प्रशांत भूषण की पिटाई के बाद इस देश की राजनीति ने करवट नहीं कई, पल्थे खाए हैं. जिन लोगों को अपना मान कर प्रशांत भूषण क्रान्ति लाने चले थे, उन्होंने उनकी विधिवत कुटम्मस की. टीवी पर उनकी हालत देख कर मैं भी डर गया हूँ. जिन लोगों ने प्रशांत जी की दुर्दशा की, वही लोग तो पोर्टलों पर मेरे लेख पढ़कर गालियाँ लिखते हैं.
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फैज ने कहा था – यह नौजवान गजल गायकी की बुलंदियों तक जाएगा
[caption id="attachment_21060" align="alignleft" width="85"]शेषजी[/caption]: संस्मरण : जगजीत सिंह को पहली बार 1978 में जाकिर हुसैन मार्ग के मकान नंबर 47 के लान में देखा था. दिल्ली हाईकोर्ट के ऐन पीछे यह मकान है. उस मकान में उन दिनों विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव डॉ. इंदु प्रकाश सिंह रहते थे. जनता पार्टी का ज़माना था. इंदिरा गांधी 1977 में चुनाव हार चुकी थीं.
हिन्दी की आलोचना विधा अब ब्लैकमेल का साधन बन गयी है : मुद्रा राक्षस
[caption id="attachment_21060" align="alignleft" width="85"]शेषजी[/caption]इस बार लखनऊ यात्रा दिलचस्प रही. मेरे संपादकजी ने सुझाया कि मुद्राराक्षस से भी मुलाक़ात हो सकती है. 35 साल का बाइस्कोप याद की नज़रों में घूम गया. दिल्ली के श्रीराम सेंटर में 1976 में मैं मुद्राराक्षस को पहली बार देखा था. वे मेकअप में थे. गोगोल का नाटक “इन्स्पेक्टर जनरल” ले कर आये थे. चाटुकार राजनीति और नौकरशाही पर भारी व्यंग्य था. नाम दिया था ‘आला अफसर’.
थोड़ा सफल हो जाओगे तो मुखबिर, दलाल या रीढ़विहीन बन जाओगे
: 2 अक्टूबर पर विशेष : अपने गांधी जी की शेष यही है पहचान, मुखिया से कलेक्टर तक को घूस का जबरदस्त प्रावधान : बापू को भूलने के कारण और गलत आर्थिक नीतियों को अपनाने से बड़े शहरों, मलिन बस्तियों और उजड़े गाँवों का देश बन गया है भारत :
चैनल मालिकों के व्यापारिक हित के लिए काम न करें जर्नलिस्ट : जस्टिस ज्ञान सुधा
: हर मीडियाकर्मी के अंदर एक मुख्य न्यायाधीश होता है : सुप्रीम कोर्ट की जज न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा है कि मीडिया में काम करने वालों अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनकर ही काम करना चाहिए. उन्होंने ख़ास तौर से टेलिविज़न वालों को संबोधित करते हुए कहा कि मीडियाकर्मी भी एक तरह के जज हैं.
मुंबई के राजपूत
[caption id="attachment_21060" align="alignleft" width="85"]शेषजी[/caption]मुंबई में इस बार मुझे एक बहुत ही अजीब बात समझ में आई. आमतौर पर अपनी बिरादरी की पक्षधरता से मैं बचता रहा हूँ. उत्तर प्रदेश में ज़मींदारी उन्मूलन के आस-पास जन्मे राजपूत बच्चों ने अपने घरों के आस पास ऐसा कुछ नहीं देखा है जिस पर बहुत गर्व किया जा सके. अपने इतिहास में ही गौरव तलाश रही इस पीढ़ी के लिए यह अजूबा ही रहा है कि राजपूतों पर शोषक होने का आरोप लगता रहा
छोरा गोमती किनारे वाला, मुंबई में छपाई की दुनिया का दादा है
पिछले हफ्ते एक दिन सुबह जब मैंने अखबार उठाया तो टाइम्स आफ इंडिया देख कर चमत्कृत रह गया. अखबार बहुत ही चमकदार था. लगा कि अलमूनियम की शीट पर छाप कर टाइम्स वालों ने अखबार भेजा है. लेकिन यह कमाल पहले पेज पर ही था. समझ में बात आ गयी कि यह तो विज्ञापन वालों का काम है. पहले और आखिरी पेज पर एक कार कंपनी के विज्ञापन भी लगे थे.
शातिर अपराधियों का चुनाव लड़ पाना असंभव हो जाएगा
केंद्र सरकार ने ऐसी पहल की है कि आने वाले दिनों में अपराधियों के लिए चुनाव लड़ पाना बिलकुल असंभव हो जाएगा. कानून मंत्रालय ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद के विचार के लिए एक प्रस्ताव भेजा है जिस में सुझाया गया है कि उन लोगों पर भी चुनाव लड़ने से रोक लगा दी जाए जिनको ऊपर किसी गंभीर अपराध के लिए चार्ज शीट दाखिल कर दी गयी है.
वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह जनसंदेश टाइम्स के ब्यूरोचीफ बने
वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट शेष नारायण सिंह को जनसंदेश टाइम्स ने अपने साथ जोड़ लिया है. उन्हें दिल्ली का ब्यूरोचीफ बनाया गया है. अपनी तीखी लेखन शैली के लिए पहचाने जाने वाले शेष नारायण सिंह उर्दू अखबार शहाफत के भी ज्वाइंट एडिटरभी हैं. जनसंदेश टाइम्स का प्रकाशन लखनऊ से हो रहा है तथा शेष नारायण सिंह दिल्ली में अखबार की जिम्मेदारी संभालेंगे.
प्रधानमंत्री और उनके मीडिया वाले ये पंच प्यारे
बहुत दिन बाद कुछ चुनिन्दा पत्रकारों से मुखातिब हुए मनमोहन सिंह ने अपनी बात बतायी. उनके मीडिया सलाहकार के पांच मित्र पत्रकारों के कान में उन्होंने कुछ बताया लेकिन जब देखा कि वहां से निकलकर वे संपादक लोग प्रेस कांफ्रेंस करने लगे हैं और प्रधानमंत्री की बात पर अपनी व्याख्या कर रहे हैं तो हड़बड़ी में करीब नौ घंटे बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर सरकारी पक्ष भी रख दिया गया.
जीता कोई भी हो, हारा पाकिस्तान ही है
करीब 10 साल की कोशिश के बाद अमरीका ने ओसामा बिन लादेन को मार डाला. पूरी दुनिया में आतंक का पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन को अमरीका ने ही बन्दूक के रास्ते पर डाला था और उसका इस्तेमाल किया था. जब पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक का राज था तो अमरीका ने अफगानिस्तान में घुस आये सोवियत फौजियों को भगाने के लिए जो योद्धा तैयार किये थे, ओसामा बिन लादेन उसके मुखिया थे.
