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‘अभी-अभी’ अखबार बंद

सवा दो सौ मीडियाकर्मी बेकार : स्वार्थ-लालच ने बिठा दिया अखबार का भट्ठा : पक्षपाती रवैए से दोस्त बिदके, दुश्मन हजार बने : पुलिस वालों से बिना मतलब पंगा ताबूत में आखिरी कील : हरियाणा में जोरशोर से निकला एक अखबार अब पूरी तरह बंद हो गया है. ‘अभी-अभी’ नाम के इस अखबार के एक कर्मचारी ने बहुत पहले एक मेल भड़ास4मीडिया को भेजा था जिसमें लिखा था- ‘अभी-अभी’ अखबार में सेलरी मिलती है ‘कभी-कभी’.

<p align="justify"><font color="#000080"><font color="#003366">सवा दो सौ मीडियाकर्मी बेकार : स्वार्थ-लालच ने बिठा दिया अखबार का भट्ठा :</font> </font><font color="#003366">पक्षपाती रवैए से दोस्त बिदके, दुश्मन हजार बने : पुलिस वालों से बिना मतलब पंगा ताबूत में आखिरी कील </font>: हरियाणा में जोरशोर से निकला एक अखबार अब पूरी तरह बंद हो गया है. 'अभी-अभी' नाम के इस अखबार के एक कर्मचारी ने बहुत पहले एक मेल भड़ास4मीडिया को भेजा था जिसमें लिखा था- 'अभी-अभी' अखबार में सेलरी मिलती है 'कभी-कभी'. </p>

सवा दो सौ मीडियाकर्मी बेकार : स्वार्थ-लालच ने बिठा दिया अखबार का भट्ठा : पक्षपाती रवैए से दोस्त बिदके, दुश्मन हजार बने : पुलिस वालों से बिना मतलब पंगा ताबूत में आखिरी कील : हरियाणा में जोरशोर से निकला एक अखबार अब पूरी तरह बंद हो गया है. ‘अभी-अभी’ नाम के इस अखबार के एक कर्मचारी ने बहुत पहले एक मेल भड़ास4मीडिया को भेजा था जिसमें लिखा था- ‘अभी-अभी’ अखबार में सेलरी मिलती है ‘कभी-कभी’.

पर तब यह नहीं लगा था कि आर्थिक संकट से जूझ रहा यह अखबार एकदम से बंद हो जाएगा. इस अखबार के मालिक व संपादक भी यही कहते रहे कि तात्कालिक संकट है, आगे चल कर सब ठीक हो जाएगा. पर संकट तात्कालिक से बदलकर दीर्घकालिक हो गया और इसका अंत अखबार के बंद होने जैसे दुखद हल में हुआ. इस अखबार के मैनेजमेंट ने जो गलत निर्णय लिए, उसका खामियाजा करीब दो सौ मीडियाकर्मियों को भुगतना पड़ रहा है. अखबार बंद होने से दो सौ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए हैं.

सूत्रों का कहना है कि ‘अभी-अभी’ अखबार की ताबूत पर आखिरी कील साबित हुआ हरियाणा के पुलिस अधिकारियों से लिया गया पंगा. पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी के अंदरखाने की कथित गड़बड़ियों पर इस अखबार ने कई रपटें छापीं जिनमें ज्यादातर प्रथम दृष्टया शाब्दिक लफ्फाजी से ज्यादा नहीं थीं. हालांकि अखबार प्रबंधन कहता रहा कि उनके पास गड़बड़ियों के सुबूत हैं. बावजूद इसके, पुलिस वालों से पंगा लेने का खामियाजा इस अखबार और इसके मालिकों को इस कदर भुगतना पड़ा कि अखबार ही बंद हो गया. चुनाव के दौरान अभी-अभी ने जिस तरह पक्षपाती रवैया अपनाया और धन के पीछे प्रबंधन पागलों की तरह भागता रहा, उससे लोगों का इस अखबार पर से विश्वास उठने लगा था. इसी कारण कुछ लोगों ने पुलिस एकेडमी को लेकर लिखी गई खबरों के पीछे की मंशा को पवित्र मानने से इनकार कर दिया था.

