हिंदुस्तान, जमशेदपुर में स्थानीय संपादक पर एक रिपोर्टर द्वारा हमला करने की कोशिश से संबंधित खबर के भड़ास4मीडिया पर प्रकाशन के बाद कई लोगों की प्रतिक्रियाएं आई हैं। इनमें से तीन लोगों ने भड़ास4मीडिया को जानकारी दी है कि स्थानीय संपादक अजय कुमार पहले भी अपने अधीनस्थों को परेशान करते रहे हैं और बात केवल दो लोगों में लड़ाई की नहीं बल्कि पत्रकारिता में आ रहे बदलावों की भी है। इन तीनों पत्रों को यहां इस उद्देश्य से प्रकाशित किया जा रहा है ताकि प्रकरण के दूसरे पक्ष पर भी रोशनी पड़ सके। -एडिटर, भड़ास4मीडिया
दागदार रहा है अजय कुमार का व्यवहार
भड़ास4मीडिया के माध्यम से पता चला है कि हिंदुस्तान, जमशेदपुर के स्थानीय संपादक अजय कुमार के साथ एक पत्रकार ने हाथापाई की कोशिश की। यह घटना देश के लिए स्तब्ध करने वाला हो सकता है, लेकिन जो पटना में अजय कुमार के साथ काम कर चुके हैं, उनके लिए यह कोई नई बात नहीं है। खासकर पटना में जब अजय कुमार प्रभात खबर के स्थानीय संपादक थे तो कई बार उन्होंने उप-संपादक और ऑपरेटरों पर हाथ उठाया था। पिछले साल एक वरीय उप संपादक को तो उन्होंने अपने ‘खास’ सहयोगी द्वारा पिटवाया था, जिसके बाद उस उप संपादक ने कार्यालय तत्काल छोड़ दिया। इस घटना से दुखी होकर कई लोगों ने प्रभात खबर पटना को टाटा कर दिया।
पूरे घटना को वेतन से जोड़ दिया गया और कहा गया कि अधिक वेतन मिलने के कारण लोगों ने प्रभात खबर छोड़ा है। वैसे रांची के स्थानीय संपादक विजय पाठक और पटना के प्रबंधक एसएन पाठक ने इस प्रकरण को उठाने का काफी प्रयास किया। पिटाई खाने वाले उस वरीय उपसंपादक को अभी तक न आखिरी माह का वेतन दिया गया है और न ही बोनस। यहां तक कि उसका पीएफ भी अभी तक निर्गत नहीं किया गया है। इस पूरे मामले मे हरिवंश जी को दोनों ही पक्षों ने अंधेरे में रखा है। एक तरफ अश्क जी जहां इस मामले को अपने स्तर से सुलझा लेने का आश्वासन देकर इसे हरिवंश जी तक नहीं जाने दिया, वहीं भुक्तभोगी वरीय उप संपादक का कहना है कि एक एक ऐसी घटना है, जिसे हरिवंश जी के समक्ष रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका हूं। करीब डेढ़ साल बाद भी इस मामले को सार्वजनिक नहीं करने के पीछे एकमात्र कारण प्रभात खबर की छवि थी, जिसे खंडित करने की मंशा वैसे किसी पत्रकार के मन में नहीं उठ सकता है, जिसका जन्म प्रभात खबर में हुआ हो।
अजय कुमार जैसे लोग हरिवंश जी और प्रभात खबर को कितनी हानि पहुंचा सकते हैं, इसका अंदाजा वही लगा सकता है, जो उनके अधीन काम कर चुका है। अपने माहौल के लिए गर्व करने वाला प्रभात खबर का कार्यालय अजय कुमार के कार्यकाल में गाली-गलौज और मारपीट का अड्डा बनता रहा है। हरिवंश जी द्वारा दिए गए संस्कार के कारण प्रभात खबर में तो किसी पत्रकार ने अजय जी की पिटाई नहीं की, लेकिन हिंदुस्तान प्रभात खबर नहीं है, अजय जी शायद यह भूल गए। गौर करनेवाली बात यह भी है कि पटना में उनके साथ अत्याचार करने वाले उनके दो खास सहयोगी भी जमशेदपुर हिंदुस्तान में हैं, जिनमें से एक की अजय जी को बचाने के दौरान पिटाई हुई है। ऐसे में हिंदुस्तान के उस पत्रकार को निकाला जाना दुर्भाग्यपूर्ण है और पूरे मामले की जांच के बाद ही हिंदुस्तान प्रबंधन को उस पत्रकार के खिलाफ कोई कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि अजयजी का इतिहास भी दागदार रहा है। यह अलग बात है कि किसी प्रभात खबरी ने उनकी पिटाई नहीं की।
–आशीष
पत्रकार, दिल्ली
इस प्रकरण पर बहस कराएं
यशवंत भाई, भड़ास4मीडिया पर जमशेदपुर एपिसोड को पढ़कर लगा कि आपको अजय और रजनीश के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता है। इनके बारे में कुछ जानकारी उपलब्ध कराता हूं। इनके मारे कइयों ने तो पत्रकारिता ही छोड़ दी है। हाल ही में विशाल नामक पत्रकार ने पीड़ित होने के बाद पेशा ही बदल लिया। संपादक अजय कुमार का पत्रकारों को तबाह करने का पुराना इतिहास रहा है। अजय इसके पहले प्रभात खबर, पटना में थे। उस समय इन्होंने एक पत्रकार को इसलिए हटाया कि वह नमाज पढ़ने चला गया था। इनके द्वारा हटाए गए पत्रकारों की लंबी सूची है। इनके मारे कई पिछड़े पत्रकारों ने तो पेशा ही बदल लिया। बदनामी झेलना पड़ा हरिवंश जी को।
जहां तक अजय शंकर की बात है तो आपको बता दें कि ये सबसे शांत और इमानदार पत्रकार जाने जाते हैं। मैं अजय शंकर को उनके साहस के लिए बधाई देता हूं। जरूरत पड़ी तो जमशेदपुर जाकर अजय शंकर को आर्थिक मदद भी करूंगा। आपसे अनुरोध है कि आप इस मामले पर बहस शुरू करें ताकि पत्रकारिता और पत्रकारों की इज्जत बच सके।
-दिनेश कुमार
अब अमृत निकलना नामुमकिन है
प्रिय यशवंत जी, जमशेदपुर की घटना का आपने एकपक्षीय उल्लेख किया है। आपके सू़त्रों ने इस प्रकरण में पत्रकारिता के सिद्धांतों को भी भुला दिया है। या फिर लगता है कि घटना के बाद भुक्तभोगी या उनके करीबियों ने दामन राफ-साफ बताने के लिए यह सब रच डाला। नहीं तो इस संबंध में रिपोर्टर अजय शंकर का भी पक्ष रखा जाता। कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। आशा है आप इस मामले में अजय शंकर से बात कर उनकी बातों को भी रखेंगे। दरअसल, बात केवल अजय शंकर या किसी संपादक के बीच हुई मारपीट का नहीं है, बल्कि पत्रकारिता में आ रहे बदलाव का भी है। संपादकों पर प्रबंधन का दबाव, रिपोर्टरों पर संपादकों की तानाशाही, डेस्कवालों पर प्रायोजित खबरों को ठूंसने की मजबूरी पत्रकारिता को ऐसे मथ रही है कि अब अमृत निकलना नामुमकिन है। लेकिन जब हम खुद जहर नहीं पी सकते, तो दूसरों की गर्दन पकड़कर जबरन उन्हें पीने को मजबूर क्यों करें।
आपक
-एक प्रशंसक