सुरेश कलमाड़ी गिरफ्तार, मीडिया और जनता जीती
भ्रष्टाचार के कुछ मामलों में सुरेश कलमाड़ी की गिरफ्तारी देश में चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान को ज़बरदस्त ताक़त देगा. आम तौर पर होता यह रहा है कि किसी भी केस में सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी अपने सदस्यों या सहयोगियों को गिरफ्तार नहीं करती. कहीं से बलि के बकरे तलाशे जाते हैं और उन्हें ही शील्ड की तरह इस्तेमाल करके नेता को बचा लिया जाता है. ऐसे सैकड़ों मामले हैं.
जो इस बकरीवाद से बच गया वो महान हो गया, जो फंसा वो दुकान हो गया
बकरी में में करती है। पत्रकार मैं मैं करने लगे हैं। हमारे एक पूर्व वरिष्ठ सहयोगी शेष नारायण सिंह कहा करते थे। कहते थे- पत्रकारिता में जो इस बकरीवाद से बच गया वो महान हो गया और जो फंस गया वो दुकान हो गया। मुझे तब यह बात अजीब लगती थी। शेष जी क्या क्या बोलते रहते हैं। अब उनकी बात समझ में आने लगी है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम का पहला राउंड सोनिया गाँधी ने जीता
: एक विश्लेषण : अन्ना हजारे का आन्दोलन उच्चकोटि की राजनीति का उदाहरण है : पर आसानी से हार नहीं मानने वाले हैं हमारे देश के प्रोफेशनल नेता : अन्ना हजारे के अनिश्चितकालीन अनशन के दौरान मैं अस्पताल में पड़ा था. मुझे तो पीड़ा थी लेकिन डाक्टरों ने कहा कि बहुत ही मामूली बीमारी है. जो भी हो उस दौर में कुछ लिख नहीं पाया.
मीडिया की विश्वसनीयता के मुद्दे पर सवाल!
मीडिया के नाम पर ठगी की घटनाएं आजकल कुछ ज्यादा ही सुनने को मिल रही हैं. भड़ास4मीडिया पर इस तरह की खबरें अक्सर आती रहती हैं. पिछले 24 घंटों में भड़ास पर छपी 3 ख़बरों के हवाले से मीडिया की ज़िम्मेदारी पर चर्चा करने की कोशिश की गयी है. यह कोई बहुत ऊंचा आदर्श बघारना नहीं है. बल्कि यह पत्रकारों और पत्रकारिता की इज्ज़त बचाने के लिए भी ज़रूरी है. अगर फ़ौरन चौकन्ना न हुए तो बहुत देर हो जायेगी.
भारतीय सिनेमा के आदिपुरुष यानी चार आने के फाल्के
[caption id="attachment_19621" align="alignleft" width="85"]शेषजी[/caption]टेलीविज़न पर मराठी फिल्म “हरिशचंद्राची फैक्टरी” देखने का मौक़ा मिला. एक बहुत ही अज़ीज़ दोस्त ने कहा कि मराठी भाषा न जानने की वजह से फिल्म को देखने में कोई दिक्क़त नहीं आयेगी. इस फिल्म के बारे में इतना पता था कि आस्कर पुरस्कारों के लिए गयी थी लेकिन पुरस्कार मिला नहीं. फिल्म देख कर समझ में आया कि आस्कर पुरस्कार देने वाले गलती कैसे करते हैं. यह फिल्म भारतीय सिनेमा के आदिपुरुष दादा साहेब फाल्के की पहली फिल्म हरिश्चंद्र तारामती के निर्माण के बारे में है.
सामंती कम्युनिस्टों की जमींदारी पर जनता की लगाम!
बहुत साल बाद कोलकाता जाने का मौक़ा लगा. तीन दिन की इस कोलकाता यात्रा ने कई भ्रम साफ़ कार दिया. ज्यादा लोगों से न मिलने का फायदा भी होता है. बातें बहुत साफ़ नज़र आने लगती हैं. 1978 में आपरेशन बर्गा पर एक परचा लिखने के बाद अपने आपको ग्रामीण पश्चिम बंगाल का ज्ञाता मानने की बेवकूफी मैं पहले भी कर चुका हूं. कई बार अपने आप से यह कह चुका हूँ कि आगे से सर्वज्ञ होने की शेखी नहीं पालेंगे लेकिन फिर भी मुगालता ऐसी बीमारी है जिसका जड़तोड़ इलाज़ होता ही नहीं.
अस्सी के पप्पू की असली दुकान मुंबई शिफ्ट
: ”काशी का अस्सी” पर फिल्म बना रहे डॉ चन्द्र प्रकाश द्विवेदी पूरी दुकान खरीद कर ट्रक में लाद मुंबई की फिल्म सिटी में स्थापित कर दिया : नामवर सिंह और काशीनाथ सिंह देख आए शूटिंग, दोनो हैं प्रसन्न : पड़ाइन का रोल कर रही हैं साक्षी तंवर : रामदेई के रोल को सीमा आजमी कर रही हैं जीवंत : बनारसी पण्डे का रोल कर रहे हैं सनी देओल : रवि किशन कन्नी के रोल में हैं, मिथिलेश चतुर्वेदी बने हैं डॉ गया सिंह :
नाम नई दिल्ली, उम्र अस्सी साल
आज से ठीक अस्सी साल पहले, 10 फरवरी 1931 के दिन नयी दिल्ली को औपचारिक रूप से ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाया गया. उस वक़्त के वाइसराय लार्ड इरविन ने नयी दिल्ली शहर का विधिवत उदघाटन किया. १९११ में जार्ज पंचम के राज के दौरान दिल्ली में दरबार हुआ और तय हुआ कि राजधानी दिल्ली में बनायी जायेगी. उसी फैसले को कार्यरूप देने के लिए रायसीना की पहाड़ियों पर नए शहर को बसाने का फैसला हुआ और नयी दिल्ली एक शहर के रूप में विकसित हुआ.
आगे बढ़ती दुनिया में पिछड़ कर हांफती मीडिया
: राजनीति की बारीक समझ को टीवी न्यूज़ का स्थायी भाव बनाना पड़ेगा : मिस्र में जनता सड़कों पर है. अमरीकी हुकूमत की समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करे. दुविधा की स्थिति है. होस्नी मुबारक का जाना तो तय है लेकिन उनकी जगह किसको दी जाए, यह अमरीका की सबसे बड़ी परेशानी है.
महात्मा गांधी ऐसी ही मौत चाहते थे!
