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संत अमर सिंह!

अमर सिंह के अंदर कोई बेचैनी है. हलचल है. अवसाद है. और ये सब गहन संवेदनशीलता में गुत्मगुत्था होकर किसी दर्शन की तरह, किसी रोशनी की तरह प्रकट हो रहे हैं. तभी तो वो ऐसी बातें कह लिख पाते हैं जिसे शायद अब बहुत कम, इक्का-दुक्का, नेता-अभिनेता लिख-कह पाते हैं. अमर सिंह ने अपने ब्लाग पर कल जिस पोस्ट का प्रकाशन किया है, उसे पढ़कर तो यही लगता है कि अमर सिंह अगर इस दिशा में इसी रफ्तार से चलते रहे तो बहुत जल्द संत अमर सिंह कहे जाएंगे. उनके विचार की गहनता और अतीत के प्रसंगों के निचोड़ से निकल रही आध्यात्मिक खुशबू यही बताती है कि खराब स्वास्थ्य, राजनीति में अलगाव और दोस्तों से बिलगाव से जूझ रहे अमर सिंह इस हालात का इस्तेमाल आत्मविश्लेषण के लिए भी कर रहे हैं. लीजिए, उनकी ताजी पोस्ट पढ़िए और बताइए कि क्या हाल के दिनों में आपने ऐसा किसी नेता द्वारा लिखा गया पढ़ा है. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया



<p style="text-align: justify;">अमर सिंह के अंदर कोई बेचैनी है. हलचल है. अवसाद है. और ये सब गहन संवेदनशीलता में गुत्मगुत्था होकर किसी दर्शन की तरह, किसी रोशनी की तरह प्रकट हो रहे हैं. तभी तो वो ऐसी बातें कह लिख पाते हैं जिसे शायद अब बहुत कम, इक्का-दुक्का, नेता-अभिनेता लिख-कह पाते हैं. अमर सिंह ने अपने ब्लाग पर कल जिस पोस्ट का प्रकाशन किया है, उसे पढ़कर तो यही लगता है कि अमर सिंह अगर इस दिशा में इसी रफ्तार से चलते रहे तो बहुत जल्द संत अमर सिंह कहे जाएंगे. उनके विचार की गहनता और अतीत के प्रसंगों के निचोड़ से निकल रही आध्यात्मिक खुशबू यही बताती है कि खराब स्वास्थ्य, राजनीति में अलगाव और दोस्तों से बिलगाव से जूझ रहे अमर सिंह इस हालात का इस्तेमाल आत्मविश्लेषण के लिए भी कर रहे हैं. लीजिए, उनकी ताजी पोस्ट पढ़िए और बताइए कि क्या हाल के दिनों में आपने ऐसा किसी नेता द्वारा लिखा गया पढ़ा है. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया</p> <hr /> <hr />

अमर सिंह के अंदर कोई बेचैनी है. हलचल है. अवसाद है. और ये सब गहन संवेदनशीलता में गुत्मगुत्था होकर किसी दर्शन की तरह, किसी रोशनी की तरह प्रकट हो रहे हैं. तभी तो वो ऐसी बातें कह लिख पाते हैं जिसे शायद अब बहुत कम, इक्का-दुक्का, नेता-अभिनेता लिख-कह पाते हैं. अमर सिंह ने अपने ब्लाग पर कल जिस पोस्ट का प्रकाशन किया है, उसे पढ़कर तो यही लगता है कि अमर सिंह अगर इस दिशा में इसी रफ्तार से चलते रहे तो बहुत जल्द संत अमर सिंह कहे जाएंगे. उनके विचार की गहनता और अतीत के प्रसंगों के निचोड़ से निकल रही आध्यात्मिक खुशबू यही बताती है कि खराब स्वास्थ्य, राजनीति में अलगाव और दोस्तों से बिलगाव से जूझ रहे अमर सिंह इस हालात का इस्तेमाल आत्मविश्लेषण के लिए भी कर रहे हैं. लीजिए, उनकी ताजी पोस्ट पढ़िए और बताइए कि क्या हाल के दिनों में आपने ऐसा किसी नेता द्वारा लिखा गया पढ़ा है. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया



