सीबीआई छापा और काली कमाई के पीछे का काला संसार

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अनिल: काले हीरे के करोबार ने बना दिया कइयों को रातों-रात अमीर :  पिछले दिनों बसपा विधायक सुशील सिंह की कंपनी समेत पांच कंपनियों पर पड़े सीबीआई के छापे के पीछे का पूरा खेल कोयले की काली कमाई से जुड़ा हुआ है. पूर्वांचल में कई ऐसे नवधनाढ्य हैं जो इस काले हीरे की काली कमाई से रातों रात अमीर बन गए. अब कोयला बाजार से सीधे वसूली और लाभ बदल जाने के बाद अब इसको दूसरे तरीके से लाभ के धंधे में बदला जा रहा है.

ऐसी ही सूचना के बाद सीबीआई ने सुशील सिंह, रतन सिंह, अनिल अ‍ग्रवाल और पवन तुलसियान के ठिकानों पर छापा मारा था. दो दिन पहले सीबीआई लखनऊ की टीम ने सब्सिडी का कोयला बाजार में ऊंचे दाम पर बेच कर करोड़ों के वारे-न्यारे करने वाली पांच कंपनियों के वाराणसी और मुगलसराय में छह जगहों, दिल्ली और नोएडा में एक-एक स्थान पर छापेमारी की थी.  इनमें एक कंपनी धानापुर से बसपा के बाहुबली विधायक सुशील सिंह और उनके भाई सुनील सिंह की है. सुशील सिंह जेल में बंद माफिया बृजेश सिंह के भतीजे हैं. वाराणसी में जिन कंपनियों पर छापे मारे गए उनमें श्रीराम फ्यूल प्राइवेट लिमिटेड,  डोर्लिया कोक इंडस्ट्री,  फर्टिलो मार्केटिंग एंड इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड,  जय दुर्गा इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड और मेसर्स स्वास्तिक सीमेंट प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं. श्रीराम फ्यूल में बसपा विधायक सुशील सिंह, उनकी पत्नी किरन सिंह और भाई सुनील सिंह निदेशक हैं.

बसपा विधायक के सिगरा के सिद्धगिरी बाग में स्थित डी /57- 55 के आवास पर ही कंपनी का कार्यालय भी है.  डोर्लिया कोक और जय दुर्गा इंटरप्राइजेज दोनों ही कंपनियों के निदेशक रतन सिंह भी वाराणसी में रहते हैं जबकि फर्टिलो मार्केटिंग के अनिल कुमार अग्रवाल और मेसर्स स्वास्तिक सीमेंट के पवन कुमार तुलस्यान मुगलसराय में रहते हैं.  अनिल अग्रवाल का एक कार्यालय दिल्ली के लक्ष्मीनगर और आवास नोएडा में भी है.  इन दोनों जगहों पर भी छापामारी की गई. मुगलसराय और वाराणसी में सीबीआई की टीम ने एक साथ छापा मारा था. पता चला है कि सीबीआई को इन स्‍थानों से कई महत्‍वपूर्ण कागजात भी हाथ लगे हैं.

आइए अब जानते हैं पूरी कहानी. सत्‍तर के दशक से पहले कोयले पर निजी नियंत्रण हुआ करता था. जिसके चलते बहुत ज्‍यादा गड़बड़ी होने की गुंजाइश नहीं होती थी. जब कोयला खादान सरकारी नियंत्रण में आए तो कई तरह के नियम-कानून भी बन गए. जिसके बाद कोयले को कंपनी वाले सीधे न लेकर होल्‍ड करने वालों से खरीदने लगे. इसी के साथ शुरू हो गया कालाबाजारी करने का दौर. इसी दौर में मुगलसराय के पास एशिया की सबसे बड़ी मंडी स्‍थापित हो गई चंधासी. यहां से पूर्वांचल समेत देश के कई कोनों में कोयला आने-जाने लगा. गलत-सही तरीके से कारोबार यहां इस तरह फला-फूला कि बाहर से आए लोग रातों रात करोड़पति बन गए. मुगलसराय का रविनगर और कैलाशपुरी, बनारस का सिगरा, धूपचंडी आदि इलाका कोयला व्‍यापारियों के नाम से ही जाना जाने लगा.

अस्‍सी के दशक के मध्‍य तक इस फलते-फूलते चंधासी मंडी और कोयले के काले व्‍यापार पर माफियाओं की भी नजर लग गई. वे यहां के व्‍यापारियों से वसूली करने लगे. चंधासी के बाजार में पूर्वांचल के दो मुख्‍य गिरोह बृजेश सिंह और मुख्‍तार अंसारी की नजर लग गई. दोनों गिरोह यहां से हर महीने लाखों की फिरौती वसूली करने लगे. इनके बीच वर्चस्‍व की लड़ाई भी हुई. कई लोगों के खून भी बहे. कोयला व्‍यवसायी नंदलाल रुंगटा का भी इसी अदावत में अपहरण कर हत्‍या कर दी गई. आरोप मुख्‍तार अंसारी और उनके गिरोह पर लगे. पर पुलिस और सीबीआई तमाम प्रयास के बाद भी रुंगटा की लाश बरामद नहीं कर सकी. रुंगटा के विश्‍व हिंदू परिषद से जुड़े होने के चलते पुलिस ने माफियाओं पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. जिसके चलते कई राज खुलने शुरू हुए वसूली भी प्रभावित होने लगी.