पुलिस वालों से पंगा लेने का नतीजा यह हुआ कि ‘अभी-अभी’ अखबार के मालिक कुलदीप श्योराण गिरफ्तार करके जेल भेज दिए गए. प्रधान संपादक अजयदीप लाठर पुलिस वालों के डर से अंडरग्राउंड होकर इधर-उधर भागते-छिपते रहे. पुलिस वाले जांच के नाम पर अखबार के दफ्तर से कंप्यूटर व हार्ड डिस्क ले गए. जांच होने तक के लिए दफ्तर को बाहर से सील कर दिया. नतीजा, अखबार का प्रकाशन बंद हो गया. बाद में कंप्यूटर वगैरह लौटा दिए गए, सील भी खुल गई, मालिक व संपादक जमानत लेकर प्रकट भी हो गए पर किसी की हिम्मत दुबारा अखबार निकालने की नहीं पड़ी.

सूत्र बताते हैं कि हरियाणा में लोकसभा व विधानसभा चुनावों के दौरान पैसा वसूलने में सर्वाधिक नंगई अगर किसी अखबार ने की तो वो ‘अभी-अभी’ था. दस सीटों में से छह पर के प्रमुख प्रत्याशियों को यह अखबार गाली दे-देकर कहता रहा कि ये लोग तो हर हालत में हार जाएंगे पर हुआ उल्टा. वे सभी छह प्रत्याशी जीत गए. ‘अभी-अभी’ पर आरोप है कि इसके प्रबंधन ने सिर्फ उन्हीं प्रत्याशियों के बारे में अच्छा छापा जिन्होंने इन्हें पैसे दिए. जिन लोगों ने नहीं दिए, वे चाहे जितने भी बड़े नेता क्यों न रहे हों, उन्हें ‘अभी-अभी’ की तरफ से हारता हुआ बताया गया.

इस तरह एक बिलकुल नया अखबार अपनी ही नीतियों के कारण जनता, नेता, पुलिस, पत्रकार, अधिकारी सभी का विश्वास खोता रहा. पहले आर्थिक तंगी का हवाला देकर करनाल से ‘अभी-अभी’ का प्रकाशन मैनेजमेंट ने बंद किया. बाद में पुलिस वालों से टकराव के चलते गुड़गांव, रोहतक और हिसार में भी अखबार का प्रकाशन बंद हो गया. बताया जा रहा है कि हरियाणा में इस अखबार के करीब सौ लोग फील्ड में कार्यरत थे. डेस्क पर 50 लोग थे. मशीन व अन्य विभागों को मिला लें तो 75 अन्य लोग. इस तरह दो सौ से सवा दो सौ मीडियाकर्मी बेरोजगार हुए हैं.

‘अभी-अभी’ से जुड़े रहे एक पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर भड़ास4मीडिया को बताया कि इस अखबार के बंदी होने के लिए अगर किसी एक शब्द को कोट किया जाए तो वह है ‘मिस मैनेजमेंट’. रणनीति कुछ और थी, किया कुछ और. नीति कुछ और थी, नीयत कुछ और. मैनेजमेंट लेवल पर जो भटकाव था, जो दिशाहीनता थी, जो अनैतिक सनक थी, वही अखबार को ले डूबी. नए अखबार को अपनी खबरों, सच्चाई, तेवर और निष्पक्षता के जरिए अपनी सार्थक छवि का निर्माण करना चाहिए था लेकिन प्रबंधन ने पैसे बटोरने के लालच में जो कुछ छवि बनी थी, उसको भी मिट्टी में मिलाकर रख दिया. स्थिति यह हो गई कि इस अखबार के चाहने वाले तो रहे नहीं, दुश्मन हजार पैदा हो गए.

‘अभी-अभी’ से जुड़े रहे लोग अखबार के बंद हो जाने से सदमे में हैं. ज्यादातर लोग अखबार बंद होने के लिए मैनेजमेंट को जिम्मेदार बता रहे हैं. ज्यादातर लोगों का कहना है कि अच्छे अखबारों को छोड़कर ‘अभी-अभी’ को ज्वाइन करना उनके करियर की सबसे बड़ी भूल साबित हुई है. पर अतीत में हुई गलती को ठीक करने का विकल्प इस जीवन में नहीं होता. मुमकिन है तो सिर्फ इतना ही कि अतीत की गल्तियों से सबक लेकर आगे बढ़ें. रोज नए-नए खुलने वाले न्यूज चैनलों और अखबारों में जाने से पहले बार-बार सोचें, हजार बार सोचें ताकि फिर कभी करियर संबंधी फैसले पर पछताने की स्थिति न आए.  