रहने की खुशी कम, ना रहने का गम ज्यादा

-अमर सिंह-

आज 11 अक्टूबर है. आज लोकशाही के एक बड़े पुरोधा श्री राममनोहर लोहिया जी की पुण्यतिथि है. लोहिया जी अविवाहित रहे. उनका कोई निजी परिवार नहीं था. गरीब की गुरबत, औरत की लाचारी और मजबूरी, सामाजिक और जातीय असमानता, गरीबी और अमीरी का अंतर, यह वे भाव थे जिसने उन्हें आजन्म उद्वेलित रखा. सत्य कटु और अप्रिय होता है, वह भी खरा सच. यह लोहिया जी ही थे जिन्होंने नीतियों के लिए अपनी ही समाजवादी सरकार को केरल में चुनौती दे डाली. उन्होंने कई नेता पैदा किये परन्तु आधुनिक समाजवादी नेताओं की तरह अपने परिवार को कभी भी आगे नहीं बढ़ाया. श्री बद्री विशाल पिट्टी से या फिर श्री बालकृष्ण गुप्त से आर्थिक मदद तो ली परन्तु कभी भी उद्योगपति या धनपशु कहके उनकी सार्वजनिक बेईज्जती नहीं की बल्कि समाजवादी आंदोलन को आगे बढाने में उनकी भूमिका की सराहना की.

आज ही वर्षों तक आत्मीय स्तर पर मुझसे जुड़े रहे सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन जी का जन्मदिन है. पिछले 20 वर्षों में यह उनका पहला जन्मदिन है जबकि वह और मैं साथ-साथ नहीं है. एक बार अपने जन्मदिन के दिन अंतर्मुखी अमिताभ जी अदृश्य हो गए थे और हम सब परेशान. अमिताभ जी के ब्लॉग में राजनीति का हल्का सा जिक्र है. सचमुच राजनीति क्रूर है. नवजात शिशु और वैध्यव्य का भार लिए मेनका गांधी, धोबी की टिप्पणी पर गर्भवती माता सीता, आपात स्थिति की राजनीति में विरोध के लहजे पर व्याप्त मतभेद के फलस्वरूप राजमाता सिंधिया के एकमात्र पुत्र श्रीमंत माधवराव सिंधिया, कैकेयी के राजज्वर से पीड़ित अभिषेकित हो रहे राम का वनवास और कभी प्रथक न दिखने वाली मेरी और मुलायम सिंह की जोड़ी और सोच के भी इतर राजनीति के ज्वर से पीड़ित घर परिवार की किसी महिला का अपने ही परिवार से अधिक राजनीति को प्रमुखता देना, यह सब मैने पढ़ा, सुना, देखा और अब खुद भोगा है.

मानव स्वभाव बड़ा ही विचित्र है. माता पिता का साया रहे, हम महत्व ही नहीं समझते, प्राणप्रिया पत्नी हो या प्रेयसी उसके समर्पण को अपना अधिकार मान बैठते हैं, लक्ष्मी हो तो मर्यादाहीन आचरण से उसे लुटाते हैं. यह क्या है कि उपलब्धि, कीर्ति, ऐश्वर्य, लक्ष्मी, प्रेम, मान, बड़ों का साया जब सघन वृक्ष की भाँति हम पर तना खड़ा होता है तो हम उसके रहने की खुशी कम और उसमें से यदि हम कुछ भी गंवा बैठते हैं तो खोई वस्तु के ना रहने का गम ज्यादा करते हैं. अच्छा होता, उचित होता, यदि हम मानव ईश्वरीय प्रारब्ध द्वारा प्रदत्त सुखमयी परिस्थितियों एवं संगतियों का सही और सच्चा मूल्यांकन तब करें जब वे हमें ईश्वरीय कृपा से सहज भाव में उपलब्ध हों. इन्हें खोने के बाद इनका शोक भी मना सकते हैं, लेकिन काश हम खोने से पहले मिलें रिश्तों, अनुभूतियों, और भावों का आंकलन करके जीवन को उत्सव बनाते, हर्षित होते, प्रफुल्लित होते और मुदित होते. हाय! ऐसा होता कहाँ है, हम जो ठहरे मानव, काम, क्रोध, लोभ, और मोह की प्रतिमूर्ति मात्र.

