन चलाने के लिए 750 रुपये वसूलते हैं। 60 सेकंड का विज्ञापन 2,000 रुपये में प्रसारित किया जाता है। इसके उलट क्षेत्रीय चैनल 30,000 रुपये मासिक यानी 1,000 रुपये रोजाना पर टिकर विज्ञापन चलाते हैं। 1 मिनट के विज्ञापन के लिए वे 1,500 रुपये वसूलते हैं।
ऐसे में कम कीमत में शहर विशेष के बजाय पूरे राज्य में विज्ञापन प्रसारित कराने के लिए छोटे कारोबारी भी क्षेत्रीय चैनलों के पास ही पहुंच जाते हैं। अब तो हालत यह है कि शहर में होने वाले कवि सम्मेलन या भागवत कथा के विज्ञापन भी क्षेत्रीय चैनलों को मिलने लगे हैं। सरकारी विज्ञापन तो इन छोटे चैनलों के नसीब में पहले से ही नहीं हैं। भोपाल के एक स्थानीय चैनल के मार्केटिंग प्रमुख ने बताया, ‘सरकार के बजाय हमें छोटे और मझोले कारोबारी ही ज्यादा विज्ञापन देते हैं। अब वहां भी दिक्कत हो रही है।’
हालांकि कमाई कम होने पर भी वेतन के मामले में ये चैनल पीछे नहीं हैं। ट्रेनी रिपोर्टर से लेकर चीफ रिपोर्टर या प्रोड्यूसर तक की भर्तियां ये चैनल करते हैं। उनका वेतन 7,500 से 20,000 रुपये तक होता है। 1 चैनल में औसत 5 रिपोर्टर और 3 ऐंकर होते हैं। प्रोड्यूसर और मार्केटिंग अधिकारी अलग होते हैं। साभार : बीएस
Comments on “विज्ञापन कम, एमपी के रीजनल चैनलों का निकल रहा दम”
हालात तो क्षेत्रीय चेनलो के भी अच्छे नहीं है अगर प्रदेस सरकारे हाथ खीचले तो चेनल दो महीने चलाना मुश्किल हो जाएगा | ओर अगर बात की जाये प्रजेंटेसन की तो स्थानीय केबल चेनल किसी भी स्तर पर क्षेत्रीय चेनलो से पीछे नहीं है |
theek hai
खबरिया चैनल अब बाज़ार वाद मे बदल चुके हैं…खबरों से कर्मचारियों का पेट नहीं भरता…इसलिये पेट पैकेज का ज़माना है…बढती चैनलों की तादात ने कही ना कही ंसरकारी विज्ञापनों पर ही होड़ लगा दी है…अब तो सभी चैनल चुनावी बयार के इंतज़ार मे हैं…हालाकि डर यह भी है कहीं चुनाव के वक्त जो चैनल कुकुरमुत्ते की तरह ऊगेंगे…वो इनका हिस्सा ना हड़प जाएं…बहरहाल सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ साथ रीज़नल्स ने भी चुनाव की रणनीति अभी से तैयार करनी शुरू कर दी है…एक बात तो तय है कि यह चुनाव आगे एमपी मे चैनलों का भविष्य तय करेंगे..यह साफ हो जाएगा दमतोड़ रहे इन चैनलों मे से कौन बाज़ी मार पाएगा…और कौन बंद हो जाएगा……