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श्योराण को छोड़ूंगा नहीं : नरेंद्र वत्स

[caption id="attachment_17239" align="alignleft" width="71"]नरेंद्र वत्सनरेंद्र वत्स[/caption]कुलदीप बिश्नोई की राजनीति चमकाने के लिए हिसार से सांध्य दैनिक ‘पांच बजे’ निकाल रहा है कुलदीप श्योराण : ‘अभी-अभी’ अखबार बंद कराने के लिए पुलिस से जबरन पंगा लिया : चुनाव में साफ-साफ कहा गया था कि जो पैसा न दे उसके खिलाफ जमकर लिखो : श्योराण ने आर्थिक मदद देने वाले अपने अप्रवासी भारतीय मित्र को भी छला : 

नरेंद्र वत्स

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कुलदीप बिश्नोई की राजनीति चमकाने के लिए हिसार से सांध्य दैनिक ‘पांच बजे’ निकाल रहा है कुलदीप श्योराण : ‘अभी-अभी’ अखबार बंद कराने के लिए पुलिस से जबरन पंगा लिया : चुनाव में साफ-साफ कहा गया था कि जो पैसा न दे उसके खिलाफ जमकर लिखो : श्योराण ने आर्थिक मदद देने वाले अपने अप्रवासी भारतीय मित्र को भी छला : 

वर्ष 2008 में मैं जींद में दैनिक भास्कर ब्यूरो चीफ था। मेरे पास दिनेश भारद्वाज, जो कि उस समय कुलदीप श्योराण का खास सिपहसालार था, फोन आया। उसने मुझे रेवाड़ी में ‘अभी-अभी’ का कार्यभार संभालने का अनुरोध किया। अच्छी सेलरी का वादा किया, लेकिन मैं बड़े ग्रुप को छोड़ऩा नहीं चाहता था। इसके बाद पंजाब केसरी जालंधर में कुलदीप श्योराण के साथ काम करने वाले मेरे एक मित्र ने भी मुझे इस बात के लिए प्रेरित किया कि मैं ‘अभी-अभी’ के लिए काम करूं। घर के पास काम मिलने के कारण मैंने इस सिलसिले में दैनिक भास्कर के तत्कालीन कार्यकारी संपादक श्री प्रदीप भटनागर जी से बात की, तो उन्होंने मुझे ऐसा करने से मना कर दिया। उनका तर्क था कि मैं एक संपादक हूं, अगर मुझे अखबार का मालिक बनाने का ऑफर मिले, तो उसे मैं कदापि स्वीकार नहीं करूंगा, अखबार चलाना बच्चों का खेल नहीं है।

जिस समय यह सब बातचीत चल रही थी, उससे कुछ समय पहले ही कुलदीप श्योराण को एक भगोड़े की तरह पंजाब केसरी, जालंधर के पहले पन्ने पर दो-तीन बार विज्ञापन के रूप में छापा गया। विज्ञापन में श्योराण का फोटो छापकर पंजाब केसरी ने यह बताया कि इस शख्स का अखबार के साथ कोई लेना-देना नहीं है। घर के आसपास काम करने की जिद के कारण प्रदीप भटनागर जी ने मेरा तबादला नारनौल भी कर दिया, लेकिन श्योराण के सिपहसालारों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। मैं उनके झांसे में फंस चुका था। दैनिक भास्कर से इस्तीफा दिए बगैर मैं नारनौल के अपने साथी असीम राव को लेकर कुलदीप श्योराण से मिलने गुडग़ांव पहुंच गया। बातचीत के दौरान हम दोनों को जो सब्जबाग दिखाए गए, हम दोनों ही उस चक्कर में फंस गए।

हम दोनों तो डूबती नाव में सवार होने का मन बना चुके थे, साथ ही मैंने दैनिक जागरण में काम कर रहे रिपोर्टर प्रतीम सिंह व हरीभूमि में काम कर रहे बलजीत शर्मा को भी अच्छी सेलरी का लालच देकर अपने साथ जोड़ लिया। यही काम मेरे साथी असीम राव ने भी किया था। मैंने रेवाड़ी में कुलदीप श्योराण की सहमति के बाद तीन कमरों का एक मकान 5500 रुपए मासिक किराए पर ले लिया। ऑफिस के लिए अंधाधुंध सामान पहुंच गया। सांध्य दैनिक अभी-अभी का प्रकाशन शुरू हो गया। लगातार चार माह तक कड़ी मेहनत करने के बाद भी सेलरी के नाम पर हमें फूटी कौड़ी तक नहीं मिली। मैं तो जैसे-तैसे अपना काम चलाता रहा, लेकिन प्रीतम और बलजीत आर्थिक संकट का सामना करने लगे।