१० अक्टूबर को प्रख्यात अभिनेत्री रेखा का जन्मदिन था. रेखा की बहन श्रीमती कमला के जी.जी. अस्पताल, चेन्नई में मेरी दोनों जुडवां बेटियाँ दृष्टि और दिशा पैदा हुई थी. जी.जी का तात्पर्य जेमिनी गणेशन अस्पताल और वहाँ रेखा के पिता श्री जेमिनी गणेशन मुझसे आकर घंटों बतियाते रहते और कमल हसन, एम्.जी.आर., शिवाजी गणेशन और अपनी प्रसिद्द बेटी रेखा का जिक्र भी करते थे. पिछले दिनों लन्दन के मशहूर छायाकार लार्ड स्नोडाउन उद्योगपति श्री नन्द खेमका के माध्यम से भारत आए और यहाँ के कुछ चर्चित व्यक्तियों को रेखांकित करके उनकी छायाप्रति और जीवन टिप्पणी के साथ एक अच्छी पुस्तक “स्नोडाउन इंडिया” लिखी. इस पुस्तक में मेरे साथ रेखा भी है. फिल्मों में ना सही लार्ड स्नोडाउन की कृपा ने पुस्तक में ही सही, उन्हें मेरा को-स्टार बनाया. मैने रेखा का पुस्तक वाला बड़ा चित्र बनवा कर इस जन्मदिवस पर अपनी मित्र जयाप्रदा जी के माध्यम से उन्हें भेजा. इस आयु में भी इस चित्र में वह सौंदर्य की अप्रतिम मूर्ति लग रही हैं.

सिंगापुर में चेक-अप करा रहा हूँ ताकि १ दिसंबर से १५ जनवरी तक की पूर्वांचल पैदल यात्रा से पूर्व चिकित्सकों की स्वीकृति ले सकूँ. सिंगापुर सजा सजाया जगमगाहट से भरा हुआ है. ह्रदय की संवेदनशीलता हावी होकर बार-बार चीखते हुए कह रही है.

“मोहब्बत हम क्या करें कोई इस काबिल मिलता नहीं,
कोई दिल से नहीं मिलता, किसी से दिल नहीं मिलता”

अमर सिंह के ब्लाग से साभार

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0 Comments

  1. Manoj Burnwal

    October 13, 2010 at 4:37 pm

    Haan bhai, Jab politics aur active life mai koi puch nahin raha hai to, SANT banne ke alawa koi kar bhi kya sakta hai. waise bhi Amar Singh ji ka atit unke lekh se match nahin karta hai. koi baat nahin, Angoor khatte hain to kya hua, lage rahiye Amar Singh ji……………

  2. harikesh bahadur singh gautam

    October 13, 2010 at 9:41 pm

    haan bahut daurne ke baad to ghora bhi thak jata hai jo daurne ke liye he jana jata hai.aap to daurne ke sath-2 dimag bhi daurate the.

  3. yashovardhan nayak tikamgarh.

    November 8, 2010 at 3:04 pm

    अमर सिंह जी ,आप अपने ब्लाग पर बे-लाग लिख रहे है .धन्य ,है यशवंत जी जो हम सभी को आपका लिखा उपलब्ध करा रहे है .स्वर्गीय राममनोहर लोहिया ने ” अमर ब्रांड समाजबाद “की स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी .आप इस समय फिल्म-स्टार रेखा का जिक्र छेड़ कर क्या संदेशा देना चाहते है ?आपके ब्लाग का नियमित स्वाध्याय करता हूँ ,इस आस में कि कभी तो आप कोई जोरदार राज खोलेंगे ?लीजिये अमर बाबू आपकी खिदमद में ये पंक्तिया पेश है,”वक्त ने किया क्या हंसी सितम ,हम रहे न हम ,तुम रहे न तुम “.आपका यशोवर्धन नायक टीकमगढ़ (एम .पी.)

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