आज से ठीक तिरसठ साल पहले एक धार्मिक आतंकवादी की गोलियों से महात्मा गाँधी की मृत्यु हो गयी थी. कुछ लोगों को उनकी हत्या के आरोप में सज़ा भी हुई लेकिन साज़िश की परतों से पर्दा कभी नहीं उठ सका. खुद महात्मा जी अपनी हत्या से लापरवाह थे. जब २० जनवरी को उसी गिरोह ने उन्हें मारने की कोशिश की जिसने ३० जनवरी को असल में मारा तो सरकार चौकन्नी हो गयी थी लेकिन महात्मा गाँधी ने सुरक्षा का कोई भारी बंदोबस्त नहीं होने दिया.
एफएम रेडियो पर बीबीसी यानि हिंदी जन से दूर बीबीसी
ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन के कई सेक्शन बंद किये जा रहे हैं. दुर्भाग्य की बात यह है कि हिन्दी सर्विस में भी बंदी का ऐलान कर दिया गया है. इसका मतलब यह हुआ कि बीबीसी रेडियो की हिंदी सर्विस को मार्च के अंत में बंद कर दिया जाएगा. बीबीसी की हिन्दी सेवा का बंद होना केवल एक व्यापारिक फैसला नहीं है.
आरएसएस ने 1948 में तिरंगे को पैरों तले रौंदा था!
श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराने की बीजेपी की राजनीति पूरी तरह से उल्टी पड़ चुकी है. बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के संयोजक शरद यादव तो पहले ही इस झंडा यात्रा को गलत बता चुके हैं, अब बिहार के मुख्यमंत्री और बीजेपी के महत्वपूर्ण सहयोगी नीतीश कुमार ने श्रीनगर में जाकर झंडा फहराने की जिद का विरोध किया है. शरद यादव ने तो साफ़ कहा है कि जम्मू कश्मीर में जो शान्ति स्थापित हो रही है उसको कमज़ोर करने के लिए की जा रही बीजेपी की झंडा यात्रा का फायदा उन लोगों को होगा जो भारत की एकता का विरोध करते हैं.
घर से 15 और दुनिया से 80 की उम्र में भागे
[caption id="attachment_19325" align="alignleft" width="122"]प्रभाकर पणशीकर[/caption]: मरने वाला महाराष्ट्र के ग्रामीणों का औरंगजेब था : प्रभाकर पणशीकर का जाना मराठी थियेटर का एक बड़ा नुकसान है : मराठी थियेटर के बड़े अभिनेता प्रभाकर पणशीकर नहीं रहे. १३ जनवरी को पुणे में उन्होंने अंतिम सांस ली. साठ से भी ज्यादा वर्षों तक मराठी थियटर में जीवन बिताने के बाद उन्होंने अलविदा कहा लेकिन इस बीच उनकी ज़िंदगी बहुत ही नाटकीय रही.
रमाशंकर यादव के कविता संग्रह का विमोचन 21 को
मुलजिम रमाशंकर यादव विद्रोही वल्द गरीबी, साकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली की पेशी 21 जनवरी को नयी दिल्ली के आईटीओ के पास स्थित गाँधी पीस फाउंडेशन के हाल में होगी. उन पर मुक़दमा चलेगा. उनके ऊपर अभियोग यह है कि उन्होंने इस पूंजीवादी, शोषक देश में गरीब आदमी की बात की. शोषित पीड़ित जनता को लाठी उठाने के लिए भड़काया और मध्य वर्ग की उन मजबूरियों को दुत्कार दिया, जिनके चक्कर में मेरे जैसे लोगों ने अनंत समझौते किये हैं. इस मुक़दमे में विद्रोही जी ही मुद्दई भी होंगें और मुंसिफ भी. आप भी आइयेगा लेकिन केवल तमाशबीन की हैसियत में. क्योंकि इस मुक़दमें में और किसी रूप में शामिल होने की किसी की हैसियत नहीं है.
यह विद्रोही अपनी शर्तों पर कविता करेगा
[caption id="attachment_19199" align="alignleft" width="85"]शेषजी[/caption]फेसबुक पर एक बहुत ही दिलचस्प बहस चल रही है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उनके छात्र जीवन के साथी असरार खां ने जनवादी कवि रमाशंकर यादव विद्रोही के बारे में कुछ ऐसे बयान दे दिए हैं जिन पर विवाद है. जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चन्द्रशेखर से उनकी तुलना कर देने के बाद कुछ लोगों को नागवार गुज़रा और उन्होंने विद्रोही की कविता पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 1983 में हुए संघर्ष की कथा में नायकों और खलनायकों का ज़िक्र चल पड़ा और बात विद्रोही की कविता से हट कर छात्र राजनीति की बारीकियों पर केन्द्रित हो गयी.
एक संपादक को देशद्रोही बनाने की तैयारी!
: महाराष्ट्र पुलिस ने ‘विद्रोही’ के संपादक सुधीर ढवले को गिरफ्तार किया : महाराष्ट्र पुलिस ने भी छत्तीसगढ़ पुलिस की तरह गरीबों के अधिकार की लड़ाई लड़ने वालों की धरपकड़ शुरू कर दी है. इस सिलसिले में दलित अधिकारों के चैम्पियन और मराठी पत्रिका, ‘विद्रोही’ के संपादक सुधीर ढवले को गोंदिया पुलिस ने देशद्रोह और अनलाफुल एक्टिविटीज़ प्रेवेंशन एक्ट की धारा 17, 20 और 30 लगाकर गिरफ्तार कर लिया. उन पर आरोप है कि वे आतंकवादी काम के लिए धन जमा कर रहे थे और किसी आतंकवादी संगठन के सदस्य थे.
आरएसएस सभी हिन्दुओं का संगठन नहीं
: हिन्दू धर्म में आतंकवाद की कोई जगह नहीं : दिसंबर में हुई कांग्रेस की सालाना बैठक में जब से तय हुआ कि आरएसएस के उस रूप को उजागर किया जाए जिसमें वह आतंकवादी गतिविधियों के प्रायोजक के रूप में पहचाना जाता है, तब से ही आरएसएस के अधीन काम करने वाले संगठनों और नेताओं में परेशानी का आलम है. जब से आरएसएस के ऊपर आतंकवादी जमातों के शुभचिंतक होने का ठप्पा लगा है वहां अजीबोगरीब हलचल है. आरएसएस ने अपने लोगों को दो भाग में बाँट दिया है. एक वर्ग तो इस बात में जुट गया है कि वह संघ को बहुत पाक साफ़ संगठन के रूप में प्रस्तुत करे, जबकि दूसरे वर्ग को यह ड्यूटी दी गयी है कि वह आरएसएस को सभी हिन्दुओं का संगठन बनाने की कोशिश करे.