मेरी सोच यही थी कि अखबार चल जाएगा, तो सैलरी भी मिल जाएगी। इतना ही नहीं, मैंने टेलीफान व बिजली के बिलों का भुगतान भी अपनी जेब से करना शुरू कर दिया। कमोबेश यही स्थिति नारनौल में बन चुकी थी। आर्थिक तंगी के चलते वहां के रिपोर्टर पवन भारद्वाज ने काम छोडऩे का मन बना लिया। काम छोडऩे के बाद जब उसने कुलदीप श्योराण से अपना हिसाब करने की मांग की, तो श्योराण ने उसे आंखें दिखाना शुरू कर दिया। आखिरकार मेरे मना करने के बावजूद पवन भारद्वाज ने रेवाड़ी के लेबर कोर्ट में कुलदीप श्योराण के खिलाफ केस दायर कर दिया। असीम राव ने भी दरियादिली दिखाते हुए पवन भारद्वाज का हिसाब अपनी जेब से कर दिया, ताकि कुलदीप श्योराण को कोई परेशानी नहीं हो।

‘अभी-अभी’ में काम करते हुए जब मेरी जेब पूरी तरह ढीली हो गई, तो मैंने भी श्योराण से वेतन और कार्यालय के खर्चों का भुगतान करने की मांग कर डाली। पैसा तो नहीं मिला, लेकिन एक सलाह जरूर मिली कि कंपनी को घाटे से उबारने के लिए पत्रकारिता से ज्यादा धंधे पर ध्यान दो। मन मारकर हमने अखबार के लिए विज्ञापन भी जुटाना शुरू कर दिया। उस समय स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि जब हम कोई विज्ञापन प्रकाशित कराते, तो उस दिन अखबार की गाड़ी नहीं पहुंचती थी। कारण यह था कि टैक्सी वालों को भुगतान ही नहीं किया जाता था।

इसी दौरान रेवाड़ी में अखबार का सर्वे करने वाले आठ युवकों ने सर्वे की सेलरी के लिए श्योराण एंड कंपनी पर दबाव बढाऩा शुरू कर दिया। चूंकि इन लड़कों को श्योराण के ही गुर्गों ने सर्वे के लिए लगाया था, इसलिए मेरा उनसे कोई वास्ता नहीं था। उन लोगों ने एक दिन रोहतक कार्यालय जाकर जमकर हंगामा किया। श्योराण ने मेरे पास फोन करके बताया कि किसी तरह एक सप्ताह तक इन लोगों को रोको। इसके बाद इनका हिसाब कर दिया जाएगा। मैंने झांसे में आकर उन युवकों को एक सप्ताह में हिसाब करने का आश्वासन दे दिया।

एक सप्ताह बीता, तो श्योरण पुराना मोबाइल नंबर बंद कर, नया नंबर ले चुका था, जिसका मुझे पता नहीं था। मेरे कार्यालय में आकर युवकों ने हंगामा शुरू कर दिया। मैंने उनसे दो दिन का वक्त मांगा। किसी दोस्त से करीब साठ हजार रुपए उधार लेकर उन युवकों का हिसाब किया। अपने रिपोर्टरों को भी कुछ आर्थिक मदद दी, ताकि उनमें ऑक्सीजन बरकरार रहे।

सांध्य दैनिक को प्रातः दैनिक अखबार में बदल दिया गया। कुलदीप श्योराण ने अखबार चलाने के लिए शुरूआती दौर में ही अपने ऐसे गुर्गों को साथ रखा, जो अखबार चलाने में जरा भी सक्षम नहीं थे। कुलदीप श्योराण की चमचागिरी में माहिर इन लोगों को जरूरत से ज्यादा वेतन पर रखा गया था। मैं ब्यूरो चीफ होने के बावजूद अयोग्य जीएम और समाचार संपादक के साथ पूरी तरह बदस्लूकी करता था। चूंकि उनमें योग्यता का अभाव था, इसलिए वे कुछ नहीं कर पाते थे। एक बार मैंने मीटिंग के दौरान सीधे तौर पर ऐसे ही एक समाचार संपादक और कथित जीएम को नाकाबिल करार दे दिया। बाद में कुलदीप श्योराण ने दोनों को घर का रास्ता दिखा दिया।

