संपादक खिलौना और मालिक कठपुतली

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हम यहां पर मध्यप्रदेश से प्रकाशित होने वाले एक ऐसे अखबार की बात कर रहे हैं, जिसके संपादकीय प्रमुख के लिए विभिन्न एडीशन के संपादक खिलौना हैं तो अखबार के मालिक कठपुतली। अखबार के संपादकों को ताश के पत्तों की तरह फेंटा जा रहा है। फिर चाहे इस प्रक्रिया में गुलाम ही क्यों न निकले, वह संपादक हो जाएगा, जैसा कि अखबार के भोपाल एडीशन में हुआ।

अखबार के संपादक को स्लीप डिस्क की समस्या थी। वे न तो चल पा रहे थे, न ही बैठ पा रहे थे। उन्होंने इसकी इत्तला संपादकीय प्रमुख को दी। छुट्टी की सूचना संपादकीय प्रमुख को क्या मिली, उनका पारा चढ़ गया। उन्होंने संदेश करवा दिया, जब…जाओ, तब सूचना करवा देना। बस इतनी सी बात पर संपादक की छुट्टी हो गई और संपादक का नाम प्रिंट लाइन से जाता रहा और उनके स्थान पर ऐसे व्यक्ति को संपादक की कुर्सी पर बैठा दिया गया, जिसने भोपाल के किसी भी अखबार में रिर्पोटिंग नहीं की है। बस उनकी कुशलता यह है कि वे आते में और जाते में संपादकीय प्रमुख की चरण वंदना करना नहीं भूलते।

अब संपादक छोटे कर्मचारी के अधीन काम कर रहा है, क्योंकि फिलहाल उनके सामने कोई विकल्प नहीं है। ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ भोपाल एडीशन में ही हुआ हो। ग्वालियर एडीशन में संपादकीय प्रमुख ने अपने एक सेवक की स्थापना करवा दी, जिसने भोपाल में कभी क्राइम रिपोर्टिंग से ऊपर रिपोर्टिंग नहीं की। जबलपुर में अखबार की प्रसार संख्या बड़ी मुश्किल से चार अंकों में पहुंची पर संपादकीय प्रमुख को पुराने और अनुभवी लोगों को बदलने की जल्दी थी कि उन्होंने जबलपुर संस्करण के संपादक की भी बलि लेने में देरी नहीं की।

इस अखबार के भोपाल में जो लोग काम करते हैं, उनकी सुबह संपादकीय प्रमुख के चरणों को देखकर होती है तो रात तब होती है जब तक वे लडख़ड़ाते हुए कदम नहीं देख लें। ऐसे में जिन लोगों ने करोड़ों रुपए लगाकर अखबार खोला वे लोग या तो बेखबर हैं या फिर उनके पास कठपुतली बनने के अलावा कोई चारा नहीं है। अब जरा इस अखबार में काम करने वालों की सुन लो। वे कहते हैं कि हम तो बिग बॉस के घर में काम कर रहे हैं। हमारे हर काम पर नजर है। क्योंकि संस्थान के सभी संस्करणों में कैमरे फिट कर दिए गए हैं। ऐसे में बिग बॉस ही तय करते हैं कि कौन बिग बॉस के घर में रहेगा और किसकी बिग बॉस के घर से विदाई होगी।

भोपाल से एक जर्नलिस्‍ट द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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Comments on “संपादक खिलौना और मालिक कठपुतली

  • एक दम सटीक लिखा है। जिसने भी यह विवेचना की है वह निश्चित ही अच्छा पत्रकार है। शून्य से लेकर सौ तक विवेचना की है। भैया कहते हैं जैसा राजा होता है उसके मंत्री भी वैसे ही होते हैं। मतलब राजा हमेशा ही अपने मंत्री को कमतर ही रखेगा। जिन्हें लड़खड़ाने की लत हो भला वे क्या किसी को संभालेंगे। इस अखबार की हालत भी कुछ ऐसे ही है। अखबार लड़खड़ा रहा है लेकिन मालिक मंत्रियों के घर से आने वाले फोन से खुश हो रहा है। मािलक इस लाइन का नौ सिखिया ठहरा, वैसे भी कमान बच्ची के हाथो में हैं। जो ज्यादातार विदेश के दौरों पर रहती हैं। श्री मान जी इस अखबार की उलटी गिनती तो उसी दिन शुरु हो गई थी जब मालिकान ने प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव को समूह संपादक पद से बेदखल किया था, लग रहा था कोई राष्ट्रीय स्तर का व्यक्तित्व सामने आएगा, लेकिन सामने ग्रामपंचायत स्तर का संपादक आया। ग्राम पंचायत स्तर के समूह संपादक ने अपने नीचे पंच स्तर के संपादक रख लिए हैं। हर उस आदमी को बेदखल किया जा रहा है जो थोड़ा सा भी जानकार है। अब तो इस समाचार पत्र में काम करने वाला हर कर्मचारी नए काम की तलाश में हैं। जल्द ही सारे चेहरे बदल जाएंगे।

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  • चिट्ठी तो खूब लिख दी प्रिय, लेकिन अखबार, संपादकीय प्रमुख और नए स्थानीय संपादक का नाम लिखने में आपकी रूह कांप गई। खुद का नाम तो जाहिर कर ही नहीं सकते ना, क्योंकि हो सकता है कि कल को तुम्हें भी उनकी चरण वंदना करना पड़ जाए।

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  • yadhi yah sab peoples me chal raha hai to bata do ke teen din pahele he is akhbar ke samooh sampadak ne ek reportr ko thoka tha, woh bhi us wakt jab wah ladkahade sahab ko unki safari tak seen of karne gaya tha. is akhbar ke bhopal ke new sampadk oh sooory charan sevak hai sushil sharma.

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  • are bhai sampdak ka naam to sab jaan hi gaye hain. koun nahi janta bhopal me darukhor or blackmeliye patrkaron ko. vaise ye janab dusre patrkaro ki sameexa karte hain. pahle unhe khud ki girewa me jhan lena chahiye.

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  • akhil bhai charan dekhkar patrakarita krrne ke fitrat tumahari hogi, ijjatdar patrakar ke nahi. tumahare jaise he patrakar to charan vandana karvane walo ke charan apne siir par rakhe hai.

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  • aaj kal na to inke naam ka pankha bik raha hai na hee yah saahab bik rahi hai. botel dekh ke subah hoti hai. botel band kar raat hoti hai. isi tarah inke patrkarita pooori hoti hai.

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