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साहित्य

रमाशंकर यादव के कविता संग्रह का विमोचन 21 को

मुलजिम रमाशंकर यादव विद्रोही वल्द गरीबी, साकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली की पेशी 21 जनवरी को नयी दिल्ली के आईटीओ के पास स्थित गाँधी पीस फाउंडेशन के हाल में होगी. उन पर मुक़दमा चलेगा. उनके ऊपर अभियोग यह है कि उन्होंने इस पूंजीवादी, शोषक देश में गरीब आदमी की बात की. शोषित पीड़ित जनता को लाठी उठाने के लिए भड़काया और मध्य वर्ग की उन मजबूरियों को दुत्कार दिया, जिनके चक्कर में मेरे जैसे लोगों ने अनंत समझौते किये हैं. इस मुक़दमे में विद्रोही जी ही मुद्दई भी होंगें और मुंसिफ भी. आप भी आइयेगा लेकिन केवल तमाशबीन की हैसियत में. क्योंकि इस मुक़दमें में और किसी रूप में शामिल होने की किसी की हैसियत नहीं है.

<p style="text-align: justify;">मुलजिम रमाशंकर यादव विद्रोही वल्द गरीबी, साकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली की पेशी 21 जनवरी को नयी दिल्ली के आईटीओ के पास स्थित गाँधी पीस फाउंडेशन के हाल में होगी. उन पर मुक़दमा चलेगा. उनके ऊपर अभियोग यह है कि उन्होंने इस पूंजीवादी, शोषक देश में गरीब आदमी की बात की. शोषित पीड़ित जनता को लाठी उठाने के लिए भड़काया और मध्य वर्ग की उन मजबूरियों को दुत्कार दिया, जिनके चक्कर में मेरे जैसे लोगों ने अनंत समझौते किये हैं. इस मुक़दमे में विद्रोही जी ही मुद्दई भी होंगें और मुंसिफ भी. आप भी आइयेगा लेकिन केवल तमाशबीन की हैसियत में. क्योंकि इस मुक़दमें में और किसी रूप में शामिल होने की किसी की हैसियत नहीं है.</p> <p style="text-align: justify;" />

मुलजिम रमाशंकर यादव विद्रोही वल्द गरीबी, साकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली की पेशी 21 जनवरी को नयी दिल्ली के आईटीओ के पास स्थित गाँधी पीस फाउंडेशन के हाल में होगी. उन पर मुक़दमा चलेगा. उनके ऊपर अभियोग यह है कि उन्होंने इस पूंजीवादी, शोषक देश में गरीब आदमी की बात की. शोषित पीड़ित जनता को लाठी उठाने के लिए भड़काया और मध्य वर्ग की उन मजबूरियों को दुत्कार दिया, जिनके चक्कर में मेरे जैसे लोगों ने अनंत समझौते किये हैं. इस मुक़दमे में विद्रोही जी ही मुद्दई भी होंगें और मुंसिफ भी. आप भी आइयेगा लेकिन केवल तमाशबीन की हैसियत में. क्योंकि इस मुक़दमें में और किसी रूप में शामिल होने की किसी की हैसियत नहीं है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र रमाशंकर यादव विद्रोही को 1983 में निकाल दिया गया था, लेकिन वे निकले नहीं, वहीं जम गए. कवितायें कीं और कैम्पस के निवासी बने रहे. उन कविताओं में से कुछ का संकलन एक किताब के रूप में किया गया है. छपी हुई इस किताब का 21 जनवरी को विमोचन होगा. विद्रोही को बहुत लोग नहीं जानते, लेकिन अगर उनके पूरे दोस्त असरार खां की चली तो लगता है कि पूरी दुनिया जान जायेगी. असरार खां कम्युनिस्ट हैं. और उन्होंने ही विद्रोही को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में एसएफआई में भर्ती किया था. असरार चाहते हैं कि विद्रोही को जेएनयू से डाक्टरेट की उपाधि दी जाए. इन सारी बातों पर चर्चा के लिए 21 जनवरी को गाँधी पीस फाउंडेशन आइये, दोपहर दो बजे के बाद. फिर देखिये एक बागी कवि अपने आप को किन कठिन परिस्थितयों में डालकर कविता करता है, अपना फ़र्ज़ निभाता है.

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0 Comments

  1. arar khan

    January 20, 2011 at 12:10 pm

    शेष नारायण जी ने विद्रोही जी के प्रथम काव्य देशी खेती की सूचना जिस अंदाज में दिया है वह मुझे बहुत अच्छा लगा ..अभी एक सप्ताह पहले ही विद्रोही जी पर शेष नारायण जी ने एक बड़ा लेख लिखा था जिसे आप लोगों ने भड़ास मीडिया पर भी शायद देखा हो …मुझे बस इतना ही कहना है की जिस तरह अमीरों के घर हर रोज़ ईद और दिवाली होती है उसी तरह स्थापित या बहुत ज्यादा प्रकाशित होने वाले साहित्यकारों के लिए उसकी रचनाओं का प्रकाशन-विमोचन या लोगों की वधियाँ कोई मायने नहीं रखतीं ..लेकिन विद्रोही जी के जीवन में यह लम्हा कम से कम तीन दशक के इंतज़ार और जद्दोजेहद के बाद आया है …इसलिए यदि मैं ये कहूं की दोस्तों २१ जनवरी को दोपहर दो बजे आप गांधी पीस faundation जरूर आइयेगा केंव्की विद्रोही के जीवन की कल पहली दिवाली है …मेरा यकीन है की ऐसा सर्वहारा कवी आप ने शायद नहीं देखा होगा ..मैं यहाँ बाबा नागार्जुन की बात नहीं कर रहा हूँ वह तो एक महान कवि थे …बाबा तो हम सब की प्रेरणा के श्रोत हैं वी हमारे आदर्श कवी हैं जिनकी रचनाओं को हम सोते जागते गुनगुनाया करते हैं …विद्रोही जी में बाबा जैसी बहुत खूबियाँ हैं ..निराला जैसी खूबियाँ हैं ….आइये हम सब मिलकर साथी विद्रोही का स्वागत करें ..और कहें इन्कलाब ज़िन्दवाद ,ज़िन्दवाद

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