बिनायक के साथ खड़े न हुए तो हमारे साथ भी यही होगा
[caption id="attachment_19006" align="alignleft" width="113"]बिनायक सेन[/caption]छत्तीसगढ़ में रायपुर की एक अदालत ने मानवाधिकार नेता डॉ. बिनायक सेन को आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी. पुलिस ने डॉ. सेन पर कुछ मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं लेकिन उन पर असली मामला यह है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ रियासत के शासकों की भैंस खोल ली है. बिनायक सेन बहुत बड़े डाक्टर हैं, बच्चों की बीमारियों के इलाज़ के जानकार हैं. किसी भी बड़े शहर में क्लीनिक खोल लेते तो करोड़ों कमाते और मौज करते.
अलविदा ब्रायन हनरहन
बीबीसी के कूटनीतिक सम्पादक ब्रायन हनरहन की 61 साल की उम्र में लन्दन में मृत्यु हो गयी. उन्हें कैंसर हो गया था. 1970 में बीबीसी से जुडे ब्रायन हनरहन ने हालांकि क्लर्क के रूप में काम शुरू किया था लेकिन बाद वे बहुत नामी रिपोर्टर बने. भारत में उन्हें पहली बार 1984 में नोटिस किया गया जब वे मार्क टली और सतीश जैकब के साथ इंदिरा गाँधी की हत्या की रिपोर्ट करने वाली टीम के सदस्य बने.
आखिर में राडिया गैंग के पत्रकार वेबमीडिया को घेरने की कोशिश करेंगे
नीरा राडिया के टेलीफोन के शिकार हुए लोगों की नयी किश्त बाज़ार में आ गयी है. पहली किश्त में तो अंग्रेज़ी वाले पत्रकार और दिल्ली के काकटेल सर्किट वालों की इज्ज़त की धज्जियां उडी थीं. उनमें से दो को तो उनके संगठनों ने निपटा दिया. वीर संघवी और प्रभु चावला को निकाल दिया गया है लेकिन बरखा दत्त वाले लोग अभी डटे हुए हैं, मानने को तैयार नहीं हैं कि बरखा दत्त गलती भी कर सकती हैं. आउटलुक और भड़ास वालों की कृपा से सारी दुनिया को औपचारिक तौर पर मालूम हो गया है कि पत्रकारिता के टाप पर बैठे कुछ लोग दलाली भी करते थे. हालांकि दिल्ली में सक्रिय ज़्यादातर लोगों को मालूम है कि खेल होता था, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी कि उसके बारे में बात कर सके.
वेब मीडिया चौकस न रहा तो सुखराम की तरह ए राजा भी बच निकलेगा
टेलीकाम घोटाले ने सुखराम युग की याद ताज़ा कर दी. उस बार भी करीब 37 दिन तक बीजेपी ने संसद की कार्यवाही नहीं चलने दिया था. पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री थे और सुखराम ने हिमाचल फ्यूचरिस्टिक नाम की किसी कंपनी को नाजायज़ लाभ पहुंचा कर हेराफेरी की थी. बाद में वही सुखराम बीजेपी के आदरणीय सदस्य बन गए थे. आज भी जब बीजेपी के नेताओं की पत्रकार वार्ताओं में सुखराम शब्द का ज़िक्र आता है, वे खिसिया जाते हैं. लगता है कि मौजूदा टेलीकाम घोटाले के बाद भी बीजेपी का वही हाल होने वाला है. क्योंकि 1999 से लेकर 2004 तक बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार की आँखों के तारे रहे रतन टाटा ने बीजेपी की पोल खोलने का काम शुरू कर दिया है.
बाबासाहेब की याद में लगा मुंबई में मेला
दिल्ली में रहने वालों को महान नेताओं की समाधियों के बारे में खासी जानकारी रहती है. लगभग हर महीने ही सरकारी तौर पर समाधियों पर फूल-माला चढ़ता रहता है. यह अलग बात है कि महात्मा गाँधी के अलावा और किसी समाधि पर आम आदमी शायद ही कभी जाता हो. अवाम की श्रद्धा के स्थान के रूप में महात्मा जी की समाधि तो स्थापित हो चुकी है लेकिन बाकी सब कुछ सरकारी स्तर पर ही है. करीब 35 साल से दिल्ली में रह रहे अवध के एक गाँव से आये हुए इंसान के लिए यह सब उत्सुकता नहीं पैदा करता. बचपन में पढ़ा था कि शहीदों की मजारों पर हर बरस मेले लगने वाले थे, लेकिन महत्मा गाँधी जैसे शहीद की मजार पर वैसा मेला कभी नहीं दिखा जैसा कि हमारे गाँव के आसपास के सालाना मेलों के अवसर पर लगता है.
उन्होंने पाकिस्तान के खूंखार जनरल जिया उल हक से पंगा लेने की तमीज सिखाई थी
[caption id="attachment_18322" align="alignleft" width="103"]भाई मंसूर[/caption]: भाई मंसूर की याद : इस साल भी उनका जन्मदिन मनेगा लेकिन वो न होंगे : कई लोगों ने कई वर्षों तक नहीं माना कि जवाहर लाल नेहरू भी पाखाने जाते होंगे : भाई मंसूर को विदा हुए धीरे धीरे छः महीने हो गए. इतने महीनों में कई बार उनका जिक्र हुआ लेकिन कोई यह मानने को तैयार नहीं है कि भाई मंसूर को जाना चाहिए था. बताते हैं कि भाई मंसूर आख़िरी वक़्त तक अपनी आदत से बाज़ नहीं आये थे. वे अपने चाहने वालों को खुश रखने के लिए कुछ भी कर सकते थे. यहाँ तक कि झूठ भी बोल सकते थे. मैं ऐसे दसियों लोगों को जानता हूँ जो इस बात की गवाही दे देंगे कि भाई मंसूर ने उनकी खुशी के लिए झूठ बोला था. जिस आदमी में कभी किसी फायदे के लिए झूठ बोला ही न हो उसके लिए यह बहुत बड़ी बात है. लेकिन कभी कोई उनके झूठ को पकड़ नहीं पाया. अपने भाई सुहेल हाशमी के लिए ही उन्होंने सुहेल के टीचर से झूठ बोला था लेकिन टीचर मियाँ को पता नहीं चला. मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जो आजकल 55 से 60 साल की उम्र हासिल कर चुके हैं और माशा अल्ला बड़े दानिश्वर हैं या कम से कम दानिश्वरी की एक्टिंग तो करते ही हैं और अपने बचपन में भाई मंसूर के चेलों में शामिल थे.
क्या हिन्दी रीजनल भाषा है?
हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज ने एक दिलचस्प विषय पर फेसबुक पर चर्चा शुरू की है. कहते हैं कि सारी पीआर कंपनियां हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं को रीजनल मीडिया कहती हैं. कोई विरोध नहीं करता. वक्त आ गया है कि उन्हें भारतीय भाषा कहा जाए. आगे कहते हैं कि मैं उनकी राय से सहमत नहीं हूं और उन सभी पीआर कंपनियों की भर्त्सना करता हूं जो सभी भारतीय भाषाओं को रीजनल कैटेगरी में डालती हैं.
पेड न्यूज : मालिक पकड़ा जाए, पत्रकार नहीं
: क्योंकि पैसा तो मालिक खाता है, माध्यम बनता है पत्रकार : चुनाव में पेड न्यूज के चलते लोकशाही पर मुसीबत संभव : सोमवार को सभी पार्टियों के नेताओं के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त ने नयी दिल्ली में बैठक की और उनसे पैसा लेकर खबर लिखने और प्रकाशित करने की समस्या पर बात की.
यूं ही खिलाएं हैं हमने आग में फूल
: न उनकी हार नई है, न अपनी जीत नई : भड़ास के संकट के बारे में जानकारी मिलने के बाद थोड़ा दुखी था. भड़ास और उसके जैसे कई अन्य पोर्टल मीडिया के जनवादीकरण के नायक हैं. इनमें कई नौजवानों को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ. इनके पास अपने कंधे पर लटके हुए झोले में रखे कम्प्यूटर के अलावा कुछ नहीं है. ज़्यादातर अपने उसी कमरे से काम चला रहे हैं जिसमें वे रहते हैं. ऐसे ही एक नायक ने पिछले दिनों अपना ज़्यादातर वक़्त दोस्तों के घर में या सड़कों पर बिताया. दिल्ली की मई-जून की गर्मी उन्होंने अपने स्कूटर पर सवार होकर बिताई.
तो ये है पत्रकारिता में टैलेंट संकट का राज!
दूरदर्शन में भर्ती किये गए 25 पत्रकारों को नौकरी देने में पक्षपात के सबूत मिलने के बाद केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट ने उनकी नौकरी रद्द कर दी है. जिन लोगों की नौकरी ख़त्म हुई है उसमें दिल्ली की एक कांग्रेसी नेता की बेटी भी है. यह नेता जी आजकल केंद्र सरकार में मंत्री हैं. चलता किए गए लोगों में एक अन्य मंत्री के रिश्तेदार भी हैं.
फिर पीपली लाइव बना दिल्ली का मीडिया
दिल्ली में बाढ़ का पानी कम होना शुरू हो गया है. यमुना नदी में इस साल अपेक्षाकृत ज्यादा पानी आ गया था. और उस ज्यादा पानी के चलते तरह तरह की चर्चाएँ शुरू हो गयी थी. इस सीज़न में ज़्यादातर नदियों में बाढ़ आती है लेकिन इस बार दिल्ली में यमुना नदी में आई बाढ़ को बहुत दिनों तक याद रखा जाएगा. उसके कई कारण हैं. सबसे प्रमुख कारण तो यह है कि मानसून सीज़न के ख़त्म होते ही दिल्ली में कामनवेल्थ खेल आयोजित किये गए हैं.
सरकारी आतंक और ‘शोले’ की सफलता
35 साल पहले 1975 के स्वतंत्रता दिवस पर फिल्म शोले रिलीज़ हुई थी. इस फिल्म की शुरुआत तो बहुत मामूली थी लेकिन कुछ ही दिनों में यह फिल्म पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी. देखते ही देखते सुपर हिट और फिर ऐतिहासिक फिल्म हो गई शोले. अब सोचता हूं तो लगता है कि शोले की सफलता व सरकारी आतंक के बीच गजब का रिश्ता है.
यह लड़की आज़मगढ़ की है
[caption id="attachment_17841" align="alignleft" width="241"]सीमा आजमी[/caption]: सीमा आजमी- भारतीय सिनेमा की नयी आजमी : मुंबई में शाहिद अनवर के नाटक, सारा शगुफ्ता का मंचन होना था. थोड़ा विवाद भी हो गया तो लगा कि अब ज़रूर देख लेना चाहिए. बान्द्रा के किसी हाल में था. हाल में बैठ गए. सम्पादक साथ थे तो थोडा शेखी भी बनाकर रखनी थी कि गोया नाटक की विधा के खासे जानकार हैं. सारा को मैंने दिल्ली के हौज़ ख़ास में २५ साल से भी पहले अमृता प्रीतम के घर में देखा था. बाजू में प्रीतम सिंह का मकान था, वहीं पता लगा कि पाकिस्तानी शायरा, सारा शगुफ्ता आई हुई हैं तो स्व. प्यारा सिंह सहराई की अचकन पकड़ कर चले गए. इस हवाले से सारा शगुफ्ता से मैं अपने को बहुत करीब मानता था. लेकिन एक बार की, एक घंटे की मुलाकात में जितने करीब आ सकते थे, थे उतने ही क़रीब.
पगला गए हैं वीएन राय, इलाज कराओ
: वाचिक बलात्कार के अपराधी को सज़ा दो : बीएसएफ के पूर्व अधिकारी और वर्धा के महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय के कुलपति, विभूति नारायण राय ने महिला लेखकों के बारे में जिस तरह की बात कही है, वह असंभव लगती है. लेकिन बात उनके बहुत करीबी साहित्यकार की निगरानी में छपी पत्रिका में कही गयी है, इसलिए गलत होने का कोई सवाल ही नहीं है.
संघियों के दिमाग ठिकाने लगाने की जरूरत
[caption id="attachment_17725" align="alignleft" width="85"]शेषजी[/caption]: आजतक वाले सक्षम हैं यह काम करने में : संघियों से पूछें कुछ कठिन सवाल : याद रखें, फासिस्ट ही करते हैं मीडिया पर हमला : आजतक के नयी दिल्ली दफ्तर में आरएसएस के कुछ कार्यकर्ता आये और तोड़फोड़ की. आरएसएस की राजनीतिक शाखा, बीजेपी के प्रवक्ता ने कहा कि इससे टीवी चैनलों को अनुशासन में रहने की तमीज आ जायेगी यानी हमला एक अच्छे मकसद से किया गया था, उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे से लोग अनुशासन में रहें तो यह नौबत की नहीं आयेगी.
