कॉलेज छोड़े 11 साल हो गए लेकिन अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रमेश गर्ग की बात आज भी याद आती है, ‘वाणिज्य (कॉमर्स) के छात्र हो, रोज इकनॉमिक टाइम्स (ई.टी.) जरूर पढ़ा करो’. वही इकानॉमिक टाइम्स, जो देश का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अखबार होने का दावा करता है, 7 मार्च, 2011 को पूरे 50 साल का हो गया. और अपने 50वें जन्मदिन पर इससे बेहतर कोई अखबार कुछ और कर भी नहीं सकता, जो ई.टी. ने किया.
फ्रंट पेज, लीड स्टोरी की तरह प्रकाशित स्वर्णिम प्रतिज्ञा जिसमें भरोसा, विश्वसनीयता, विस्तृत विवरण, सूक्ष्म दृष्टि, सरसता, गंभीरता, पारदर्शिता, श्रेष्ठतम, नयापन, रचनात्मकता, सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं का चयन और एकीकृत न्यूज रूम जैसे तत्वों को शामिल किया गया है. यह सब इस उद्देश्य के साथ कि प्रभावी और व्यावसायिक दबावों के बीच ई.टी. की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. यह भी पाठकों से इस आह्वान के साथ कि ‘आपके अखबार को पत्रकारिता का गोल्ड स्टैंडर्ड बनाने में हमारी मदद करें’ (जैसा समाचार पत्र ने स्वयं के बारे में लिखा)
बिजनेस अखबारों और न्यूज चैनल्स में नैतिक और अनैतिक तरीकों से मिलने वाली मलाई के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं और खास कर जब टाईम्स ऑफ इंडिया ग्रुप हो जिसकी मार्केटिंग स्ट्रेटजी का कोई मुकाबला ही नही. फिर भी ई.टी. एक आम पाठक के भरोसे पर खरा ही उतरा है. जो तीखापन और सरसता अंग्रेजी अखबार में थी, वही 3 साल पहले शुरू हुए ई.टी. हिन्दी में भी महसूस की जा सकती है.
मैं ईटी की तारीफ के पुल नहीं बांध रहा, जो महसूस करता हूं, पत्रकार साथियों को बता रहा हूं. बजट पर दुनिया भर के अखबार क्या नहीं करते लेकिन आठ दिन पहले का ई.टी. पढ़ा हो तो ओगिल्वी, मैकेन वल्र्डग्रुप, लो, टैपरूट, बी.बी.डी.ओ. जैसी बड़ी विज्ञापन एजेंसियों के साथ मिलकर उदारीकरण के 20 सालों के मूल विचारों का जो विजुअल पेश किया, वह काबिले-तारीफ था.
50 साल के सफर में ये सोच, यह विजन दूसरे अखबारों को प्रेरित करे या ना उभरते हुए युवा पत्रकारों को एक दूरदृष्टि विकसित करने के प्रति उत्साहित अवश्य करता है. ई.टी. की पूरी आचारनीति को आनलाइन भी पढ़ा जा सकता है.
धीरज तागरा
सहायक संपादक
अपैरल ऑनलाइन हिन्दी
दिल्ली