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हलचल

इलना 2 ने संविधान की उड़ाई धज्जियां

: घरेलू माहौल में परेशनाथ ने अपने को अध्‍यक्ष मनवाया : जैसा कि भड़ास4मीडिया को भेजी गई अपनी पोस्‍ट ‘अखबार मालिकों की राजनीति और उनका ओछापन’ में एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने शंका जाहिर की थी, वैसा ही इलना 2 की दिल्‍ली के इंडिया इस्‍लामिक सेंटर में हुई सो काल्‍ड बैठक में हुआ भी. सो काल्‍ड इसलिए की बैठक की सूचना उन्‍हीं लोगों को दी गई थी, ‘ जो अपनी डफली, अपना राग बजाये.’ खैर इस कथित एजीएम में जो हुआ उसका उसका, आंखों देखा लेखा-जोखा –

<p style="text-align: justify;">: <strong>घरेलू माहौल में परेशनाथ ने अपने को अध्‍यक्ष मनवाया </strong>: जैसा कि भड़ास4मीडिया को भेजी गई अपनी पोस्‍ट 'अखबार मालिकों की राजनीति और उनका ओछापन' में एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने शंका जाहिर की थी, वैसा ही इलना 2 की दिल्‍ली के इंडिया इस्‍लामिक सेंटर में हुई सो काल्‍ड बैठक में हुआ भी. सो काल्‍ड इसलिए की बैठक की सूचना उन्‍हीं लोगों को दी गई थी, ' जो अपनी डफली, अपना राग बजाये.' खैर इस कथित एजीएम में जो हुआ उसका उसका, आंखों देखा लेखा-जोखा -</p>

: घरेलू माहौल में परेशनाथ ने अपने को अध्‍यक्ष मनवाया : जैसा कि भड़ास4मीडिया को भेजी गई अपनी पोस्‍ट ‘अखबार मालिकों की राजनीति और उनका ओछापन’ में एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने शंका जाहिर की थी, वैसा ही इलना 2 की दिल्‍ली के इंडिया इस्‍लामिक सेंटर में हुई सो काल्‍ड बैठक में हुआ भी. सो काल्‍ड इसलिए की बैठक की सूचना उन्‍हीं लोगों को दी गई थी, ‘ जो अपनी डफली, अपना राग बजाये.’ खैर इस कथित एजीएम में जो हुआ उसका उसका, आंखों देखा लेखा-जोखा –

शुरुआत इलना परेश नाथ गुट के महासचिव रवि विश्‍नोई के भाषण से हुई. उन्‍होंने परेश नाथ की खूबियों के पुल बांधें, माहौल बनाया और माइक परेश नाथ को थमा दी. परेश नाथ ने बताया कि कैसे और किन-किन के सहयोग से उन्‍होंने इस टुकड़ों में बंट चुकी इलना के लिए क्‍या-क्‍या किया. इसमें डीएवीपी के डीजी से मुलाकात को बढ़ा-चढ़ाकर व घुमा-फिरा कर कई बार बताया गया. कारण उस मीटिंग में वे ही लोग बहुमत में थे, जो अखबार के नाम पर पर्चे छापते हैं, डीएम-एसडीएम की लल्‍लो-चप्‍पो करते हैं. कई बार इलना और आईएनएस जैसे संगठनों के मेंबर होने की धौंस देकर सरकारी विज्ञापनों की बंदरबांट में हिस्‍सा बांटते हैं.