‘अभी-अभी’ अखबार और पुलिस वालों के बीच पंगे की खबरें आप नीचे कमेंट आप्शन के ठीक बाद दिए गए शीर्षकों पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

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0 Comments

  1. inhi kee maari

    March 31, 2010 at 10:40 am

    police se panga jaanboojhkar liya gya tha. kuldeep syoaran ne staff ke paise dkarne ke liye lather ke saath milkar game khela tha. dono ne jamkar paisa bna liya or staff ko sadak chaap bna diya. in logo ne greeb patrkaro ko salary ke naam par footi kodi tak nahi dee. ab offico se saman bhee utha liya hai. in beimano ka kabhi bhala nahi hoga.

  2. raj

    March 31, 2010 at 11:20 am

    ye bilkul sahi baat hai ki ye game jaanboojkar khela gay. halaat yah hain ki jahan ke office ka kiraya jayada tha wahan to ye saman lene hi nahi gaye. ab hoti rahe reporter aur landlord mein ladai, sheoran ji ko kya fark padta hai.akhbaar band karne ki plaanning to election ke turant baad hi ho gai thi, police walon se panga to apne ko saheed dikhaane bhar ki kosish thi.patarkaar chahe sadak par aa gaye ho lekin is saare khel mein sheoran ji jaroor karorepati ho gaye. par kisi ka haq maarkar koi kaamyaab nahi ho paya hai ye shyaad sheoran ji bhool gaye. sheoran ji yaad rakhna uper waale ki laathi mein awaaj nahi hoti hai aur wo padti jaroor hai.

  3. dharmind

    March 31, 2010 at 11:42 am

    यशवंतजी जब अख़बार शुरू हुआ था आप ने इसे इंडियन एक्‍सप्रेस जैसा खोजी अख़बार बताकर खूब कसीदे पढ़े थे। आप भी जानते हो मीडिया में दो चार साल तो बाल्‍यकाल के ही होते हैं। और आपने तो भ्रूण के समय से ही वाह वाही करना शुरू कर दी थी। सबक ये है कि पहले से किसी की तारीफ नहीं करना चाहिए। टिपण्‍णी प्रकाशित मत करिएगा। सिर्फ ये बात बी4यू के हितैषी होने के कारण कह रहा हूं।

  4. naresh arora

    March 31, 2010 at 2:38 pm

    यशवन्त जी ……अभी-अभी क गुनगान करने मे आप हि सब से आगे थे…मुद्दयी सुस्त..गवाह चुस्त वली हालत थि उन दिनो भादास पोर्टल की….लेकिन अब शायद आपको भी अफसोस हो कि गलत लोगों कि प्रोमोष्ण हो गई आप के हथों….

  5. Deviender

    March 31, 2010 at 3:28 pm

    यशवंत जी, बरसों पुरानी कहावत है कि बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से हो।
    अभी-अभी बंद होने से किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि यथातथ्य है कि पाप का घड़ा एक न एक दिन तो भरना ही होता है। ठीक ऐसा ही अभी-अभी के मामले में भी हुआ है। स्वयंभु माननीय श्री कुलदीप श्योराण जी ने अखबार की आड़ में पत्रकारिता के साथ बलात्कार किया। वो साहब भूल गये थे। भूल गये थे पत्रकारिता, पत्रकारिता की मर्यादा, पत्रकारिता का मिशन… और क्या लिखूं। ह्दय दु:खी है कि एक झटके में ही दो सौ से अधिक खबरची भाई रोड पर आ गये हैं। मेरी तो राय है कि जो भाई अपनी कलम के जोर पर दूसरों के हकों की लड़ाई लड़ते हैं, उनको अपनी लड़ाई भी उसी मजबूती के साथ लडऩी चाहिए और तथाकथित माननीयों को अदालत में घसीटना चाहिए। बाकी खुदा खैर करे…..। एक भड़ासी।

  6. Sanjay Gupta "Kurele" Orai

    March 31, 2010 at 5:15 pm

    Bure kaam ka Buraa natijaa…

  7. anil

    April 1, 2010 at 8:10 am

    adlti ldai kee shuruaat rewari ke ek reporter ne karne ka nirnay le liya hai. pritam naam ke repoter ne jab shyoran se salary maangi to use jaatisuchak shabd kahte huye syoran ne kha kee jab vah dgp tak se nahi darta, to ushki okat kya hai. pritam ke alava ek or reporter bhee kesh dalne kee tayari kar rha hai.

