बाठियां ने चावला की मौजूदगी में कहा कि सौदा पूरा चावला ने किया था, अमर उजाला के मालिकों से रकम ले कर भी उसी ने दी थी और कहा था कि इसे वासुदेवन को पहुंचा दिया जाए। बाठिया और वासुदेवन को तो जेल भेज दिया गया मगर अंकुर चावला के पिता का प्रताप इतना है कि उन्हें बाइज्जत बुला कर सिर्फ पूछताछ की जा रही है। जैसी प्रभु इच्छा।
अंकुर चावला घपले वाले मामलों में पहली बार नहीं फंसा है। वह क्लिफोर्ड चांस नाम की एक कानूनी फर्म के साथ काम करता है और इस फर्म पर आरोप है कि उसने भारत में 9 करोड़ 16 लाख रुपए 1996 से 1998 के बीच आयकर में हजम कर लिए। अंकुर चावला इस कंपनी के वकीलों में से एक हैं और इन वकीलों का तर्क है कि भले ही काम भारत में हुआ हो मगर भुगतान विदेश में हुआ है इसलिए भारत के आयकर कानून इस पर लागू नहीं होते। इस सिलसिले में बांबे हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला भी दिया गया हैं। जहां जनवरी में फैसला आया था कि भारत में किए गए काम पर ही भारत में टेक्स लग सकता है।
इसे ऐसे समझिए। आपको कोई व्यापार करते हैं। आपको दिल्ली या भारत के किसी भी शहर में इस व्यापार से एक करोड़ रुपए का लाभ होता है। लाभ का यह भुगतान आप किसी विदेश बैंक में लेते हैं और भारत में आयकर नहीं भरते। कानूनी भाषा में यह मामला हवाला और प्रवर्तन निदेशालय दोनों का अभियोग बनेगा मगर क्लिफोर्ड चांस के मामले में अभूतपूर्व रियायत बरती जा रही है। जैसी प्रभु इच्छा।
अमर उजाला वाले मामले पर लौट कर आए तो वासुदेवन के लॉकर खुल रहे हैं, फिक्स डिपाजिट बरामद हो रहे हैं। बारह बैंक खाते मिल चुके हैं और उनकी पड़ताल हो रही है, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई में जांच चल रही है। सीबीआई ने बाठिया और वासुदेवन को तो गिरफ्तार कर लिया मगर अंकुर चावला की पूछताछ के लिए हिरासत भी नहीं मांगी। जाहिर है कि अंकुर के प्रभाव का दायरा काफी बड़ा है। यह भी जाहिर है कि सीबीआई के अभियुक्त मामने के पैमाने असल में इस बात से तय होते हैं कि अभियुक्त कितना असर रखता है। अंकुर के पिताश्री प्रभु चावला की राजनैतिक दायरों में हस्ती से कोई भी अपरिचित नहीं हैं। आखिर वे सरकार द्वारा पद्मभूषण यों नहीं बन गए।
मामला यह है कि अमर उजाला के मालिकों अतुल महेश्वरी और अशोक अग्रवाल के बीच कानूनी लड़ाई चल रही हैं। एक तरफ अशोक अग्रवाल और उनके बेटे मनु अग्रवाल है जिनके अधिकार कम किए गए तो वे कंपनी लॉ बोर्ड चले गए। वहां वासुदेवन ने सुनवाई की और फैसला दिया कि आखिरी फैसले तक जो स्थिति है वही बनी रहनी चाहिए। आखिरी फैसले के दौरान तय था कि अशोक अग्रवाल को उनके हिस्से के बदले सैकड़ों करोड़ रुपए देने पड़ते और अतुल महेश्वरी के बारे में कहा जाता है कि वे यही फैसला बदलवाना चाहते थे। अब अतुल महेश्वरी को भी पूछताछ के लिए नोटिस मिल चुका है क्योंकि शिकायतकर्ता अशोक अग्रवाल है।
लेखक आलोक तोमर मशहूर पत्रकार हैं. वे बेबाक-स्पष्टवादी लेखन के लिए जाने-जाते हैं.