हरियाणा में लोकसभा चुनावों का दौर बीत चुका था। लोकसभा चुनावों में प्रत्याशियों से अधिक से अधिक विज्ञापन रूपी धन हथियाने के लिए कुलदीप श्योराण कांख में थैला उठाकर प्रत्याशियों के पीछे भाग रहा था। हमें जिस प्रकार के निर्देश दिए जा रहे थे, उससे यह साफ लग रहा था कि यह अखबार हरियाणा जनहित कांग्रेस सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई का है। शायद श्योराण ने कुलदीप बिश्नोई को सीएम बनाने के सब्जबाग दिखाए थे, जिनके दम पर वह बिश्नोई से मोटे विज्ञापन लेने में कामयाब हो गया था। यही हाल विधानसभा चुनावों में हुआ। हमें साफ तौर पर निर्देश दिए गए कि कोई भी कंडीडेट चाहे कितना भी मजबूत स्थिति में क्यों ना हो, अगर माल नहीं देता है, तो उसे अपनी लेखनी से हरा दो। चाहकर भी हम अपनी कलम के साथ न्याय नहीं कर पा रहे थे। हजकां के टुच्चे कार्यक्रमों को भारी-भरकम कवरेज देना हमारी मजबूरी बन चुका था।

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इन चुनावों से करीब एक माह पूर्व अजय दीप लाठर ने फोन करके मुझे बताया कि रेवाड़ी व नारनौल के लिए टैक्सी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। अगर तुम टैक्सी की व्यवस्था कर सको, तो उसका भुगतान हम कर देंगे। मैं एक बार फिर इन लोगों के झांसे में आ गया। मैंने एक मारूती वैन 800 रुपए दैनिक के हिसाब से लगवा दी। एक माह बीतने के बाद वैन चालक ने जब पैसे मांगे, तो उसे रोहतक आने को कहा गया। वैन चालक रोहतक पहुंचा, तो उसे बताया गया कि हमने उसे नहीं रखा था। जिसने भी उसे रखा था, वह उसी से पैसे ले। मुझे एक बार फिर जूता लग चुका था। चुनावों के बाद से ही यह साफ हो चुका था कि अगले चुनावों तक इस अखबार को बंद किया जाना तय है। सीधे प्रत्याशियों से संपर्क कर श्योराण मोटा पैसा वसूल चुका था। जिस प्रत्याशी ने पैसा देने से मना किया, उसे बिसात खरी-खरी नाम के कॉलम में पूरी तरह से लपेटा गया। मैंने हर हाल में कंपनी का साथ निभाने की कसम खाई हुई थी, जिस कारण मैं लगातार कर्ज का शिकार होता रहा।

कार्यालय का फालतू सामान भी मैंने हेड ऑफिस भेज दिया था। यही सोचकर की श्योराण एक न दिन मेरा सारा हिसाब कर ही देगा। मेरे साथी मुझे लगातार इस बात का पाठ पढ़ाते रहे कि श्योराण की नीयत साफ नहीं है, लेकिन मैं पूरी तरह अंधविश्वासी बन चुका था। मेरा अंधविश्वास उस समय टूटा, जब एक दिन श्योरण ने मुझे किसी भी तरह का भुगतान करने से मना कर दिया। आज आलम यह है कि कंप्यूटर व फर्नीचर कम होने के कारण श्योराण ने ऑफिस का किराया तक नहीं दिया है। यह सामान मकान मालिक के कब्जे में है। श्योराण का कहना है कि किराया की कीमत का सामान ही नहीं है, तो हम क्यों किराया अदा करें। जहां सामान ज्यादा था, वहां किराए का भुगतान कर दिया गया।

अब श्योराण ने मेरा फोन तक उठाना बंद कर दिया है। उसके करीबी लोगों के अनुसार श्योराण के पर्सनल एकाउंट में मोटा पैसा भी है। इसके बावजूद नीयत साफ नहीं है। हम पत्रकार लोगों की आवाज को खूब उठाते हैं, लेकिन जब अपनी बारी आती है, तो खामोश हो जाते हैं। अब मैंने भी यह निर्णय कर लिया है कि मैं अपनी लड़ाई जमकर लडूंगा। मेरा और मेरी टीम का जो गला श्योराण ने कलम किया है, मैं उसके लिए कानून की मदद लेकर हर स्तर पर लड़ाई लडूंगा। साथ ही उसे प्रेस कौंसिल में भी ले जाऊंगा। उन साथियों से भी मदद की अपील करूंगा, जो श्योराण के झांसे में आकर अपने कैरियर को खात्मे के कगार तक पहुंचा चुके हैं।