दूसरा प्‍वाइंट पत्रकारों को वेज बोर्ड की रिपोर्ट के हिसाब से वेतन ना देने का था, क्‍योंकि दूसरे लोगों में दैनिक नवज्‍योति, सन्‍मार्ग, पंजाब केसरी और खुद दिल्‍ली प्रेस जैसे संस्‍थानों के नुमाइंदे थे, जो तनख्‍वाह ना देने के लिए जाने जाते हैं. इसके बाद धन्‍यवाद का सिलसिला चला. ‘अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने के दे’ की तर्ज पर उन सभी को धन्‍यवाद दिया गया, जिनके पर्चे भी नहीं छपते हैं. पर वे रवि विश्‍नोई द्वारा रजिस्‍टर कराए गए अखबारों की तरफ से ना केवल इलना में नुमाइंदे हैं, बल्कि बंट चुकी इलना में एक्‍जक्‍यूटिव तक पहुंच चुके हैं. कारण, इन्‍हीं की तालियों के दम पर आगे वाला खेल-खेला जाने वाला था.

इसके बाद बजाय एजेंडा पर चलने के माइक एक बार फिर रवि विश्‍नोई के हाथ में थी. रवि ने एक बार फिर परेश नाथ की महानता के पुल बांधे और कहा कि संविधान और नियम क्‍या होता है, जिसकी लाठी होती है, उसकी भैंस होती है. इसलिए परेश नाथ को ही तीसरी-चौथी बार या जब तक वो चाहे या सदस्‍य चाहे अध्‍यक्ष रहने दिया जाये. स्‍वभाविक था, उस हाल में मौजूद दिल्‍ली प्रेस के 70 कर्मचारी, जो किसी-किसी अखबार, पत्रिका के नुमाइंदे बनकर आए थे, 25-30 रवि की कृपा से पहुंचे लोग व बाकी 25-30 वे पर्चे वाले, जिन्‍हें दिल्‍ली प्रेस के कर्मचारियों ने अपने बॉस को मजबूत करने के लिए मेंबर बना दिया था और जो इस खास दिन के लिए टिकट कटाकर, होटलों में ठहराकर, खाना खिलाकर लाए गए थे, ने तालियां पीट-पीटकर हामी भर दी. पर उसी हाल में मौजूद इलना के पूर्व अध्‍यक्ष राजेन्‍द्र शर्मा, प्रताप भाई शाह व सुनील डांग चुप ना रह सके.

इन सभी पूर्व अध्‍यक्षों ने अपने-अपने ढंग से इलना के संविधान की दुहाई दी. इन सभी ने कहा, ‘इलना का संविधान बनाने वालों ने जान-बूझकर ऐसी व्‍यवस्‍था की थी कि कोई एक इलना को अपनी जागीर ना बना ले. आखिर हर साल एक्‍जक्‍यूटिव के 21 में से केवल 7 सदस्‍यों का ही चुनाव क्‍यों होता है. पूरे 21 क्‍यों नहीं चुने जाते, इसी तरह कोई एक अध्‍यक्ष भी लगातार तीन बार ना चुना जाये का नियम रखा गया. वैसे ही इलना बंट चुकी है, लोगों में ये मैसेज ना जाये कि इस संगठन को भी जेबी बना लिया गया है, इस पर पद से चिपकू लोग कायम हैं.’ पर नक्‍कार खाने में तूती की तरह इनकी आवाज दब कर रह गई.

परेश नाथ का अहम जाग उठा और जो संस्‍थान अपने कर्मचारियों को पत्रकार होने की पहचान पत्र तक नहीं देता और मालिकान थानेदार तो दूर सिपाहियों तक से डरते हैं, उन्‍होंने तैश में आकर कहा, ‘हमें कोई संविधान की दुहाई ना दे, यहां इस हाल में मौजूद हर आदमी से ज्‍यादा हमें संविधान की समझ है, हमने इंदिरा गांधी से लड़ाई लड़ी, लाल कृष्‍ण आडवाणी से लड़ा. मैं महेश्‍वर पेरी (आउट लुक), आशीष बग्‍गा (इंडिया टुडे), हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स, टाइम्‍स ऑफ इंडिया को कुछ नहीं समझता. वे तो बिजनेस कर रहे हैं. इलना ने मुझे क्‍या दिया है, क्‍या दे सकती है, पर मैं तो सेवा कर रहा हूं.’ ये कौन सी सेवा है भाई, जो कुर्सी से चिपके हो, ये कौन सी सेवा है जिसमें पूरा स्‍टॉफ और खानदान लगा रखे हो?