चंधासी में काम करने में दिक्‍कत आने के बाद बृजेश गैंग ने चंधासी के बाद झारखंड में भी अपना साम्राज्‍य स्‍थापित करना शुरू किया. वहां भी कोयले के व्‍यापार को लेकर खूनी संघर्ष हुआ कई लोग मारे गए. इस दौरान माफिया चरित्र भी परिवर्तन की ओर अग्रसर था. अब वे राजनीतिज्ञ बनने लगे थे, वसूली की बजाय धंधा करने लगे थे. इसी दौर में ब्रृजेश और मुख्‍तार गैंग ने भी वसूली की बजाय कुछ कोयला व्‍यापारियों से मिल कर अपनी पूंजी इस व्‍यापार में ही लगाने लगे. वसूली की बजाय व्‍यापार करने में उनको ज्‍यादा सहूलियत होने लगी. दूसरे कामों के लिए कंट्रोल पर मंगाए गए कोयले को ऊंचे दामों पर बेचा जाने लगा. इस कोयले के बाजार में बृजेश गैंग और उनका परिवार लगातार मजबूत होता गया. इसी के बल पर कई फैक्‍टरियों का भी अधिग्रहण किया गया. रतन सिंह के पिता रमाशंकर सिंह उर्फ लल्‍लू सिंह भी साठ-सत्‍तर के दशक में बाहुबली थे.

इस बीच चंधासी मंडी की हालत खराब होने लगी. नए नियम ने छोटे-मोटे खिलाडि़यों को कोयले के बाजार से बाहर कर दिया. जिसके चलते बड़े खिलाड़ी ही अब इस बाजार में रह गए हैं. अब कोयला ट्रकों से चंधासी मंडी ना आकर मालगाड़ी के रैकों से आने लगा. बड़े व्‍यपारी करोड़ों में ट्रेन का रैक बुक कराने लगे. छोटे व्‍यापारी अब बड़े खिलाडि़यों के मुहताज हो चुके थे. कोयले से लदी मालगाडि़यों की रैक काशी, व्‍यासनगर और नसीरपुर पट्टन में आती हैं. यहां से विभिन्‍न इलाकों में भेजे जाते हैं. ये तो चंद नाम हैं इससे भी बड़े खिलाड़ी अभी इस काले बाजार में जमें हुए हैं. आए दिन तमाम व्‍यापारियों के गोदामों और घरों पर छापे पड़ते हैं लेकिन आज तक किसी भी धंधेबाज के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. सीधा सा फंडा है कि इनकी पकड़ और पहुंच ऊपर से लेकर नीचे तक है. इनके पैसे की धमक हर जगह सुनी जाती है. अब सीबीआई के इस छापे से कोई बहुत बड़े खुलासे की गलतफहमी पालना मूर्खता होगी.

कोयले का ये जो खेल है वो इस प्रकार से होता है. व्‍यापारी फ्यूल के नाम पर अरबों का रैक सरकारी यानी सस्‍ते दाम पर मंगाते हैं. सरकारी नियम के तहत फ्यूल के लिए मंगाए जाने वाले कोयले को कंट्रोल दर यानी सब्सि‍डी दी जाती है. सब्सि‍डी पर लाए गए कोयले को ये व्‍यापारी सीधे बाजार में ऊंचे दामों पर बेच देते हैं. एक रैक से ही कई करोड़ का फायदा होता है. दिखाने के लिए तो इन लोगों ने जीवनाथपुर, रामनगर और सोनभद्र में फ्यूल कंपनियां खोल रखी हैं, लेकिन वह सिर्फ हाथी के दांत हैं जो दिखाने के काम आते हैं. सीबीआई को भी छापे में यही बात पता चली है कि ये कंपनियां स्‍मोकलेस फ्यूल बनाने के नाम पर इन्‍हें स्‍टेट इंडस्‍ट्रीयल कारपोरेशन से कोयला मिला है, जिसे कारपोरेशन को नारदर्न कोल फील्‍ड ने आवंटित करता है.  उन्‍हें इन लोगों में मार्केट में ऊंचे दर पर बेच दिया था.

खबर है कि सीबीआई की टीम जल्‍द ही कुछ और कोयला व्‍यापारियों के यहां छापे मारने वाली है. पर यह भी सच है कि इन छापों से कुछ खास नहीं होना है. कोयला की इस हेराफेरी में जिला उद्योग केंद्र, यूपीएसआईडीसी और नारदर्न कोल लिमिटेड के लोगों की भी मिलीभगत है. इसलिए इस धांधलीबाजी में कुछ बड़ा खुलासा होगा यह सोचना जल्‍दबाजी होगी. इन पांच स्‍थानों पर पड़े छापे के बाद और दूसरे खिलाड़ी पहले से ही होशियार हो गए हैं. यानी इस काले हीरे के काले कमाई में सब कुछ इतना काला है कि किसी सफेद चीज का बाहर निकलना बहुत ही मुश्किल है. इसलिए सीबीआई हो या पुलिस सब बस कार्रवाई का दिखावा करने की अपनी ड्यूटी निभाते हैं और धंधा ऐसे ही चलता रहता है.

लेखक अनिल सिंह भड़ास4मीडिया के कंटेंट एडिटर हैं. ये दैनिक जागरण, हिंदुस्‍तान, युनाइटेड भारत, हमार टीवी समेत कई संस्‍थानों में काम कर चुके हैं. इस लेख पर आप अपना विचार नीचे कमेंट बाक्‍स में या bhadas4media@gmail.com  के जरिए भी दे सकते हैं.

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