अरनब गोस्वामी और चिल्लाहट मास्टर
: बीजेपी और कांग्रेस वालों को नाथ कर रखा अरनब ने : टाइम्स नाउ कॉर्पोरेट चैनल है, संभव है उसे राजनीतिक ताक़त से समझौता करना पड़ सकता है : बाकी मीडिया संगठन भी चौकन्ना रहें तो राजनीतिक भ्रष्टाचार का लगाम संभव : कर्नाटक में खनिज सम्पदा की लूट जारी है. यह लूट कई वर्षों से चल रही है. इस बार मामला थोडा अलग है.
उदयन के जन्मदिन पर आप निमंत्रित हैं
अगले रविवार को उदयन शर्मा के जन्म के 62 साल पूरे हो जांएगे. अस्सी के दशक में उनकी वही पहचान थी जो आज के ज़माने में राजदीप सरदेसाई और अरनब गोस्वामी की है. उदयन जी रविवार के संवाददाता और संपादक रहे. आगरा के उदयन एक बेहतरीन इंसान थे. छात्र जीवन में समाजवादी रहे और टाइम्स ऑफ़ इण्डिया का “ट्रेनी जर्नलिस्ट” इम्तिहान पास करके धर्मयुग से जुड़े. डॉ धर्मवीर भारती से पत्रकारिता का ककहरा सीखा और बहुत बड़े पत्रकार बने. फिर एक दिन अचानक और असमय इस दुनिया से चले गए.
”आपका लड़का वेंटिलेटर पर है”
[caption id="attachment_17645" align="alignleft" width="99"]मोहित[/caption]: बिरला पब्लिक स्कूल, पिलानी के छात्र मोहित को फौजी अनुशासन वाले हास्टल में किसी ने जहर दे दिया : पिलानी के नामी बिरला पब्लिक स्कूल में सातवीं जमात में पढने वाला छात्र मोहित सिंह अपनी ज़िंदगी बचाने की लड़ाई लड़ रहा है. वह पिलानी के बिरला स्कूल के हास्टल में रहता है. डाक्टरों का कहना है कि उसे ज़हर दे दिया गया है. मोहित के माता-पिता को 4 जुलाई को करीब साढ़े ग्यारह बजे स्कूल से फोन आया कि आपका लड़का वेंटिलेटर पर है. घबड़ाकर वहां पहुंचे तो स्कूल के अधिकारियों ने बताया कि सुबह नाश्ते के बाद मोहित को बहुत तेज़ पसीना होने लगा और बच्चा परेशान हो गया. स्कूल की क्लीनिक में उसे ले जाया गया लेकिन मामला गंभीर था इसलिए अस्पताल में दाखिल करा दिया गया है जहां उसे वेंटिलेटर पर रखा गया है.
ये बहादुरी मैंने साबुन रगड़कर पाई है
प्रकाश झा की फिल्म ही नहीं लगती ‘राजनीति’ : प्रकाश झा संवेदनशील फिल्मकार हैं. एक से एक अच्छी फ़िल्में बनायी हैं उन्होंने. उनकी फिल्म ‘अपहरण’ और ‘गंगाजल’ को देखने के बाद अंदाज़ लगा था कि किसी नीरस विषय पर वे इतनी संवेदनशील फिल्म बना सकते हैं. ज़ाहिर है कि आम फिल्मकार इस तरह की फिल्म नहीं बना सकता. अब उनकी नयी फिल्म आई है, राजनीति. विश्वास ही नहीं हुआ कि इतनी चर्चित फिल्म को देखने के लिए मुंबई के इतने बड़े हाल में केवल १०-१२ लोग आये थे.
भाई मंसूर नहीं रहे
[caption id="attachment_17510" align="alignleft" width="184"]मंसूर सईद (दाएं) और सुहेल हाशमी. [/caption]मंसूर सईद साठ के दशक के नौजवानों के हीरो थे : पाकिस्तान के शहर कराची में मंसूर सईद का इंतकाल हो गया. मौलाना अहमद सईद का एक पोता और चला गया. मृत्यु के समय मंसूर सईद की उम्र 68 साल थी. वे जियो टीवी में बहुत ऊंचे पद पर थे. उनकी पत्नी आबिदा, कराची में एक मशहूर स्कूल की संस्थापक और प्रिंसिपल हैं, उनकी बड़ी बेटी सानिया सईद पाकिस्तान की बहुत मशहूर एंकर और एक्टर है. पाकिस्तानी टेलीविज़न देखने वाला हर शख्श उन्हें पहचानता है. बेटा अहमर सईद पाकिस्तान की अंडर 19 टीम का कप्तान रह चुका है. फिलहाल ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में क्रिकेट खेलने के अलावा मीडिया से भी जुड़ा हुआ है.
पीएम की पीसी के चापलूस पत्रकार
कई ने घटिया सवाल पूछे : कुछ ने बेशर्मी से विश किया : कठिन सवाल पूछे ही नहीं गए : अब तक के किसी पीएम की सबसे घटिया पीसी : भाइयों ने भोजन किया और अपने-अपने ढर्रे चले गए : प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल की पहली पत्रकार वार्ता सकुशल संपन्न हो गयी. उन पर कुछ दैवी कृपा रही कि जो सवाल पूछे गए वे बिलकुल ऐसे लग रहे थे जैसे प्रधानमंत्री को मालूम था कि अब यह सवाल आने वाला है.
इस हिंदी वेब पत्रकारिता को सलाम
[caption id="attachment_17430" align="alignleft" width="89"]शेष नारायण सिंह[/caption]पत्रकारिता के जनवादीकरण का युग : सच्चाई को कम खर्च में आम आदमी तक पहुंचाने का दौर : ये ऐसे अभिमन्यु हैं जो शासक वर्ग के खेल को समझते हैं : वेब मीडिया ने वर्तमान समाज में क्रान्ति की दस्तक दे दी है और उसका नेतृत्व कर रहे हैं आधुनिक युग के कुछ अभिमन्यु. मीडिया के महाभारत में वेब पत्रकारिता के यह अभिमन्यु शहीद नहीं होंगे.
शरद पवार सबसे भ्रष्ट मंत्री!
[caption id="attachment_16785" align="alignleft" width="215"]आम जनता के खलनायक शरद पवार से क्या मीडिया वाले डरते हैं?[/caption]क्या मीडिया के लोग सोए हैं? क्या मीडिया के लोग शरद पवार से डरते हैं? अगर जगे होते और न डर रहे होते तो शरद पवार को रात में न तो शांति से नींद आती और न खुद को ताकतवर समझ रहे होते. महंगाई का खलनायक अगर कोई इस देश में है तो वे हैं शरद पवार. इनके बयान, हावभाव, चालढाल, कामकाज से जगजाहिर हो रहा है कि महंगाई यूं ही नहीं बढ़ रही. इसे इन मंत्री जी और इनके अफसरों का प्रश्रय मिला हुआ है. जमाखोर, नेता, अफसर… सब मिले हुए लग रहे हैं. एक बयान आता है और जमाखोरी शुरू हो जाती है. दाम बढ़ने लगता है. आखिर कब तक मीडिया शरद पवार से डरता रहेगा? कब तक मीडिया वाले शरद पवार के आगे झुके रहेंगे?? शेष नारायण सिंह का यह आलेख आंख खोलने वाला है. संपादकों से अनुरोध है कि वे ‘महंगाई’ पर इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग शुरू कराएं. दोषियों की शिनाख्त करें. -एडिटर
नामी पत्रिका ने पैसे लेकर डाले टाप टेन में नाम!