कुलदीप बिश्नोई की राजनीति चमकाने के लिए श्योराण की नजरें अब प्रदेश से हटकर हिसार तक रह गई हैं। वह ‘पांच बजे’ के नाम से हिसार में अपना सांध्य दैनिक चला रहा है। जब उसके पास पैसे ही नहीं हैं, तो अखबार कैसे चल रहा है। कुलदीप श्योराण के एसी बंगले व महंगी गाड़ी का खर्च कहां से आ रहा है। जिन चेले चपाटों को पैसा मिल रहा है, वे आज भी कुलदीप श्योराण की जी-हुजूरी में जमकर लगे हुए हैं। यहां मैं उन त्रिलोचन भट्ट जी से भी माफी मांगना चाहूंगा, जिन्होंने कुलदीप श्योराण पर पुलिस केस होने के बाद भड़ास4मीडिया पर जमकर अपनी भड़ास निकाली थी। मेरी आंखों पर कंपनी की पट्टी होने के कारण उनकी भड़ास पर मैंने ही कुलदीप श्योराण का बचाव करने का प्रयास किया था। साथ ही उन साथियों को मैं हमेशा कोसता रहूंगा, जिन्होंने मुझे कुलदीप श्योराण के साथ जुडऩे की सलाह दी थी। यह बात और है सलाह देने वाले साथी भी आज मेरी तरह सडक़ छाप हो चुके हैं और अपने पैसे निकालने के लिए कानून की शरण में जा चुके हैं।

मैं अभी-अभी के बंद होने के असली कारण को बताता हूं। विधानसभा चुनावों में मोटा पैसा कमाने के बाद कुलदीप श्योराण पर कार्यालयों के खर्च व सेलरी का भुगतान करने का दबाव था। जिस एनआरआई ने श्योराण को अखबार चलाने के लिए आर्थिक मदद दी थी, वह भी अपने साथ हुए छल को समझ चुका था। वह श्योराण के लिए कानूनी कार्रवाई की तैयारी कर रहा था। दूसरी ओर इस कार्रवाई से बचने के लिए शातिर चालें चली जा रही थीं। सारे सिस्टम को एक साथ समेटने से स्टाफ के भड़कने की पूरी आशंका थी, इसलिए पुलिस के साथ बिना सबूत पंगा लेने का खेल खेला गया। पुलिस ने अपना काम कर दिया, अब उन साथियों को अपना काम करने की जरूरत है, जो श्योराण एंड कंपनी के हाथों छल का शिकार हुए हैं।

-नरेंद्र वत्स

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0 Comments

  1. Aseem rao

    April 3, 2010 at 10:00 am

    narender ji, sabse pehle to main bhi aap se maafi chahta huin kyonki aapko abhi abhi mein aane ke liye force karne walon mein main bhi tha. Lekin main yah kaam apne ak saathi ko ghar ke paas laane ke liye kar raha tha.aapke ache bhale carrier ka bhattha baithaane mein mera bhi itna yogdaan hai. rahi baat paper ke band home ki to ye baat muje jagran mein kaam kar rahe senior saatji ne pehle hi bata di thi lekin muje vishwas nahi hua ki koi malik yahan tak bhi jaa sakta hai.muje laane wale bhi dinesh ji h the aur sabse pehle wahi saath chod gaye.main aapki ladai mein aapke saath huin, jahan kahin bhi meri jaroorat pade aap muje yaad karna, shaayad ak saathi ka kuch to dukh baant sakunga.

  2. chandan kumar jha 9720164110

    April 3, 2010 at 11:29 am

    sab jayaj hai bhai

  3. DINESH SHARMA

    April 3, 2010 at 3:25 pm

    Narender ji And Aseem ji, We Are With You And Both Of You are Advised to Suit a Breach Of Trust case in The Honorable Court & As Well in The Press Council Of India. These Kind Of Cheaters Are not Spare able Who Are Looted the Hard Worked Income Of Journalists
    Dinesh

  4. कमल शर्मा

    April 3, 2010 at 3:29 pm

    श्‍योराण के खिलाफ पुलिस में भी रिपोर्ट लिखवाइए सब मिलकर और इसके खिलाफ मुख्‍यमंत्री आवास पर धरना दीजिए कि कार्रवाई करें तत्‍काल। साथ ही जो भी संभव हो सकता है इसके खिलाफ जमकर करें। सबक सिखाया जाना जरुरी है। इसके घर के बाहर भी जमकर हंगामा करों और बताओ इसने क्‍या क्‍या किया। पूरे हरियाणा और दिल्‍ली में इसके पोस्‍टर लगा दो इसके काले कारनामों के साथ। कुल मिलाकर जीना हराम कर दो इसका।