  8. मोलतोल

    April 1, 2010 at 11:18 am

    बिजनैस खबरें अंग्रेजी से हिंदी में बेहतर अनुवाद करना जानते हो, बिजनैस खबरों को परखने वाले और जमकर काम करने की इच्‍छा वाले साथी अपना आवेदन [email protected] पर भेज सकते हैं।

  9. somveer sharma

    April 1, 2010 at 1:05 pm

    ye to hona hi tha

  10. kakku ram

    April 1, 2010 at 1:48 pm

    hume to apno ne luta gairo m kahan dum tha. meri kisti yhi dubi wahan jahan pani kam tha…………………ek dost ne kha ki kam pani m kya aisi-tasi krwane gaya tha. ye line hmare uppr fit baithti h. punjab kesri mere sath desk se 18 ne kuldeep g k ek hi phone pr jmi jamai naukri chod di thi. kisi ne 2 mahine ki slry chodi to kisi ne ek mahine ki. kher pnjb keseri ko by by kh kr hum chal diye abhi abhi ko nmbr one banane. jis din choda sare kuldeep g k ghar jma hue. sbi sathi naukri chod k khus the ki ab kuldeep g ki sarkar hogi or naye paper m sbko badiya slry milegi. jyadatar k ghar walom ne kha b ki beta abi mt ja kyon pange le rha h naukri se chuochap kam kr le pr nhi sb pr kuldeep g ka bhut swar tha. sbi ne socha tha ki ab dukh k din gaye or sukh k din aayo re. sbi sathiyon ko kuldeep g pr pura viswas tha. jb rohtak m phli desk ki meeting hui to dono ne ek dusre ka kisi b halt m sath nibane ka vayda kiya. akhbar suru hua or fir chala manegment ki marji ka khel. desk walon ki sry 2-3 mahine k bad milni suru hui. desk wale sathiyan ne kbhi b slry k liye hungama nhi kiya. sab k sab apne jeb se room ka rent dete rhe or hotel pr khana khate rhe. m b unhi k sath tha. sb jb eksath baithte the to jyadatar khte the ki yar slry bessk na mile bs akhbar chal jaye. ghar wale gali dete rhe ki naukri krta ho abhi abhi ki or rupey lete ho ghar se. sunte rhe kuldeep g k viswas m. kisi ne kahin dusre paper m jana to dur try b nhi kiya, sirf isliye ki kahin kuldeep g ye na bol de ki desk walon ne sath nhi diya. ye bat khud kuldeep g or lather g khud jante h ki jitna sath desk walon ne diya sayad utna kisi ne diya hoga. desk ki itni kurbani b manegment ko dikhai na di or ek k bad ek sathi k sath bura bartav kiya gaya. jb lather k pass slry mangne jate to vo mahasay khud rone lgte or ulta hmare hi hath m davai ki parchi thama dete or khte ki yar mere pass davai k paise nhi h ye davai le aana. ye jwab sunkar desk walon ki kya halat hoti thi ye to use pta tha jo sbke khane ka hissab rkhta tha. kyonki kbhi kbhi to khane k paise nhi hote the. bina khana khaye b kam kiya h desk wale sathiyon ne. lakin manegment ne inki b parwah nhi ki. m cahata hu ki kuldeep g or lather g mere commnt ko padhe or yah bataye ki kine kiska sath nibaya or kisne dokha diya. muje apne desk sathiyon pr fakr h jinhone datkar kam kiya. muje yad h rat ko kbhi kbhi bear pine ke bad sb khte the ki bhgwan hmara paper chala de taki manegment ki or hmari taklif dur ho jayen. lakin na manegment ki takliff dur hui or na hmari. paper band hone k bad sayad kuldeep g or lather g ko thodi taklif hui hogi lakin unka kya jo ajj b ghar khali baithe h.