[caption id="attachment_15225" align="alignleft"]शेष नारायण सिंह[/caption]इस तरह के फर्जी सर्वे से मीडिया को बाज आना चाहिए : पिछले दिनों देश की एक नामी पत्रिका में बेस्ट बिज़नस स्कूलों का सर्वे आया है. इसने आईआईएम, अहमदाबाद, बंगलोर, कलकत्ता और लखनऊ को तो टॉप बिज़नस स्कूलों में नाम दिया है लेकिन बाकी के चोटी के दस बिज़नस स्कूलों में जिन संस्थाओं का नाम दिया है वे बहुत सारे सवाल उठा देती हैं. इस लिस्ट में एफएमएस दिल्ली, आईआईएम इंदौर, आईआईएम कोजीकोड, आईएसबी हैदराबाद, एमडीआई गुडगाँव, आईआईटी दिल्ली, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेस, मुंबई को टॉप टेन के लायक नहीं समझा गया है जबकि सबसे जादा विज्ञापन देने वाले एमिटी बिज़नस स्कूल को टॉप टेन में जगह दी गयी है.
‘हिंद स्वराज’ के सौ साल
महात्मा गांधी के जन्म को 140 साल हो गए। सौराष्ट्र के एक उच्चवर्गीय परिवार में उनका जन्म हुआ था और परिवार की महत्वाकांक्षाएं भी वही थीं जो तत्कालीन गुजरात के संपन्न परिवारों में होती थीं। वकालत की शिक्षा के लिए इंगलैंड गए और जब लौटकर आए तो अच्छे पैसे की उम्मीद में घर वालों ने दक्षिण अफ्रीका में बसे गुजराती व्यापारियों का मुकदमा लड़ने के लिए भेज दिया। अब तक उनकी जिंदगी में सब कुछ सामान्य था जैसा एक महत्वाकांक्षी परिवार के होनहार नौजवान के मामले में होता है। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसकी वजह से सब कुछ बदल गया। एटार्नी एम.के. गांधी की अजेय यात्रा की शुरुआत हुई और उनका पाथेय था सत्याग्रह। सत्याग्रह के इस महान योद्धा ने निहत्थे ही अपनी यात्रा शुरू की। इस यात्रा में उनके जीवन में बहुत सारे मुकाम आए।
भूख की जंग का अजेय योद्धा
[caption id="attachment_15768" align="alignleft"]डा. नार्मन बोरलाग[/caption]डॉ. नार्मन बोरलाग नहीं रहे। अमरीका के दक्षिणी राज्य टेक्सॉस में 95 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया और पिछली सदी के सबसे महान व्यक्तियों में से एक ने अपना पूरा जीवन मानवता को समर्पित करके विदा ले ली। उन्हें 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डा. बोरलाग ने भूख के खिलाफ लड़ाई लड़ी और दुनिया के बड़े हिस्से में भूख को पराजित किया। पूरे दक्षिण अमरीका और एशिया में उन्होंने भूख को बेदखल करने का अभियान चलाया और काफी हद तक सफल रहे। प्रो. बोरलाग को ग्रीन रिवोल्यूशन का जनक कहा जाता है। हालांकि वे इस उपाधि को स्वीकार करने में बहुत संकोच करते थे।
मीडिया को शर्म से सिर झुका लेना चाहिए

सुधरिए, वरना बाबू लोग मीडिया चलाएंगे
यह पब्लिक है, सब जानती है : समाज के हर वर्ग की तरह मीडिया में भी गैर-जिम्मेदार लोगों का बड़े पैमाने पर प्रवेश हो चुका है। भड़ास4मीडिया से जानकारी मिली कि एक किताब आई है जिसमें जिक्र है कि किस तरह से हर पेशे से जुड़े लोग अपने आपको किसी मीडिया संगठन के सहयोगी के रूप में पेश करके अपना धंधा चला रहे हैं। कोई कार मैकेनिक है तो कोई काल गर्ल का धंधा करता है, कोई प्रापर्टी डीलर है तो कोई शुद्ध दलाली करता है। गरज़ यह कि मीडिया पर बेईमानों और चोर बाजारियों की नजर लग गई है। इस किताब के मुताबिक ऐसी हजारों पत्र-पत्रिकाओं का नाम है जो कभी छपती नहीं लेकिन उनकी टाइटिल के मालिक गाड़ी पर प्रेस लिखाकर घूम रहे हैं।
‘उर्दू है जिसका नाम’ नहीं देख सकते
कभी उर्दू की धूम सारे जहां में हुआ करती थी, दक्षिण एशिया का बेहतरीन साहित्य इसी भाषा में लिखा जाता था और उर्दू जानना पढ़े लिखे होने का सबूत माना जाता था। अब वह बात नही है। राजनीति के थपेड़ों को बरदाश्त करती भारत की यह भाषा आजकल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। वह उर्दू जो आज़ादी की ख्वाहिश के इज़हार का ज़रिया बनी आज एक धर्म विशेष के लोगों की जबान बताई जा रही है। इसी जबान में कई बार हमारा मुश्तरका तबाही के बाद गम और गुस्से का इज़हार भी किया गया था। आज जिस जबान को उर्दू कहते हैं वह विकास के कई पड़ावों से होकर गुजरी है। 12वीं सदी की शुरुआत में मध्य एशिया से आने वाले लोग भारत में बसने लगे थे। वे अपने साथ चर्खा और कागज भी लाए।
मीडिया को अपने आपसे खतरा
[caption id="attachment_15378" align="alignleft"]कुलदीप नैय्यर[/caption]चंद रोज पहले दिल्ली में एक सेमिनार में आरोप लगाया गया कि पिछले चुनावों में कई मीडिया हाउसों ने उम्मीदवारों से पैसे लेकर उनके माफिक खबरों का प्रकाशन किया। सेमिनार का उदघाटन करने वाले मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें मालूम है, खबरों का गोरखधंधा कैसे हुआ। कई पत्रकारों ने स्वीकारा कि पैसों का लेन-देन हुआ। सेमिनार का कोई नतीजा नहीं निकला पर एक वरिष्ठ नेता ने मुझे बताया कि अगर मीडिया के इस भ्रष्टाचार की जांच के लिए कोई कमीशन बना तो वे उसमें गवाही देने जाएंगे। मुझे बहुत ताज्जुब हुआ जब मैंने इस सेमिनार और कपिल सिब्बल के आरोपों के बारे में अखबारों या टीवी चैनलों में कोई चर्चा नहीं देखी। इस खबर को ब्लैक आउट कर दिया गया था। हम जैसे कुछ लोगों ने प्रेस कौंसिल से निवेदन किया है कि चुनाव प्रचार के दौरान इस्तेमाल हुई नंबर दो की रकम की जांच की जाय।