  5. sandy

    April 4, 2010 at 4:57 am

    nareder ji ek bat batoo…. aap itne bade patrakar hooo…. jahatak mai janta hu aapko dainik bahsjar se nikala gaya hai…aapki gahar ki halat bahi sahi nahi hai…. fir aap apne dam tak itne dino tak abhi abhi me kaise tike rahe. or abhi abhi ke office k karcha bhi apne uthaya hai…sawal ye uthta hai ki aakhir aapke pas itne paise aaye kaha sa… kya aapne bank se loan lita tha ya kuch oor… jawab aapko dena hai…

  6. शुभचिंतक

    April 4, 2010 at 6:21 am

    सबक सिखा कर ही छोड़ना। ठोको साले को , सड़क से संसद तक…

  7. Aseem rao

    April 4, 2010 at 9:21 am

    sandy ji, aapne narender vats par jo aarop lagaya hai ki unhe bhasker se nikala gaya hai to aap shaayad kuch jaante hi nahi hai aur kisi ke chadaane par ye likh mara. narender vats jind se bhasker b chief ki job chodkar aaye the. rahi baat unke ghar ki halat ki to kabhi unka ghar jakar dekna, jaisa ghar aapke sahar mein nahi hota waisa ghar hai vats ka. lekin uske paas wo paisa nahi hai jise aap paisa mante hain. kuch likhen to apna naam-pata jaroor likha karen.

  8. Ravi parkash sharma

    April 4, 2010 at 9:24 am

    aaj se pahle me bhi abhi abhi se sympthy rakhta tha me sochta tha ki sarkar ne abhi abhi ko band karvaya hai aur paterkarita ka gala gohta ja raha hai lakin aapki torey padkar meri abhiabhi ke perti sympthy khatam ho gyi ase log hi patrkarita ko badnam kar rahe hai

  9. Aseem rao

    April 4, 2010 at 9:25 am

    maine likha tha ki muje abhi abhi mein dinesh ji laaye the, iska ye matlab nahi tha ki main unhe kasoorwaar thahra raha huin. humdond ak hi paper mein kaam karte the unhone ak ache saathi ke naate muje offer kiya tha. agar meri kisi baat se unhe peeda hui ho to main unse maafi chahta huin kyonki wo mere ache saathiyo mein se hain.

  10. Narender Vats

    April 4, 2010 at 4:07 pm

    pyare sandy too to abhi tak sanda hee bna hua hai. too vo din bhool gya jab bhaskar me mere reasnal desk incharge banne ke baad teri kya haalat hui thi. apni nakami chupane ke liye toone deemag me keede padne kee baat kahte huye managment se lamba avkash mang liya tha. management ne teri haalat par tarash khate huye tuje beuro chief se reporter bna diya tha. rahi baat ghar ke haalat kee. ma tere jaise kai nokar apne pass kaam ke liye rakh sakta hoo. haram me ghade ko khet chrane kee aadat mujhe nahi hai.

  11. vakt kee maari

    April 4, 2010 at 4:23 pm

    snday jee agar aap me jra bhee dam hai to apne ashli naam ke saath saamne aeye. miane narender jee ke saath khoob kaam kiya hai. tumhari okat tak nahi hai kee unke baare me apne naam ke saath khulkar tippni kar sko. yah bhee ho sakta hai kee tum syoran hee ho. hme jis bande ne khulkar likhna sikhaya, uske baare me virodhi tak tucch tippni karne kee jurrat nahi karte. ek baar apna asli chehra ujagaj kroge, to paterkarita ke chetra me khud hee khud ko naga paoge.

  12. Trilochan Bhatt

    April 5, 2010 at 4:50 pm

    bhau Narendra Vats ji. Mafi jaisi koi baat nahi hai. Main jara jaldi sambhala, Aap jara der se. Mujhe behad afsos hai ki aap apni jeb se itna paisa kyon lagate rahe. Is ladai me jahan meri jarurat ho, main taiyar rahunga

  13. prabhakar

    April 7, 2010 at 7:45 am

    wah kya naam rakha hai sandy ptarkarita karte ho ki chatukarita . vats saheb k bare me tum jase bhikmange log kya likhenge . are vtsa sheb ye bhi usi gole ka aadmi hai ji कुलदीप श्योराण ke saath mil kar patrakaon ke ghar me daka dalta hoga .isko v pakdiyee

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