  11. कमल शर्मा

    April 2, 2010 at 4:20 am

    इस खबर पर ढ़ेरो‍ टिप्‍पणी देखी। कई टिप्‍पणीयों का निचोड़ यह है कि इस अखबार के बारे में कुछ भी लिखकर मानो यशवंत सिंह ने अपराध किया है। अखबार को बंद कराने और चालू कराने दोनों में मानो यशवंत सिंह की अहम भूमिका है। ये टिप्‍पणीयां परिपक्‍व मानसिकता की परिचायक नहीं है। जब कोई बच्‍चा जन्‍म लेता है तो सभी कामन रुप से यही कहते हैं यह होनहार बनेगा, विद्धान बनेगा, बड़े अच्‍छे काम करेगा, खूब नाम रोशन करेगा सबका। किसी को आपने यह कहते सुना है कि यह जो बच्‍चा आज जन्‍मा है बड़ा होकर दाऊद इब्राहिम से भी बड़ा गुंडा बनेगा, चोर बनेगा, महाचोर हो, कंस और रावण को पीछे छोड़ देगा। जिस दिन अखबार चालू हुआ तब आप सब काम करने वाले साथियों के मन में भी भावनाएं अच्‍छी थी और यशवंत जी के मन में भी। बाद में प्रबंधन क्‍या करने वाला है और क्‍या कर देगा यह कोई नहीं जानता था। जानता तो न तो आप लोग काम करते और न ही यशवंत जी उसकी प्रशंसा करते। यशवंत जी अखबार के मैनेजर या सीईओ तो थे नहीं कि रोज रोज का काम जांचकर लिखते रहते। समझ नहीं आता इस तरह की टिप्‍प्‍णी में आप लोग खींझ किस पर उतारना चाहते हैं। प्रबंधन को निशाना बनाइए, यशवंत जी पर बरसने से क्‍या होगा। नवजात को हर कोई आर्शीवाद, शुभकामनाएं देता है, बुरा नहीं कहता। विवेक और धैर्य से सोचों और फिर लिखों।

  12. raj

    April 2, 2010 at 8:13 am

    main bhai somveer ki baat se sahmat huin ki desk walon ne datkar kaam kiya. yahi haalat field staff ki rahi. reporters ko nov. 2008 ki salary dec mein mili aur uske baad oct.2009 mein election mein jo jisne jitni advt jhatki usne apni kuch to salary poori ki. 10 mahine ke baad ak peon or operator ko salary mili to unke pariwaar ka kya haal hoga ye to aap hi samaj sakte hain.lekin bhai sheoran ji ko iska koi dukh nshi hai, rahi baat mahamahim lather ji ki to wo bhi mota maal khaakar dakaar bhi nahi le rahe hain.

  13. Shubhchintak

    April 2, 2010 at 2:41 pm

    Sabse pahle to main kamal ji ki vishesh tipni ke bare main kuch kehna chahonga. Is site per media ki har chhoti badi ghatna ka pata lagta rehta hai. Ek do bande bhi idhar se udhar hue to pure desh main pata lagta rehta hai. Lekin abhi abhi ki management ke karan har mahine balki har roj darjno naukri chhodne ka bhala inko pata na ho ye baat hajam nahin hoti. Iski wajah ya to abhi abhi ko lekar pyar tha (wo iss liye bhi lagta hai kyonki inki advt. Is site per lagatar chalti thi) ya phir inka network abhi abhi ka naam aate hi range chhod deta tha wo yehi jane. Lekin daal main kuchh to kala tha hi. To bewjah kisi ki tarafdari or kaat karna dono hi galat hai. Agar kamal ji ne abhi abhi main kaam kiya hai to ya to wo sachhaye jante hi nahin ya phir ye bhi management ke khas the jinhone pidit karamchariyo ko chhod kar yahan per bhi chamchagiri nahin chhodi kyonki lagta hai ki inki saflta ka yahi mantra ho.