भ्रष्टाचार से जंग में मीडिया को साथ लें
[caption id="attachment_15225" align="alignleft"]शेष नारायण सिंह[/caption]महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री नितिन राउत ने राज्य के पुलिस महानिदेशक एसएस विर्क को प्रेषित अपने तीन पृष्ठों के एक पत्र में राज्य के सभी आईपीएस और राज्य पुलिस सेवा के अफसरों की संपत्ति का ब्योरा मांगा है। विर्क से कहा गया है कि उस ब्योरे में अफसरों की चल और अचल, दोनों तरह की संपत्तियों की तफसील से जानकारी दी जाए। राउत को राज्य के पुलिस अफसरों के पास बहुत सारी जमीन होने की शिकायत मिली थी। महाराष्ट्र में नियम है कि कोई भी पुलिस अधिकारी महानिदेशक से लिखित अनुमति मिले बगैर जमीन-जायदाद नहीं खरीद सकता। इस मामले में मीडिया को भी साथ ले लिया जाए तो जनता के लिए यह जंग बहुत फायदे की हो सकती है। गृह राज्य मंत्री ने विर्क से पूछा है कि उन अधिकारियों के नाम बताएं, जिन्होंने जमीन खरीदने से पहले उनसे एनओसी ली हो। भ्रष्टाचार के छोटे मामलों पर भी जवाब मांग कर नितिन राउत ने अफसरों के बच निकलने की गली बंद कर दी है। मसलन, उन्होंने पूछा है कि उन अफसरों के भी नाम बताएं, जो सरकारी कार को घर के लोगों के इस्तेमाल लिए मंगवा लेते हैं।
ग्रहण सूर्य पर या मीडिया पर !
एक सूर्यग्रहण आया और चला गया। प्रकृति का नियम है। हर साल कई बार सूर्य और चंद्र ग्रहण लगते हैं। उसका खगोल शास्त्रीय महत्व होता है, वैज्ञानिक उस पर रिसर्च करते हैं, जो भी नतीजे होते हैं, संभाल कर रख लिए जाते हैं। हो सकता है कि उसका ज्योतिष पर भी कोई असर पड़ता हो, भविष्यवाणी करने या प्राकृतिक आपदा की पूर्व सूचना होती हो, साधारण आदमी के लिए कुछ कहना संभव नहीं है। साधारण आदमी के लिए जो संभव है, वह ये कि न्यूज के नाम पर टीवी चैनलों को देखना बंद कर दें क्योंकि वह उसके बस में है। इस बार के सूर्य ग्रहण की कवरेज में टीवी न्यूज की कमजोरी पूरी तरह से रेखांकित हो गयी है। आज के टीवी चैनलों के कुछ पुरोधा यह तर्क देते हैं कि अब पत्रकारिता वह वाली नहीं रह गयी है, जो पहले हुआ करती थी। कहते हैं कि पत्रकारिता अब आधुनिक हो गयी है, इसके मुहावरे बदल गये हैं, उसका व्याकरण बदल गया है। इसलिए अब टीवी चैनल पर जो कुछ दिखाया जायेगा, वह बिल्कुल आधुनिक होगा और उसके संदर्भ पुरानी पत्रकारिता से नहीं लिये जायेंगे। यह तर्क बहुत ही जोर-शोर से दिया जा रहा है और सूर्य ग्रहण लगने के तीन दिन पहले से जिस तरह की कवरेज शुरू हुई, लगता है कि अब इस पर अमल भी हो गया है…इस देश की पत्रकारिता देश के आम आदमी के लिए दुर्भाग्य की बात है, क्योंकि राजनीतिक नेताओं ने तो आम आदमी की खैरियत पूछना बहुत पहले बंद कर दिया था। वे उन्हीं मुद्दों पर ध्यान देते थे, जो मीडिया में उछल जाते थे। नेता बिरादरी की पूरी कोशिश रहती है कि वे मुद्दे मीडिया में न आयें जो उनके लिए असुविधाजनक हों।
धर्मनिरपेक्षता के शहंशाह उदयन शर्मा
[caption id="attachment_15225" align="alignleft"]शेष नारायण सिंह[/caption]उदयन शर्मा होते तो आज 61 वर्ष और एक दिन के हो गए होते। कई साल पहले वे यह दुनिया छोड़कर चले गए थे। जल्दी चले गए। होते तो खुश होते, देखते कि सांप्रदायिक ताकतें चौतरफा मुंह की खा रही हैं। इनके खिलाफ उदयन ने हर मोर्चे पर लड़ाइयां लड़ी थीं, और हर बार जीत हासिल की थी। उनको भरोसा था कि हिटलर हो या फ्रांका हो या कोई तानाशाह, हारता जरूर है। लेकिन क्या संयोग कि जब पंडित जी ने यह दुनिया छोड़ी तो इस देश में सांप्रदायिक ताकतों की हैसियत बहुत बढ़ी हुई थी, दिल्ली के फैसले नागपुर से हो रहे थे। यह उदयन के दम की ही बात थी कि पूरे विश्वास के साथ बताते थे कि यह टेंपरेरी दौर है, खत्म हो जायेगा। खत्म हो गयी सांप्रदायिक ताकतों के फैसला लेने की सियाह रात लेकिन वह आदमी जिंदा नहीं है जिसने इसकी भविष्यवाणी की थी। उदयन शर्मा बेजोड़ इंसान थे, उनकी तरह का दूसरा कोई नहीं। आज कई साल बाद उनकी याद में कलम उठी है इस गरीब की। अब तक हिम्मत नहीं पड़ती थी। पंडितजी के बारे में उनके जाने के बाद बहुत कुछ पढ़ता और सुनता रहा हूं। इतने चाहने वाले हैं उस आदमी के। सोचकर अच्छा लगता है। आलोक तोमर हैं और सलीम अख्तर सिद्धीकी, उदयन शंकर हैं तो ननकऊ मल्लाह भी। बड़े से बड़ा आदमी और मामूली से मामूली आदमी, हर वर्ग में उदयन के चाहने वाले हैं।