कुछ नहीं मिल रहा तुम्‍हे व रवि विश्‍नोई को तो दोनों के लड़के तक बेइमानी से हाथ लगी इस टूटी-फूटी इलना की एक्‍जक्‍यूटिव में कैसे और क्‍यों हैं? कोई दूसरा कारोबार या संगठन क्‍यों नहीं देखते? जाहिर है, इस भाषण के बाद जो होना था वही हुआ, बिना संविधान को बदले परेश नाथ सर्वसम्‍मति से अध्‍यक्ष बन गए. उनका बेटा इलना के नियमों की धज्जियां बिखेरते हुए, सरिता पत्रिका के नाम पर कथित चुनाव से जीत कर कार्यकारिणी के सदस्‍य बन गए.जबकि इलना के नियमों के मुताबिक, तीन साल पुराना सदस्‍य ही कार्यकारिणी का चुनाव लड़ सकता है. पिछले साल जनवरी में जब परेश नाथ अध्‍यक्ष बने थे तब तक केवल सरस सलिल ही इलना की मेंबर थी. अभी दिल्‍ली प्रेस की 24 पत्रिकाएं इलना की मेंबर हैं. पर जो भी हो तीन साल नहीं हुआ था. इस तरह से इलना का कथित चुनाव सम्‍पन्‍न हुआ.

पुराने अध्‍यक्ष कौरवों की सभा में भीष्‍म पितामह, द्रोणाचार्य और धृतराष्‍ट्र की तरह अंधे-बहरे बने बैठे रहे और पहले से ही अर्द्धनंगा हो चुकी इलना का चीर हरण देखते रहे. आज वहा मौजूद इन मीडिया के सूरमाओं की बाजी मारने की खबरें उनके अखबारों में छपेंगी, प्रेस रिलीज भी अखबारों में जायेंगी. भड़ास व दूसरे पोर्टलों को भी मिलेंगी, पर ये कितनी सच है और कितनी शरमायादार यहां पेश है. ये तो रहा हाल इलना 2 का, आईएनएस के कथित बड़े क्‍या करेंगे, फिर कभी.

एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा भड़ास4मीडिया को भेजी गई चिट्ठी पर आधारित. उन्होंने अपना नाम न प्रकाशित करने का अनुरोध किया है

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0 Comments

  1. Samir

    September 25, 2010 at 1:21 pm

    jaisa aap jaante hai ILNA 70 saal purana sangathan hai, paresh nath ji ke president banne se pehle iss sanghatan ko kon jaanta tha aur iss sanghatan ka desh mai kiya vajood tha, jab se Paresh Nath Ji iss sangathan ke president bane hai, unka kaam ILNA ka her (every) member jaanta hai, raha sawal ILNA ke savidhan ka, jab Indian savidhan me sanshodahn ho sakta hai, to ILNA mai ku nahi. yeh koi kisi dharm (religion ka savidhan) ka savidhan thodi na hai , ke iss me koi badlav nahi ho sakta, Paresh nath ji pichle 2 saal mai jo ILNA ko mazbooti diyen hai, mujhe nahi lagta ke koi ILNA member/president kar pata. mai paresh Nath ji ko bohut acchhi tarah jaanta hu, wo shaks ek imandar, mehanti, kaam mai vishwaas karne wale insaan hai,…..
    ILNA ka savidhan ku nahi badle, 70 saal pehle jab savidhan likha gaya tha jab haalat doosre the aur ab badal agyen hai, savidhan mai badlav samay ka takaza tha, badlav kiya gaya, yeh ILNA ke haq mai sahi faisla hai,
    ILNA ka president baane ki qualification (right person) koi rakhta hai, wo kewal Paresh Nath ji hai,
    Paresh Nath ji hamari taraf se dher saari badhai,.

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