  14. Shubhchintak

    April 2, 2010 at 2:48 pm

    Sabse pahle to main kamal ji ki vishesh tipni ke bare main kuch kehna chahonga. Is site per media ki har chhoti badi ghatna ka pata lagta rehta hai. Ek do bande bhi idhar se udhar hue to pure desh main pata lagta rehta hai. Lekin abhi abhi ki management ke karan har mahine balki har roj darjno naukri chhodne ka bhala inko pata na ho ye baat hajam nahin hoti. Iski wajah ya to abhi abhi ko lekar pyar tha (wo iss liye bhi lagta hai kyonki inki advt. Is site per lagatar chalti thi) ya phir inka network abhi abhi ka naam aate hi range chhod deta tha wo yehi jane. Lekin daal main kuchh to kala tha hi. To bewjah kisi ki tarafdari or kaat karna dono hi galat hai. Agar kamal ji ne abhi abhi main kaam kiya hai to ya to wo sachhaye jante hi nahin ya phir ye bhi management ke khas the jinhone pidit karamchariyo ko chhod kar yahan per bhi chamchagiri nahin chhodi kyonki lagta hai ki inki saflta ka yahi mantra ho.

  15. कमल शर्मा

    April 3, 2010 at 8:23 am

    शुभचिंतक जी की टिप्‍पणी पढ़ी। हिम्‍मत ही नहीं है कि अपने असली नाम के साथ टिप्‍पणी लिख सके। क्‍या बहादुर पत्रकार है। देश की पत्रकारिता को ऐसे छिपे बहादुर पत्रकार ही चाहिए। अब मैं बता दूं कि यशवंत सिंह न तो मेरे दोस्‍त है और न ही हम कभी जीवन में मिले हैं। मैंने कभी कभी में कभी काम नहीं किया और पिछले 20 से ज्‍यादा साल से मुंबई में हूं। मेरी टिप्‍प्‍णी पत्रकारों के मंच भड़ास और इसके कार्यकारी यशवंत जी को लेकर लिखी गई टिप्‍पणियों पर थी। ठंडा पानी पीकर सोचों और फिर लिखो। अखबार के हालात आपको पता लग रहे थे तो पहले ही नौकरी क्‍यों नहीं बदल ली, या खुद ही लैटर लिख देते भडास वालों को कि यहां ऐसे बुरे हालात है। फिर भाई यशवंत जी नहीं छापते तो हल्‍ला मचाते। एक विज्ञापन मिल जाने से क्‍या करोडों रुपए मिल गए यशवंत जी को। विज्ञापन देना यह कोई सांठगांठ को सिद्ध नहीं करता। विज्ञापन लिया तो वह बिकाऊ हो गए। आपने जहां जहां काम किया है वहां भी तो विज्ञापन छपते होंगे यानी सब बिकाऊ है। पहले अपने असली नाम से टिप्‍पणी लिखने की हिम्‍मत पैदा करो।

  16. kam krne ke bad mehntane ka pyasa

    April 3, 2010 at 11:47 am

    be se badnam, be se besram, be se bddua, be se bhatha betha diya, be se beijti ki, be se bchoge nahi, be se bhagwan sb dekta he, be se bevkoof. ye sab he kuldeep or lather
    jra bhi insaniyat he to karmchariyo ke pese de do nhi to dono ko bhagwan maff nahi krega or sabki baddua jab tk jite rahoge app ke sath rahegi.

  17. vikas

    April 5, 2010 at 11:38 am

    कुलदीप शेयोरण की गन्दी नियत और साथ में दिए जा रहे लोलीपोप को कर्मचारी आराम से चूसते रहे, यह आश लिए की शायद एक दिन इसकी गन्दी नियत भी बदल जाएगी और और ये लोलीपोप भी काम आ जायंगे, शायद भगवान को इन दोनों में से कोई मंजूर नही था, इस से गतिया आदमी मैंने जिन्दगी में कभी नही देखा, सब कुछ होते हुए भी इतनी बेमानी करनी शिखे तो कोई कुलदीप और लाठर से, बड़े कमीने थे दोनों के दोनों,,, इनसे बड़ा कोई कमीना नही इस दुनिया में लाठर के पास जायो तो कुलदीप के पास कुलदीप के पास जायो तो लाठर के पास यानि वो दोनों सयाने और सारी दुनिया पागल, बड़े निक्मे थे दोनों जिन्होंने अखबार का बता बिता दिया और साथ में २०० लोगो का भगवान उसको तो कुछ भी करे कोई गिला नही

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